रोला छंद-हेम साहू
सुघ्घर खेती खार, दिखै हरियर रुख राई।
हरियर हरियर धान, चलै निमगा पुरवाई।
चिरई चुरगुन बोल, लगै गुरतुर बड़ भाई।
चिखला माटी संग, भाय मन धरती दाई।1।
कहिथे जगत किसान, हरय देहाती खाँटी।
बइला हरय मितान, गला पहिरावय घाँटी।
उखरा रेंगय पाँव, खेत जंगल अउ घाटी।
करथे नित गुन गान, नाम ला लेवत माटी।2।
करें जिहाँ जोहार, सुरुज उठती के बेरा।
चिरई चरगुन रोज, जिहाँ डारत हे डेरा।
सुघ्घर बखरी भाग, साग मन फरे लमेरा।
मनखे मन के राज, गाँव मा रैन बसेरा।3।
बइला भैसा गाय, गाँव मा सुघ्घर हावय।
माटी के घर द्वार, छानही खपरा छावय।
कतको मंडल होय, बइठ भुइँया मा खावय।
तरिया नदिया खूब, सबो के मन ला भावय।4।
मया दया के भाव, रहय ना जिहाँ दिखावा।
समय समय के फेर, रहें ना कुछ पछतावा।
बर पीपल के छाँव, दिखै निक हरियर पाना।
आवत जावत लोग, बैठ करथे सुरताना।5।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
सुघ्घर खेती खार, दिखै हरियर रुख राई।
हरियर हरियर धान, चलै निमगा पुरवाई।
चिरई चुरगुन बोल, लगै गुरतुर बड़ भाई।
चिखला माटी संग, भाय मन धरती दाई।1।
कहिथे जगत किसान, हरय देहाती खाँटी।
बइला हरय मितान, गला पहिरावय घाँटी।
उखरा रेंगय पाँव, खेत जंगल अउ घाटी।
करथे नित गुन गान, नाम ला लेवत माटी।2।
करें जिहाँ जोहार, सुरुज उठती के बेरा।
चिरई चरगुन रोज, जिहाँ डारत हे डेरा।
सुघ्घर बखरी भाग, साग मन फरे लमेरा।
मनखे मन के राज, गाँव मा रैन बसेरा।3।
बइला भैसा गाय, गाँव मा सुघ्घर हावय।
माटी के घर द्वार, छानही खपरा छावय।
कतको मंडल होय, बइठ भुइँया मा खावय।
तरिया नदिया खूब, सबो के मन ला भावय।4।
मया दया के भाव, रहय ना जिहाँ दिखावा।
समय समय के फेर, रहें ना कुछ पछतावा।
बर पीपल के छाँव, दिखै निक हरियर पाना।
आवत जावत लोग, बैठ करथे सुरताना।5।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
हेम भाई के बड़ सुग्घर रोला छंद, बधाई
ReplyDeleteघात सुग्घर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर सृजन है भाई
ReplyDeleteनँगत- नँगत बधाई
ReplyDeleteबढ़ सुग्घर रचना खातिर
बहुत सुग्घर रचना बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखे हव भाई, बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteगज़ब सुग्घर सर
ReplyDeleteवाहह!वाहह!हेम सर
ReplyDeleteबड़ सुग्घर सृजन
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