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Friday, May 15, 2020

रोला छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

रोला छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

1-गुरू चरन

सब कोती अँधियार, कुछू नइ हावय सूझत।
मै अढ़हा मतिमंद, रोज दुख सुख ले जूझत।
चक्कर मा पेरात, पड़े हँव जनम मरन के।
हो जातिस भवपार, आस हे गुरू चरन के।

2-नारी

करौ सदा सम्मान, रूप देवी के नारी।
रिश्ता हवय अनेक, बहिन बेटी महतारी।
दुनियाँ सरी समाय, चरन मा इँखरे संगी।
देवय ममता छाँव, रोज इँन सहिके तंगी।

3-राजनीति

राजनीति व्यापार, देख अब होगे भाई।
सबके सब हे चोर,बने मौसेरा भाई।
कुर्सी के सब खेल, करत हे फोकट झगड़ा।
वादा के भरमार, गोठ बस करथे तगड़ा।

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी कवर्धा
जिला-कबीरधाम(छत्तीसगढ़)

7 comments:

  1. बहुत ही बढिया रोला छंद हे भाई

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  2. बहुत सुग्घर गुरुदेव जी सादर नमन

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  3. बहुत सुग्घर छंद गुरुदेव, बहुत बधाई आप ला

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  4. बड़ सुग्घर रोला छंद भैया जी

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  5. बहुत सुग्घर रोला छंद
    ज्ञानू जी

    करौ सदा सम्मान, रूप देवी के नारी।
    रिश्ता हवय अनेक, बहिन बेटी महतारी।
    दुनियाँ सरी समाय, चरन मा इँखरे संगी।
    देवय ममता छाँव, रोज इँन सहिके तंगी।

    अतेक सुग्घर भाव भरे हे
    आप के रचना म

    सुरेश पैगवार
    जाँजगीर

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