गीतिका छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
हे गजब मजबूर ये,मजदूर मन हर आज रे।
पेट बर दाना नहीं,गिरगे मुड़ी मा गाज रे।।
आज रहिरहि के जले,परके लगाये आग मा।
देख लौ इतिहास इंखर,सुख कहाँ हे भाग मा।।
खोद के पाताल ला,पानी निकालिस जौन हा।
प्यास मा छाती ठठावत,आज तड़पे तौन हा।
चार आना पाय बर, जाँगर खपावय रोज के।
सुख अपन बर ला सकिस नइ,आज तक वो खोज के।
खुद बढ़े कइसे भला,अउ का बढ़े परिवार हा।
सुख बहा ले जाय छिन मा,दुःख के बौछार हा।
नेंव मा पथरा दबे,तेखर कहाँ होथे जिकर।
सब मगन अपनेच मा हे,का करे कोनो फिकर।
नइ चले ये जग सहीं,महिनत बिना मजदूर के।
जाड़ बरसा हा डराये, घाम देखे घूर के।
हाथ फोड़ा चाम चेम्मर,पीठ उबके लोर हे।
आज तो मजदूर के,बूता रहत बस शोर हे।।
ताज के मीनार के,मंदिर महल घर बाँध के।
जे बनैया तौन हा,कुछु खा सके नइ राँध के।
भाग फुटहा हे तभो,भागे कभू नइ काम ले।
भाग परके हे बने,मजदूर मनके नाम ले।।
दू बिता के पेट बर,दिन भर पछीना गारथे।
काम करथे रात दिन,तभ्भो कहाँ वो हारथे।
जान के बाजी लगा के,पालथे परिवार ला।
पर ठिहा उजियार करथे,छोड़ के घर द्वार ला।
आस आफत मा जरे,रेती असन सुख धन झरे।
साँस रहिथे धन बने बस,तन तिजोरी मा भरे।
काठ कस होगे हवै अब,देंह हाड़ा माँस के।
जर जखम ला धाँस के,जिनगी जिये नित हाँस के।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
आल्हा छन्द - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
गरमी घरी मजदूर किसान
मूड़ म ललहूँ पागा बाँधे,करे काम मजदूर किसान।
हाथ मले बैसाख जेठ हा,कोन रतन के ओखर जान।
जरे घाम आगी कस तबले,करे काम नइ माने हार।
भले पछीना तरतर चूँहय,तन ले बनके गंगा धार।
करिया काया कठवा कस हे,खपे खूब जी कहाँ खियाय।
धन धन हे वो महतारी ला,जेन कमइया पूत बियाय।
धूका गर्रा डर के भागे , का आगी पानी का घाम।
जब्बर छाती रहै जोश मा,कवच करण कस हावै चाम।
का मँझनी का बिहना रतिहा,एके सुर मा बाजय काम।
नेंव तरी के पथरा जइसे, माँगे मान न माँगे नाम।
धरे कुदारी रापा गैतीं, चले काम बर सीना तान।
गढ़े महल पुल नँदिया नरवा,खेती कर उपजाये धान।
हाथ परे हे फोरा भारी,तन मा उबके हावय लोर।
जाँगर कभू खियाय नही जी,मारे कोनो कतको जोर।
देव दनुज जेखर ले हारे,हारे धरती अउ आकास।
कमर कँसे हे करम करे बर,महिनत हावै ओखर आस।
उड़े बँरोड़ा जरे भोंभरा,भागे तब मनखे सुखियार।
तौन बेर मा छाती ताने,करे काम बूता बनिहार।
माटी महतारी के खातिर,खड़े पूत मजदूर किसान।
महल अटारी दुनिया दारी,सबे चीज मा फूँकय जान।
मरे रूख राई अइलाके,मरे घाम मा कतको जान।
तभो करे माटी के सेवा,माटी ला महतारी मान।
जगत चले जाँगर ले जेखर,जले सेठ अउ साहूकार।
बनके बइरी चले पैतरा,मानिस नहीं तभो वो हार।
धरती मा जीवन जबतक हे,तबतक चलही ओखर नाँव।
अइसन कमियाँ बेटा मनके, परे खैरझिटिया हा पाँव।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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लावणी छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे
मँय मजदूरी करथौं भइया,
दुनिया ला सिरजाये हँव।
पेज-पसइया पी के मँय हा,
जाँगर सदा चलाये हँव।।1
जंगल झाड़ी नदी पहाड़ी,
सब ला मँय सुघराये हँव।
पेट भरे बर मँय दुनिया के,
धान घलो उपजाये हँव।।2
गारा पखरा जोरे टोरे,
तन ला अपन तपाये हँव।
गाँव गली अउ शहर घलो ला,
संगी महीं बसाये हँव।।3
मोर करम ले दुनिया बदले,
सब ला कथा सुनाये हँव।
सगरी करम करे हँव संगी,
एक्को नहीं बचाये हँव।।4
बाढ़ करे हँव ये दुनिया के,
मँय मजदूर कहाये हँव।
का कुरिया का महल अटारी,
सब ला महीं बनाये हँव।।5
सबो कारखाना मा जाके,
लहू अपन बोहाये हँव।
डबरा डिलवा पाट पाट के,
रद्दा घलो बनाये हँव।।6
सब खदान मा छाती पेरँव,
करिया ला उजराये हँव।
हीरा मोती सोना चाँदी,
कतको ला चमकाये हँव।।7
नहर कुआँ तरिया बाँधा मा,
मँय हा पानी लाये हँव।
मोर बाँह मा टिके जमाना,
दुनिया पार लगाये हँव।।8
छन्दकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
कबीरधाम
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महेंद्र बघेल: लावणी छंद- महेंद्र कुमार बघेल
(पसीना बोलत हे)
कुकरा बासत बड़े बिहनिया,सबले पहिली उठ जावॅंय।
धरम मान महिनत ला संगी, ये जाॅंगर टोर कमावॅंय।।
घाम मॅंझनियाॅं होवय चाहे, बादर पानी अउ सरदी।
माथ पसीना हाथ फफोला,इही हरे तन के वरदी ।।
जब्बर हावय भुजा इकर अउ, पथरा जइसन हे छाती।
दुनिया के हर काम करे बर,मिले हवय पुरखा थाती।।
नहर बाॅंध तरिया डबरी बर, जब महिनत अपन दिखावै।
बंजर भुॅंइयाॅं के दिन बहुरे,पानी के धार बहावै।।
बिना थके अउ बिना रुके जी, करत हवय सिरजन भारी।
जिनगी भर सुख के आसा मा,नाप डरिन दुनिया सारी।।
सबो डहर तॅंय नयन घुमा ले, पाबे जगा जगा चिनहा ।
महल उठइया के कटथे जी,झोपड़ पट्टी मा दिन हा।।
करे नहीं जी लालच येमन, अपने हिस्सा के खावॅंय।
सत इमान अउ धरम करम ला , नित साथी अपन बनावॅंय।।
गढ़े हवॅंय मंदिर मस्जिद अउ, कतको चर्च गुरुद्वारा।
गिरत पसीना बोलत हे जी, करनी के जय जयकारा।।
महल अटारी सड़क बनावत, सुघर तरासॅंय गा हीरा।
कमिया बेटा काम साध के, खोजॅंय फेर नवा बीरा।।
धरा गगन ला भेंट करावत, निस दिन इनला हे खपना।
ये मजदूर कहावत जग मा, सफल करे सब के सपना।।
छंदकार-महेंद्र कुमार बघेल
डोंगरगांव जिला राजनांदगांव
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अमित: दोहा गीत~जय हो जाँगर जोश के
जय हे जाँगर जोश के, जुग-जुग ले जयकार।
सिरतों सिरजन हार तैं, पायलगी बनिहार।
खेत-खार नाँगर-बखर, माटी बसे परान।
कुदरा रापा संग मा, इही मोर पहिचान ।।
लहू पछीना ओलहा, बंजर खिले बहार।-1
सिरतों सिरजन हार तैं....
घाट-घटौंदा घरउहा, महल-अटारी धाम।
सड़क नहर पुलिया गढे़, करथव कब बिसराम।।
सरलग समरथ साधना, सौ-सौ हे जोहार।-2
सिरतों सिरजन हार तैं.......
ईंटा-पखरा जोरथें, धर करनी गुरमाल।
खद्दर खपरा खोंधरा, मस्त मगन हर हाल।।
सोसक सरई सोनहा, बनी-भुती खमहार।-3
सिरतों सिरजन हार तैं....
अन्न-धन्न दाता तहीं, सुख सब तोरे पाँव।
परछी परवा मा रहे, भूमिहीन हे नाँव।।
मतलबिहा लहुटे सबो, भुलगे जग भुतियार ।-4
सिरतों सिरजन हार तैं......
