रोला छंद-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
------नहकइया हे जेठ--------
नहकइया हे जेठ, फेर आही पारी मा।
आवत दिखे असाढ़, गाँव के तइयारी मा।
भेंटे बर चउमास, सजत हे खपरा छानी।
पावत हावय आँच, चेरहा आमा चानी।
काँद-दुबी खपटाय , बिनागे झुनकी पैरी।
बइला मन बर नून, बदलही भउजी भैरी।
काँटा गय लेसाय, बिछागय खातू-माटी।
तरिया गय नेवार, अगोरय खटिया पाटी।
दरा-फुना गे दार, धरागे लकड़ी छेना।
हफ्ता दस दिन बाद,उघरही चना चबेना।
होही लगिन बिहाव, जेठ बेटा बेटी के।
सगा पहुँच नइ पाँय, भले एती-तेती के।
घुरुवा मन ला देख, हँसत हें हो के रीता।
लगथे दे के ध्यान, सुने हें भगवत गीता।
कटगे बँबरी थाँघ, ढेखरा बनके धँसही।
चढ़ के सेमी नार, छछल के खुलखुल हँसही।
पैरावट लिस ओंढ़, चदरिया ला जलरोधी।
धरे कलारी हाथ, तिरे बर अब झन ओधी।
छाता पनही टार्च, दुकानन मा टंगागे।
उन्नत संकर बीज, हँसत मुस्कावत आ गे।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
------नहकइया हे जेठ--------
नहकइया हे जेठ, फेर आही पारी मा।
आवत दिखे असाढ़, गाँव के तइयारी मा।
भेंटे बर चउमास, सजत हे खपरा छानी।
पावत हावय आँच, चेरहा आमा चानी।
काँद-दुबी खपटाय , बिनागे झुनकी पैरी।
बइला मन बर नून, बदलही भउजी भैरी।
काँटा गय लेसाय, बिछागय खातू-माटी।
तरिया गय नेवार, अगोरय खटिया पाटी।
दरा-फुना गे दार, धरागे लकड़ी छेना।
हफ्ता दस दिन बाद,उघरही चना चबेना।
होही लगिन बिहाव, जेठ बेटा बेटी के।
सगा पहुँच नइ पाँय, भले एती-तेती के।
घुरुवा मन ला देख, हँसत हें हो के रीता।
लगथे दे के ध्यान, सुने हें भगवत गीता।
कटगे बँबरी थाँघ, ढेखरा बनके धँसही।
चढ़ के सेमी नार, छछल के खुलखुल हँसही।
पैरावट लिस ओंढ़, चदरिया ला जलरोधी।
धरे कलारी हाथ, तिरे बर अब झन ओधी।
छाता पनही टार्च, दुकानन मा टंगागे।
उन्नत संकर बीज, हँसत मुस्कावत आ गे।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
बहुत सुग्घर गुरुदेव जी
ReplyDeleteधन्यवाद निषाद सर
Deleteधन्यवाद निषाद सर
Deleteअब्बड़ सुग्घर
Deleteसादर धन्यवाद
Deleteवाह वाह सर जी
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteमानसून पूर्व किसान मन के तैयारी के सचित्र वर्णन, बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद बघेल जी
Deleteनहकइया हे जेठ,,,में सुघ्घर किसनहा गोठ,, जेमे दिन बादर अउ तियारी के ,,,मस्त बेरा के गोठ,,,,
ReplyDeleteबहुत सुग्घर गुरुदेव 💐💐🙏🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनिल जी
Deleteनहकइया हे जेठ, फेर आही पारी मा।
ReplyDeleteआवत दिखे असाढ़, गाँव के तइयारी मा।
भेंटे बर चउमास, सजत हे खपरा छानी।
पावत हावय आँच, चेरहा आमा चानी।
बड़ सुग्घर असाढ़ के अगोरा खातिर गाँव के तियारी करत बर्णन करहव सर जी बहुतेच बढ़िया रचना हे - - -
सुरेश पैगवार
जाँजगीर
बहुत शानदार गुरुदेव
ReplyDeleteधन्यवाद अमित जी
Deleteअति सुग्घर समसामयिक रचना गुरूजी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना गुरुजी
ReplyDelete🙏🙏🙏
बहुत बहुत धन्यवाद श्री चंद्रवंशी जी
Deleteचढ़के सेमी नार छछल-छछल के हांसही....... लाजवाब प्रस्तुति 👌 आदरणीय गुरुदेव जी 🙏🙏🙏🙏 सादर बधाई पठोवत हंव अऊ सादर पयलगी 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteचढ़के सेमी नार,छछल-छछल के हांसही लाजवाब प्रस्तुति 👌 आदरणीय गुरुदेव जी 🙏🙏 सादर पयलगी 🙏 सादर बधाई स्वीकारें 🌹🌹🌹🌹
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteलाजवाब रोला छंद सृजन, बधाई
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteबहुत ही सराहनीय रोला छंद, अहिलेश्वर जी।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteसादर आभार
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