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Sunday, May 31, 2020

रोला छन्द-, तुलेश्वरी धुरंधर

रोला छन्द-, तुलेश्वरी धुरंधर
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1,विषय-मीठा बोली
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मीठा बोली बोल,घोल जी मिसरी जतका।
करू कसा झन बोल,होत हे किट किट कतका।।
मन मा मया अपार, तोर मन मितवा मिलही।
जिनगी के दिन चार ,खुशी  के फुलवा खिलही।।

2,विषय-पानी
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पानी भरके राख, बउर झन उरहा  धुरहा।
सुक्खा नरवा खेत ,दिखे जस लइका मुरहा।।
सिका  बाँध के राख, नहीं ते चिरई मरही।
पानी बड़ अनमोल ,जीव मन पीके तरही।।

3,विषय-रक्तदान
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करव रक्त के दान,जीव ककरो  बच जाही।
जिनगी है अनमोल, तुँहर सेती सुख पाही।।
 तुँहरो होही नाव,दुःख उँकरो बिसराही।
दानी ओ कहलाय,  रक्त  जो दान कराही।।

4,विषय-बेटी घर के शान
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बेटी घर के शान, हमर जी मान बढ़ाथे।
मइके अउ ससुराल, मया के  पाठ पढ़ाथे।।
दाहिज दानव आय,सबो के जिनगी खाथे।
मानवता धिक्कार ,बहू बेटी जल जाथे।।
 रचनाकार -डॉ, तुलेश्वरी धुरंधर
अर्जुनी-बलौदाबाजार

Saturday, May 30, 2020

रोला छंद:पोखन लाल जायसवाल

रोला छंद:पोखन लाल जायसवाल

तोर मोहनी रूप,देख सबझन मोहागे।
होही कभु तो भेंट,बाट सब जोहन लागे।
दिए मोहनी डार,मया मा अपन फँसाके।
तहीं बिटोए घात,मोर सपना मा आके।१

सोहे टिकली माथ,नाक मा सुनहर नथनी।
धरे मोहिनी रूप,ठगे तैं बनके ठगनी।
भुलवा दे सुध मोर,मया के बाँधे बँधना।
गाये सुग्घर गीत,मया ले मन के अँंगना।२

मया मयारुक गोठ,करे हिरदै ला घायल।
करे दिवाना तोर,पाँव के बाजत पायल।।
बिरहा ला अब तोर,रात दिन पड़थे सहना।
कइसे भेजँव सोर,तोर बिन मुश्किल रहना।।३

गोठ सुवा कस मीठ, सहीं मा गजब सुहाथे।
घेरी-भेरी घात,तोर सुरता हर आथे।
कुहुक कुहुक के रोज,कोइली अगन बढ़ाथे।
अलथी-कलथी मार,तोर बिन रात पहाथे।।४

आज पहिन ले मोर,नाँव के तैंहर कँगना।
हमर मया के फूल,महकही घर अउ अँगना।
चंदा जइसन रूप,देख तोला सँहराही।
हमर मया के गोठ,गाँव भर ह गोठियाही।५

हमर दुनो के बीच,मया के माते गइरी।
चारी बर भरपूर,बने अब बनथे बइरी।
धन धन भाग हमार,मया मा सबो भुलागे।
बइरीपन के आज,भरम के भूत भगागे।६


जेठ

चाम जरोवय घाम,गली निकलन नइ भावय।
ताव दिखावत जेठ,रोज आगी बरसावय।
कुआँ बाउली ताल,जरे जस पान-पतेरा।
हे बदरा के आस,धरे जे आय गरेरा।
।।७

बनके डाकू देख,जेठ हर डारय डाँका।
नदिया डबरी ताल,लुटागे परगे हाँका।
तड़पत हावय जीव,प्यास मा खोजत पानी।
कोन बचाही जान,सोच मा परे परानी।।८

जरै भोंभरा पाँव,चटाचट बिन चप्पल के।
सूरज चलथे दाँव,जेठ मा घाम उगल के।
बड़ करथे अतलंग,बने आगी के गोला।
चलथे दिनभर झाँझ,छाँव मा जरथे चोला।९


दिखे नहीं जब राम,त रावण कइसे मरही।
हे संसो दिन रात,मुसीबत कइसे टरही।
देख भयानक रोग,मिलन कोनो नइ भावै।
हावै चिंता आज,मुक्ति सब कइसे पावै।।१०

छंदकारः
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह (पलारी)
जिला बलौदाबाजार भाटापारा (छग)

Friday, May 29, 2020

रोला छन्द- उमाकान्त टैगोर

रोला छन्द- उमाकान्त टैगोर

मन ला अड़बड़ भाय, छन्द के गाना रोला।
सब ले सुग्घर आज, दिवस हर लागय मोला।।
लिखबो सब झन रोज, बने जी ध्यान लगा के।
गूँजय एकर शोर, रहिन जी अलख जगा के।।1।।

हक ला ककरो मार, पेट झन अपन भरव जी।
मिहनत करके पोठ, नाम ला अपन करव जी।।
कइसे बनही बात, मूड़ ला धर बइठे मा।
बने बिगड़ही काम, जियादा मुँह अइठे मा।।2।।

बाबू रोज कमाय, करय जी बेटा खरचा।
होगे हे मतवार, गली भर होवय चरचा।।
गाँव-गाँव के बात, कहूँ के घर के नोहय।
बाबू जी के भार, कोन अब सरवन बोहय।।3।।

पढ़े लिखे का काम, बाप नइ सेवा जाने।
फिरथस बन हुसियार, अपन तँय छाती ताने।।
अइसन घोर कपूत, भाग मा जेकर होथे।
बेटा हाँसय रोज, बाप जिनगी भर रोथे।।4।।

जी कल्लाथे मोर, पढ़े नइ जावस कहिके।
गारी खाबे रोज, गधा अउ अड़हा रहिके।।
जे दिन आही चेत, हाथ ला रमजत रहिबे।
सोच सोच के तोर, भाग ला टमरत रहिबे।।5।।

नेता करथे राज, खाय ओ घी के रोटी।
जनता मन के आज, भूख मा ऐंठत पोटी।।
कइसे चलही देश, बैठ के सोचत हावँव।
सोच सोच के मोर, मूड़ ला नोचत हावँव।।6।।

देवव थोकन ध्यान, नशा ला छोड़व संगी।
देश भक्ति मा आज, सबो झिन मन ला रंगी।।
भारी एकर बीख, जोरहा सब ला धरथे।
कहिथे सबे सियान, इही ले घर हा जरथे।।7।।

पातर कनिहा तोर, मटक ले मटकय गोरी।
रहय जियत भर मोर, मया के बँधना डोरी।।
छुन-छुन, छुन-छुन तोर, छनकथे, बैरी पैरी।
सुनथस बोली मोर, जान के बनथस भैरी।।8।।

हिचकी आथे रोज, रात दिन सुरता  करथंव।
घेरी बेरी तोर, मया के सुतरी बरथंव।।
माते दौना फूल, हुलस के मन हा मोरे।
आबे नरवा तीर, सँगी तँय भाजी टोरे।।9।।

आज नहीं ता काल, मोर तो सुरता आही।
बिहना कट तो जाय, साँझ कइसे कट पाही।।
सुसक सुसक दिन रात, हदर के तँय हा रोबे।
मेला जइसन भीड़, घलो मा जुच्छा होबे।।10।।


छंदकार- उमाकान्त टैगोर कन्हाईबंद, जाँजगीर (छत्तीसगढ़)

Thursday, May 28, 2020

रोला छंद-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

रोला छंद-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

------नहकइया हे जेठ--------

नहकइया हे जेठ, फेर आही पारी मा।
आवत दिखे असाढ़, गाँव के तइयारी मा।
भेंटे बर चउमास, सजत हे खपरा छानी।
पावत हावय आँच, चेरहा आमा चानी।

काँद-दुबी खपटाय , बिनागे झुनकी पैरी।
बइला मन बर नून, बदलही भउजी भैरी।
काँटा गय लेसाय, बिछागय खातू-माटी।
तरिया गय नेवार, अगोरय खटिया पाटी।

दरा-फुना गे दार, धरागे लकड़ी छेना।
हफ्ता दस दिन बाद,उघरही चना चबेना।
होही लगिन बिहाव, जेठ बेटा बेटी के।
सगा पहुँच नइ पाँय, भले एती-तेती के।

घुरुवा मन ला देख, हँसत हें हो के रीता।
लगथे दे के ध्यान, सुने हें भगवत गीता।
कटगे बँबरी थाँघ, ढेखरा बनके धँसही।
चढ़ के सेमी नार, छछल के खुलखुल हँसही।

पैरावट लिस ओंढ़, चदरिया ला जलरोधी।
धरे कलारी हाथ, तिरे बर अब झन ओधी।
छाता पनही टार्च, दुकानन मा टंगागे।
उन्नत संकर बीज, हँसत मुस्कावत आ गे।

रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

Wednesday, May 27, 2020

रोला छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

रोला छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

               आमा

सुरता आवय गाॅंव, इहाॅं के आमा बारी।
साँझ बिहनियाँ रोज,जिहाॅं होवय रखवारी।
सपटे सपटे जाॅंय, कलेचुप उदबिद लइका।
अमरॅंय आमा तीर ,कूद के रुॅंधना फइका।

नजर बचाके रोज, करय तैयारी चुपके ।
तूक लबेदा मार , बइठ ओधा मा छुपके।
उत्ता धुर्रा बीन, तुरत आमा ला झड़के।
देखे जब रखवार, कुदावत बिक्कट भड़के।

खट्टा मीठा स्वाद ,आय गुणकारी आमा‌।
व्यंजन बने अनेक, जगत मा येकर नामा।
बिना बॅंधाये चेर,बाल आमा कहलावै।
नूनचरा तब डार,लोग लइका सब खावै।

काम हवय पिचकाट,अबड़ चटनी के झम्मट।
बनथे आम अथान,जेन बड़ रहिथे अम्मट।
देख परख के आम, टोरके घर मा लावॅंय।
जब-जब डारॅंय माच , चुहक के सब झन खावॅंय।

गिरे परे ला देख, आम के होवय छटनी।
काट कुटा के फेर, सील मा पीसॅंय चटनी।
येकर बने गुराम , खाय सब ओरी पारी।
सबझन करें पसंद ,लोग लइका महतारी।

सउघे आम उबाल, फेर गूदा अलगावै।
येहा पना कहाय, जेन लू झाॅंझ भगावै।
गुणकारी अनमोल,पना के शरबत ताजा।
येकर आगू पस्त, होय सब फ्रूटी माजा।