चिखला झुक्खा भोंभरा, जुड़ सरदी अउ घाम।
महिनत मा मोती मिले, चमचम चमके चाम।।-5
फटे बेंवई केंदवा, भुजबल बड़ दमदार।
सिरतों सिरजन हार तैं.....
आलस अल्लर ओढ़हर, नइ जाने मजदूर।
भाग्य बिधाता सब सहे, कइसे हे मजबूर।।
साधक सक्ती के अमित, सुख मा कब सुखियार।-6
सिरतों सिरजन हार तैं, पायलगी बनिहार।
जय हे जाँगर जोस के, जुग-जुग ले जयकार।।
कन्हैया साहू "अमित"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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आशा देशमुख:भुजंगप्रयात छंद
करे काम वो हाथ मजबूत होथे।
करम बाँचथे जेन श्रमदूत होथे।
अबड़ होत सिधवा कहव झन अनाड़ी।
करे काम निशदिन मजूरी दिहाड़ी।1।
भुजा बल भरोसा सदा दिन करे हे।
मजूरी करत अउ पसीना धरे हे।
खड़े हे महल अउ बने कारखाना।
न पाये उही मन कभू एक दाना।2।
करे जेन मिहनत उही है पुजारी।
उठे रोज बिहने चले खेत बारी।
भरे पेट सबके इही अन्नदाता।
निभावत हवय श्रम जगत संग नाता।3
कभू धर कुदारी कभू फावड़ा ला।
कुचर देत पथरा व लोहा कड़ा ला।
न नदिया न सागर उगारे पसीना।
दिखे माथ मोती धरे श्रम नगीना।4
बने जग धनी जेन श्रम दान पाके।
सबो फूल बगिया खिले मान पाके।
चलव आज सब श्रम दिवस ला मनावौ।
करव मान श्रम के सरग ला बुलावौ।5
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)
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बोधन जी: रूपमाला छंद - बोधन राम निषादराज
( मँय मजदूर)
हाँव मँय मजदूर संगी,काम करथौं जोर।
पेट पालत दिन पहावँव,देश हित अउ मोर।
कर गुजारा रात दिन मँय,मेहनत कर आँव।।
रातकुन के पेज पसिया,खाय माथ नवाँव।।
दिन बितावौं मँय कमावँव,फोर पथरा खाँव।
मेहनत के आड़ संगी, देश ला सिरजाँव।।
चाँद में पहुँचे ग भइया,देख सब जर जाय।
कोन हिम्मत अब ग करही,आँख कोन उठाय।।
अब पसीना हा चुहत हे,टोर जाँगर देख।
भाग हा अब झूकही जी,ए बिधाता लेख।।
मेहनत मा आज देखौ, स्वर्ग बनगे खार।
ईंट से जी ईंट बजगे, देख लव संसार।।
काम पूजा मोर हावै, काम हे भगवान।
काम करलौ आव भाई, काम हे ईमान।।
पार नइहे दुःख के जी,धीर बाँधव आव।
एक दिन सुख आय संगी,दुःख जाय कमाव।।
छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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नमेंद्र *शक्ति छंद* मजदूर
कमा टोर जांगर भरत पेट हे,
कभू भूख चोला चढ़त भेंट हे।
खड़े घाम मा देख मजदूर हे,
करे का बिचारा ह मजबूर हे।
मिले पेज पानी बिचारत रहे,
खड़े डेहरी भूख लइका कहे।
कमावत ददा हा बनी खेत मा,
बिनत माँ ह कनकी कभू रेत मा।।
नही चेंदरी तन ढ़के बर हवे,
गिरत कांड़ छपरी ह घर के नवे।
बनावत महल अउ अटारी बने,
तभो गोड़ काँटा गरीबी गने।।
कमावत हवे नोट बड़ सेठ जी,
कड़ा बोल बोलत हवे ठेठ जी।
भरे थाल के रोज खाना बहत,
गरीबी मरत भूख दे दव कहत।।
मजूरी मिले रोज बिनती करे,
कभू सेठ के गोड़ माथा धरे।
बँधे खूंट मा रोज मजदूर हे,
करे का बिचारा ह मजबूर हे।।
छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेंद्र
हल्दी-गुंडरदेही जिला बालोद
मोबा.8225912350
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(सार छंद)-सुरेश पैगवार
जुग-जुग नव निरमान करे बर, जाँगर पेर कमाथौं।
माटी मा मैं उपजे बाढ़े, माटी के गुन गाथौं।।
ऊँच-ऊँच ये महल अटारी, सबला महीं बनाथौं।
खेत-खार मा अन्न उगा के, सबला महीं खवाथौं।
दुख-पीरा ला सहि के भइया, कौड़ी दाम ल पाथौं।
आँसू पी के पेट पोंस के, धरम ल अपन निभाथौं।।
जुग-जुग नव - - - -
नवा राज मा नवा सुरुज के, करथौ रोज अगोरा।
ये भुइयाँ के पइयाँ लागौं, जेकर रहिथौं कोरा।
दया मया मैं बाँटत फिरथौं, राग सुराजी गाथौं।
भेद-भाव मन मा नइ लानँव,सगरो जिनिस बनाथौं।।
जुग-जुग नव - - - -
हसदो बाँगो बाँध बाँधके, अन-धन मैं उपजैया।
सड़क रेल के जाल बिछइया, धरती सरग बनैया।
लूटौ झन अधिकार श्रमिक के, जग ला रोज गोहराथौं।
मिहनत कस सब भाई मन के, श्रम के मान बढ़ाथौं।।
जुग-जुग नव - - - -
हाँसत कूदत मिहनत करथौं, राम कहानी गाथों।
जुग-जुग नव निरमान करे बर, जाँगर पेर कमाथौं।।
*सुरेश पैगवार* जाँजगीर
मो- 9827964007
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आसकरण: कुण्डलिया छंद
करके मिहनत खान जी,हमतो हन मजदूर |
बिन मिहनत काय हे,इहाँ सबे मजबूर ||
इहाँ सबे मजबूर,सेठ बनके तुम राहव |
करके दुनिया भ्रष्ट,भ्रष्ट होके मर जाहव ||
हम सतरंगी तान,गीत गाबो बल धरके |
हमतो हन मजदूर,खान जी मिहनत करके ||1
पानी पोछत माथ के,करथन हम हर काम |
लइका बच्चा छोड़ के,सहिथन कतको घाम ||
सहिथन कतको घाम,तभो ले गुन नइ राखें |
कहिथैं फेर अलाल,कोन दिन येमन काखें ||
बनके बइठें सेठ,जोंग दँय आनी बानी |
करथन मिहनत खूब,माथ के पोछत पानी ||2
हम सिरजाथन विश्व जी,जांगर पेरन रोज |
धरती के हम पूत अन,नोहन राजा भोज ||
नोहन राजा भोज,महल बँगला नइ चाही |
सुम्मत के दिन लान,तभे चोला कल पाही ||
कभू रोय हच पूछ,कहाँ कब लाँघन जाथन |
जांगर पेरन रोज,विश्व ला हम सिरजाथन ||3
छंदकार : असकरन दास जोगी
पता : ग्राम डोंड़की,तहसील+पोस्ट-बिल्हा,जिला-बिलासपुर (छ.ग.)
