रोला छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
सहीं गलत ला छाँट, राह सत के तँय धर ले ।
मानुष तन अनमोल, करम जग अच्छा कर ले ।।
सांसा मिले उधार, चुका ले येखर करजा ।
कर ले कारज नेक, ज्ञान गंगा मा तर जा ।।
बिन गुरु के सतज्ञान, कहाँ कब तोला मिलही ।
सुन मानुष नादान,भीतरी तन मन जलही ।।
गुरु के आगे मान, देव सब हें बलिहारी ।
अँधियारी मन द्वार, बने गुरु तब उजियारी ।।
कर सेवा उपकार, दीन दुखिया के भाई ।
कर नारी सम्मान, समझ खुद बहिनी माई ।।
एक बरोबर मान, सबो मनखे अउ प्रानी ।
मानवता रख धर्म, लिखे जा अपन कहानी ।।
छोट बड़े के भाव, फेंक दे येला घुरवा ।
लगा सुमत के पेड़, रितो ले पानी चुरुवा ।।
गजानंद कविराय, बताये सत के महिमा ।
अपन हाथ सम्मान, बनाये रख तँय गरिमा ।।
छंदकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
सहीं गलत ला छाँट, राह सत के तँय धर ले ।
मानुष तन अनमोल, करम जग अच्छा कर ले ।।
सांसा मिले उधार, चुका ले येखर करजा ।
कर ले कारज नेक, ज्ञान गंगा मा तर जा ।।
बिन गुरु के सतज्ञान, कहाँ कब तोला मिलही ।
सुन मानुष नादान,भीतरी तन मन जलही ।।
गुरु के आगे मान, देव सब हें बलिहारी ।
अँधियारी मन द्वार, बने गुरु तब उजियारी ।।
कर सेवा उपकार, दीन दुखिया के भाई ।
कर नारी सम्मान, समझ खुद बहिनी माई ।।
एक बरोबर मान, सबो मनखे अउ प्रानी ।
मानवता रख धर्म, लिखे जा अपन कहानी ।।
छोट बड़े के भाव, फेंक दे येला घुरवा ।
लगा सुमत के पेड़, रितो ले पानी चुरुवा ।।
गजानंद कविराय, बताये सत के महिमा ।
अपन हाथ सम्मान, बनाये रख तँय गरिमा ।।
छंदकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
गज़ब सुग्घर गुरुजी
ReplyDeleteबड़ सुग्घर रचना
ReplyDeleteबड़ सुग्घर रचना
ReplyDeleteअति सुग्घर इंजी.सर
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर सृजन है भाई
ReplyDeleteवाह वाह बहुत सुंदर छंद गुरुदेव, बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सर जी बधाई हो
ReplyDeleteवाहहहह गुरूदेव बधाई बहुते सुग्घर
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर भैया जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रोला
ReplyDeleteबड़ सुग्घर सृजन आदरणीय
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