आम झोलहा छाॅंट,जतन मा दादी नानी।
हरियर छिलटा नीछ , खुला बर काटॅंय चानी।
बचे खुचे सब आम , पेड़ मा जब गदरावय।
मीठ रहय जे सार, उही गरती कहलावय।

बैंगन फल्ली संग,रसीला लॅंगड़ा चौसा।
पाके गजब सवाद, सबो के बढ़े भरोसा।
सुनके आमा नाम, खाय बर मन ललचावै।
मिले कहूॅं रसदार, चुहक के मजा उड़ावै।

आमा ला पिचकोल, घाम मा रसा सुखावैं।
पक्का पक्का जोंख, गजब अमरसा बनावैं।
गरमी मा भरमार , झकत ले मन भर खाथन।
मौसम के वरदान, जिहाॅं हम येला पाथन।

बड़े काम के चीज, आय आमा के गोही।
जड़ी दवा के संग, इकर हे बढ़िया जोही।
आम नहीं ये खास, समझ ले बाबू मुन्ना।
रहे पेड़ साबूत, होय झन एको उन्ना।

छंदकार:- महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला राजनांदगांव

Tuesday, May 26, 2020

रोला छन्द - मथुरा प्रसाद वर्मा

रोला छन्द - मथुरा प्रसाद वर्मा

जिनगी के दिन चार, बात ला मोरो सुनले।
माया ये संसार, हरे रे संगी गुन ले।
जोरे हस जे नाम, तोर माटी हो जाही।
तोरे धन भरमार, काम नइ कोनों आही।

बाँधे पथरा पेट, कभू  झन कोनों सोवय।
भूखन लाँघन लोग , कहूँ  मत लइका रोवय।
दे दे सब ला काम, सबों ला रोजी रोटी ।
किरपा कर भगवान, मिलय सब ला लंगोटी ।

नेता खेलय खेल, बजावय जनता ताली । 
जरय पेट मा आग, खजाना होगे खाली ।
फोकट चाउर दार, बाँट के गाल बजावय। 
राजनीति हर आज , सबो ला पाठ पढ़ावय। 

धन बल कर अभिमान, आज झन मनखे नाचय ।
पर के घर ला लेस, छानही काकर बाँचय । 
काँटा बों के कोन , फूल ला भाग म पाथे  ।
अपन करम के बोझ, सबे  हा इहें उठाथे ।

पर के आँसू पोंछ, हाँस के मन ला जोरय।
खावय सब ला बाँट, मया रस बात म घोरय।
मनखे उही महान, जेन परहित मर जाथे ।
पर बर जे हर रोय, उही सुख मन मा पाथे।
   
जाँगर पेरय रोज, घाम मा तन ला घालय ।
जेखर बल परताप, काँप के  पथरा हालय ।
माथ बिपत के नाँच, करम के गाना गाथे।
उदिम करइया हाथ, भाग ला खुद सिरजाथे।

जूता चप्पल मार, फेंक के वो मनखे ला। 
खन के गड्ढा पाट, चपक दे माटी ढेला।
जेन देश के खाय, उहें गद्दारी करथे।
चाटय बैरी पाँव, देश के चारी करथे।

छंदकार
मथुरा प्रसाद वर्मा
ग्राम- कोलिहा, बलौदाबाजार

Monday, May 25, 2020

आल्हा चालीसा - आल्हा छंद(अमित)

आल्हा चालीसा - आल्हा छंद(अमित)

सुमरनि:-(दोहा)
1~हाँथ जोड़ बिनती करँव, काटव 'अमित' कलेस।
    जय गनपति जय गजबदन, गिरिजापूत गनेस।
   
2~ गिरिजापूत गनेस जी, राख सभा मा लाज।
      सबद बता माँ सारदा, बानी बइठ बिराज।

3~बानी बइठ बिराज लव, कूलदेव भगवान।
    चलत रहय ये लेखनी, दव अइसन बरदान।

4~दव अइसन बरदान गुरु, सिखँव लिखँव सब छंद।
     गुरु किरपा बड़ भाग ले, मिलय 'अमित' आनन्द~5

सुमरनि:- (चौपाई)
1~सुमिरँव सदा ददा दाई ला,
     अउ मोर माँवली माई ला।
     सुमिरँव अरुण निगम श्री गुरुवर,
     छंद ग्यान जे देइन सुग्घर।

2~परमपिता प्रभु पालनहारी,
  जय हो ब्रम्हा बिस्नु तिपुरारी।
   भूल चूक माँफी निपटारा,
    किरपा करहू 'अमित' अपारा।

3~अँड़हा अदरा अमित अजारा,
     रहिथँव मैं हा भाटापारा,
     प्रभु चरनन मैं टेकँव माथा,
     गुरु किरपा ये आल्हा गाथा।

*कथा प्रसंग*

हे गनेस तैं सबद बरन दे, सदा सहायक सारद माय।
हाँथ धरे हँव तुँहर लेखनी, अक्छर-अक्छर 'अमित' लिखाय।~1

जोंड़ जाँड़ के आखर-आखर, लिखय 'अमित' अँड़हा मतिमंद।
गुरु किरपा के बरसे बरसा, तभे लिखत हँव आल्हा छंद।~2

अब्बड़ अद्भुत अलखा आल्हा, अलहन अलकर टार मिटाय।
अटकर अजरा अलवा-जलवा, अड़हा अगियानी का बताय।~3

महाबीर बन जनमें आल्हा, बाहुबली ये 'अमित' कहाय।
जोश जवानी जउँहर जिनगी, सुन के कायर झट मर जाय~4

आल्हा ऊदल दू झन भाई, रहँय महोबा बीर महान।
गाँव-गाँव मा गाथैं गाथा, आल्हा ऊदल जस गुनगान।~5

धरमराज अवतारी आल्हा, भीम सहीं ऊदल दमदार।
लड़ें लडा़ई बावन ठन जी, जिनगी भर नइ जानिन हार।~6

कौरव पांड़व कुल हा जूझे, लड़गे कुरूक्षेत्र मैदान।
जनम धरें कलजुग मा दूनों, आल्हा ऊदल होंय महान।~7

जस गुन गावँव इन जोद्धा के, हमरे बस के नइहे बात।
जेखर कीरति घर-घर बगरे, जस गाथा गावँय दिन रात।~8

******* *आल्हा के जनम* ********

जेठ महीना दसमी जनमे, आल्हा देवल पूत कहाय।
बन जसराज ददा गा सेउक, गढ़ चँदेल के हुकुम बजाय।~9

ददा लड़त जब सरग सिधारे, आल्हा होगे एक अनाथ।
दाई  देवल परे  अकेल्ला, राजा रानी  देवँय  साथ।~10

तीन महीना पाछू जनमे, बाप जुद्ध में जान गवाँय।
बीर बड़े छुट भाई आल्हा, ऊधम ऊदल नाँव धराय।~11

राजा परमल पोसय पालय, रानी मलिना राखय संग।
राजमहल मा खेंलँय खावँय, आल्हा ऊदल रहँय मतंग।~12

सिक्छा-दीक्छा होवय सँघरा, लालन-पालन पूत समान।
बड़े बहादुर बलखर बनगे, लागँय राजा के संतान।~13

बड़े लड़इया आल्हा ऊदल, जेंखर बल के पार न पाय।
रक्छक बन परमाल देव के, आल्हा ऊदल जान लुटाय।~14

आल्हा संगी सिधवा मितवा, नइहे चोला एको दाग।
थरथर कापँय कपटी खोड़िल, बैरी बर बड़ बिखहर नाग।~15

बन चँदेल राजा के सेउक, अपन हँथेरी राखँय प्रान।
नित चँदेल हो चौगुन चाकर, दुनिया भर मा बाढ़य शान।~16

'अमित' महोबा के बलवंता, आल्हा आगू कोन सजोर।
बाढ़त नदियाँ पूरा पानी, पुन्नी कस चन्दा अंजोर।~17

 झगरा माते बात-बात मा, मार काट अउ हाहाकार।
पोठ लहू के होरी होवय, पवन सहीं खड़कय तलवार।~18

काँही तो नइ भावय इनला, रास रंग अउ तीज तिहार।
फड़फड़ फरकय भक्कम भुजबल, रहँय जुद्ध बर बीर तियार।~19

सुते नींद नइ आवय दसना, बड़ बज्जर बलखर बलबीर।
लड़त-लड़त बीतय दिन रतिहा, दँय झट बैरी छाती चीर।~20

राजपाट राजा रज रक्छक, आल्हा नइ तो चिटिक अबेर।
कुकुर कोलिहा सौ का करहीं, आल्हा ऊदल बब्बर शेर।~21

सतरा बछर उमर मा होवय, आल्हा के शुभ लगन बिहाव।
नैनागढ़  नेपाली  राजा,  बेटी  मछला  संग  हियाव।~22

राजकुमारी मछला जानय, जादू के जब्बर जर ग्यान।
नाँव सोनवा मछला जानव, रहय एक नइ इँखर समान।~23

बीर बहादुर बघवा बेटा, मछला आल्हा के संतान।
बाप कका कस बड़ बलवंता, इंदल बरवाना बलवान।~24

******* *आल्हा के पराक्रमश* ******

राग रागिनी नइ तो भावय, राजमहल अब नइच सुहाय।
बोल बचन सुन महतारी के, बेटा बाघ मार घर लाय।~25

आज बाघ कल बैरी मारव, तब छतिया के दाह बुताय,
बिन अहीर के मैं नइ मानँव, दाई ताना इही सुनाय।~26

जेखर बेटा कायर निकले, महतारी रो-रो पछताय।
सुनव दुनों तुम आल्हा ऊदल, असल पूत जे बचन निभाय।~27

कुकुर बछर बारा बस जीयय, जीयय सोला साल सियार।
बरिस अठारा छत्री जीये, आगू के जिनगी बेकार।~28

मूँड़ टँगागे बाप कका के, माँडूगढ़ बर रुख के डार।
अधरतिया के अध बेरा मा, मूँड़ी बड़ पारय गोहार।~29

आवव आल्हा ऊदल आवव, मोर लड़ंका लठिया लाल।
बँच के आहू माँडूगढ़ मा, बन बघेल के जी के काल।~30

खूब लड़इया लहुआ आल्हा, दूसर ले देवी बरदान।
भगत भवानी सारद माँ के, जइसे सीया के हनुमान।~31

बइठ बछर बारा बन तपसी, मैहर माई के दरबार।
मूँड़ काट अरपन देवी ला, होय अमर आल्हा अवतार।~32

आल्हा ऊदल चलथें अइसे, जइसे रामलखन चलि जाय।
भुजबल भारी भक्कम भइगे, आँखी भभका कस भमकाय।~33