मो. : 9340031332
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शक्ति छंद - श्लेष चन्द्राकर
शीर्षक - एक मजदूर हँव
जगत बर पछीना अपन गारथँव।
सबो चाह ला मयँ अपन मारथँव।।
जिये बर असुविधा म मजबूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
चलय कारखाना नहीं मोर बिन।
बनत हे जिंहा रेल अउ आलपिन।।
खने बर मिही नेंव मशहूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
कमावत हवव मँय चँउर दार बर।
खटत हँव अपन देश परिवार बर।।
करत रात दिन काम भरपूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
सड़क सेतु ला सब बनाथव मिही।
फसल खेत मन मा उगाथव मिही।।
पलायन करे गाँव ले दूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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: कुकुभ छंद गीत - आशा आजाद
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे,
नेक करम ला पूजत जम्मो,आज माथ ल नवाये हे।
अबड़ मेहनत मजदूर करै,धूप छाव ला नइ जानै,
काम बुता ला नित करना हे ,इही धरम ला ओ मानै,
कठिन काज ला जुरमिल करथे,सुग्घर देश बनाये हे,
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे।
रोजी बस हे एक आसरा,सोच करे सब मजदूरी,
मिलय नही भरपेट अन्न हा,कतका रहिथे मजबूरी,
बचत कहाँ ले होवै जानौ,रोज कमाये खाये हे,
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे।
बड़े इमारत खड़ा करै ये,साहस तन मन बड़ हावै,
चमत्कार के ए दुनियाँ मा,इँखर गुन ला सब गावै,
विश्व देश के विकास देखौ,इँखरेच बल म होये हे,
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे।
लोहा जइसे तन ला राखै ,छिन छिन दुख ला झेलै ये,
अपन जीव के मोह भुलाके,नित खतरा ले खेलै ये,
मजदूरी ले होय गुजारा,काज एक अपनाये हे,
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे।
बोझा निसदिन खूब उठावै,साहस ला सबझन मानौ,
करम धरम हे सबले सच्चा,नेक ईमान पहिचानौ,
घर माटी के हावै तब ले,दूसर घर ल बनाये हे,
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे।
छंदकार - आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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राजकुमार बघेल: सार छंद -
अॅऺंउटावत हॅऺंव खून पछीना,करथॅऺंव मॅऺंय मजदूरी ।
पेट जरत हे धधकत आगी,हे कइसे मजबूरी ।।
माथ लगे हे चंदन माटी,माटी संग मितानी ।
सेवा करथॅऺंव धरती दाई,मारॅऺंव नहीं फुटानी ।।1।।
राॅऺंपा कुदरी झॅऺंउहा गैंती,नांगर धरे तुतारी ।
पेरत रइथन हम तो जांगर, संगी पारी पारी ।।
बेटा बेटी अउ महतारी,तन मन सबो लगाके ।
मिहनत करके अन्न उगाथन,खुश हन जी उपजाके ।।2।।
माथ पछीना टप टप टपके,संसो मन मा भारी।
पाॅऺंव भोंमरा अइसन जरके,गढ़थॅऺ़व महल अटारी ।।
हवय किसानी मोर धरम जी,गोड़ गड़े हॅऺंव कांटा ।
धान कटोरा मोर भरोसा,देथॅऺंव पोषण बांटा ।।3।।
माटी भिथिया छितका कुरिया,चुहथे परवा छानी ।
चिरहा चिरहा फरिया पहिरे,बोहत आॅऺंखी पानी ।।
गिरगिट्टी हे गोड़ देख ले,तलुवा परगे छाला ।
जिनगी जीना होगे मुश्किल, पीथॅऺंव गम के हाला ।।4।।
मोर भुजा के बल नइ पावॅऺंय,करथॅऺंव पर्वत राई ।
काट छाॅऺंट के सड़क बनादॅऺंव, करथॅऺंव जगत भलाई ।।
हिरदे भीतर मोर मया के, मारत लहरा भारी ।
जग ला अपने मॅऺंय हा मानौ,हावय मोर चिन्हारी ।।5।।
कया मया हे गाॅऺंव सहर मा,सुमता के फुलवारी ।
धरती लागे सरग बरोबर,मारॅऺंय जन किलकारी ।।
लिखे हवय का मोर करम ला,अइसन काय विधाता ।
दुख रेखा ला मोर मिटा सब,सुख दे ईश्वर दाता ।।6।।
कोन हवय जी हमर पुछइया,कोन हरे जी पीरा ।
दुनों हाथ मा तभो लुटाथॅऺंव, सोना चांदी हीरा ।।
हवय गरीबी श्राप देश बर, हावय का लाचारी ।
काम करव जुर मिल के भइया सबो तंत्र सरकारी ।।7।।
छंदकार -राज कुमार बघेल
सेन्दरी बिलासपुर (छ.ग.)
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ताटंक छंद - विरेन्द्र कुमार साहू
रचथे सड़क भवन अउ पुलिया, उन मजदूर कहाथें जी।
इनखर परसादे मंडल मन, दुनिया मा इतराथें जी।१।
बज्र बरोबर हाड़ा जिनखर, अउ किच्चक कस हे काया।
टप-टप चुहिथे खार-पसीना, भावय नइ उनला छाया।२।
उनखर पाँव म नंगत गड़थे, काँटा खूँटी गोंटी जी।
मिहनत करथे तभ्भे खाथे, उन दू बेरा रोटी जी।३।
जउन बनाथें महल अटारी, उनखर का कहिबे किस्सा।
सब बर भाग मढ़ाथे लेकिन, नइ पावय अपने हिस्सा।४।
देख जउन ला छुटय पसीना, नदियाँ पर्वत घाटी के।
कतका गावँव गाथा उनखर, जे मितान हे माटी के।५।
छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू, बोड़राबाँधा(पाण्डुका), जिला - गरियाबंद(छत्तीसगढ़), 9993690899
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सार छंद-गीत-सुधा शर्मा
बनँव करम के भागी संगी,
जिनगी बोझ उठाथौं।
पेट बिकाली बूता करथौं
मैं बनिहार कहाथौं।।
होत बिहानी सुरुज उवत हे,
दिन के पाना छितरे।
आखर -आखर विधना डाँड़ी,
रेंगत पाँव ह उघरे। ।
धरे धमेला रापा गैंती,
बूता ठीहा जाथौं।
जाँगर पेरत परिया टोरत,
भुइँया धनहा गढ़थौं।
चोला कारी बहय पसीना,
माटी मिझरा करथौं।
अंग -अंग मा भरके पीरा,
सुख के मुस्की पाथौं।
चूहत घर के खद्दर छपरी,
पर के महल बनाथौं।
पानी घाम ओढ़ना बनथे,
सपना सुख ल सजाथौ।
हिनमान गा करथें कतको,
पीर घुटक रहि जाथौं।
कभू कहूँ त्योहार ह परगे,
संसो मा बुड़ जाथौं
नान -नान लइका के संगी,
आँखी आसा लाथौं ।
ओ दिन पसिया भात खाय के,
सुख के परब मनाथौं।
भाग लिखइया देखत हावे,
अपने आखर मोती।
बाह भरोसा बलकर हावँव,
बनँव अमावस जोती।
मोर बिगर हे जग अँधियारी,
दीया आस जलाथौं।
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
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: आल्हा छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
एक मई मजदूर दिवस के, करथव सुरता तुम मजदूर ।
बाँट बधाई भूल गये सब, काबर इन तो हे मजबूर ।।
देखव संगी आँख निहारे, भारत के असली तस्वीर ।
भूख प्यास मजदूर मरे हें, तरसे इन सुख के तकदीर ।।
माथ लगा के चन्दन माटी, दुनिया के सिरजावय भाग ।
तभो डसत हे देखव संगी, भूखमरी बन काला नाग ।।
बबरु बरन ये काया साजे, थामे बइठे भुजा पहाड़ ।
माथ पछीना मोती चमके, दिखे कोइला कस तन हाड़ ।।
धरे मेहनत के जादू ये, पाये हे श्रम के बरदान ।
कंकड़ ला तो सोन बना दै, पथरा ला तो ये भगवान ।।
महल अटारी रेल बने हे, दउड़े पानी हवा जहाज ।
खड़े कारखाना अउ टावर, ताज महल श्रम सिरजे नाज ।।
