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Tuesday, May 5, 2020

सार छंद(गीत)-सुरेश पैगवार

सार छंद(गीत)-सुरेश पैगवार
   
कतको हावँय ये दुनिया मा, बिगड़ी बात बनइया।
कतको हावँय ये दुनिया मा, लिखरी बात गनइया।।

कतको मिलहीं राही तोला, कोनो झन भटकावँय
कतको सँग मा तोरे  जाहीं, कोनो झन अटकावँय
कतको हावँय ये दुनिया मा, लिख ला लाख करइया
कतको हावँय ये दुनिया मा,  ज्ञानी, ध्यानी भइया।।
कतको- - - - -

कतको लाँघन कतको प्यासे, राही बन के आहीं
कतको मनखे तोला डरहीं,  कतको मन डरवाहीं
कतको हावँय देख-देख के,      भुर्री सहीं बरइया
कतको मनखे बल देहेबर,     करहीं हइया-हइया।।
कतको - - - -

कतको मनखे मोती खोजें,   कतको खोजें हाला।
कतको मनखे दिव्य ज्योति बर,फेरत रहिथें माला।।
कतको रहिथें ये दुनिया मा,     हपटे गिरे उठइया।
कतको मनखे अइसे रहिथें,   जइसे रहिथे गइया।।
कतको - - - -

मनखे कतको लबरा मिलहीं, कतको मिलहीं सच्चा।
कतको मनखे बात-बात मा,     देवत फिरहीं गच्चा।
सावचेत तोला रहिना हे,          कोनो झन भरमावैं।
सुख सुम्मत ले गुजरे जिनगी,  कोनो दुख झन पावैं।।
कतको - - - - -

हिन्दू मुश्लिम सिख ईसाई, सब भारत के गहना।
तुँहरे ले पहिचान देश के,   जुर मिल के हे रहना।
तुँहरे ले हे धरती दाई,      सुख सुम्मत बगरइया।
बात मानि हौ  दाई दीदी,    बात मानिहौ भइया।।
कतको - - - -
                                   
             *सुरेश पैगवार*
                  जाँजगीर

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