आल्हा ऊदल सिरतों सेउक, समझँय येला अपन सुभाग।
धरम करम हे राजपूत के, लड़त-लड़त दँय प्रान तियाग।~34

धरम धजा कस उड़े पताका, नाँव धराये हे अलहान।
सूरुज बूड़य बुड़ती बेरा, नइ बूड़े आल्हा के शान।~35

जीत-जीत के जिनगी जीयँय, जउँहर जोद्धा जय जयकार।
जेखर बैरी जीयँत जागय, ओखर जिनगी हा बेकार।~36

रन मा आल्हा करँय सवारी, पुष्यावत हाथी के नाँव,
खदबिद-खदबिद घोडा़ दउँड़े, कहाँ थोरको माढ़य पाँव।~37

देशराज बर खाये किरिया, आल्हा जोरय जम्मों जात।
एकमई सब राहव काहय, भेदभाव के छोड़व बात।~38

सबके हितवा आल्हा ऊदल, परहित मा ये भरँय हुँकार।
रक्छक बहिनी महतारी के, बैरी के कर दँय सरी उजार।~39

आल्हा ऊदल बड़ बलिदानी, राज महोबा के बिसवास।
करनी अइसन करें तियागी, अमर नाँव लिखगे इतिहास।~40
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*कन्हैया साहू "अमित"*
शिक्षक ~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क ~ 9200252055
©21/05/2018®
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रोला छंद- श्री मोहन लाल वर्मा

रोला छंद- श्री मोहन लाल वर्मा

(1) *मजदूर*
कतको बड़े पहाड़, टोर के सड़क बनाथँव ।
महल-अटारी रोज, घलो मँय हा सिरजाथँव ।
जिनगी के आनंद, मेहनत करके पाथँव ।
कहलाथँव मजदूर, आरती श्रम के गाथँव ।।

(2) *विनती*
विनती हे भगवान, जनम लेके अब आजा।
बढ़गे कलजुग पाप, दरश अपने दिखलाजा ।
कइसे बचही जीव, रात-दिन संसो होथे।
देख जगत के हाल, मोर अंतस बड़ रोथे ।।

(3) *सग्यान बेटा-बेटी*
दरपन मा मुख देख, देख के खुदे लजावँय ।
आगू-पाछू रेंग, रेंग हाँसँय मुसकावँय ।
काम-बुता ला छोड़, सजावँय सपना-पेटी ।
होगे अब सग्यान, समझ जव बेटा-बेटी ।।

बर बिहाव के गोठ, चलय जब घर मा भइया ।
सुनँय सपट दे कान, करँय बड़ हड़बिड़ हइया।
सुतँय नहीं भर नींद, रात मा जागत रहिथें।
करदव मोर बिहाव, बतावव का उन कहिथें ।।

बढ़िया दव संस्कार, सीख अब लइकामन ला।
राखव बने सहेज, अपन कोरा के धन ला।
पिँवरा करदव हाथ, देखके सुग्घर जोड़ी ।
रहि जावय कुल मान, भले हो लागा- बोड़ी ।।

बिगड़त हें औलाद, देखलव सरी जमाना ।
पड़य कभू झन फेर, मूँड़ धरके पछताना ।
मत छोड़व एकाँत , संग मा रहिके जानव।
का हे उँकरे सोच, भावना ला पहिचानव ।।

समय-समय के बात, समय मा नीक सुहाथे ।
आथे जभे बसंत, तभे आमा मउँराथे ।
सोचव आज सियान, बात ला गुनलव-धरलव ।
बाढ़य कुल मरजाद, काम गा अइसन करलव ।।

(4) *मचही हाहाकार*
मास जेठ-बैसाख, घाम हा चट ले जरही ।
कतको जीव पियास, बाट मा लफलफ मरही ।
मचही हाहाकार, बिना पानी के जग मा।
अउ होही विकराल, समस्या आगू पग मा ।।

(5) *अपन बिसाये दुख*
मनखे मन हा आज, करत हावँय नादानी ।
धरती माँ के चीर, करेजा चानी- चानी ।
रुखराई ला काट, गवाँवत हावँय सुख ला।
खुद बर अपने हाथ, बिसावत हावँय दुख ला।।

(6) *मोबाइल उपयोग*
मोबाइल उपयोग, बाढ़गे हावय अड़बड़ ।
कतको होथे सेट, मामला कतको गड़बड़ ।
बिखरत हें परिवार, बाढ़गे खर्चा घर-घर ।
अउ का होही हाल, सोच के देखव छिन भर ।।

(7) *मनोरंजन अउ संदेश*
फिल्मी गा संसार, मनोरंजन करवाथें ।
कतको मनखे देख, सही वोला पतियाथें ।
सबो सीन के अंत, छिपे संदेशा रहिथे ।
सही-गलत पहिचान, करव तुम मोहन कहिथे ।।

छंदकार- मोहन लाल वर्मा
पता- ग्राम-अल्दा, पो.आ.-तुलसी (मानपुर), व्हाया- हिरमी, तहसील - तिल्दा,जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़)पिन-493195
मोबा.9617247078

गीतिका छंद-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

गीतिका छंद-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

तन अपन तैं झन तपा मद मोह माया मा बँधा।
मिल जथे दाना सहज कहि पिंजरा मा झन धँधा।
वो सुवा के बात अलगे जे छुवे आगास ला।
का हिता पाबे बता अंतस दबाके के आस ला।

झन अधर्मी बन कभू कर दान दक्षिणा धर धरम।
नींद खातिर हे जरूरी शांति सुख अउ सत करम।
नींद जब आये नही तब रात हा बिरथा हवै।
बोल आवै नइ समझ तब बात हा बिरथा हवै।

खोद झन खाई कभू खुद रे तिहीं जाबे झपा।
हदरही झन कर कभू बाँटा दुसर के झन नपा।
तन रहे ना धन रहे तैं फोकटे झन कर गरब।
चार दिन दुख साथ रइही चार दिन रइही परब।

सोंच ले सब काम बनथे अउ बिगड़थे सोंच ले।
सोंच ला रख ले सहीं मन मा मया सत खोंच ले।
जीव ला जीते जियत जाने नही संसार हा।
देवता हो जाय फोटू मा चढ़े जब हार हा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

Sunday, May 24, 2020

रोला छंद-सुकमोती चौहान

 रोला छंद-सुकमोती चौहान

विषय- विज्ञान

ऊपर उड़य जिहाज,उड़य जइसन चिरई हर।
दूसर एक जिहाज,नाप देवय झट सागर।।
नाना आविष्कार,करय ये वैज्ञानिक मन।
भारी करिन विकास,बदल दिन जन जीवन।।


नवा नवा कर खोज,सत्य करथे प्रस्तुत जी।
दरपन कस विज्ञान,दिखाथे सच अद्भुत जी।।
साधन सुख के खोज,करय जिनगी आसानी।
नवा नवा हथियार,खोजथे इन मनमानी।।

दउड़त मोटर कार,धुँआ उगले जी भारी।
कटगे जंगल झाड़,रोय धरती महतारी।।
भूल करय विज्ञान,आय तब विपदा भारी।
गैस केमिकल संग,फैलथे जी बीमारी।।

उन्नति हे इक ओर,त दूसर ओर उदासी।
जीवन बने असान,बनावव नहीं बिलासी।।
दू पटिया के बीच,खड़े हावन सब कोनों।
उगल सकन ना लील,पक्ष अपनाबो दोनों।।

रस बस गिस विज्ञान,हमर जिनगी मा अइसन।
घूरे शक्कर नून,देख पानी मा जइसन।।
जी बो एकर संग,अलग होके मर जाबो।
कर के निक उपयोग,नवा सूरुज हम लाबो।।

सुकमोती चौहान "रुचि"
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

Saturday, May 23, 2020

रोला छन्द - मथुरा प्रसाद वर्मा

रोला छन्द - मथुरा प्रसाद वर्मा

जिनगी के दिन चार, बात ला मोरो सुनले।
माया ये संसार, हरे रे संगी गुन ले।
जोरे हस जे नाम, तोर माटी हो जाही।
तोरे धन भरमार, काम नइ कोनों आही।

बाँधे पथरा पेट, कभू  झन कोनों सोवय।
भूखन लाँघन लोग , कहूँ  मत लइका रोवय।
दे दे सब ला काम, सबों ला रोजी रोटी ।
किरपा कर भगवान, मिलय सब ला लंगोटी ।

नेता खेलय खेल, बजावय जनता ताली । 
जरय पेट मा आग, खजाना होगे खाली ।
फोकट चाउर दार, बाँट के गाल बजावय।
राजनीत हर आज , सबो ला पाठ पढ़ावय।

धन बल कर अभिमान, आज झन मनखे नाचय ।
पर के घर ला लेस, छानही काकर बाँचय ।
काँटा बों के कोन , फूल ला भाग म पाथे  ।
अपन करम बोझ, सबे  हा इहे उठाथे ।

पर के आँसू पोंछ, हाँस के मन ला जोरय
खावय सब ला बाँट, मया रस बात म घोरय
मनखे उही महान, जेन परहित मर जाथे ।
पर बर जे हर रोय, उही सुख मन मा पाथे
 
जाँगर पेरय रोज, घाम मा तन ला घालय ।
जेखर बल परताप, काँप के  पथरा  हालय ।
 बिपत घलो मा नाच, करम के गाना गाथे ।
उदिम करइया हाथ, भाग ला खुद सिरजाथे ।

जूता चप्पल मार, फेंक के वो मनखे ला।
खन के गड्ढा पाट, चपक दे माटी ढेला।
जेन देश के खाय, उहे गद्दारी करथे।
चाटय बैरी पाँव, देश के चारी करथे।

छंदकार
मथुरा प्रसाद वर्मा
ग्राम- कोलिहा, बलौदाबाजार

Friday, May 22, 2020

रोला छंद-मीता अग्रवाल*

*रोला छंद-मीता अग्रवाल* 

गुरु

ज्ञान जोत ला बार, होय जगमग उजियारा। 
अंधकार ला चीर,तमस के तोड़व कारा।
नहीं गुरू बिन ज्ञान,बात ला खचित समझ ले ।
हरे ज्ञान आधार, गुरू के पग ला धरले।।

मनखे मनखे एक, गुरू के सुंदर कहना।
आही नवा बिहान, मनुख सत् मारग चलना।
ऊँच नीच के भेद, गुरू के ज्ञान  मिटावय।
सिरजे  एके जोत,सबो मा प्राण समावय।।

