रोला छन्द- उमाकान्त टैगोर
मन ला अड़बड़ भाय, छन्द के गाना रोला।
सब ले सुग्घर आज, दिवस हर लागय मोला।।
लिखबो सब झन रोज, बने जी ध्यान लगा के।
गूँजय एकर शोर, रहिन जी अलख जगा के।।1।।
हक ला ककरो मार, पेट झन अपन भरव जी।
मिहनत करके पोठ, नाम ला अपन करव जी।।
कइसे बनही बात, मूड़ ला धर बइठे मा।
बने बिगड़ही काम, जियादा मुँह अइठे मा।।2।।
बाबू रोज कमाय, करय जी बेटा खरचा।
होगे हे मतवार, गली भर होवय चरचा।।
गाँव-गाँव के बात, कहूँ के घर के नोहय।
बाबू जी के भार, कोन अब सरवन बोहय।।3।।
पढ़े लिखे का काम, बाप नइ सेवा जाने।
फिरथस बन हुसियार, अपन तँय छाती ताने।।
अइसन घोर कपूत, भाग मा जेकर होथे।
बेटा हाँसय रोज, बाप जिनगी भर रोथे।।4।।
जी कल्लाथे मोर, पढ़े नइ जावस कहिके।
गारी खाबे रोज, गधा अउ अड़हा रहिके।।
जे दिन आही चेत, हाथ ला रमजत रहिबे।
सोच सोच के तोर, भाग ला टमरत रहिबे।।5।।
नेता करथे राज, खाय ओ घी के रोटी।
जनता मन के आज, भूख मा ऐंठत पोटी।।
कइसे चलही देश, बैठ के सोचत हावँव।
सोच सोच के मोर, मूड़ ला नोचत हावँव।।6।।
देवव थोकन ध्यान, नशा ला छोड़व संगी।
देश भक्ति मा आज, सबो झिन मन ला रंगी।।
भारी एकर बीख, जोरहा सब ला धरथे।
कहिथे सबे सियान, इही ले घर हा जरथे।।7।।
पातर कनिहा तोर, मटक ले मटकय गोरी।
रहय जियत भर मोर, मया के बँधना डोरी।।
छुन-छुन, छुन-छुन तोर, छनकथे, बैरी पैरी।
सुनथस बोली मोर, जान के बनथस भैरी।।8।।
हिचकी आथे रोज, रात दिन सुरता करथंव।
घेरी बेरी तोर, मया के सुतरी बरथंव।।
माते दौना फूल, हुलस के मन हा मोरे।
आबे नरवा तीर, सँगी तँय भाजी टोरे।।9।।
आज नहीं ता काल, मोर तो सुरता आही।
बिहना कट तो जाय, साँझ कइसे कट पाही।।
सुसक सुसक दिन रात, हदर के तँय हा रोबे।
मेला जइसन भीड़, घलो मा जुच्छा होबे।।10।।
छंदकार- उमाकान्त टैगोर कन्हाईबंद, जाँजगीर (छत्तीसगढ़)
मन ला अड़बड़ भाय, छन्द के गाना रोला।
सब ले सुग्घर आज, दिवस हर लागय मोला।।
लिखबो सब झन रोज, बने जी ध्यान लगा के।
गूँजय एकर शोर, रहिन जी अलख जगा के।।1।।
हक ला ककरो मार, पेट झन अपन भरव जी।
मिहनत करके पोठ, नाम ला अपन करव जी।।
कइसे बनही बात, मूड़ ला धर बइठे मा।
बने बिगड़ही काम, जियादा मुँह अइठे मा।।2।।
बाबू रोज कमाय, करय जी बेटा खरचा।
होगे हे मतवार, गली भर होवय चरचा।।
गाँव-गाँव के बात, कहूँ के घर के नोहय।
बाबू जी के भार, कोन अब सरवन बोहय।।3।।
पढ़े लिखे का काम, बाप नइ सेवा जाने।
फिरथस बन हुसियार, अपन तँय छाती ताने।।
अइसन घोर कपूत, भाग मा जेकर होथे।
बेटा हाँसय रोज, बाप जिनगी भर रोथे।।4।।
जी कल्लाथे मोर, पढ़े नइ जावस कहिके।
गारी खाबे रोज, गधा अउ अड़हा रहिके।।
जे दिन आही चेत, हाथ ला रमजत रहिबे।
सोच सोच के तोर, भाग ला टमरत रहिबे।।5।।
नेता करथे राज, खाय ओ घी के रोटी।
जनता मन के आज, भूख मा ऐंठत पोटी।।
कइसे चलही देश, बैठ के सोचत हावँव।
सोच सोच के मोर, मूड़ ला नोचत हावँव।।6।।
देवव थोकन ध्यान, नशा ला छोड़व संगी।
देश भक्ति मा आज, सबो झिन मन ला रंगी।।
भारी एकर बीख, जोरहा सब ला धरथे।
कहिथे सबे सियान, इही ले घर हा जरथे।।7।।
पातर कनिहा तोर, मटक ले मटकय गोरी।
रहय जियत भर मोर, मया के बँधना डोरी।।
छुन-छुन, छुन-छुन तोर, छनकथे, बैरी पैरी।
सुनथस बोली मोर, जान के बनथस भैरी।।8।।
हिचकी आथे रोज, रात दिन सुरता करथंव।
घेरी बेरी तोर, मया के सुतरी बरथंव।।
माते दौना फूल, हुलस के मन हा मोरे।
आबे नरवा तीर, सँगी तँय भाजी टोरे।।9।।
आज नहीं ता काल, मोर तो सुरता आही।
बिहना कट तो जाय, साँझ कइसे कट पाही।।
सुसक सुसक दिन रात, हदर के तँय हा रोबे।
मेला जइसन भीड़, घलो मा जुच्छा होबे।।10।।
छंदकार- उमाकान्त टैगोर कन्हाईबंद, जाँजगीर (छत्तीसगढ़)
नेता करथे राज, खाय ओ घी के रोटी।
ReplyDeleteजनता मन के आज, भूख मा ऐंठत पोटी।।
कइसे चलही देश, बैठ के सोचत हावँव।
सोच सोच के मोर, मूड़ ला नोचत हावँव।।
वाह वाह वाह वाह
का गजब के लेखनी उमाकांत जी
जइसन आप के लेखन चलथे वइसने
आप पाठ भी गजब करथव
हार्दिक हार्दिक बधाई
आप "छंद के छ" के
उम्दा रचनाकार हव
पुनः बधाई
सुरेश पैगवार
जाँजगीर
9827964007
गज़ब सुग्घर भाईजी
ReplyDeleteवाह वाह लाजवाब रोला छंद, बहुत बधाई
ReplyDeleteशानदार रोला छंद के सृजन ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteवाहह!वाहह!टैगोर जी बहुत बढ़िया रोला
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