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Friday, May 22, 2020

जयकारी छंद (मोर गाँव) -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



जयकारी छंद (मोर गाँव )

मोर  गाँव  मा  हे  लोहार।
हँसिया बसुला करथे धार।
रोजे  बिहना   ले  मुँधियार।
चुकिया करसी गढ़े कुम्हार।

टेंड़ा  टेंड़े  बारी    खार।
दिनभर बूता करे मरार।
ताजा  ताजा देवै साग।
तब हाँड़ी के जागे भाग।

राउत जागे होत बिहान।
गरुवा ढिल पहुँचे गउठान।
दूध दहीं के बोहय धार।
बइला भँइसा हे भरमार।

फेके रहिथे केंवट जाल।
मछरी बर नरवा अउ ताल।
रंग रंग के मछरी मार।
बेंचे तीर तखार बजार।

लाला धरके बइठे नोट।
सीलय दर्जी कुरथा कोट।
सोना चाँदी धरे सुनार।
बेंचे बिन पारे गोहार।

सबले जादा हवै किसान।
माटी बर दे देवय जान।
संसो फिकर सबे दिन छोड़।
करे काम नित जाँगर टोड़।

उपजावै गेहूँ जौ धान।
तभे बचे सबझन के जान।
बुता करइया हे बनिहार।
गूँजय गाँव गली घर खार।

बढ़ई गढ़थे कुर्सी मेज।
दरवाजा खटिया अउ सेज।
डॉक्टर मास्टर वीर जवान।
साहब बाबू संत सुजान।

कपड़ा लत्ता धोबी धोय।
पहट पहटनिन रोटी पोय।
पूजा पाठ पढ़े महाराज।
शान गाँव के घसिया बाज।

कुचकुच काटे ठाकुर बाल।
चिरई चिरगुन चहकय डाल।
कुकुर कोलिहा करथे हाँव।
बइगा  गुनिया   बाँधे  गाँव।

हवै शीतला सँहड़ा देव।
महाबीर मेटे डर भेव।
भर्री भाँठा डोली खार।
धरती दाई के उपहार।

छत्तीसगढ़ी गुरतुर बोल।
दफड़ा  दमऊ  बाजे  ढोल।
रंग रंग  के  होय तिहार।
लामय मीत मया के नार।

धूर्रा खेले  लइका  लोग।
बाढ़े मया कटे जर रोग।
गिल्ली भँउरा बाँटी खेल।
खाये अमली आमा बेल।

तरिया नरवा बवली कूप।
बाँधा के मनभावन रूप।
पनिहारिन रेंगे कर जोर।
चिक्कन चाँदुर हे घर खोर।

पीपर पेड़ तरी सँकलाय।
पासा पंच पटइल ढुलाय।
लइकामन हा खेले खेल।
का रंग नदी पहाड़ अउ रेल।

चौक चौक बर पीपर पेड़।
कउहा बम्हरी नाचय मेड़।
नदियाँ नरवा तीर कछार।
चिंवचिंव चिरई के गोहार।

सुख दुख मा गाँवे के गाँव।
जुरै बिना बोले हर घाँव।
तोर मोर के भेद भुलाय।
जुलमिल जिनगी सबे पहाय।

सरग बरोबर लागै गाँव।
पड़े हवै माँ लक्ष्मी पाँव।
हवै गाँव मा मया भराय।
जे दुरिहावय ते पछताय।

छत छानी के घर हे खास।
करे देवता धामी वास।
दाई तुलसी बैइठे द्वार।
मोर गाँव मा आबे यार।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)

3 comments:

  1. बड़ सुग्घर सृजन गुरुदेव

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  2. ग्रामीण जनजीवन के सटीक वर्णन, बहुत बहुत बधाई

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