बादर पानी बदे मितानी, जाँगर पेर कमावय खेत ।
तोर दशा अउ सुख के खातिर, करे नहीं कोई जी चेत ।।
कोंन लिही जी शोर पता ला, अँधरा भैरा के दरबार ।
राम राज हे जिहाँ अमीरी, उहाँ गरीबी सर तलवार ।।
देश विकास करे कइसे जी, एक वर्ग ला करके दूर ।
मजबूर नहीं मजदूर हरौ, सुख सुविधा ला दे भरपूर ।।
गजानंद धर विकास डारा, तभे देश होही खुशहाल ।
भूख मरे मजदूर नहीं जी, तन कपड़ा सुख रोटी दाल ।।
छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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हेम के शंकर छंद
पेट भरे खातिर जाँगर ला, अपन पेरत जाय।
ढेला पखरा माटी के सँग, बोझ सबे उठाय।
गार पसीना महल अटारी, जौन सदा बनाय।
जग मा खुद जेकर घर नइहे, रात कहाँ पहाय।1।
रॉपा हँसिया कुदरी कतकोे, तोर हे औजार।
तोर मेहनत ले पावय सब, अन्न के भण्डार।
तोर श्रम ले फैक्टरी चले, अउ चले व्यापार।
सबके पेट भरे तँय भूखा, तोर हे परिवार।2।
रोज रात दिन करें मेहनत, अपन जाँगर पेर।
फुटहा काबर तोर करम हे, भाग्य के अंधेर।
भेद भाव ला छोड़ करे तँय, मेहनत सब मेर।
भाग्य गढ़े सब तोर करम ले, तोर दुच्छा फेर।3।
सर्दी गरमी भूख प्यास ला, तँय सहे हर बार।
रोड बनाथस जंगल झाड़ी, संग काँट पठार।
तोर भुजा मा ताकत बसथे, तोर हे उपकार।
कहिथे तोला दुनिया भैया, देश के बनिहार।4।
- हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
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दोहा-सुखमोती चौहान
इहाँ उहाँ बगरे हवँय,दुनिया मा मजदूर।
करथे काम कुटुम्ब बर,होके जी मजबूर।।
रोज कमाथें पेट बर,जिनगी चले सपाट।
गड्ढा पटे न भूख के,जोहे उन्नति बाट।।
खेत खार उद्योग मा,काम करे बनिहार।
सुख के सूरुज आय कब,करथे मौन पुकार।।
काम करत जिनगी ढरे,करे नहीं आराम।
जाँगर ओकर नइ थके,पथरा कस हे चाम।।
जोन पसीना गारथे,लाथे नवा बिहान।
ओला देवव जी बनी,अउ देवव सम्मान।।
सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
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अजय अमृतांसु: घनाक्षरी (मजदूर)
काम करै रात दिन, पल पल गिन गिन, छिन भर मज़दूर, करै न आराम गा।
भूख प्यास त्यागे हवै, काम करे जागे हवै, गरमी के दिन भारी, जरत हे चाम गा।
वाह रे मालिक बैरी, पाछु परे घेरी भेरी, काम करे मजदूर,
तभो बदनाम गा।
बिहना ले लगे हवै, रात घलो जगे हवै, बीतत मँझनिया हे, होवत हे शाम गा।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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जयकारी छंद - रामकली कारे
करथौं मिहनत मॅय मजदूर। नइ हाबव गा मॅय मजबूर।।
हिम्मत करके रोज कमाव। रुक्खा सुक्खा रोटी खाॅव।।
मिहनत हे गा मोर मितान। गढ़ गढ़ माटी पाथव मान।।
दिनभर हे दुनिया के काम। नइतो पावव गा आराम।।
घाटी पर्वत होय खदान। रचथव महल अटारी शान।।
लोहा बिजली मिट्टी तेल। आगी पानी खेलव खेल।।
रोजे खून पसीना गार। देथव गा सब सुख ला मार।।
पथरा खपरा ईटा जोड़। नदिया नरवा देवव मोड़।।
कहिथें गा मोला बनिहार। उपजा अन्न देव भंडार।।
सिरजा शहर नगर अउ गाॅव। धरती सुन्दर सरग बनाॅव।।
जुग जुग श्रम साधत गे बीत। बदलय कहाॅ कौन ये रीत।।
मिहनत ला करथन हम धार। होथे करम हमर बर सार।।
छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
छत्तीसगढ़
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: दुर्मिल सवैया छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
कमिया मजदूर किसान बड़ा दुख पावत हे कइसे ग सहे।
कतको दुख ला दिल मा दफना मजबूत हवे रग खून बहे।।
जिनगी गढ़थे दुनिया पढ़थे कहनी सब ओकर नाम कहे।
अँधियार हवे जिनगी हर जेकर दूर करे दुख एक रहे।।
छंदकार - अशोक धीवर' 'जलक्षत्री''
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा) जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़)
सचलभास क्र.- ९३००७१६७४०
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मनहरण घनाक्षरी - महेन्द्र देवांगन माटी
सुत उठ काम करे, रापा गैंती हाथ धरे,
माटी कोड़े रात दिन, खेत रोज जात हे।
घाम करे राँय राँय , हवा चले साँय साँय ,
चट चट पाँव जरे , तभो ले कमात हे।
पथरा पहाड़ फोरे , बड़का चट्टान टोरे ,
नदी नाला बाँध अब , पुलिया बनात हे।
देखे नहीं घाम छाँव , बड़े छोटे सबो गाँव,
पेट खातिर रोज के , पसीना बोहात हे।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
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रोला छन्द-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
मँय मरहा मजदूर
मँय मरहा मजदूर,खाँध मा जग बोहे हँव।
तभो चपक के पेट,मजूरी बर जोहे हँव।
करत करत निरमान,ददा पुरखा मन मरगे।
सुख सुविधा ले दूर,कई जुग जनम गुजरगे।
मोरे अघुवा पाँव,रोड़ रस्ता मा गे हे।
मोर हाथ हा नेव,बाँध बाँधा के दे हे।
झोपड़पट्टी एक,खदानन दूसर घर हे।
संग साथ बिन मोर,कारखाना अध्धर हे।
बनके काँड़ मियार,छत्त छानी बोहे हँव।
तभो चपक के पेट,मजूरी बर जोहे हँव।
ईंटा गार जोर,गढ़ँव देवालय मन ला।
बड़े बड़े संस्थान,महाविद्यालय मन ला।
छिनी हथौड़ी थाम,करँव पथरा ला मूरत।
पथरा अब हे नाथ,न देखय मोरे सूरत।
गरमाला बर फूल,टोर के महीं ह लाथँव।
शंकर के तिरछूल,घला ल महीं बनाथँव।
धागा बनके हार तरी मँय हर पोहे हँव।
तभो चपक के पेट मजूरी बर जोहे हँव।
मतदाता भगवान,कथे सरकारन मोला।
संख्या देखत लोक-तंत्र के धारन मोला।
पाँच शाल मा एक,बार भर खोज खबर हे।
जोतिस कथे बिचार,अवइया भाग जबर हे।
देथें उन भुलियार,पीठ मा हाथ फेर के।
कारण दू का चार,बता देथें अबेर के।
इतिहासन के माथ,मकुट बनके सोहे हँव।
तभो चपक के पेट,मजूरी बर जोहे हँव।
दाता तोर असीस,मोर बर उपर-छवाँ हे।
भूख दरद दुख कष्ट,रोज के नवाँ नवाँ हे।
न तो ठिकाना मोर,न लइकन के भविष्य के।
तोर बिना अब कोन,कल्पना करय दृश्य के।
का हे हाल निहार,कभू तो तँय घर आ के।
मनबोधत हस मोर,एक दिन दिवस मना के।
बिन सोंचे परकीति,तोर सुख बर दोहे हँव।
मँय मरहा मजदूर,खाँध मा जग बोहे हँव।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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: केवरा यदु "मीरा "
सार छंद
रोज बिहनिया बासी खाके,बनी भुती में जाथौं।
मात पिता के सेवा बर मँय,जाँगर टोर कमाथौं। ।
ईंटा गारा ढोके मँय हा,घर कुरिया सिरजाथौं।
टप टप चूहत हवय पसीना,तभो कहाँ घबराथौं।।
नाँगर धरके खेती करथँव,बइला हीरा मोती।
