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Monday, July 13, 2020

सावन महीना विशेषांक विविध छंदबध्द कवितायें-छंद परिवार डहर ले

सावन महीना विशेषांक विविध छंदबध्द कवितायें-छंद परिवार डहर ले


*छन्नपकैया छंद* आशा देशमुख

छन्नपकैया छन्नपकैया,अब तो सावन आगे।
हरियर हरियर चारो कोती, अब्बड़ सुघ्घर लागे।1

छन्नपकैया छन्नपकैया,अतल तलातल पानी।
कइसे डोंगा चलही माँझी, बूड़त हावय छानी।2

छन्नपकैया छन्नपकैया,रिमझिम बरसे पानी।
नांगर धरके चले नँगरिया,करथे अपन किसानी।3

छन्नपकैया छन्नपकैया,भरगे खेती डोली।
खेत खार हा आस बँधावय,महके रँधनी खोली।4

छन्नपकैया छन्नपकैया,निकले मोरा छत्ता।
लइका मन पानी मा खेले,भीगे कपड़ा लत्ता।5

छन्नपकैया छन्नपकैया,धर लोटा भर पानी।
मंदिर मंदिर घंटा बाजय, बैठे औघड़दानी।6

छन्नपकैया छन्नपकैया,सफल करव जिनगानी।
देवन देव महादेवा हर,अब्बड़ हावय दानी।7।

छन्नपकैया छन्नपकैया ,सावन हे बड़ पावन।
पूजा होवय शिवशंकर के,जग लागय मनभावन।8

छन्नपकैया छन्नपकैया,नदिया नरवा भरगे।
धरती के अब प्यास बुझागे,जम्मो पीरा हरगे।9

छंदकार --आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)
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सार छन्द-कमलेश कुमार वर्मा
"सावन आगे-जी हरसागे"
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सावन आगे जी हरसागे, आगे जी हरियाली।
मन किसान के रमे खेत मा, लाये बर खुशहाली।।

हरियर-हरियर करे सवाँगा, धरती दुलहिन रानी।
छलछल कलकल धार चलत हे, नदिया नरवा पानी।।
खुशी मनावत जीव-जंतु मन, नाचत हाबयँ न्यारी।
रंग-रंग के बोली-भाखा, मनखे करत चिन्हारी।।
शिवशंकर के पूजा होवत, हर सावन सम्मारी।
मंदिर-मंदिर गूँजत हाबय, जय भोले भण्डारी।।

बड़ उछाह ले आजादी के, परब मनाथन भारी।
नाँगर बखर तिहार हरेली, जय माटी महतारी।।
माछी मच्छर ले हो सकथे, किसिम-किसिम बीमारी।
चेत लगा के सफई करहू, सादा रखहू थारी।।
पुन्नी के दिन रक्षाबंधन, सुग्घर मया निशानी।
सबके जिनगी बर होवय जी, सावन बड़ कल्याणी।
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कमलेश कुमार वर्मा
भिम्भौरी, बेमेतरा
छत्तीसगढ़
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 राजेश निषाद

।। चौपाई छंद ।।
महिना सावन जब जब आथे, भोले बाबा सबो मनाथे।
होवत बिहना मंदिर जाथे,जस ला तोरे सबझन गाथे।।

पान फूल ला धरके लाने, महिमा तोरे सबझन जाने।
नरियर भेला धरके जाथे,करके पूजा सबो चढ़ाथे।।

डमरू धारी अवघट दानी,बाबा हावय बड़ बरदानी।
जउन शरण मा ओकर जाथे,मन वाँछित फल ओहर पाथे।।

राख अंग मा काने बाला, पहिरे हावय बघवा छाला।
नंदी बइला करे सवारी,बाबा हावय डमरू धारी।।

तोर जटा ले निकले गंगा,देखत होथे मन हा चंगा।
अरजी हमरो सुनले बाबा,नइ जा पावन कांसी काबा।।

रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर छत्तीसगढ़
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महेंद्र देवांगन माटी - छन्न पकैया