सुख दुख

जिनगी के आधार, करम अउ आँख मिचौली ।
कभू मान झन हार,हाँस के भर ले झोली ।
समे होय ना एक, समझ तय कारज करबे।
सुख दुख के आसार,सबो दिन अंतस भरबे।।

भाई भाई 

सोच समझ के काम, करव सब मिलजुल भाई ।
जिनगी के दिन चार, मया सुर जग मा बगराई।
भाई भाई बैर, भाव अंतस मा पालय।
दया मया ला छोड़, अपन अपने ला काटय।।

चुनाव 

आगे हवय चुनाव, वोट तुम सोच के देना।
रुपिया कंबल बाँट, वोट ला करथे लेना।
मत के ये अधिकार,बहुत  बड़ पावर भाई।
लालच ला धिक्कार,अपन मत देहे दाई।।

शरद पुन्नी 

पुन्नी शरद उजास, आज सब संग मनावन।
दूध चउर के खीर,राँध के धरम निभावन।
पुनवासी के रात, चाँद अमरित बरसाथे।
गोकुल वृन्दा धाम,किसन हा रास रचाथे।।

छंदकार-डाॅ मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़

जयकारी छंद (मोर गाँव) -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



जयकारी छंद (मोर गाँव )

मोर  गाँव  मा  हे  लोहार।
हँसिया बसुला करथे धार।
रोजे  बिहना   ले  मुँधियार।
चुकिया करसी गढ़े कुम्हार।

टेंड़ा  टेंड़े  बारी    खार।
दिनभर बूता करे मरार।
ताजा  ताजा देवै साग।
तब हाँड़ी के जागे भाग।

राउत जागे होत बिहान।
गरुवा ढिल पहुँचे गउठान।
दूध दहीं के बोहय धार।
बइला भँइसा हे भरमार।

फेके रहिथे केंवट जाल।
मछरी बर नरवा अउ ताल।
रंग रंग के मछरी मार।
बेंचे तीर तखार बजार।

लाला धरके बइठे नोट।
सीलय दर्जी कुरथा कोट।
सोना चाँदी धरे सुनार।
बेंचे बिन पारे गोहार।

सबले जादा हवै किसान।
माटी बर दे देवय जान।
संसो फिकर सबे दिन छोड़।
करे काम नित जाँगर टोड़।

उपजावै गेहूँ जौ धान।
तभे बचे सबझन के जान।
बुता करइया हे बनिहार।
गूँजय गाँव गली घर खार।

बढ़ई गढ़थे कुर्सी मेज।
दरवाजा खटिया अउ सेज।
डॉक्टर मास्टर वीर जवान।
साहब बाबू संत सुजान।

कपड़ा लत्ता धोबी धोय।
पहट पहटनिन रोटी पोय।
पूजा पाठ पढ़े महाराज।
शान गाँव के घसिया बाज।

कुचकुच काटे ठाकुर बाल।
चिरई चिरगुन चहकय डाल।
कुकुर कोलिहा करथे हाँव।
बइगा  गुनिया   बाँधे  गाँव।

हवै शीतला सँहड़ा देव।
महाबीर मेटे डर भेव।
भर्री भाँठा डोली खार।
धरती दाई के उपहार।

छत्तीसगढ़ी गुरतुर बोल।
दफड़ा  दमऊ  बाजे  ढोल।
रंग रंग  के  होय तिहार।
लामय मीत मया के नार।

धूर्रा खेले  लइका  लोग।
बाढ़े मया कटे जर रोग।
गिल्ली भँउरा बाँटी खेल।
खाये अमली आमा बेल।

तरिया नरवा बवली कूप।
बाँधा के मनभावन रूप।
पनिहारिन रेंगे कर जोर।
चिक्कन चाँदुर हे घर खोर।

पीपर पेड़ तरी सँकलाय।
पासा पंच पटइल ढुलाय।
लइकामन हा खेले खेल।
का रंग नदी पहाड़ अउ रेल।

चौक चौक बर पीपर पेड़।
कउहा बम्हरी नाचय मेड़।
नदियाँ नरवा तीर कछार।
चिंवचिंव चिरई के गोहार।

सुख दुख मा गाँवे के गाँव।
जुरै बिना बोले हर घाँव।
तोर मोर के भेद भुलाय।
जुलमिल जिनगी सबे पहाय।

सरग बरोबर लागै गाँव।
पड़े हवै माँ लक्ष्मी पाँव।
हवै गाँव मा मया भराय।
जे दुरिहावय ते पछताय।

छत छानी के घर हे खास।
करे देवता धामी वास।
दाई तुलसी बैइठे द्वार।
मोर गाँव मा आबे यार।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)

रोला छंद - नीलम जायसवाल*

*रोला छंद - नीलम जायसवाल*

*१) - हे जगदम्बा -*
सुन ले मोर पुकार, जगत के तँय महतारी।
तहीं सकत हस टार, मोर पर विपदा भारी।।
दाई हँव नादान, शरण मँय तोरे आयँव।
अँचरा मा बइठार, अबड़ दुख जग मा पायँव।।

*२) - दाई-ददा -*
कर लेवव सत्कार, मिलय नइ हरदम मौका।
दाई-ददा ल पूज, रहव मिल डइकी-डौका।।
लइका मन तक पाँय, सुघर गुण हो सँगवारी।
बन जावय घर स्वर्ग, महक जावय फुलवारी।।

*३) - राम -*
भज ले सँगी राम, इही हे एक सहारा।
कर दीही भव पार, सबो के राम दुलारा।।
बिन नइया मझधार, फोकटे भटका खाबे।
राम हृदय मा राख, पार भव ले हो जाबे।।

*४) - बसंत -*
ऋतु बसंत हे आय, हमर मन ला हरसाए।
बगरे हे चहुँ ओर, महक तन मा भर जाए।।
कोयल करथे कूक, बइठ अमुवा के डारी।
बड़ खुश हावय बाग, फुले हे फुलवा भारी।।

*५) - गणतंत्र-*
दिवस आय गणतंत्र, हृदय मा आशा लहरे।
लोकतंत्र के देश, तिरंगा झंडा फहरे।।
कर लेवव जयगान, राष्ट्र के गावव गाना।
पड़ जावय जब काम, देश बर मर-मिट जाना।।

*६) - मेहमान -*
आयें हें मेहमान, भीड़ घर मा हय भारी।
हल्ला गुल्ला गोठ, चलत हे दुनियादारी।।
अंतस हा सुख पाय, सबो झन के सकलाए‌।
मन भारी हो जाय, लहुट सब झन जब जाए।।

*छंदकार -  श्रीमती नीलम जायसवाल*
*भिलाई, छत्तीसगढ़*
मो.न.-7828245502

Wednesday, May 20, 2020

चौपाई छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बेसरम(बेहया) के पउधा


चौपाई छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बेसरम(बेहया) के पउधा

*उगथे पउधा बेसरम, तरिया डबरी तीर।*
*गुण ला मैं बतलात हौं, सुनले धरके धीर।*

बँगला पान बरोबर पाना। हाल हवा मा गावै गाना।
हाँसे मुचमुच फूल गुलाबी। ठाटबाट ले लगे नवाबी।

इही बेसरम थेथर आये। कहूँ मेर गुलबसी कहाये।
नाम बेहया मनुष न भाये। कौने एखर बाग बनाये

अपने दम ये जागे बाढ़े। सब सीजन मा रहिथे ठाढ़े।
एखर नाम मा हावै गारी। हमर राज मा अड़बड़ भारी।

खेत खार डबरी अउ परिया। एखर घर ए नरवा तरिया।
होथे झुँझकुर एखर झाड़ी। ठाढ़े रहिथे आड़ा आड़ी।।

ये गरीब के बाँस कहाये। एखर थेभा समय पहाये।
गाँथ बाँध के आड़ा आड़ी। रूँधय घर बन खेती बाड़ी।

पाठ पठउहाँ पीटे भदरी। बना खोंधरा भैया बदरी।
टट्टा राचर रुँधना बनथे। जाने ते एखर गुण गनथे।

भँवरा जइसे होय गोल फर। लइका मन खेले येला धर।
एखर लउठी गजब काम के। बरे चूल मा सुबे शाम के।

जइसे उपयोगी ए घर मा। तइसे फोड़ा फुंसी जर मा।
एखर पान भगाये पीरा। पीस लगाये मरथे कीरा।

दाद खाज खजरी बीमारी। मिटे दूध मा एक्केदारी।
सावचेत जे करे मुखारी। भागे पायरिया बीमारी।

*सुख्खा पान सँकेल के,देय कहूँ यदि बार*
*माछी मच्छर भागथे, गुँगुवा  ले झट हार*

चाबे बिच्छी बड़ अगियाये। पान बेसरम जलन मिटाये।
धीरे धीरे हरे जहर जर। पत्ता पीस लगाले एखर।

उबके हे तन मा कसटूटी। तभो काम आवै ये बूटी।
दूध चुँहाये मा झट माड़े। घावे गोंदर पपड़ी छाड़े।

सरसो तेल मिलाके पाना। लेप लगाके सुजन भगाना।
लासा असन दूध हा चटके। आँख कान कोती झन छटके।

सुघर एखरो फोटू आथे। कुकुर कोलिहा इँहे लुकाथे।
एक जरी ले होय हजारो। मिले नही अब जादा आरो।

भले बेसरम नाम कहाये। तभो काम येहर बड़ आये।
खाय बेसरम एक बेसरम।आय होश अउ आँख बरे झम।

काम नीच हे जे मनखे के। वोला कोसे गारी देके।
लाज शरम ला जौन भुलाये। उही बेसरम मनुष कहाये।

काम बेसरम आवै कतको। फेर मनुष मन करे न अतको।
बिरथा हावै तब ये गारी। कहाँ मनुष मा हे खुददारी।।

पउधा मरे बढ़े मनखे मन। हवै बेसरम जइसे ते मन।
इती उती उपजत हे भारी। करत हवै नित कारज कारी।

कहे बेसरम मनखे मन ला। झन गरियावौ मोरे तन ला।
अपन पटन्तर देथव मोला। हवै मोर जइसे का चोला।

*मनुष बेसरम होय ता, कहाँ काम कुछु आय।*
*रहै बेसरम गुण धरे, लिख जीतेन्द्र लजाय।*

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

रोला छंद* -विषय-भ्रूण हत्या(नेमेंद्र)

रोला छंद* -विषय-भ्रूण हत्या(नेमेंद्र)

बेटी घर जब आय,छाय खुशियाँ घर सारी।
घर मा सोहर गाय,गाँव के नर अउ नारी।।
बेटी लछमी रूप,करे मंगल के बरसा।
काटे बेटी सोज,समझ पाना तै परसा।।

