रोला छन्द-अजय अमृतांसु
बेटी हे अनमोल,फूल कस राखव भाई।
दाई करै दुलार, ददा के बेटी माई।
सात समुंदर पार,घलो वो सुरता करथे।
मइके के हे आस,तभे तो आँसू ढरथे।
बगिया के ये फूल,दिखत हे लाली लाली।
बगरे हवय अँजोर,लागथे हे दीवाली।
बुलबुल कस हुसियार,कोइली कस हे बोली।
मैना कस हे गोठ,करय जी अबड़ ठिठौली।
(किसान)
करजा मा गय बूड़,खाय का कुछु नइ सूझय।
भुइँया के भगवान,हाल कोनो नइ पूछय।
उपजावत हे अन्न,पेट ला सब के भरथे।
तोर डहर गा ध्यान,कोन हा निसदिन धरथे।
करजा लेके आय, जगत मा तैंहा भैया।
पार लगाही कोन,तोर जीवन के नैया।
करजा मा लदकाय,ब्याज हा बाढ़त हावय।
जी लेवत हे पीर,कहाँ अब माढ़त हावय।
अजय अमृतांशु,भाटापारा
छत्तीसगढ़
बेटी हे अनमोल,फूल कस राखव भाई।
दाई करै दुलार, ददा के बेटी माई।
सात समुंदर पार,घलो वो सुरता करथे।
मइके के हे आस,तभे तो आँसू ढरथे।
बगिया के ये फूल,दिखत हे लाली लाली।
बगरे हवय अँजोर,लागथे हे दीवाली।
बुलबुल कस हुसियार,कोइली कस हे बोली।
मैना कस हे गोठ,करय जी अबड़ ठिठौली।
(किसान)
करजा मा गय बूड़,खाय का कुछु नइ सूझय।
भुइँया के भगवान,हाल कोनो नइ पूछय।
उपजावत हे अन्न,पेट ला सब के भरथे।
तोर डहर गा ध्यान,कोन हा निसदिन धरथे।
करजा लेके आय, जगत मा तैंहा भैया।
पार लगाही कोन,तोर जीवन के नैया।
करजा मा लदकाय,ब्याज हा बाढ़त हावय।
जी लेवत हे पीर,कहाँ अब माढ़त हावय।
अजय अमृतांशु,भाटापारा
छत्तीसगढ़
वाह शानदार रचना गुरुदेव।।
ReplyDeleteवाह सर जी
ReplyDeleteकरजा के महिमा बतावत सुग्घर रचना सर जी बधाई हो
ReplyDeleteसुघ्घर रचना है भाई
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteमनखे मन ल सचेत करते बड़ सुग्घर सृजन आदरणीय
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