पानी धरके सँग मा जाथे,घरवाली सुरजोती।।
हाथ गोड़ में फोरा परगे,दिन भर फोरँव गिट्टी।
जाड़ घाम में करँव तपस्या, जाके ईंटा भट्टी।।
लइका मन ला पोसे बर मँय,हटरे हटर कमाथौं।
मिलथे भइया चार पईसा,मिहनत के तब खाथौं।।
देखव बूता बनिहारी के,दुःखे दुख मा काटे।
जिनगी के पीरा ला भइया, काकर सँग मा बाँटे।।
सबके महल दुवार बनाथे, ओकर छितका कुरिया ।
कब जागही भाग रामा जी, हाबे कतका दुरिया।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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आल्हा छंद - राजेश कुमार निषाद
बड़े बिहनिया जाथँव संगी,काम बुता मा मैंहर रोज।
घर के संसो छाये रहिथे,जाके करथँव दिनभर खोज।।
एती ओती जाके करथँव,काम बुता ला मैं बनिहार।
जब थक हारे घर मा आथँव,हो जाथे गा बड़ अँधियार।।
बड़ करलाई हावय भइया, देखव लइका मनके मोर।
रोजी रोटी बर मैं लड़थँव,अपन कमाथँव जाँगर टोर।।
घाम पियास मैं नइ देखँव,करथँव काम बुता दिन रात।
लाँघन भूखन झन राहय जी,लइका मनहा सोचँव बात।।
भरे मझनिया करते रहिथँव,नही कभू मैं खोजँव छाँव।
लक लक तीपे रहिथे भुइयाँ,चट ले जरथे मोरो पाँव।।
कभू खनव मैं माटी गोदी,अउ ढेला पथरा ला फोड़।
महल अटारी घलो बनाथँव,रच रच ईंटा मैंहर जोड़।।
टप टप चूहे भले पसीना,राहय खुश मोरो परिवार।
जउन बुलाही काम बुता मा,जाके करहूँ मैं बनिहार।।
रचनाकार:- राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद (समोदा) जिला रायपुर छत्तीसगढ़
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गरमी घरी मजदूर किसान
मूड़ म ललहूँ पागा बाँधे,करे काम मजदूर किसान।
हाथ मले बैसाख जेठ हा,कोन रतन के ओखर जान।
जरे घाम आगी कस तबले,करे काम नइ माने हार।
भले पछीना तरतर चूँहय,तन ले बनके गंगा धार।
करिया काया कठवा कस हे,खपे खूब जी कहाँ खियाय।
धन धन हे वो महतारी ला,जेन कमइया पूत बियाय।
धूका गर्रा डर के भागे , का आगी पानी का घाम।
जब्बर छाती रहै जोश मा,कवच करण कस हावै चाम।
का मँझनी का बिहना रतिहा,एके सुर मा बाजय काम।
नेंव तरी के पथरा जइसे, माँगे मान न माँगे नाम।
धरे कुदारी रापा गैतीं, चले काम बर सीना तान।
गढ़े महल पुल नँदिया नरवा,खेती कर उपजाये धान।
हाथ परे हे फोरा भारी,तन मा उबके हावय लोर।
जाँगर कभू खियाय नही जी,मारे कोनो कतको जोर।
देव दनुज जेखर ले हारे,हारे धरती अउ आकास।
कमर कँसे हे करम करे बर,महिनत हावै ओखर आस।
उड़े बँरोड़ा जरे भोंभरा,भागे तब मनखे सुखियार।
तौन बेर मा छाती ताने,करे काम बूता बनिहार।
माटी महतारी के खातिर,खड़े पूत मजदूर किसान।
महल अटारी दुनिया दारी,सबे चीज मा फूँकय जान।
मरे रूख राई अइलाके,मरे घाम मा कतको जान।
तभो करे माटी के सेवा,माटी ला महतारी मान।
जगत चले जाँगर ले जेखर,जले सेठ अउ साहूकार।
बनके बइरी चले पैतरा,मानिस नहीं तभो वो हार।
धरती मा जीवन जबतक हे,तबतक चलही ओखर नाँव।
अइसन कमियाँ बेटा मनके, परे खैरझिटिया हा पाँव।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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लावणी छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे
मँय मजदूरी करथौं भइया,
दुनिया ला सिरजाये हँव।
पेज-पसइया पी के मँय हा,
जाँगर सदा चलाये हँव।।1
जंगल झाड़ी नदी पहाड़ी,
सब ला मँय सुघराये हँव।
पेट भरे बर मँय दुनिया के,
धान घलो उपजाये हँव।।2
गारा पखरा जोरे टोरे,
तन ला अपन तपाये हँव।
गाँव गली अउ शहर घलो ला,
संगी महीं बसाये हँव।।3
मोर करम ले दुनिया बदले,
सब ला कथा सुनाये हँव।
सगरी करम करे हँव संगी,
एक्को नहीं बचाये हँव।।4
बाढ़ करे हँव ये दुनिया के,
मँय मजदूर कहाये हँव।
का कुरिया का महल अटारी,
सब ला महीं बनाये हँव।।5
सबो कारखाना मा जाके,
लहू अपन बोहाये हँव।
डबरा डिलवा पाट पाट के,
रद्दा घलो बनाये हँव।।6
सब खदान मा छाती पेरँव,
करिया ला उजराये हँव।
हीरा मोती सोना चाँदी,
कतको ला चमकाये हँव।।7
नहर कुआँ तरिया बाँधा मा,
मँय हा पानी लाये हँव।
मोर बाँह मा टिके जमाना,
दुनिया पार लगाये हँव।।8
छन्दकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
कबीरधाम
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महेंद्र बघेल: लावणी छंद- महेंद्र कुमार बघेल
(पसीना बोलत हे)
कुकरा बासत बड़े बिहनिया,सबले पहिली उठ जावॅंय।
धरम मान महिनत ला संगी, ये जाॅंगर टोर कमावॅंय।।
घाम मॅंझनियाॅं होवय चाहे, बादर पानी अउ सरदी।
माथ पसीना हाथ फफोला,इही हरे तन के वरदी ।।
जब्बर हावय भुजा इकर अउ, पथरा जइसन हे छाती।
दुनिया के हर काम करे बर,मिले हवय पुरखा थाती।।
नहर बाॅंध तरिया डबरी बर, जब महिनत अपन दिखावै।
बंजर भुॅंइयाॅं के दिन बहुरे,पानी के धार बहावै।।
बिना थके अउ बिना रुके जी, करत हवय सिरजन भारी।
जिनगी भर सुख के आसा मा,नाप डरिन दुनिया सारी।।
सबो डहर तॅंय नयन घुमा ले, पाबे जगा जगा चिनहा ।
महल उठइया के कटथे जी,झोपड़ पट्टी मा दिन हा।।
करे नहीं जी लालच येमन, अपने हिस्सा के खावॅंय।
सत इमान अउ धरम करम ला , नित साथी अपन बनावॅंय।।
गढ़े हवॅंय मंदिर मस्जिद अउ, कतको चर्च गुरुद्वारा।
गिरत पसीना बोलत हे जी, करनी के जय जयकारा।।
महल अटारी सड़क बनावत, सुघर तरासॅंय गा हीरा।
कमिया बेटा काम साध के, खोजॅंय फेर नवा बीरा।।
धरा गगन ला भेंट करावत, निस दिन इनला हे खपना।
ये मजदूर कहावत जग मा, सफल करे सब के सपना।।
छंदकार-महेंद्र कुमार बघेल
डोंगरगांव जिला राजनांदगांव
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अमित: दोहा गीत~जय हो जाँगर जोश के
जय हे जाँगर जोश के, जुग-जुग ले जयकार।
सिरतों सिरजन हार तैं, पायलगी बनिहार।
खेत-खार नाँगर-बखर, माटी बसे परान।
कुदरा रापा संग मा, इही मोर पहिचान ।।
लहू पछीना ओलहा, बंजर खिले बहार।-1
सिरतों सिरजन हार तैं....
घाट-घटौंदा घरउहा, महल-अटारी धाम।
सड़क नहर पुलिया गढे़, करथव कब बिसराम।।
सरलग समरथ साधना, सौ-सौ हे जोहार।-2
सिरतों सिरजन हार तैं.......
ईंटा-पखरा जोरथें, धर करनी गुरमाल।
खद्दर खपरा खोंधरा, मस्त मगन हर हाल।।
सोसक सरई सोनहा, बनी-भुती खमहार।-3
सिरतों सिरजन हार तैं....
अन्न-धन्न दाता तहीं, सुख सब तोरे पाँव।
परछी परवा मा रहे, भूमिहीन हे नाँव।।
मतलबिहा लहुटे सबो, भुलगे जग भुतियार ।-4
सिरतों सिरजन हार तैं......
चिखला झुक्खा भोंभरा, जुड़ सरदी अउ घाम।
महिनत मा मोती मिले, चमचम चमके चाम।।-5
फटे बेंवई केंदवा, भुजबल बड़ दमदार।
सिरतों सिरजन हार तैं.....