बेटी बगिया फूल,मूल हे बेटी घर के।
जिनगी के सह ताप,छाँव घर लाने धर के।
बेटी जननी लोक,करे हे जग के सिरजन।
बने बाप तै पाप,मार डारे बेटी धन।।

बेटी ले हे वंश,अंश बेटी हर घर के।
समझे तै हा कार, हरे बेटी धन पर के।।
बेटी होवत मान, ददा के दाई जइसे।
तब ले कर ले पाप, मार के बेटी कइसे।।

एक लहू के रंग,हरे बेटी बेटा हर।
मोती मंगल जोत, रखो बेटी बेटा बर।।
मन के भेद म भेद,भेद के पट ला खोलव।
रोवत बेटी देख,आज मिल कुछ तो बोलव।।

दाई काकी रूप,मातु बहिनी अउ भगिनी।
पालत सबके पेट,सहे चूल्हा के अगिनी।।
बेटी ले संसार,सरग जइसे हे लागे।
माने बेटी बोझ,कार भेजे यम आगे।।

मारे बेटी कोख,दुःख मा अब हस अइठे।
करके करनी आज,रोत काबर हस बइठे।।
बेटी जिनगी सार,जनम ले आवन देते।
हाँसत बेटी रोज,बाँह मा तै भर लेते।।

छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही,जिला-बालोद
मोबा.-8225912350

Tuesday, May 19, 2020

रोला छंद-सुरेश पैगवार

रोला छंद-सुरेश पैगवार

धधकत छाती मोर,   अरे तन हा गुँगुवाथे।
मिले ओर ना छोर, जीव हा डबकत जाथे।।
कँदवा खागे गोड़,  कमा के कतका लावौं।
बदन अमागे रोग, कहाँ ले ओखद पावौं।

अरजी हावय मोर,   गोठ ला सुनलव भाई।
सरग चढ़त हे भाव,   रोक लव दाम दवाई।
तपथे जइसे जेठ,   घाम जी अबड़ दुखाथे।
कीमत सुनके आज, हमर तो मुहूँ सुखाथे।।

सबके खाली हाथ,करत हम महिनत कतको।
आय पसीना माथ,भले छइहाँ हे जतको।।
रोटी पानी खोज,   गुजर जाथे जिनगानी।
महिनत करथन रोज,जानलव इही कहानी।।

हन ठन ठन गोपाल, भूख मा तन अँइलागे।
गुखरू होगे पाँव,    देखलव मन मइलागे।।
नँगा नँगा अधिकार, खात हें नँगत कसाई।
देवँय कोन धियान,  बढ़य ना हमर कमाई।।

होबो जभे  सुजान, तभे किस्मत हा भाही।
भूख गरीबी छोड़,  हमर घर ले जी जाही।।
सच्चा साथी ज्ञान,   छोड़ कभ्भू नइ जावै।
पढ़ लिख होय सुजान,भाग ला अपन बनावै।।

सजही जिनगी तोर,   ज्ञान अक्षर ला पाके।
छटपट छँइहा छोड़, गुजर जाबे पछता के।।
भारी लूट खसोट,  जगत मा अवगुन चारी।
शिक्षा मारय चोट,    तभे भागे बीमारी।।

                                                   
                   🙏  *सुरेश पैगवार*  🙏         
                              जाँजगीर

Monday, May 18, 2020

रोला छंद-कुलदीप सिन्हा

रोला छंद-कुलदीप सिन्हा

नइ हे जी तँय जान, काल के कोनो मालिक।
पढ़ के पा गे ज्ञान, बड़े ले बड़े विज्ञानिक।।
नाचत हे दिन रात, मूड़ मा वोहर सबके।
पावय नइ जी पार, गला ला कब वो चपके।।1।।

रावण के अभिमान, चूर गा होगे जानो।
नइ बाँचिस परिवार, भले कोनो झन मानो।
कतको रहिस ग ज्ञान, काम एको नइ आइस।
करनी के फल जान, देख वोहर गा पाइस।।2।।

भज ले जी तँय राम, पार गा भव हे होना।
धर के अब पतवार, नाव ला खुद हे खोना।।
ये जग ला जी जान, मया के गहरा सागर।
करथे जी सब बात, एक मन के गा आगर।।3।।

सब ला जी भगवान, देत हे दाना पानी।
चांटी हाथी मान, हवय गा एक कहानी।।
रहय न कोनो भूख, सोंच के देथे खाना।
करय नहीं जी भेद, समझ नइ पाय जमाना।।4।।

करबे सब ले प्रेम, घृणा ला दुरिहा कर के।
मिलही तुमला जान, प्रेम गा दुनिया भर के।
मनवा तेहा चेत, छोड़ दे दुनियादारी।
तन भीतर भगवान, करव जी वोखर चारी।।5।।

छंदकार
कुलदीप सिन्हा "दीप"
ग्राम -- कुकरेल ( सलोनी )
जिला ---- धमतरी ( छ. ग. )

Sunday, May 17, 2020

रोला छंद-कन्हैया साहू,अमित

रोला छंद-कन्हैया साहू,अमित

आखर-आखर जोड़, सबद तैं सुघर बना ले।
गा के गुरतुर गीत, सजन तैं अपन मना ले।।
लिख हिरदे के भाव, लेखनी सब ला भाही।
मिलही मनभर मान, मया अंतस मा छाही।।

हवय कलम ले आस, गोठ सिरतों ये करथे।
भरके भीतर भाव, अगन कस धधकत बरथे।।
सोज-सोज सब बात, लिखे बर खच्चित परही।
कलमकार के काम, कलम हा कड़कत करही।।

लिखबो मन के बात, जरूरी नइ हे छपना।
नइ खोजन जी मान, कलम के संगे खपना।।
मनभर आगर आस, भरे हे मन मा आसा।
महिनत करबो खास, पोठ होवय निज भासा।।

देखत जाही बीत, समय के सगरो पल हा।
आवय नइ तो काम, इहाँ अब कखरो छल हा।
सुरता रहिथे कर्म, जौन कर जाथे सुग्घर।
जौन निभाथे धर्म, नाँव रहि जाथे उज्जर।।

लिख ले सिरतों सार, छंद के साधक बन के।
धार कलम के टेंव, गजब तैं कर ले मन के।।
ताकत हे भरपूर, तोर अंतस मा आगर।
बिरथा झन तैं मेट, नाँव कर अपन उजागर।।

कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़

Saturday, May 16, 2020

रोला छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


रोला छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

मजदूर
सबके दुख ला जोर, चलत हे काम कमैया।
सबला पार लगाय, तेखरे  बूड़य नैया।।
घर दुवार ला छोड़, बनाइस पर के घर ला।
तेखर कोन भगाय, भूख दुख डर अउ जर ला।

जागे कइसे भाग, भरोसा मा जाँगर के।
ठिहा हवै ना ठौर, सहारा ना नाँगर के।।
देवै देख हँकाल, सबे झन देके गारी।
सबले बड़का रोग,गरीबी के बीमारी।।

थोर थोर मा रोष, करे मालिक मुंसी मन।
काटत रहिथे रोज, दरद दुख डर मा जीवन।
उही बढ़ा के भीड़, उही चपकावै पग मा।
ठिहा ओखरे बार, करे उजियारा जग मा।

पाले बर परिवार, नाचथे बने बेंदरा।
उनला दे अलगाय, बदन के फटे चेंदरा।
जिये धरे नित धीर, कभू तो सुख घर आही।
फेर बतावव कोन, कतिक पीढ़ी खट जाही।

खावय दाना नाँप,देख के पैसा खरचय।
ओखर कर का चीज,कहाँ अउ कोनो परिचय।
पैसा धरके हाथ, जमाना रँउदे उनला।
कइसे कोन बचाय, गहूँ के भीतर घुन ला।

कबे मनुष ला काय, हवा पानी नइ छोड़े।
ताप बाढ़ भूकंप, हौंसला निसदिन तोड़ें।
बिजुरी हवा गरेर, महामारी हा मारे।
गतर चलावै तौन, अपन जिनगानी हारे।

संसो फिकर ला छोड़, हकन के जउन कमाये।
तेखर बिरथा भाग, हाय कइसन दिन आये।
बली चढ़त हे देख, बोकरा कस नित चोला।
आँखी नम हो जाय,लिखत ले अइसन रोला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

Friday, May 15, 2020

रोला छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

रोला छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

1-गुरू चरन

सब कोती अँधियार, कुछू नइ हावय सूझत।
मै अढ़हा मतिमंद, रोज दुख सुख ले जूझत।
चक्कर मा पेरात, पड़े हँव जनम मरन के।
हो जातिस भवपार, आस हे गुरू चरन के।

2-नारी

करौ सदा सम्मान, रूप देवी के नारी।
रिश्ता हवय अनेक, बहिन बेटी महतारी।
दुनियाँ सरी समाय, चरन मा इँखरे संगी।
देवय ममता छाँव, रोज इँन सहिके तंगी।

3-राजनीति

राजनीति व्यापार, देख अब होगे भाई।
सबके सब हे चोर,बने मौसेरा भाई।
कुर्सी के सब खेल, करत हे फोकट झगड़ा।
वादा के भरमार, गोठ बस करथे तगड़ा।

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी कवर्धा
जिला-कबीरधाम(छत्तीसगढ़)

Thursday, May 14, 2020

रोला छंद :- जगदीश "हीरा" साहू

रोला छंद :- जगदीश "हीरा" साहू

हमर राज के शान, देख लव कहाँ नँदागे।
लुगरा सूता छोड़, जीन्स अउ टॉप फँदागे।।
करय नहीँ सम्मान, आज मर्यादा हरगे।
ले फैसन के नाम, इहाँ फूहड़ता भरगे।।

बड़ किस्मत के बात, मोर घर जनमे बेटी।
मिटगे दुख के रात, खोल ख़ुशहाली पेटी।।
झन तँय अंतर जान, अपन बेटी-बेटा मा।
बेटी ला झन मार, परच  नहीँ सपेटा मा।।

शिक्षा के अधिकार, आज मिलगे हे सबला।
नारी घलो पढ़ाव, इहाँ नइ हे वो अबला।।
पढ़के पाही ग्यान, मान जग मा बगराही।
बेटी घर के शान, सबो के भाग जगाही।।

राखव घर ला साफ, कभू बगरा झन कचरा।
 नइ माने ये बात, फँसत जाहव गा पचरा।।
जिनगी भर दुख झेल, नरक बन जाही घर हा।
मिलय नहीँ आराम, साथ नइ जाही पर हा।।

छंदकार :- जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)

