रोला छंद* -विषय-भ्रूण हत्या(नेमेंद्र)
बेटी घर जब आय,छाय खुशियाँ घर सारी।
घर मा सोहर गाय,गाँव के नर अउ नारी।।
बेटी लछमी रूप,करे मंगल के बरसा।
काटे बेटी सोज,समझ पाना तै परसा।।
बेटी बगिया फूल,मूल हे बेटी घर के।
जिनगी के सह ताप,छाँव घर लाने धर के।
बेटी जननी लोक,करे हे जग के सिरजन।
बने बाप तै पाप,मार डारे बेटी धन।।
बेटी ले हे वंश,अंश बेटी हर घर के।
समझे तै हा कार, हरे बेटी धन पर के।।
बेटी होवत मान, ददा के दाई जइसे।
तब ले कर ले पाप, मार के बेटी कइसे।।
एक लहू के रंग,हरे बेटी बेटा हर।
मोती मंगल जोत, रखो बेटी बेटा बर।।
मन के भेद म भेद,भेद के पट ला खोलव।
रोवत बेटी देख,आज मिल कुछ तो बोलव।।
दाई काकी रूप,मातु बहिनी अउ भगिनी।
पालत सबके पेट,सहे चूल्हा के अगिनी।।
बेटी ले संसार,सरग जइसे हे लागे।
माने बेटी बोझ,कार भेजे यम आगे।।
मारे बेटी कोख,दुःख मा अब हस अइठे।
करके करनी आज,रोत काबर हस बइठे।।
बेटी जिनगी सार,जनम ले आवन देते।
हाँसत बेटी रोज,बाँह मा तै भर लेते।।
छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही,जिला-बालोद
मोबा.-8225912350
बेटी घर जब आय,छाय खुशियाँ घर सारी।
घर मा सोहर गाय,गाँव के नर अउ नारी।।
बेटी लछमी रूप,करे मंगल के बरसा।
काटे बेटी सोज,समझ पाना तै परसा।।
बेटी बगिया फूल,मूल हे बेटी घर के।
जिनगी के सह ताप,छाँव घर लाने धर के।
बेटी जननी लोक,करे हे जग के सिरजन।
बने बाप तै पाप,मार डारे बेटी धन।।
बेटी ले हे वंश,अंश बेटी हर घर के।
समझे तै हा कार, हरे बेटी धन पर के।।
बेटी होवत मान, ददा के दाई जइसे।
तब ले कर ले पाप, मार के बेटी कइसे।।
एक लहू के रंग,हरे बेटी बेटा हर।
मोती मंगल जोत, रखो बेटी बेटा बर।।
मन के भेद म भेद,भेद के पट ला खोलव।
रोवत बेटी देख,आज मिल कुछ तो बोलव।।
दाई काकी रूप,मातु बहिनी अउ भगिनी।
पालत सबके पेट,सहे चूल्हा के अगिनी।।
बेटी ले संसार,सरग जइसे हे लागे।
माने बेटी बोझ,कार भेजे यम आगे।।
मारे बेटी कोख,दुःख मा अब हस अइठे।
करके करनी आज,रोत काबर हस बइठे।।
बेटी जिनगी सार,जनम ले आवन देते।
हाँसत बेटी रोज,बाँह मा तै भर लेते।।
छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही,जिला-बालोद
मोबा.-8225912350
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसुघ्घर विषय
आभार दीदी जी
Deleteबहुत सुग्घर रचना
ReplyDeleteप्रणाम गुरुदेव
Deleteबहुत सुग्घर भाईजी
ReplyDeleteआभार भईया जी
Deleteवाह वाह नमेन्द्र भाई जी आज के ज्वलंत समस्या ऊपर उत्तम सृजन, बहुत बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद मित्र
Deleteवाहःह बहुत बढ़िया सृजन है भाई
ReplyDeleteप्रणाम दीदी जी
Deleteबहुत बढ़िया
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ReplyDeleteबेटी बगिया फूल,मूल हे बेटी घर के।
जिनगी के सह ताप,छाँव घर लाने धर के।
बेटी जननी लोक,करे हे जग के सिरजन।
बने बाप तै पाप,मार डारे बेटी धन।।
वाह वाह वाह
का बात हे आप के
लेखनी के गजेंद्र जी
हार्दिक बधाई
सुरेश पैगवार
जाँजगीर