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Monday, May 25, 2020

गीतिका छंद-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

गीतिका छंद-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

तन अपन तैं झन तपा मद मोह माया मा बँधा।
मिल जथे दाना सहज कहि पिंजरा मा झन धँधा।
वो सुवा के बात अलगे जे छुवे आगास ला।
का हिता पाबे बता अंतस दबाके के आस ला।

झन अधर्मी बन कभू कर दान दक्षिणा धर धरम।
नींद खातिर हे जरूरी शांति सुख अउ सत करम।
नींद जब आये नही तब रात हा बिरथा हवै।
बोल आवै नइ समझ तब बात हा बिरथा हवै।

खोद झन खाई कभू खुद रे तिहीं जाबे झपा।
हदरही झन कर कभू बाँटा दुसर के झन नपा।
तन रहे ना धन रहे तैं फोकटे झन कर गरब।
चार दिन दुख साथ रइही चार दिन रइही परब।

सोंच ले सब काम बनथे अउ बिगड़थे सोंच ले।
सोंच ला रख ले सहीं मन मा मया सत खोंच ले।
जीव ला जीते जियत जाने नही संसार हा।
देवता हो जाय फोटू मा चढ़े जब हार हा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

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