Wednesday, May 13, 2020

रोला छंद- ईश्वर आरुग

रोला छंद
झरर झरर हे झाँझ, सुखावत काया लागे ।
देख सुरुज के ताव, छाँव हा पल्ला भागे ।
बासी कड़ही संग, मिठावय चटनी कुर हा ।
मंझन करव अराम, कहय मन हा बइसुरहा ।


आँखि कान ला खोल, जान दुनियादारी ला ।
खोजत हस भगवान, देख ले महतारी ला ।
चंदन जैसन जान, देश के माटी ला तँय ।
करले बने हियाव, छोड़ के तू तू मँय मँय ।

रखही जेन सकेल, बढ़ोही अपने पूँजी ।
नता मया ला बाँध, राखही सुख के कुंजी ।
करही जेन हियाव, ओखरे धन सकलाही।
बबा लगाही पेंड़, तभे फर नाती खाही ।

जात-पात के रोग, देश ले कब मिट पाही ।
ऊँच नीच के भेद, बता दे कब दुरिहाही ।
मनखेपन के वास, बता कब अन्तस् होही ।
मया के बिजहा बोल, कोन हा जग मा  बोही ।

नशा लमाये पाँव, देख लव गाँव शहर मा ।
फइले हे बैपार, मरत हे लोग जहर मा ।
करही नशा जवान, बुता ला कोन कमाही ।
माते रही किसान, कोन दाना उपजाही ।

उसनावत हे चाम, घाम मा चट चट जरथे ।
सुरता आवत राम, काम हा भारी लगथे ।
दिखय नही अब छाँव, कटय अड़बड़ रुख राई ।
चलय जेठ के ताव, सहावय कइसे भाई ।

आडम्बर के गोठ, होत हे बिरथा चरचा ।
छूना हवे अगास, टाँग के नीबू मिरचा ।
बाबा संत समाज, सिखोवय सुम्मत पहिली ।
अब करथे बैपार, भरत हे अपने थैली ।

बाजा गुदुम सुहाय, फेर अब डी जे आगय ।
देखवटी संसार, नकल के पाछू भागय ।
पहिली खावय बइठ, बाँटके मांदी मनभर।
खड़े खड़े पगुराय, चलय अब बफे घरोघर ।


पटवा काँशी जोर, बबा हा ढेरा आँटय ।
लकड़ी लावय काट, खुरा अउ पाटी छाँटय ।
बरदखिया हे खाप, बने हे गजब मचोली ।
नाती बुढ़हा संग,  बइठ के करय ठिठोली ।

ईश्वर साहू 'आरुग'

Tuesday, May 12, 2020

रोला छंद --हीरालाल साहू "समय'

रोला छंद --हीरालाल साहू "समय'

मन ला सुखी बनाय,सबो सीखव मुसकाना।
तन के सुख ला पाय, योग अउ ध्यान लगाना।
धन मा घर भर जाय, दान अउ धरम निभावव।
सब ला सुख पहुँचाय, भजन प्रभु के गा गावव।1।

एक नानकन भूल ,हमर हिनमान करावय।
लालच मा झन ढूल, इही दस रोग धरावय।
एखर ले घर द्वार , रहय रीता के रीता।
नजर मिरिग मा डार, बताइस माता सीता।2।

नइ हे पारावार, जगत ला कोन बचाही।
परदूसन भंडार, रोग अउ बड़का लाही।
मंद मास आहार, मनुख जब अड़बड़ करही।
तन ला अनचिनहार, रोग राई हा धरही।3।

समय बड़ा बलवान,समझ लव बहिनी भाई।
एखर राखव मान , इही मा हवय भलाई।
मिलथे एक समान, कहूँ ला कम ना जादा।
खरचव हीरा जान,बढ़ावव गा  मर्यादा।4।

अपन बढ़ावव ज्ञान, समय जब मिलथे रीता।
पुस्तक पढ़ विज्ञान, जानलव काया गीता।
देह सुरक्षा मान, योग अउ आसन सीखव।
ध्यान करव भगवान, भक्ति के सुवाद चीखव।5।

बढ़िया रहय शरीर, खेल तुम नानम खेलव।
बनव देश के बीर, संग मा साथी लेलव।
खुडवा अउ फुटबाल , देह मा ताकत लाथय।
कुस्ती करव जवान, जौन बलवान बनाथय।।6।

छंद साधक -हीरालाल गुरुजी "समय"
छुरा, जिला-गरियाबंद 

Monday, May 11, 2020

रोला छंद:- गुमान प्रसाद साहू

रोला छंद:- गुमान प्रसाद साहू

।।1।।नशा पान।।
दारू गुटखा पान, हानिकारक बड़ हावय,
करय अपन नुकसान, जेन हा येला खावय।
आनी-बानी रोग, खाय ले येकर होथे,
परे नशा के जाल, जान कतको हे खोथे।।


।।2।।बिन मौसम बरसात।।
बिन मौसम बरसात, करत हे दूभर जीना,
लागत हे आषाढ़, जेठ के गरमी महिना।
बरसा संग गरेर, करत हे आफत भारी,
होत फसल नुकसान, उजड़ गे घर अउ बारी।।


।।3।।जेठ।।
आये महिना जेठ, सुरुज हा आगी उगले,
करथे अड़बड़ घाम, लागथे तन हा पिघले।
तरिया नरुवा देख, सबो हा सुक्खा परगे,
जीव जन्तु थर्राय, पेड़ के पाना झरगे।।


।।4।।भ्रष्टाचार।।
देश म भ्रष्टाचार, मरत ले भोगावत हे,
गाँव शहर के लोग, सबो हा पेरावत हे।
बिना घूँस के आज, काम कोनो नइ होवय,
होवय लूट खसोट,काम हो नइ पावय।।


।।5।।पेड़ लगावव।।
मिलही शीतल छाँव, लगालव सब रुखराई,
दिखही हरियर फेर, तभे गा धरती दाई।
करय हवा ये साफ, जेन हा जिनगी हावय,
करथे तीरथ धाम, पेड़ ला जेन लगावय।।


।।6।।किसान।।
माटी हमर मितान, करम हा हरय किसानी,
महिनत हे पहिचान, हवय जी गुरतुर बानी।
बंजर माटी चीर, धान ला हम उपजाथन,
भुइयाँ के भगवान, तभे जी हमन कहाथन।।   

                    
                 ।।7।।भारत भुइयाँ।।
माटी हवय महान, जेन भारत कहलाथे
सबो धरम हा संग, जिहाँ हे कदम मिलाथे ।
बैरी बनय मितान, भूलके बैर करम ला
प्रजातंत्र हे राज, जानथे दया धरम ला।।7

छन्दकार:- गुमान प्रसाद साहू
ग्राम :- समोदा(महानदी)
जिला:- रायपुर ,छत्तीसगढ़

Sunday, May 10, 2020

महतारी दिवस विशेषांक-छंद के छ की प्रस्तुति






महतारी दिवस विशेषांक-छंद के छ की प्रस्तुति

दाई(चौपई छंद)

दाई  ले   बढ़के   हे   कोन।
दाई बिन नइ जग सिरतोन।
जतने घर बन लइका लोग।
दुख  पीरा  ला  चुप्पे भोग।

बिहना रोजे पहिली जाग।
गढ़थे  दाई   सबके  भाग।
सबले  आखिर  दाई सोय।
नींद  घलो  पूरा  नइ  होय।

चूल्हा चौका चमकय खोर।
राखे   दाई   ममता     घोर।
चिक्कन चाँदुर  चारो  ओर।
महके अँगना अउ घर खोर।

सबले  बड़े   हवै  बरदान।
लइकामन बर गोरस पान।
चुपरे  काजर  पउडर तेल।
लइकामन तब खेले  खेल।

कुरथा कपड़ा राखे  कॉच।
ताहन पहिरे सबझन हाँस।
चंदा मामा दाई तीर।
रांधे रोटी रांधे खीर।

लोरी  कोरी   कोरी  गाय।
दूध दहीं अउ मही जमाय।
अँचरा भर भर बाँटे प्यार।
छाती  बहै  दूध  के  धार।

लकड़ी  फाटा  छेना थोप।
झेले घाम जाड़ अउ कोप।
बाती  बरके  भरके तेल।
तुलसी संग करे मन मेल।

काँटा भले गड़े हे पाँव।
माँगे नहीं धूप मा छाँव।
बाँचे   खोंचे   दाई   खाय।
सेज सजा खोर्रा सो जाय।

दुख ला झेले दाई हाँस।
चाहे छुरी गड़े या फाँस।
करजा छूट सके गा कोन।
दाई   देबी   ए  सिरतोन।

कोन सहे दाई कस भार।
दाई सागर सहीं अपार।
बंदव माँ ला बारम्बार।
कर्जा नइ मैं सकँव उतार।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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सरसी छंद गीत- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

माँ-
तोर अंचरा के छइँहा मइँया, हावय सरग समान ।
तहीं मोर जिनगी ओ मइँया, तहीं मोर भगवान ।।
तोला बंदत हँव ओ मइँया, दे सुख के बरदान ।।

पले हवँव मैं नौ महिना ले, तोर कोंख के छाँव ।
करजा दूध चुका नइ पावँव, तोर नाँव से नाँव ।।
जग सम्मान समर्पित तोला, मोर सबो पहिचान ।
तोला बंदत हँव ओ मइँया, दे सुख के बरदान ।।1

चले हवँव मैं ठुमकत अँगना, तोर पकड़ के हाथ ।
जिनगी के सुख दुख मा ठाढ़े, दिये सदा माँ साथ ।।
रहिस कुलुप अँधियारी मन ये, लाने नवा बिहान ।
तोला बंदत हँव ओ मइँया, दे सुख के बरदान ।।2

एक शबद माँ के तो आगू, सबो चीज बेकार ।
जीव चराचर माँ से उपजे, पाये लाड़ दुलार ।।
छोड़ गये माँ गजानंद ला, करके आज बिरान ।
तोला बंदत हँव ओ मइँया, दे सुख के बरदान ।।3


छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छतीसगढ़ )
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दाई के महिमा - रोला छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

दया मया के खान, त्याग  सउँहत हे दाई।
जिनगी हमर सँवार, बढ़ाथे वो सुघराई।
मारय लइका लात, तभो दे अमरित गोरस।
दुनिया मा अउ कोन, भला हे महतारी कस।१।

सेवा खातिर तोर, साँस हा गीत भजन हे।
कुछु नइ मँय अउ मोर, सबे तोला अरपन हे।
करथे दाई छोड़, आरती जे पथरा के।
फुटहा होथे भाग, करम के ते अँधरा के।२।

तीरथ अउ सब धाम, पाँव मा तोर समाये।
दाई महिमा तोर, देव दानव नर गाये।
जिनगानी के स्वाद, कहँव अउ तोला तड़का।
तँय नोहस भगवान, हरस ओकर ले बड़का।३।


छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू, बोड़राबाँधा (पाण्डुका), जिला - गरियाबंद (छत्तीसगढ़) मो. 9993690899

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मनहरण घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

दूध के कटोरी लाये, चंदा ममा ल बुलाये।
लोरी गाके लइका ला, सुघ्घर सुताय जी।।
अँचरा के छाँव तरी, सरग हे पाँव तरी।
बड़ भागी वो हरे जे, दाई मया पाय जी।।
महतारी के बिना ग, दूभर हवे जीना ग।
घर बन सबे सुन्ना, कुछु नी सुहाय जी।।
महतारी के मया, झन दुरिहाना कभू।
सेवा कर जीयत ले, दाई देवी ताय जी।।


पेट काट काट दाई, मया बाँट बाँट दाई।
पाले लोग लइका ला, घर परिवार ला।।
दया मया खान दाई, हरे वरदान दाई।
शेषनाँग सहीं बोहे, सबे के वो भार ला।
लीपे पोते घर द्वार, दिखे नित उजियार।
हाँड़ी ममहाये बड़, पाये कोन पार ला।
सबे के सहारा दाई, गंगा कस धारा दाई।
माथा मैं नँवाओं नित, देवी अवतार ला।

जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया
बाल्को, कोरबा(छग)
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शंकर छ्न्द-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


महतारी

महतारी कोरा मा लइका, खेल खेले नाँच।
माँ के राहत ले लइका ला, आय कुछु नइ आँच।
दाई दाई काहत लइका, दूध पीये हाँस।
महतारी हा लइका मनके, हरे सच मा साँस।।


अंगरखा पहिरावै दाई, आँख काजर आँज।
सब समान ला मॉं लइका के,रखे धो अउ माँज।
धरे रहिथे लइका ला दाई, बाँह मा पोटार।
अबड़ मया महतारी के हे, कोन पाही पार।।


करिया टीका माथ गाल मा, लगाये माँ रोज।
हरपल महतारी लइका बर, खुशी लाये खोज।
लइका ला खेलाये दाई, बजा तुतरू झाँझ।
किलकारी सुन माँ खुश होवै, रोज बिहना साँझ।


महतारी ला नइ देखे ता, गजब लइका रोय।
पाये आघू मा दाई ला, कलेचुप तब सोय।
बिन दाई के लइका मनके, दुःख जाने कोन।
लइका मन बर दाई कोरा, सरग हे सिरतोन।।

-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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कुकुभ छन्द:-गुमान प्रसाद साहू।                                                                                   
रखे कोख मा नौ महिना ले, हम सब ला तँय महतारी।
दया मया के तैंहर दाई, हावस सुग्घर फुलवारी।।1

दूध पियाये अपन देह के, मया अपन तैंहर डारे।
राखे अँचरा के छइयाँ मा, हम ला तैंहर पोटारे।।2

रेंगाये अँगरी धरके तँय, बने सहारा तैं आ के।
छूट सकन ना करजा तोरे, जनम दुबारा हम पा के।।3

लइकापन ले करे जतन ओ,सहिके कतको दुख पीरा।

भूख प्यास ले घलो बचाये, हम ला समझे तै हीरा।।4
      
         छन्दकार:- गुमान प्रसाद साहू
 ग्राम:- समोदा (महानदी)    
 जिला :- रायपुर छत्तीसगढ़

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महतारी दिवस बर 
सरसी छंद - बोधन राम निषादराज

महिनत   के   पाछू  तँय   दाई,
                         करथस  सेवा   मोर।
जिनगी भर मँय छूँट सकँव नइ,
                        ये  करजा  ला तोर।।

कमा - कमा  तन  हाड़ा  होंगे,
                        तन  होंगे   कमजोर।
दाई  तोर  मया  ला  पा   के,
                         बनहूँ आज सजोर।।

तँय  बनिहारिन  दाई    मोरे,
                        महिमा  तोर  अपार।
तोर  बिना  जग  सुन्ना लागे,
                       अउ  सुन्ना  घर-द्वार।।

अँचरा  पीपर  छइहाँ  जइसे,
                       सुग्घर  जुड़हा  छाँव।
सरग  बरोबर  भुइँया   सोहै,
                      महिनत  पाछू  गाँव।।

हे   महतारी     तोरे    कोरा,
                      बासी   चटनी   खाँव।
अमरित कस महिनत के रोटी,
                     माथा    टेकँव   पाँव।।


छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम

(छत्तीसगढ़)

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महाभुजंग प्रयात सवैया - आशा आजाद

करौ मात पूजा इही सान हावै सबो आज आधार माँ हा बनाये।
सबो पाँव छूवौ पखारौ गुनौ काज हावै बड़ा मान जीना सिखाये।
नवा दान देथे इही हा सुनौ मान राखौ मया मा सबो हे बँधाये।
बिना माँ सुखी कोन होही भला जान चारो मुड़ा मा मया हे समाये।

छंदकार - आशा आजाद
मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

गंगोदक सवैया- आशा आजाद

मान दाई के सबो ले बड़े हे महामाय दानी कहाये सुनौ।
कोख मा नौ माह राखे तभे जीव मुस्कात कोरा म आये सुनौ।
मान सम्मान देवै मया मीठ भाखा सदा माँ सिखाये सुनौ।
प्रेम शिक्षा ला देवै सदा माँ इही ज्ञान गंगा बहाये सुनौ।।

छंदकार - आशा आजाद

मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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छप्पय छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

माँ-
नइ जानँव भगवान, जानथँव माँ के ममता।
सृष्टि करे विस्तार, अगम हे जेखर क्षमता।।
गोदी सरग समान, दूध हे अमरित जइसे।
माँ के मया दुलार, लगे सुख पबरित जइसे।।
सबो धाम ले हे बड़े, माँ के पावन पाँव हा।
तन मन ला हरसाय हे, अँचरा शीतल छाँव हा।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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कुण्डलिया - *दाई ओ*
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दाई ओ नइ भूलिहौं, जिनगी  भर उपकार।
सबो जनम बर मँय इहाँ, रइहूँ करजादार।।
रइहूँ   करजादार, छूँट नइ  पावँव  मँय हा।
तोर चरन गुणगान,रात दिन गावँव मँय हा।।
मन  मन्दिर  मा रोज, सजा  तोला माई ओ।
करिहौं  पूजापाठ, आरती  मँय  दाई ओ।।
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  बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम
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महतारी(दाई)
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*हाथ जोर पँइया परवँ, हे महतारी तोर।*
*भूल चूक करबे क्षमा, अरजी हे कर जोर।।*

*हवय उधारी दूध के, नइ तो सकवँ चुकाय।*
*कोनो गलती मोर वो, तोला झन रोवाय।*

*घेरी बेरी लवँ जनम, कोरा दाई तोर।*
*घन ममता के छाँव मा, जीव  जुड़ावय मोर।।*

*दाई के हिरदे गहिर, नइये कोनो थाह।*
*निसदिन जे संतान के, करत रथे परवाह।।*

*महतारी तोरे दरश, चारों धाम समान।*
*दाई के सेवा करै, बड़भागी संतान।।*

*माँ के बंदत हँव चरण, जे हावय सुखधाम।
*जेमा माथ नवाँय हें, यदुनंदन अउ राम।।*

*सेवा दाई के करे, जे मनखे हा रोज।*
*अँचरा मिलथे शांति के, सुख घर आथे खोज।।*

*दाई ले ये तन मिलिस,  नीक मिलिस संस्कार।*
*मातु पिता हें देवता, करथें बड़ उपकार।*

*लहू लहू के बूँद मा, महतारी के अंश।*
*कण कण मा फइले हवय, मातु ईश के वंश।।*

*सबले बढ़के सृष्टि में,दाई तोरे मान।*
*पाले पोंसे गर्भ मा, तहीं आच भगवान।*

चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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: हरिगीतिका छंद--आशा देशमुख

मातृदिवस मा मोर भाव
दाई के चरण मा(महतारी )

तोरे चरण मा हे सरग ,अउ कोख मा ब्रम्हांड हे।
तन मा रखे अमरित कुआँ, मन शक्ति मा कुष्मांड हे।
दाई बखानौं मँय कतिक ,महिमा अगम हे तोर वो।
सुख दुख मया ममता सबो, गंठियाय अँचरा छोर वो।

आँखी तरी सागर बसे,अउ हाथ मा सब स्वाद हे।
धुन साज लोरी मा बसे,सब ग्रंथ के अनुवाद हे।
माटी कहाँ ले लाय हे,दाई ल विधना जब गढ़े।
गीता करम पोथी धरम, तँय पाय दाई बिन पढ़े।



आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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त्रिभंगी छंद- अशोक धीवर "जलक्षत्री"

माता के ममता, जइसन समता, कोन करइया, हे जग मा।
सुग्घर हे बोली, मीठ ठिठोली, प्रेम भाव हे, रग रग मा।।
माता के करजा, चाहे मर जा, छूट सकव नइ, बात सुनौ।
सेवा ला करके, चरण ल धरके, माँ के पूजा, सबो चुनौ।।

छंदकार- अशोक धीवर "जलक्षत्री"
 तुलसी (तिल्दा-नेवरा)
 जिला -रायपुर (छत्तीसगढ़)
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रूपमाला छंद- विजेन्द्र वर्मा

जन्म लेहँव तोर कोरा,तोर ममता छाँव।
मोर माटी मोर भुइँया,अउ मया के गाँव।
जन्म देके आज मोला,तँय करे उपकार।
भाग मोरो जाग जाही,काम करहूँ सार।
विजेन्द्र वर्मा
 नगरगाँव(धरसीवाँ)
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सार छन्द गीत महतारी महिमा

का बरनँव महतारी महिमा,शब्द कहाँ ले पावँव।
एको अक्षर ला नइ जानँव,कइसे कलम चलावँव।।

महतारी कस इहाँ बिधाता,नइ हे कोनों दूजा।
मोर बिधाता महतारी हे,करौं रातदिन पूजा।
करौं वंदना चरण कमल के,काया फूल चघावँव।।
का बरनँव महतारी महिमा,शब्द कहाँ ले पावँव।।

महतारी के पबरित कोरा,सरग बरोबर लागय।
अँचरा के सुख छँइहाँ ले सब,दुख बाधा हर भागय।।
कभू चुका नइ पावँव करजा,बस मँय गुन ला गावँव।
का बरनँव महतारी महिमा,शब्द कहाँ ले पावँव।।