छन्न पकैया छन्न पकैया,  सावन महिना आ गे।
बादर गड़गड़ गरजत हावय, लइका डर के भागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  गिरय झमाझम पानी ।
मलकत हावय डोंगा संगी, होय करेजा चानी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, भरगे नदियाँ नरुवा।
चारो कोती पानी पानी,  कहाँ जाय अब गरुवा।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  चूहय परछी छानी।
टूटे हावय काँड़ मेयार ह, होगे पानी पानी ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  धान पान सब बोंवय।
डारत हावय खातू कचरा,  अब्बड़ सुघ्घर होवय।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  सबके मन हरियागे।
हरियर हरियर चारो कोती, सावन महिना आ गे।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़

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सार छंद-पोखन जायसवाल जी

एती ओती किंजरत बादर,दिखथे अबड़ सुहावन।
पिटिर पिटिर अउ रिमझिम रिमझिम, दिनभर बरसे सावन।।

घिड़कय बादर लहुकय बिजुरी,मछरी चढ़े चढ़ावन।
कहय नँगरिहा कमिया सब ला,रोपा आव लगावन।।

गदबिद गदबिद नरवा दौड़य,पाके अपन जवानी।
मिलना हे सागर ले कहिके,तरिया छलकय पानी।।

हरियर लुगरा पहिने करथे,बादर के अगुवानी।
बेटा के कर आसा पूरा,आज गिरा के पानी।।

रोज रमायन गावत मानै,गाँव-गाँव सवनाही।
महादेव के पूजा करथे,घर-घर सब सुख पाही।।

रापा गैंती हँसिया रपली,नाँगर करै किसानी।
मिल के करथें पूजा सबके,अइसे हवै मितानी।।

मान बराबर करै हरेली,पाय भोग मा चीला।
पउनी मन ले असीस जब्बर,पावै माई पीला।।

पाती दाब मार के मंतर,बाँधे गाँव पुजारी।
डाँड़ खींचथे सुमता ले सब,आवै मत बीमारी।।

सावचेत जब रहिबो सबझन,काबर आही अलहन।
रइही दुरिहा सब बीमारी,आवौ जोखा करथन।।

पोखन लाल जायसवाल
पलारी , बलौदाबाजार छग
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*घनाक्षरी*  ईश्वर आरुग
सावन के महीना हा, लेके आये हे तिहार ।
नीक लागे खेत खार, गाँव मुस्कात हे ।
सवनाही, हरेली ले, नगपाँचे, राखी सबो ।
दुरिहा के मनखे ला, तीर मा बुलात हे ।
रिमझिम पानी संग, सुरूर सुरूर हवा ।
सावन के झूलना हा, खेती ला झुलात हे ।
खेत खार, मेंड़ पार, चारो कोती हरियर ।
देख देख मनखे हा, भाग सहरात हे ।

सावन के सोमवार, सजे शिव दरबार ।
दरस के आस लिये, भगतन आत हें ।
शहर नगर गाँव, शिवधाम ठाँव ठाँव ।
भगतन मनभर, दरसन पात हें ।
नदिया के जल भर, काँवर ला खाँध धर ।
भगत भजन कर, भाग सहरात हें ।
नरियर हुम धूप, धरे फूल बेलपान ।
बोल बम बोल बोल, मनौती मनात हें ।

शिव जटा जूट धारी, शिव शम्भू त्रिपुरारी ।
बैठे ऊँचहा पहाड़ी, आसन लगाय हे ।
शिव भोला हे भंडारी, त्रिशूल डमरू धारी ।
अँग भर कारी कारी, राख चुपराय हे ।
माथ म बिराजे चँदा, जटा म समाये गंगा ।
डोमी साँप माला कस, घेंच ओरमाय हे ।
जगत के ईश शिव, जगहित पीये बिख ।
भगत पुकारे तब, दउड़त आय हे ।

सावन के महीना मा, अँधियारी पाख बर ।
अमावस जब आही, हरेली हे जान ले ।
नाँगर कुदारी रांपा, टँगीया बसूला गैंती ।
खलहार के धोवाही, हरेली हे जान ले ।
औजार के पूजा होही, संग मा चढ़ाही चीला ।
गाय जब लोंदी खाही, हरेली हे जान ले ।
खेलही कबड्डी कुश्ती, खोखो मोटियार मन ।
गेंड़ी चढ़ टूरा आही, हरेली हे जान ले ।