आलस अल्लर ओढ़हर, नइ जाने मजदूर।
भाग्य बिधाता सब सहे, कइसे हे मजबूर।।
साधक सक्ती के अमित, सुख मा कब सुखियार।-6
सिरतों सिरजन हार तैं, पायलगी बनिहार।
जय हे जाँगर जोस के, जुग-जुग ले जयकार।।
कन्हैया साहू "अमित"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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आशा देशमुख:भुजंगप्रयात छंद
करे काम वो हाथ मजबूत होथे।
करम बाँचथे जेन श्रमदूत होथे।
अबड़ होत सिधवा कहव झन अनाड़ी।
करे काम निशदिन मजूरी दिहाड़ी।1।
भुजा बल भरोसा सदा दिन करे हे।
मजूरी करत अउ पसीना धरे हे।
खड़े हे महल अउ बने कारखाना।
न पाये उही मन कभू एक दाना।2।
करे जेन मिहनत उही है पुजारी।
उठे रोज बिहने चले खेत बारी।
भरे पेट सबके इही अन्नदाता।
निभावत हवय श्रम जगत संग नाता।3
कभू धर कुदारी कभू फावड़ा ला।
कुचर देत पथरा व लोहा कड़ा ला।
न नदिया न सागर उगारे पसीना।
दिखे माथ मोती धरे श्रम नगीना।4
बने जग धनी जेन श्रम दान पाके।
सबो फूल बगिया खिले मान पाके।
चलव आज सब श्रम दिवस ला मनावौ।
करव मान श्रम के सरग ला बुलावौ।5
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)
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बोधन जी: रूपमाला छंद - बोधन राम निषादराज
( मँय मजदूर)
हाँव मँय मजदूर संगी,काम करथौं जोर।
पेट पालत दिन पहावँव,देश हित अउ मोर।
कर गुजारा रात दिन मँय,मेहनत कर आँव।।
रातकुन के पेज पसिया,खाय माथ नवाँव।।
दिन बितावौं मँय कमावँव,फोर पथरा खाँव।
मेहनत के आड़ संगी, देश ला सिरजाँव।।
चाँद में पहुँचे ग भइया,देख सब जर जाय।
कोन हिम्मत अब ग करही,आँख कोन उठाय।।
अब पसीना हा चुहत हे,टोर जाँगर देख।
भाग हा अब झूकही जी,ए बिधाता लेख।।
मेहनत मा आज देखौ, स्वर्ग बनगे खार।
ईंट से जी ईंट बजगे, देख लव संसार।।
काम पूजा मोर हावै, काम हे भगवान।
काम करलौ आव भाई, काम हे ईमान।।
पार नइहे दुःख के जी,धीर बाँधव आव।
एक दिन सुख आय संगी,दुःख जाय कमाव।।
छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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नमेंद्र *शक्ति छंद* मजदूर
कमा टोर जांगर भरत पेट हे,
कभू भूख चोला चढ़त भेंट हे।
खड़े घाम मा देख मजदूर हे,
करे का बिचारा ह मजबूर हे।
मिले पेज पानी बिचारत रहे,
खड़े डेहरी भूख लइका कहे।
कमावत ददा हा बनी खेत मा,
बिनत माँ ह कनकी कभू रेत मा।।
नही चेंदरी तन ढ़के बर हवे,
गिरत कांड़ छपरी ह घर के नवे।
बनावत महल अउ अटारी बने,
तभो गोड़ काँटा गरीबी गने।।
कमावत हवे नोट बड़ सेठ जी,
कड़ा बोल बोलत हवे ठेठ जी।
भरे थाल के रोज खाना बहत,
गरीबी मरत भूख दे दव कहत।।
मजूरी मिले रोज बिनती करे,
कभू सेठ के गोड़ माथा धरे।
बँधे खूंट मा रोज मजदूर हे,
करे का बिचारा ह मजबूर हे।।
छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेंद्र
हल्दी-गुंडरदेही जिला बालोद
मोबा.8225912350
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(सार छंद)-सुरेश पैगवार
जुग-जुग नव निरमान करे बर, जाँगर पेर कमाथौं।
माटी मा मैं उपजे बाढ़े, माटी के गुन गाथौं।।
ऊँच-ऊँच ये महल अटारी, सबला महीं बनाथौं।
खेत-खार मा अन्न उगा के, सबला महीं खवाथौं।
दुख-पीरा ला सहि के भइया, कौड़ी दाम ल पाथौं।
आँसू पी के पेट पोंस के, धरम ल अपन निभाथौं।।
जुग-जुग नव - - - -
नवा राज मा नवा सुरुज के, करथौ रोज अगोरा।
ये भुइयाँ के पइयाँ लागौं, जेकर रहिथौं कोरा।
दया मया मैं बाँटत फिरथौं, राग सुराजी गाथौं।
भेद-भाव मन मा नइ लानँव,सगरो जिनिस बनाथौं।।
जुग-जुग नव - - - -
हसदो बाँगो बाँध बाँधके, अन-धन मैं उपजैया।
सड़क रेल के जाल बिछइया, धरती सरग बनैया।
लूटौ झन अधिकार श्रमिक के, जग ला रोज गोहराथौं।
मिहनत कस सब भाई मन के, श्रम के मान बढ़ाथौं।।
जुग-जुग नव - - - -
हाँसत कूदत मिहनत करथौं, राम कहानी गाथों।
जुग-जुग नव निरमान करे बर, जाँगर पेर कमाथौं।।
*सुरेश पैगवार* जाँजगीर
मो- 9827964007
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आसकरण: कुण्डलिया छंद
करके मिहनत खान जी,हमतो हन मजदूर |
बिन मिहनत काय हे,इहाँ सबे मजबूर ||
इहाँ सबे मजबूर,सेठ बनके तुम राहव |
करके दुनिया भ्रष्ट,भ्रष्ट होके मर जाहव ||
हम सतरंगी तान,गीत गाबो बल धरके |
हमतो हन मजदूर,खान जी मिहनत करके ||1
पानी पोछत माथ के,करथन हम हर काम |
लइका बच्चा छोड़ के,सहिथन कतको घाम ||
सहिथन कतको घाम,तभो ले गुन नइ राखें |
कहिथैं फेर अलाल,कोन दिन येमन काखें ||
बनके बइठें सेठ,जोंग दँय आनी बानी |
करथन मिहनत खूब,माथ के पोछत पानी ||2
हम सिरजाथन विश्व जी,जांगर पेरन रोज |
धरती के हम पूत अन,नोहन राजा भोज ||
नोहन राजा भोज,महल बँगला नइ चाही |
सुम्मत के दिन लान,तभे चोला कल पाही ||
कभू रोय हच पूछ,कहाँ कब लाँघन जाथन |
जांगर पेरन रोज,विश्व ला हम सिरजाथन ||3
छंदकार : असकरन दास जोगी
पता : ग्राम डोंड़की,तहसील+पोस्ट-बिल्हा,जिला-बिलासपुर (छ.ग.)
मो. : 9340031332
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शक्ति छंद - श्लेष चन्द्राकर
शीर्षक - एक मजदूर हँव
जगत बर पछीना अपन गारथँव।
सबो चाह ला मयँ अपन मारथँव।।
जिये बर असुविधा म मजबूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
चलय कारखाना नहीं मोर बिन।
बनत हे जिंहा रेल अउ आलपिन।।
खने बर मिही नेंव मशहूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
कमावत हवव मँय चँउर दार बर।
खटत हँव अपन देश परिवार बर।।
करत रात दिन काम भरपूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
सड़क सेतु ला सब बनाथव मिही।
फसल खेत मन मा उगाथव मिही।।
पलायन करे गाँव ले दूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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: कुकुभ छंद गीत - आशा आजाद
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे,
नेक करम ला पूजत जम्मो,आज माथ ल नवाये हे।
अबड़ मेहनत मजदूर करै,धूप छाव ला नइ जानै,
काम बुता ला नित करना हे ,इही धरम ला ओ मानै,
कठिन काज ला जुरमिल करथे,सुग्घर देश बनाये हे,
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे।
रोजी बस हे एक आसरा,सोच करे सब मजदूरी,
मिलय नही भरपेट अन्न हा,कतका रहिथे मजबूरी,
बचत कहाँ ले होवै जानौ,रोज कमाये खाये हे,
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे।
बड़े इमारत खड़ा करै ये,साहस तन मन बड़ हावै,
चमत्कार के ए दुनियाँ मा,इँखर गुन ला सब गावै,
विश्व देश के विकास देखौ,इँखरेच बल म होये हे,
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे।
लोहा जइसे तन ला राखै ,छिन छिन दुख ला झेलै ये,
अपन जीव के मोह भुलाके,नित खतरा ले खेलै ये,
मजदूरी ले होय गुजारा,काज एक अपनाये हे,
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे।
बोझा निसदिन खूब उठावै,साहस ला सबझन मानौ,
करम धरम हे सबले सच्चा,नेक ईमान पहिचानौ,
घर माटी के हावै तब ले,दूसर घर ल बनाये हे,
नमन करौ मजदूर दिवस ला,शुभ दिन देखौ आये हे।
छंदकार - आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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राजकुमार बघेल: सार छंद -
अॅऺंउटावत हॅऺंव खून पछीना,करथॅऺंव मॅऺंय मजदूरी ।
पेट जरत हे धधकत आगी,हे कइसे मजबूरी ।।
माथ लगे हे चंदन माटी,माटी संग मितानी ।
सेवा करथॅऺंव धरती दाई,मारॅऺंव नहीं फुटानी ।।1।।
राॅऺंपा कुदरी झॅऺंउहा गैंती,नांगर धरे तुतारी ।
पेरत रइथन हम तो जांगर, संगी पारी पारी ।।
बेटा बेटी अउ महतारी,तन मन सबो लगाके ।
मिहनत करके अन्न उगाथन,खुश हन जी उपजाके ।।2।।
माथ पछीना टप टप टपके,संसो मन मा भारी।
पाॅऺंव भोंमरा अइसन जरके,गढ़थॅऺ़व महल अटारी ।।
हवय किसानी मोर धरम जी,गोड़ गड़े हॅऺंव कांटा ।
धान कटोरा मोर भरोसा,देथॅऺंव पोषण बांटा ।।3।।
माटी भिथिया छितका कुरिया,चुहथे परवा छानी ।
चिरहा चिरहा फरिया पहिरे,बोहत आॅऺंखी पानी ।।
गिरगिट्टी हे गोड़ देख ले,तलुवा परगे छाला ।
जिनगी जीना होगे मुश्किल, पीथॅऺंव गम के हाला ।।4।।
मोर भुजा के बल नइ पावॅऺंय,करथॅऺंव पर्वत राई ।
काट छाॅऺंट के सड़क बनादॅऺंव, करथॅऺंव जगत भलाई ।।
हिरदे भीतर मोर मया के, मारत लहरा भारी ।
जग ला अपने मॅऺंय हा मानौ,हावय मोर चिन्हारी ।।5।।
कया मया हे गाॅऺंव सहर मा,सुमता के फुलवारी ।
धरती लागे सरग बरोबर,मारॅऺंय जन किलकारी ।।
लिखे हवय का मोर करम ला,अइसन काय विधाता ।
दुख रेखा ला मोर मिटा सब,सुख दे ईश्वर दाता ।।6।।
कोन हवय जी हमर पुछइया,कोन हरे जी पीरा ।
दुनों हाथ मा तभो लुटाथॅऺंव, सोना चांदी हीरा ।।
हवय गरीबी श्राप देश बर, हावय का लाचारी ।
काम करव जुर मिल के भइया सबो तंत्र सरकारी ।।7।।
छंदकार -राज कुमार बघेल
सेन्दरी बिलासपुर (छ.ग.)