महतारी ममता ले होवय,जिनगी हा उजियारी।
बड़ महकावय घर अँगना ला,बनके खुद फुलवारी।।
अमरित जइसे गोरस पी के,भाग अपन चमकावँव।।
का बरनँव महतारी महिमा,शब्द कहाँ ले पावँव।।

द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़
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महतारी
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हिरदे म महतारी तोर, कतका मया  भरे हे ।
ये धरती के सिरजइया ह, तोरेच रुप धरे हे।।

लोग लइका के रक्छा खातिर,
रइथच अबड़ उपास ।
 काँटा गोड़ गड़ै झन कहिके,
 करथच उदीम  पचास ।
पति बर बन जथच सावित्री, काल घलो ह डरे हे।
तोर हिरदे म महतारी तोर, कतका मया भरे हे  ।

मुँह के कौंरा बाँट के खाथच,
अँगरी धरे  रेंगाथच ।
हिरु बिछु ,आगी पानी अउ,
रोग राई ले  बँचाथच ।
तोर अँचरा के घन छँइहा,सब दुःख दरद हरे हे ।
हिरदे म महतारी तोर, कतका मया भरे हे ।।

बेटा दुलरुवा,बेटी दुलौरिन,
निसदिन काहत रहिथस ।
बाढ़ेन लइका अबड़ बिटोएन,
 कतको नखरा सहिथस ।
तोर भाखा ह हमर भाखा बन,झरना कस झरे हे ।
हिरदे म महतारी तोर, कतका मया भरे हे ।।

 हे महतारी! दूध के करजा ,
 कोन चूका वो पाही ।
सुख-खजाना वोकर भरही,
जे तोर सेवा बजाही ।
"बादल"बइहा अरजत गरजत,डंडाशरन परे  हे।
हिरदे म महतारी तोर , कतका मया भरे हे।।

चोवा राम 'बादल '
     हथबंद

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: *दोहा छंंद*
*दाई* 

जीव-जंतु मन ले जनम , तोर कोंख मा आय।
अँचरा हा दाई बने, सब के मन ला भाय।। 

मोला देहे तैं जनम, दाई मोर कहाय।
दाई मोला पोंस के, जिनगी मोर बनाय।। 

बेटा बर लाँघन सुते, कौरा अपन खवाय।
दाई हा सब दुख सहे, तभे महान कहाय।। 
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली जिला कोरबा*
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कुकुभ छन्द ।।महतारी।।

रखे कोख मा नौ महिना ले, हम सब ला तँय महतारी।
दया मया के तैंहर दाई, हावस सुग्घर फुलवारी।।1

दूध पियाये अपन देह के, मया अपन तैंहर डारे।
राखे अँचरा के छइयाँ मा, हम ला तैंहर पोटारे।।2

रेंगाये अँगरी धरके तँय, बने सहारा तैं आ के।
छूट सकन ना करजा तोरे, जनम दुबारा हम पा के।।3

लइकापन ले करे जतन ओ,सहिके कतको दुख पीरा।
भूख प्यास ले घलो बचाये, हम ला समझे तै हीरा।।4

-गुमान प्रसाद साहू 
समोदा (महानदी ),आरंग 
जिला-रायपुर छत्तीसगढ़ 
छन्द साधक सत्र-6
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।।अमृत ध्वनि छंद।।

सेवा दाई के करव, मिलही अँचरा छाँव।
करथे सबले जी मया, जेकर कोरा ठाँव।।
जेकर कोरा,ठाँव बनाबे,सुख ला पाबे।
भाग जगाबे,नाम कमाबे,मान बढ़ाबे।
संगे जाबे, हरिगुण गाबे,मानव माई।
सरग ल पाबे,करके आबे,सेवा दाई।।

राजेश कुमार निषाद  ग्राम चपरीद रायपुर

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मुक्तामणि छन्द गीत

दाई कोरा तोर ओ,ममहावत फुलवारी।
पावन अँचरा छाँव के,महिमा अब्बड़ भारी।।

नौं महिना ले कोख मा,राखे दाई मोला।
वंदन बारंबार हे,जग जननी माँ तोला।।
करथस मया दुलार ले,जिनगी ला उजियारी।।
दाई कोरा तोर ओ,ममहावत फुलवारी।।(१)

नान्हे ला बड़का करे,सहिके कतको पीरा।
तन-मन ला हरसाय ओ,समझे मोला हीरा।।
तोर सहीं ओ कोन हे,जग मा पालनहारी।
दाई कोरा तोर ओ,ममहावत फुलवारी।।(२)

दाई देवी ले घलो,पाये ऊँचा दर्जा।
कइसे दाई छूटहूँ,तोर दूध के कर्जा।।
तोर पाँव सुखधाम हे,हावस ममताधारी।
दाई कोरा तोर ओ,ममहावत फुलवारी।।(३)

डी.पी.लहरे"मौज"
बायपास रोड़ कवर्धा 
छत्तीसगढ़
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Saturday, May 9, 2020

रोला छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

रोला छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

सहीं गलत ला छाँट, राह सत के तँय धर ले ।
मानुष तन अनमोल, करम जग अच्छा कर ले ।।
सांसा मिले उधार, चुका ले येखर करजा ।
कर ले कारज नेक, ज्ञान गंगा मा तर जा ।।

बिन गुरु के सतज्ञान, कहाँ कब तोला मिलही ।
सुन मानुष नादान,भीतरी तन मन जलही ।।
गुरु के आगे मान, देव सब हें बलिहारी ।
अँधियारी मन द्वार, बने गुरु तब उजियारी ।।

कर सेवा उपकार, दीन दुखिया के भाई ।
कर नारी सम्मान, समझ खुद बहिनी माई ।।
एक बरोबर मान, सबो मनखे अउ प्रानी ।
मानवता रख धर्म, लिखे जा अपन कहानी ।।

छोट बड़े के भाव, फेंक दे येला घुरवा ।
लगा सुमत के पेड़, रितो ले पानी चुरुवा ।।
गजानंद कविराय, बताये सत के महिमा ।
अपन हाथ सम्मान, बनाये रख तँय गरिमा ।।


छंदकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

Friday, May 8, 2020

रोला छंद-हेम साहू

रोला छंद-हेम साहू

सुघ्घर खेती खार, दिखै हरियर रुख राई।
हरियर हरियर धान, चलै निमगा पुरवाई।
चिरई चुरगुन बोल, लगै गुरतुर बड़ भाई।
चिखला माटी संग, भाय मन धरती दाई।1।

कहिथे जगत किसान, हरय देहाती खाँटी।
बइला हरय मितान, गला पहिरावय घाँटी।
उखरा रेंगय पाँव, खेत जंगल अउ घाटी।
करथे नित गुन गान, नाम ला लेवत माटी।2।

करें जिहाँ जोहार, सुरुज उठती के बेरा।
चिरई चरगुन रोज, जिहाँ डारत हे डेरा।
सुघ्घर बखरी भाग, साग मन फरे लमेरा।
मनखे मन के राज, गाँव मा रैन बसेरा।3।

बइला भैसा गाय, गाँव मा सुघ्घर हावय।
माटी के घर द्वार, छानही खपरा छावय।
कतको मंडल होय, बइठ भुइँया मा खावय।
तरिया नदिया खूब, सबो के मन ला भावय।4।

मया दया के भाव, रहय ना जिहाँ दिखावा।
समय समय के फेर, रहें ना कुछ पछतावा।
बर पीपल के छाँव, दिखै निक हरियर पाना।
आवत जावत लोग, बैठ करथे सुरताना।5।

-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

Thursday, May 7, 2020

रोला छंद - चित्रा श्रीवास

रोला छंद - चित्रा श्रीवास

करव रक्त के दान,फेर सब महिमा गाही
महा पुण्य ये आय,बाँच तो जिनगी जाही ।
ठान सबो लव आज,खून दे जान बचावव
महा दान के मान ,घलौ ला चलौ बढ़ावव ।।

आवँव ककरो काम,मोर तो आदत हावय
नही करँव वो काम,जीव हा पीरा पावय ।
तोर मोर के भाव,छोड़ के करँव भलाई ।
आँँखी आँँसू आय, सुनँव जब दुख ला भाई

पीरा पर के देख,दया मन जेखर आथे
अइसे मनखे आय ,सदा जग पूजे जाथे ।
परहित ला अपनाय ,नाम तो बाढ़त जाये
चारो कोती फेर ,सबो झन महिमा गाये ।

छंदकार - चित्रा श्रीवास
कोरबा छत्तीसगढ़

Wednesday, May 6, 2020

रोला छंद--चोवा राम 'बादल'

रोला छंद--चोवा राम 'बादल'

हे पावन छत्तीसगढ़, सरग कस जानौ एला।
  जिहाँ बिराजे देव, भराथे सुग्घर मेला ।
धन दौलत भरपूर ,बरसथे सुख के सावन ।
महानदी के नीर, अमृत कस हावय पावन।1

 हे गिरौद भंडार, रतनपुर मा महमाई।
 डोंगरगढ़ मा सिद्ध, विराजे माँ बमलाई।
 सिरपुर देखे देव,चलौ जी भाग जगावन।
 भोले भोरमदेव, चढ़ा जल दर्शन पावन।2

 चट ले जरगे जीभ, तभो ले चाय सुहावय।
स्वेटर ओढ़े साल ,जाड़ हा तभो जनावय।
 सबके अपन स्वभाव,पूस के इही कहानी ।
कोयल बोलय मीठ, काग के कर्कश बानी।3

 मेला मेल मिलाप , सगा सोदर सकलाथे।
 संगी मन सों भेंट , तको सुग्घर हो जाथे।
 धन हे हमर रिवाज, बढ़ाथे भाईचारा ।
कतका करवँ बखान, सबो ले हाबय न्यारा।4


पंगत संगत आय ,  बड़े छोटे सब खावँय।
 सबके बाढ़य प्रेम ,सबो झन हाथ बटावँय।
 खड़े खड़े अब खाय, बफे फेंकावत  भोजन।
 अच्छा सब संस्कार , गवाँगे आवव खोजन।5


मन के थाम लगाम ,बुद्धि हा करै सवारी।
 माया के बाजार,भींड़ रइथे गा भारी।
 उघरय नयन विवेक, राह ला ठीक बतावय।
  सबो कुमारग छोड़ ,सुमारग अंतस भावय।6

दस इंद्री मैदान, जिहाँ  चरथे मन छेरी।
 अब्बड़ वो नरियाय, अहम में घेरी बेरी।
 दुनियादारी देख ,दउँड़ के तुरते जाथे।
 कतको एहा खाय, तभो ले कहाँ अघाथे ।7

छंदकार--चोवा राम 'बादल '
   हथबन्द , बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़