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Thursday, July 2, 2020

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बारिस म बिरहिन

आगे हे बरसात हा, रिमझिम बरसा होय।
नइहे सजना साथ मा, अन्तस् मोरे रोय।
अन्तस् मोरे रोय, अकेल्ला हौं बरसा मा।
नइ भावै घर द्वार, भटकथे मन धरसा मा।
जोहत रहिथौं बाट, रात दिन जागे जागे।
आजा सजना मोर, देख बरसा हा आगे।

नाँचै तरिया बावली, नाँचै धरा पताल।
पेड़ पात नाँचत हवै, मोर बुरा हे हाल।
मोर बुरा हे हाल, भरे बरसा मा तरसौं।
बनके दादुर मोर, सजन बिन कइसे हरसौं।
गरज बरस घनघोर, बिजुरिया मन ला जाँचै।
रोवौं  मैं धर मूड़, मोर आघू सब नाँचै।

जल मा तर हाँसै धरा, मारै नदी हिलोर।
सब जल पाके गै हिता, जले जिया हा मोर।
जले जिया हा मोर, गिरे पानी हर तबले।
अन्तस् हवै उदास, पिया तज गेहे जबले।
नइहे ओखर शोर, कहाँ ले पावौं  मैं बल।
सबला मेघ भिंगोय, मोर मन भभगे जल जल।

किरिया खाके रे घलो, काबर नइ आयेस।
काम कमा गर्मी घरी, लहुटे सब निज देस।
लहुटे सब निज देस, देख के बरसा दिन ला।
दउहा नइहे तोर, सता झन तैं बिरहिन ला।
देखँव बस थक हार, करौं का मैंहर तिरिया।
आजा सजना मोर, अपन सुरता कर किरिया।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

5 comments:

  1. सुग्घर सृजन गुरुदेव जी

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  2. अति सुघ्घर सृजन हे भाई

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  3. गज़ब सुग्घर रचना सर

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  4. बड़ सुग्घर गुरुजी 💐💐💐

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  5. वियोग श्रृंगार के उत्कृष्ट कुंडलियाँ भाई...
    बहुत सुंदर..

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