रोला छंद- दिलीप कुमार वर्मा
अब तो कहना मान, जगत मा खतरा भारी।
बड़े बड़े बलवान, बतावत हे लाचारी।
नइ आवत हे काम, धरे भारी बम गोला।
ताला मा भगवान, बतावँव का मँय तोला।
मनखे हे लाचार, करे का समझ न आवय।
आफत मा हे जान, बचे बर कहाँ लुकावय।
आये हे यम दूत, खोज सब लेगत हावय।
शहर नगर सुनसान, कहाँ अब जान बचावय।
बैरी हे बलवान, मरे नइ ओ मारे ले।
लड़ना हवय जरूर, बनय नइ अब हारे ले।
करना हे उपचार, भले हम मार न पाबो।
रहिके उन ले दूर, अपन हम जान बचाबो।
टोरव सबझन चैन, बना लव कुछ दिन दूरी।
बैरी ला दे मात, हवय जी बहुत जरूरी।
कहना अब तो मान,रहव घर खुसरे कुछ दिन।
तन ला राखव साफ, गुजारव दिन ला गिन गिन।
हावय इही उपाय, तीर ओखर झन आवव।
राहव सब ले दूर, कहूँ भी बाहिर जावव।
अपन मौत मरजाय, बचे नइ बैरी तब जी।
दिन पहिली कस आय, आस ला राखव सब जी।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
अब तो कहना मान, जगत मा खतरा भारी।
बड़े बड़े बलवान, बतावत हे लाचारी।
नइ आवत हे काम, धरे भारी बम गोला।
ताला मा भगवान, बतावँव का मँय तोला।
मनखे हे लाचार, करे का समझ न आवय।
आफत मा हे जान, बचे बर कहाँ लुकावय।
आये हे यम दूत, खोज सब लेगत हावय।
शहर नगर सुनसान, कहाँ अब जान बचावय।
बैरी हे बलवान, मरे नइ ओ मारे ले।
लड़ना हवय जरूर, बनय नइ अब हारे ले।
करना हे उपचार, भले हम मार न पाबो।
रहिके उन ले दूर, अपन हम जान बचाबो।
टोरव सबझन चैन, बना लव कुछ दिन दूरी।
बैरी ला दे मात, हवय जी बहुत जरूरी।
कहना अब तो मान,रहव घर खुसरे कुछ दिन।
तन ला राखव साफ, गुजारव दिन ला गिन गिन।
हावय इही उपाय, तीर ओखर झन आवव।
राहव सब ले दूर, कहूँ भी बाहिर जावव।
अपन मौत मरजाय, बचे नइ बैरी तब जी।
दिन पहिली कस आय, आस ला राखव सब जी।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
बहुत बढ़िया सृजन है भाई जी
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर रोला छंद हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रोला छंद गुरुदेव जी
ReplyDeleteवाह वाह बहुत खूब गुरुदेव
ReplyDeleteधन्यवाद खैरझिटिया जी।
ReplyDeleteआप सब ला धन्यवाद
वाह गुरु जी
ReplyDeleteबड़ गजब के सृजन
व्यंग चलो हे मधुरता घलो हे
हार्दिक बधाई सर
ReplyDeleteसंदेशप्रद बड़ सुग्घर सृजन
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