रोला छंद-कुलदीप सिन्हा
नइ हे जी तँय जान, काल के कोनो मालिक।
पढ़ के पा गे ज्ञान, बड़े ले बड़े विज्ञानिक।।
नाचत हे दिन रात, मूड़ मा वोहर सबके।
पावय नइ जी पार, गला ला कब वो चपके।।1।।
रावण के अभिमान, चूर गा होगे जानो।
नइ बाँचिस परिवार, भले कोनो झन मानो।
कतको रहिस ग ज्ञान, काम एको नइ आइस।
करनी के फल जान, देख वोहर गा पाइस।।2।।
भज ले जी तँय राम, पार गा भव हे होना।
धर के अब पतवार, नाव ला खुद हे खोना।।
ये जग ला जी जान, मया के गहरा सागर।
करथे जी सब बात, एक मन के गा आगर।।3।।
सब ला जी भगवान, देत हे दाना पानी।
चांटी हाथी मान, हवय गा एक कहानी।।
रहय न कोनो भूख, सोंच के देथे खाना।
करय नहीं जी भेद, समझ नइ पाय जमाना।।4।।
करबे सब ले प्रेम, घृणा ला दुरिहा कर के।
मिलही तुमला जान, प्रेम गा दुनिया भर के।
मनवा तेहा चेत, छोड़ दे दुनियादारी।
तन भीतर भगवान, करव जी वोखर चारी।।5।।
छंदकार
कुलदीप सिन्हा "दीप"
ग्राम -- कुकरेल ( सलोनी )
जिला ---- धमतरी ( छ. ग. )
नइ हे जी तँय जान, काल के कोनो मालिक।
पढ़ के पा गे ज्ञान, बड़े ले बड़े विज्ञानिक।।
नाचत हे दिन रात, मूड़ मा वोहर सबके।
पावय नइ जी पार, गला ला कब वो चपके।।1।।
रावण के अभिमान, चूर गा होगे जानो।
नइ बाँचिस परिवार, भले कोनो झन मानो।
कतको रहिस ग ज्ञान, काम एको नइ आइस।
करनी के फल जान, देख वोहर गा पाइस।।2।।
भज ले जी तँय राम, पार गा भव हे होना।
धर के अब पतवार, नाव ला खुद हे खोना।।
ये जग ला जी जान, मया के गहरा सागर।
करथे जी सब बात, एक मन के गा आगर।।3।।
सब ला जी भगवान, देत हे दाना पानी।
चांटी हाथी मान, हवय गा एक कहानी।।
रहय न कोनो भूख, सोंच के देथे खाना।
करय नहीं जी भेद, समझ नइ पाय जमाना।।4।।
करबे सब ले प्रेम, घृणा ला दुरिहा कर के।
मिलही तुमला जान, प्रेम गा दुनिया भर के।
मनवा तेहा चेत, छोड़ दे दुनियादारी।
तन भीतर भगवान, करव जी वोखर चारी।।5।।
छंदकार
कुलदीप सिन्हा "दीप"
ग्राम -- कुकरेल ( सलोनी )
जिला ---- धमतरी ( छ. ग. )
बहुत बढ़िया सृजन है भाई
ReplyDeleteआदरणीय दीदी जी हार्दिक आभार।
Deleteबहुत सुंदर छंद वाह वाह बहुत बधाई
ReplyDeleteआदरणीय चंद्राकर जी हार्दिक आभार।
ReplyDeleteबढिया महोदय
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteगज़ब सुग्घर सर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर संदेश देवत रचना
ReplyDeleteसिन्हा जी
करबे सब ले प्रेम, घृणा ला दुरिहा कर के।
मिलही तुमला जान, प्रेम गा दुनिया भर के।
मनवा तेहा चेत, छोड़ दे दुनियादारी।
तन भीतर भगवान, करव जी वोखर चारी।।5।।
सुग्घर सुग्घर पंक्ति
हार्दिक बधाई
सुरेश पैगवार
जाँजगीर
आदरणीय पैगवार जी हार्दिक आभार।
Deleteवाह, बढ़िया सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय बघेल जी।
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