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ताटंक छंद - विरेन्द्र कुमार साहू
रचथे सड़क भवन अउ पुलिया, उन मजदूर कहाथें जी।
इनखर परसादे मंडल मन, दुनिया मा इतराथें जी।१।
बज्र बरोबर हाड़ा जिनखर, अउ किच्चक कस हे काया।
टप-टप चुहिथे खार-पसीना, भावय नइ उनला छाया।२।
उनखर पाँव म नंगत गड़थे, काँटा खूँटी गोंटी जी।
मिहनत करथे तभ्भे खाथे, उन दू बेरा रोटी जी।३।
जउन बनाथें महल अटारी, उनखर का कहिबे किस्सा।
सब बर भाग मढ़ाथे लेकिन, नइ पावय अपने हिस्सा।४।
देख जउन ला छुटय पसीना, नदियाँ पर्वत घाटी के।
कतका गावँव गाथा उनखर, जे मितान हे माटी के।५।
छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू, बोड़राबाँधा(पाण्डुका), जिला - गरियाबंद(छत्तीसगढ़), 9993690899
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सार छंद-गीत-सुधा शर्मा
बनँव करम के भागी संगी,
जिनगी बोझ उठाथौं।
पेट बिकाली बूता करथौं
मैं बनिहार कहाथौं।।
होत बिहानी सुरुज उवत हे,
दिन के पाना छितरे।
आखर -आखर विधना डाँड़ी,
रेंगत पाँव ह उघरे। ।
धरे धमेला रापा गैंती,
बूता ठीहा जाथौं।
जाँगर पेरत परिया टोरत,
भुइँया धनहा गढ़थौं।
चोला कारी बहय पसीना,
माटी मिझरा करथौं।
अंग -अंग मा भरके पीरा,
सुख के मुस्की पाथौं।
चूहत घर के खद्दर छपरी,
पर के महल बनाथौं।
पानी घाम ओढ़ना बनथे,
सपना सुख ल सजाथौ।
हिनमान गा करथें कतको,
पीर घुटक रहि जाथौं।
कभू कहूँ त्योहार ह परगे,
संसो मा बुड़ जाथौं
नान -नान लइका के संगी,
आँखी आसा लाथौं ।
ओ दिन पसिया भात खाय के,
सुख के परब मनाथौं।
भाग लिखइया देखत हावे,
अपने आखर मोती।
बाह भरोसा बलकर हावँव,
बनँव अमावस जोती।
मोर बिगर हे जग अँधियारी,
दीया आस जलाथौं।
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
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: आल्हा छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
एक मई मजदूर दिवस के, करथव सुरता तुम मजदूर ।
बाँट बधाई भूल गये सब, काबर इन तो हे मजबूर ।।
देखव संगी आँख निहारे, भारत के असली तस्वीर ।
भूख प्यास मजदूर मरे हें, तरसे इन सुख के तकदीर ।।
माथ लगा के चन्दन माटी, दुनिया के सिरजावय भाग ।
तभो डसत हे देखव संगी, भूखमरी बन काला नाग ।।
बबरु बरन ये काया साजे, थामे बइठे भुजा पहाड़ ।
माथ पछीना मोती चमके, दिखे कोइला कस तन हाड़ ।।
धरे मेहनत के जादू ये, पाये हे श्रम के बरदान ।
कंकड़ ला तो सोन बना दै, पथरा ला तो ये भगवान ।।
महल अटारी रेल बने हे, दउड़े पानी हवा जहाज ।
खड़े कारखाना अउ टावर, ताज महल श्रम सिरजे नाज ।।
बादर पानी बदे मितानी, जाँगर पेर कमावय खेत ।
तोर दशा अउ सुख के खातिर, करे नहीं कोई जी चेत ।।
कोंन लिही जी शोर पता ला, अँधरा भैरा के दरबार ।
राम राज हे जिहाँ अमीरी, उहाँ गरीबी सर तलवार ।।
देश विकास करे कइसे जी, एक वर्ग ला करके दूर ।
मजबूर नहीं मजदूर हरौ, सुख सुविधा ला दे भरपूर ।।
गजानंद धर विकास डारा, तभे देश होही खुशहाल ।
भूख मरे मजदूर नहीं जी, तन कपड़ा सुख रोटी दाल ।।
छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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हेम के शंकर छंद
पेट भरे खातिर जाँगर ला, अपन पेरत जाय।
ढेला पखरा माटी के सँग, बोझ सबे उठाय।
गार पसीना महल अटारी, जौन सदा बनाय।
जग मा खुद जेकर घर नइहे, रात कहाँ पहाय।1।
रॉपा हँसिया कुदरी कतकोे, तोर हे औजार।
तोर मेहनत ले पावय सब, अन्न के भण्डार।
तोर श्रम ले फैक्टरी चले, अउ चले व्यापार।
सबके पेट भरे तँय भूखा, तोर हे परिवार।2।
रोज रात दिन करें मेहनत, अपन जाँगर पेर।
फुटहा काबर तोर करम हे, भाग्य के अंधेर।
भेद भाव ला छोड़ करे तँय, मेहनत सब मेर।
भाग्य गढ़े सब तोर करम ले, तोर दुच्छा फेर।3।
सर्दी गरमी भूख प्यास ला, तँय सहे हर बार।
रोड बनाथस जंगल झाड़ी, संग काँट पठार।
तोर भुजा मा ताकत बसथे, तोर हे उपकार।
कहिथे तोला दुनिया भैया, देश के बनिहार।4।
- हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
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दोहा-सुखमोती चौहान
इहाँ उहाँ बगरे हवँय,दुनिया मा मजदूर।
करथे काम कुटुम्ब बर,होके जी मजबूर।।
रोज कमाथें पेट बर,जिनगी चले सपाट।
गड्ढा पटे न भूख के,जोहे उन्नति बाट।।
खेत खार उद्योग मा,काम करे बनिहार।
सुख के सूरुज आय कब,करथे मौन पुकार।।
काम करत जिनगी ढरे,करे नहीं आराम।
जाँगर ओकर नइ थके,पथरा कस हे चाम।।
जोन पसीना गारथे,लाथे नवा बिहान।
ओला देवव जी बनी,अउ देवव सम्मान।।
सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
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अजय अमृतांसु: घनाक्षरी (मजदूर)
काम करै रात दिन, पल पल गिन गिन, छिन भर मज़दूर, करै न आराम गा।
भूख प्यास त्यागे हवै, काम करे जागे हवै, गरमी के दिन भारी, जरत हे चाम गा।
वाह रे मालिक बैरी, पाछु परे घेरी भेरी, काम करे मजदूर,
तभो बदनाम गा।
बिहना ले लगे हवै, रात घलो जगे हवै, बीतत मँझनिया हे, होवत हे शाम गा।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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जयकारी छंद - रामकली कारे
करथौं मिहनत मॅय मजदूर। नइ हाबव गा मॅय मजबूर।।
हिम्मत करके रोज कमाव। रुक्खा सुक्खा रोटी खाॅव।।
मिहनत हे गा मोर मितान। गढ़ गढ़ माटी पाथव मान।।
दिनभर हे दुनिया के काम। नइतो पावव गा आराम।।
घाटी पर्वत होय खदान। रचथव महल अटारी शान।।
लोहा बिजली मिट्टी तेल। आगी पानी खेलव खेल।।
रोजे खून पसीना गार। देथव गा सब सुख ला मार।।
पथरा खपरा ईटा जोड़। नदिया नरवा देवव मोड़।।
कहिथें गा मोला बनिहार। उपजा अन्न देव भंडार।।
सिरजा शहर नगर अउ गाॅव। धरती सुन्दर सरग बनाॅव।।
जुग जुग श्रम साधत गे बीत। बदलय कहाॅ कौन ये रीत।।
मिहनत ला करथन हम धार। होथे करम हमर बर सार।।
छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
छत्तीसगढ़
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: दुर्मिल सवैया छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
कमिया मजदूर किसान बड़ा दुख पावत हे कइसे ग सहे।
