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Saturday, May 30, 2020

रोला छंद:पोखन लाल जायसवाल

रोला छंद:पोखन लाल जायसवाल

तोर मोहनी रूप,देख सबझन मोहागे।
होही कभु तो भेंट,बाट सब जोहन लागे।
दिए मोहनी डार,मया मा अपन फँसाके।
तहीं बिटोए घात,मोर सपना मा आके।१

सोहे टिकली माथ,नाक मा सुनहर नथनी।
धरे मोहिनी रूप,ठगे तैं बनके ठगनी।
भुलवा दे सुध मोर,मया के बाँधे बँधना।
गाये सुग्घर गीत,मया ले मन के अँंगना।२

मया मयारुक गोठ,करे हिरदै ला घायल।
करे दिवाना तोर,पाँव के बाजत पायल।।
बिरहा ला अब तोर,रात दिन पड़थे सहना।
कइसे भेजँव सोर,तोर बिन मुश्किल रहना।।३

गोठ सुवा कस मीठ, सहीं मा गजब सुहाथे।
घेरी-भेरी घात,तोर सुरता हर आथे।
कुहुक कुहुक के रोज,कोइली अगन बढ़ाथे।
अलथी-कलथी मार,तोर बिन रात पहाथे।।४

आज पहिन ले मोर,नाँव के तैंहर कँगना।
हमर मया के फूल,महकही घर अउ अँगना।
चंदा जइसन रूप,देख तोला सँहराही।
हमर मया के गोठ,गाँव भर ह गोठियाही।५

हमर दुनो के बीच,मया के माते गइरी।
चारी बर भरपूर,बने अब बनथे बइरी।
धन धन भाग हमार,मया मा सबो भुलागे।
बइरीपन के आज,भरम के भूत भगागे।६


जेठ

चाम जरोवय घाम,गली निकलन नइ भावय।
ताव दिखावत जेठ,रोज आगी बरसावय।
कुआँ बाउली ताल,जरे जस पान-पतेरा।
हे बदरा के आस,धरे जे आय गरेरा।
।।७

बनके डाकू देख,जेठ हर डारय डाँका।
नदिया डबरी ताल,लुटागे परगे हाँका।
तड़पत हावय जीव,प्यास मा खोजत पानी।
कोन बचाही जान,सोच मा परे परानी।।८

जरै भोंभरा पाँव,चटाचट बिन चप्पल के।
सूरज चलथे दाँव,जेठ मा घाम उगल के।
बड़ करथे अतलंग,बने आगी के गोला।
चलथे दिनभर झाँझ,छाँव मा जरथे चोला।९


दिखे नहीं जब राम,त रावण कइसे मरही।
हे संसो दिन रात,मुसीबत कइसे टरही।
देख भयानक रोग,मिलन कोनो नइ भावै।
हावै चिंता आज,मुक्ति सब कइसे पावै।।१०

छंदकारः
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह (पलारी)
जिला बलौदाबाजार भाटापारा (छग)

9 comments:

  1. बहुत शानदार रोला छंद, क्या बात है, बहुत बधाई

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  2. बढ़ शुग्घर लिखे लगिश मामा जी

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    1. धन्यवाद भाँजा जी

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  3. बहुत सुग्घर रोला जायसवाल जी ।हार्दिक बधाई ।
    घाम जरोवय चाम ।

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    1. धन्यवाद वर्मा जी

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  4. वाहह!सुग्घर रोला जायसवाल जी

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    1. धन्यवाद अहिलेश्वर जी

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  5. वाह्ह वाह अब्बड़ सुग्घर भावपूर्ण रचना भइया जी 🙏🙏

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