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Sunday, May 17, 2020

रोला छंद-कन्हैया साहू,अमित

रोला छंद-कन्हैया साहू,अमित

आखर-आखर जोड़, सबद तैं सुघर बना ले।
गा के गुरतुर गीत, सजन तैं अपन मना ले।।
लिख हिरदे के भाव, लेखनी सब ला भाही।
मिलही मनभर मान, मया अंतस मा छाही।।

हवय कलम ले आस, गोठ सिरतों ये करथे।
भरके भीतर भाव, अगन कस धधकत बरथे।।
सोज-सोज सब बात, लिखे बर खच्चित परही।
कलमकार के काम, कलम हा कड़कत करही।।

लिखबो मन के बात, जरूरी नइ हे छपना।
नइ खोजन जी मान, कलम के संगे खपना।।
मनभर आगर आस, भरे हे मन मा आसा।
महिनत करबो खास, पोठ होवय निज भासा।।

देखत जाही बीत, समय के सगरो पल हा।
आवय नइ तो काम, इहाँ अब कखरो छल हा।
सुरता रहिथे कर्म, जौन कर जाथे सुग्घर।
जौन निभाथे धर्म, नाँव रहि जाथे उज्जर।।

लिख ले सिरतों सार, छंद के साधक बन के।
धार कलम के टेंव, गजब तैं कर ले मन के।।
ताकत हे भरपूर, तोर अंतस मा आगर।
बिरथा झन तैं मेट, नाँव कर अपन उजागर।।

कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़

8 comments:

  1. वाह वाह बहुत सुग्घर रोला छंद लिखे हव हर जी, उत्तम लेखन बर बहुत बधाई

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  2. बहुतेच सुग्घर गुरूदेव

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  3. बहुत सुंदर रोला छंद अमित भाई

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  4. बहुत सुग्घर रचना हृदय के भाव हे सर जी

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  5. बहुत ही गजब सुग्घर रचना अमित सर
    हार्दिक बधाई


    सुरेश पैगवार
    जाँजगीर

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  6. वाह वाह वाह
    अमित सर

    लिखबो मन के बात, जरूरी नइ हे छपना।
    नइ खोजन जी मान, कलम के संगे खपना।।
    मनभर आगर आस, भरे हे मन मा आसा।
    महिनत करबो खास, पोठ होवय निज भासा।।

    गजब संदेश परख पंक्ति


    सुरेश पैगवार
    जाँजगीर

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