*रोला छंद-मीता अग्रवाल*
गुरु
ज्ञान जोत ला बार, होय जगमग उजियारा।
अंधकार ला चीर,तमस के तोड़व कारा।
नहीं गुरू बिन ज्ञान,बात ला खचित समझ ले ।
हरे ज्ञान आधार, गुरू के पग ला धरले।।
मनखे मनखे एक, गुरू के सुंदर कहना।
आही नवा बिहान, मनुख सत् मारग चलना।
ऊँच नीच के भेद, गुरू के ज्ञान मिटावय।
सिरजे एके जोत,सबो मा प्राण समावय।।
सुख दुख
जिनगी के आधार, करम अउ आँख मिचौली ।
कभू मान झन हार,हाँस के भर ले झोली ।
समे होय ना एक, समझ तय कारज करबे।
सुख दुख के आसार,सबो दिन अंतस भरबे।।
भाई भाई
सोच समझ के काम, करव सब मिलजुल भाई ।
जिनगी के दिन चार, मया सुर जग मा बगराई।
भाई भाई बैर, भाव अंतस मा पालय।
दया मया ला छोड़, अपन अपने ला काटय।।
चुनाव
आगे हवय चुनाव, वोट तुम सोच के देना।
रुपिया कंबल बाँट, वोट ला करथे लेना।
मत के ये अधिकार,बहुत बड़ पावर भाई।
लालच ला धिक्कार,अपन मत देहे दाई।।
शरद पुन्नी
पुन्नी शरद उजास, आज सब संग मनावन।
दूध चउर के खीर,राँध के धरम निभावन।
पुनवासी के रात, चाँद अमरित बरसाथे।
गोकुल वृन्दा धाम,किसन हा रास रचाथे।।
छंदकार-डाॅ मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़
धन्यवाद गुरु देव व जितेन्द्र भाई।
ReplyDeleteगज़ब सुग्घर दीदी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर दीदी जी
ReplyDeleteवाह वाह अनुपम भाव, शिल्प सम्पन्न रोला छंद सृजन।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई छंद में भावपूर्ण सार्थक सृजन हुआ.
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर विषय सृजन बहिनी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, एक से बढ़कर एक छंद
ReplyDeleteछंदवृन्द सार्थक और सफल है अपनी बात पहुँचाने में
ReplyDeleteजितनी गहरी अनुभूति उतनी ही अभिव्यक्ति
साकेत सुमन चतुर्वेदी झाँँसी
ReplyDeleteबड़ सुग्घर सृजन आदरणीय
ReplyDeleteआप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रोला
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