कतको दुख ला दिल मा दफना मजबूत हवे रग खून बहे।।
जिनगी गढ़थे दुनिया पढ़थे कहनी सब ओकर नाम कहे।
अँधियार हवे जिनगी हर जेकर दूर करे दुख एक रहे।।
छंदकार - अशोक धीवर' 'जलक्षत्री''
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा) जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़)
सचलभास क्र.- ९३००७१६७४०
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मनहरण घनाक्षरी - महेन्द्र देवांगन माटी
सुत उठ काम करे, रापा गैंती हाथ धरे,
माटी कोड़े रात दिन, खेत रोज जात हे।
घाम करे राँय राँय , हवा चले साँय साँय ,
चट चट पाँव जरे , तभो ले कमात हे।
पथरा पहाड़ फोरे , बड़का चट्टान टोरे ,
नदी नाला बाँध अब , पुलिया बनात हे।
देखे नहीं घाम छाँव , बड़े छोटे सबो गाँव,
पेट खातिर रोज के , पसीना बोहात हे।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
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रोला छन्द-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
मँय मरहा मजदूर
मँय मरहा मजदूर,खाँध मा जग बोहे हँव।
तभो चपक के पेट,मजूरी बर जोहे हँव।
करत करत निरमान,ददा पुरखा मन मरगे।
सुख सुविधा ले दूर,कई जुग जनम गुजरगे।
मोरे अघुवा पाँव,रोड़ रस्ता मा गे हे।
मोर हाथ हा नेव,बाँध बाँधा के दे हे।
झोपड़पट्टी एक,खदानन दूसर घर हे।
संग साथ बिन मोर,कारखाना अध्धर हे।
बनके काँड़ मियार,छत्त छानी बोहे हँव।
तभो चपक के पेट,मजूरी बर जोहे हँव।
ईंटा गार जोर,गढ़ँव देवालय मन ला।
बड़े बड़े संस्थान,महाविद्यालय मन ला।
छिनी हथौड़ी थाम,करँव पथरा ला मूरत।
पथरा अब हे नाथ,न देखय मोरे सूरत।
गरमाला बर फूल,टोर के महीं ह लाथँव।
शंकर के तिरछूल,घला ल महीं बनाथँव।
धागा बनके हार तरी मँय हर पोहे हँव।
तभो चपक के पेट मजूरी बर जोहे हँव।
मतदाता भगवान,कथे सरकारन मोला।
संख्या देखत लोक-तंत्र के धारन मोला।
पाँच शाल मा एक,बार भर खोज खबर हे।
जोतिस कथे बिचार,अवइया भाग जबर हे।
देथें उन भुलियार,पीठ मा हाथ फेर के।
कारण दू का चार,बता देथें अबेर के।
इतिहासन के माथ,मकुट बनके सोहे हँव।
तभो चपक के पेट,मजूरी बर जोहे हँव।
दाता तोर असीस,मोर बर उपर-छवाँ हे।
भूख दरद दुख कष्ट,रोज के नवाँ नवाँ हे।
न तो ठिकाना मोर,न लइकन के भविष्य के।
तोर बिना अब कोन,कल्पना करय दृश्य के।
का हे हाल निहार,कभू तो तँय घर आ के।
मनबोधत हस मोर,एक दिन दिवस मना के।
बिन सोंचे परकीति,तोर सुख बर दोहे हँव।
मँय मरहा मजदूर,खाँध मा जग बोहे हँव।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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: केवरा यदु "मीरा "
सार छंद
रोज बिहनिया बासी खाके,बनी भुती में जाथौं।
मात पिता के सेवा बर मँय,जाँगर टोर कमाथौं। ।
ईंटा गारा ढोके मँय हा,घर कुरिया सिरजाथौं।
टप टप चूहत हवय पसीना,तभो कहाँ घबराथौं।।
नाँगर धरके खेती करथँव,बइला हीरा मोती।
पानी धरके सँग मा जाथे,घरवाली सुरजोती।।
हाथ गोड़ में फोरा परगे,दिन भर फोरँव गिट्टी।
जाड़ घाम में करँव तपस्या, जाके ईंटा भट्टी।।
लइका मन ला पोसे बर मँय,हटरे हटर कमाथौं।
मिलथे भइया चार पईसा,मिहनत के तब खाथौं।।
देखव बूता बनिहारी के,दुःखे दुख मा काटे।
जिनगी के पीरा ला भइया, काकर सँग मा बाँटे।।
सबके महल दुवार बनाथे, ओकर छितका कुरिया ।
कब जागही भाग रामा जी, हाबे कतका दुरिया।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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आल्हा छंद - राजेश कुमार निषाद
बड़े बिहनिया जाथँव संगी,काम बुता मा मैंहर रोज।
घर के संसो छाये रहिथे,जाके करथँव दिनभर खोज।।
एती ओती जाके करथँव,काम बुता ला मैं बनिहार।
जब थक हारे घर मा आथँव,हो जाथे गा बड़ अँधियार।।
बड़ करलाई हावय भइया, देखव लइका मनके मोर।
रोजी रोटी बर मैं लड़थँव,अपन कमाथँव जाँगर टोर।।
घाम पियास मैं नइ देखँव,करथँव काम बुता दिन रात।
लाँघन भूखन झन राहय जी,लइका मनहा सोचँव बात।।
भरे मझनिया करते रहिथँव,नही कभू मैं खोजँव छाँव।
लक लक तीपे रहिथे भुइयाँ,चट ले जरथे मोरो पाँव।।
कभू खनव मैं माटी गोदी,अउ ढेला पथरा ला फोड़।
महल अटारी घलो बनाथँव,रच रच ईंटा मैंहर जोड़।।
टप टप चूहे भले पसीना,राहय खुश मोरो परिवार।
जउन बुलाही काम बुता मा,जाके करहूँ मैं बनिहार।।
रचनाकार:- राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद (समोदा) जिला रायपुर छत्तीसगढ़
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मजदूर मन के उपर केन्द्रित अलग अलग छंद मा सुग्घर संग्रह, आप सब ल बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteमजदूर दिवस बर छंद के सुग्घर संकलन गुरुदेव सादर नमन
ReplyDeleteमजदूर दिवस के हार्दिक बधाई...
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर संकलन.गुरूदेव
मजदूर ले जुड़े सुग्घर छंद रचना संकलन
ReplyDeleteजम्मों छन्दकार मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई,सुघ्घर संकलन।
ReplyDeleteवाह वाह अनुपम संग्रह तैयार होये हे, सबो साधक मन ला मजदूर दिवस के बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर संग्रह
ReplyDeleteसुंदर संकलन
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संकलन छंद साधक मन के
ReplyDeleteमजदूर दिवस में
सुग्घर संकलन
ReplyDeleteजय जय मजदूर! जय छत्तीसगढ़!
ReplyDeleteमजदूर दिवस मा बढ़िया संकलन
ReplyDeleteमजदूर दिवस पर सुंदर छंद संकलन
ReplyDeleteसुग्घर संकलन आप सब ला बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर सुग्घर सृजन
ReplyDeleteअहिलेश्वर जी आप के रोला म दू डाँड़ के कमी हे।
ReplyDelete1 रोला 4 डाँड़ के होथे।
शानदार संग्रह
ReplyDeleteशानदार संकलन जम्मो आधक मन ला सादर बधाई
ReplyDeleteमजदूर दिवस मा सुग्घर श्रेष्ठ संकलन👌👏👍💐
ReplyDeleteसबोझन ला बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना
ReplyDeleteमहेन्द्र देवांगन माटी
बहुत सुंदर संकलन अाप सब ल बधाई अउ मोर फोटो बर अंतस ले धन्यवाद 🌸🙏💓🌹
ReplyDeleteसुन्दर संकलन
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDelete