Followers

Wednesday, May 27, 2020

रोला छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

रोला छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

               आमा

सुरता आवय गाॅंव, इहाॅं के आमा बारी।
साँझ बिहनियाँ रोज,जिहाॅं होवय रखवारी।
सपटे सपटे जाॅंय, कलेचुप उदबिद लइका।
अमरॅंय आमा तीर ,कूद के रुॅंधना फइका।

नजर बचाके रोज, करय तैयारी चुपके ।
तूक लबेदा मार , बइठ ओधा मा छुपके।
उत्ता धुर्रा बीन, तुरत आमा ला झड़के।
देखे जब रखवार, कुदावत बिक्कट भड़के।

खट्टा मीठा स्वाद ,आय गुणकारी आमा‌।
व्यंजन बने अनेक, जगत मा येकर नामा।
बिना बॅंधाये चेर,बाल आमा कहलावै।
नूनचरा तब डार,लोग लइका सब खावै।

काम हवय पिचकाट,अबड़ चटनी के झम्मट।
बनथे आम अथान,जेन बड़ रहिथे अम्मट।
देख परख के आम, टोरके घर मा लावॅंय।
जब-जब डारॅंय माच , चुहक के सब झन खावॅंय।

गिरे परे ला देख, आम के होवय छटनी।
काट कुटा के फेर, सील मा पीसॅंय चटनी।
येकर बने गुराम , खाय सब ओरी पारी।
सबझन करें पसंद ,लोग लइका महतारी।

सउघे आम उबाल, फेर गूदा अलगावै।
येहा पना कहाय, जेन लू झाॅंझ भगावै।
गुणकारी अनमोल,पना के शरबत ताजा।
येकर आगू पस्त, होय सब फ्रूटी माजा।

आम झोलहा छाॅंट,जतन मा दादी नानी।
हरियर छिलटा नीछ , खुला बर काटॅंय चानी।
बचे खुचे सब आम , पेड़ मा जब गदरावय।
मीठ रहय जे सार, उही गरती कहलावय।

बैंगन फल्ली संग,रसीला लॅंगड़ा चौसा।
पाके गजब सवाद, सबो के बढ़े भरोसा।
सुनके आमा नाम, खाय बर मन ललचावै।
मिले कहूॅं रसदार, चुहक के मजा उड़ावै।

आमा ला पिचकोल, घाम मा रसा सुखावैं।
पक्का पक्का जोंख, गजब अमरसा बनावैं।
गरमी मा भरमार , झकत ले मन भर खाथन।
मौसम के वरदान, जिहाॅं हम येला पाथन।

बड़े काम के चीज, आय आमा के गोही।
जड़ी दवा के संग, इकर हे बढ़िया जोही।
आम नहीं ये खास, समझ ले बाबू मुन्ना।
रहे पेड़ साबूत, होय झन एको उन्ना।

छंदकार:- महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला राजनांदगांव

4 comments:

  1. बहुत सुग्घर सर जी

    ReplyDelete
  2. बहुत शानदार ।आमा विषय मा शानदार रोला के सृजन ।हार्दिक बधाई ।

    ReplyDelete