रोला छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी
1-गुरू चरन
सब कोती अँधियार, कुछू नइ हावय सूझत।
मै अढ़हा मतिमंद, रोज दुख सुख ले जूझत।
चक्कर मा पेरात, पड़े हँव जनम मरन के।
हो जातिस भवपार, आस हे गुरू चरन के।
2-नारी
करौ सदा सम्मान, रूप देवी के नारी।
रिश्ता हवय अनेक, बहिन बेटी महतारी।
दुनियाँ सरी समाय, चरन मा इँखरे संगी।
देवय ममता छाँव, रोज इँन सहिके तंगी।
3-राजनीति
राजनीति व्यापार, देख अब होगे भाई।
सबके सब हे चोर,बने मौसेरा भाई।
कुर्सी के सब खेल, करत हे फोकट झगड़ा।
वादा के भरमार, गोठ बस करथे तगड़ा।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी कवर्धा
जिला-कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
1-गुरू चरन
सब कोती अँधियार, कुछू नइ हावय सूझत।
मै अढ़हा मतिमंद, रोज दुख सुख ले जूझत।
चक्कर मा पेरात, पड़े हँव जनम मरन के।
हो जातिस भवपार, आस हे गुरू चरन के।
2-नारी
करौ सदा सम्मान, रूप देवी के नारी।
रिश्ता हवय अनेक, बहिन बेटी महतारी।
दुनियाँ सरी समाय, चरन मा इँखरे संगी।
देवय ममता छाँव, रोज इँन सहिके तंगी।
3-राजनीति
राजनीति व्यापार, देख अब होगे भाई।
सबके सब हे चोर,बने मौसेरा भाई।
कुर्सी के सब खेल, करत हे फोकट झगड़ा।
वादा के भरमार, गोठ बस करथे तगड़ा।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी कवर्धा
जिला-कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
बहुत ही बढिया रोला छंद हे भाई
ReplyDeleteसादर प्रणाम दीदी
Deleteबहुत सुग्घर गुरुदेव जी सादर नमन
ReplyDeleteबहुत सुग्घर छंद गुरुदेव, बहुत बधाई आप ला
ReplyDeleteबड़ सुग्घर रोला छंद भैया जी
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ReplyDeleteबहुत सुग्घर रोला छंद
ज्ञानू जी
करौ सदा सम्मान, रूप देवी के नारी।
रिश्ता हवय अनेक, बहिन बेटी महतारी।
दुनियाँ सरी समाय, चरन मा इँखरे संगी।
देवय ममता छाँव, रोज इँन सहिके तंगी।
अतेक सुग्घर भाव भरे हे
आप के रचना म
सुरेश पैगवार
जाँजगीर
बहुत बढ़िया सृजन
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