सावन के महीना हा, लेके आये हे तिहार ।
नीक लागे खेत खार, गाँव मुसकात हे ।
सवनाही, हरेली ले, नगपाँचे, राखी सबो ।
दुरिहा के मनखे ला, तीर मा बुलात हे ।
रिमझिम पानी संग, सुरुर सुरुर हवा ।
सावन के झूलना हा, खेती ला झुलात हे ।
खेत खार, मेंड़ पार, चारो कोती हरियर ।
देख देख मनखे हा, भाग सहरात हे ।


सावन के सोमवार, सजे शिव दरबार ।
दरस के आस धरे, भगतन आत हें ।
शहर नगर गाँव, शिवधाम ठाँव ठाँव ।
भगतन मनभर, दरसन पात हें ।
नदिया के जल भर, काँवर ला खाँध धर ।
भगत भजन कर, भाग सहरात हें ।
नरियर हूम धूप, धरे फूल बेलपान ।
बोल बम बोल बोल, मनौती मनात हें ।


शिव जटा जूट धारी, शिव शम्भू त्रिपुरारी ।
बैठे ऊँचहा पहाड़ी, आसन लगाय हे ।
शिव भोला हे भंडारी, त्रिशूल डमरू धारी ।
शिवजी के अँग भर, राख चुपराय हे ।
माथ म बिराजे चँदा, जटा म समाये गंगा ।
डोमी साँप माला कस, घेंच ओरमाय हे ।
जगत के ईश शिव, जगहित पीये बिख ।
भगत पुकारे तब, दँउड़त आय हे ।


सावन के महीना मा, अँधियारी पाख बर ।
अमावस जब आही, हरेली हे जान ले ।
नाँगर कुदारी रांपा, टंगिया बसुला गैंती ।
खलहार के धोवाही, हरेली हे जान ले ।
औजार के पूजा होही, संग मा चढ़ाही चीला ।
गाय जब लोंदी खाही, हरेली हे जान ले ।
लइका खेलहीं खोखो, संग म कबड्डी कुश्ती ।
गेंड़ी चढ़ अटियाही, हरेली हे जान ले ।

ईश्वर साहू 'आरुग'
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सरसी छंद-सूर्यकांत गुप्ता कांत

सोमवार सावन के पावन, दरसन देत महेस। 
बाबा धाम चलौ सब जावन, हरही हमर कलेस।।


बेटी सती दच्छ राजा के, तज दिन अपन परान।
ओकर पहिली करिन परन उन, वर पाये बर जान।।


सती माइ के इच्छा वर बर, बस भोले भगवान।
सावन भर उन करिन तपस्या, पाइन शंभु सुजान।।


सोमवार सावन के सब झन, शिव के करैं धियान।
होवै सबके सुफल मनोरथ, महिमा सावन मान।।


सावन पुन्नी रथे अगोरा, तागा प्रेम बँधाय।
भाई बहिनी के रिश्ता ला, सब झन बने निभाय।।

सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छ. ग.)
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सार छंद-सूर्यकांत गुप्ता कांत

जेठ अऊ बइसाख महीना, लोगन प्यास मरैं जी।
बिन पनही रेंगे म भोंभरा,  अड़बड़ पाँव जरै जी।।१।।

छेड़ छाड़ कुदरत सँग जानौ, कतका वो भुगताथे।
रहिके सुक्खा अब असाढ़ भर , पानी बर तरसाथे।।२।।

माह सवनवा गिरके पानी ,  मन ठंडक पँहुचाथे।
का किसान का आम आदमी, सबला बने सुहाथे।।३।।

जइसे सावन पानी बरसै, घूमैं लइकन उघरा।
प्यास बुतावै धरती माई, पहिरै हरियर लुगरा।।४।।

खेत खार मा धान बोवावै, कहूँ लगावैं रोपा।
सज धज तिजहारिन घर आवैं, पारे मुड़ मा खोपा।।५।।

सावन मास महत्तम जानौ , आवैं शंकर भोले।
भक्ति भाव मा बुड़ के संगी, पाप अपन तैं धोले।।६।।

परै पाख सावन अँधियारी,  हमर तिहार हरेली।
देख मताये चिखला माटी, गेंड़ी चढ़ सब खेली।।७।।

घरे दुआरी खोंचैं भाई, लीम पान के डारा।
रोग राइ झन आवै घर मा, पावन सब छुटकारा।।८।।

रात हरेली कहिथें संगी, मंतर तंतर साधै।
सोच गाँव के खुशहाली बर, झट बइगा हा बाँधै।।९।।

आवत हे राखी तिहार जी, बहिनी मन हरसावै।
भाई मन उंखर रक्षा के, बंधन बने निभावै।।१०।।

माह अवइया भादो बर जी, इही आस हम रखथन। 
बरसै जमके बने फसल हो, दुआ इही हम करथन।।११।।

सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग
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रामकली कारे: लावणी छंद

सावन पावन लगे महीना, चलय बियासी के नाॅगर।
धान खेत लहरावय सुग्घर, चलै गीत सॅग मा जाॅगर।।

बम बम भोले शिव शंकर हे, घट घट के जी रह वासी।
सोमवार प्रिय महादेव ला, पूजै सब बारह मासी।।

उमड़य घुमड़य मेघा बरसय, सवनाही सब ला भावय।
बादर बिजुरी गरजय चमकय, धरती हरियर हरियावय।।

नरवा नदिया आगे पूरा, रिमझिम सावन हा बरसय।
झड़ी करै गा करिया बादर, जीव जगत के सब हरसय।।

महकय फुलवा बाग बाग मा, सुवा कोयली हा गावय।
पीहू पीहू करे पपीहा, कली कली हा मुस्कावय।।

होय हरेली राखी कजरी, जिनगी के सब आधारा।
मिले गगन धरती ले जब जब, सिरजन होथे गा जग सारा।।


छंदकार - रामकली कारे बालको
कोरबा छत्तीसगढ़
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छप्पय छंद - श्लेष चन्द्राकर

सुख दे बर हर साल, महीना सावन आथे।
बरसा होथे घोर, सबो ला जे बड़ भाथे।
बुझथे भू के प्यास, खेत मन मा जल भरथे।
खुश हो अबड़ किसान, काम खेती के करथे।।
तरिया बाँधा भर जथे, गिरथे पानी घात गा।
पबरित सावन मास हा, देथे ये सौगात गा।

सावन के सम्मार, हरय दिन शिव-शंकर के।
कर लौ पूजा-पाठ, अघोरी अभ्यंकर के।।
मिलथे गा बड़ पुन्न, ध्यान ला प्रभु के धर लौ।
भक्ति रसा मा बूढ़, सफल जिनगी ला कर लौ।।
सावन सम्मारी हरय, सत मा दिन बड़ खास जी।
सबके भोलेनाथ हा, पूरा करथे आस जी।

सावन मा जी घात, इंद्र हा जल बरसाथे।
बोके खेत किसान, हरेली परब मनाथे।।
ये दिन हमर किसान, काम बड़ सुग्घर करथे।
खेती के औजार, बैल के पूजा करथे।।
भाई बहिनी के मया, आशा अउ विश्वास के।।
रक्षाबंधन के परब, खास हरे ये मास के।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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 सरसी छन्द - बोधनराम निषाद

दया मया के बँधना हावै, राखी के त्योहार।
कच्चा डोर बँधाये देखौ,बहिनी-भाई प्यार।।
दया मया के बँधना.....................

ननपन के गा खेले-कूदे,अँगना परछी खोर।
सावन मा जी आथे सुरता,दीदी मन के लोर।।
राखी लेत बहाना जाथे ,बहिनी के घर द्वार।
दया मया के बँधना...................

जनम जनम के रक्छा के तो,भाई बचन निभाय।
भाई बने सहारा होथे,बहिनी जब दुख पाय।।
करके भाई जी के सुरता,बहिनी रोय गुहार।
दया मया के बँधना....................

रंग-रंग के राखी धरके ,थारी  खूब  सजाय।
आवत होही भाई कहिके,बहिनी ह सोरियाय।।
देख बनाये  हे  मेवा अउ, करे खड़े  सिंगार।
दया मय के बँधना.....................

सावन के हे पबरित महिना,भाई आस लगाय।
छम-छम-छम-छम नाचय बरखा,बहिनी के मन भाय।।
सराबोर भींजे झूमे सब, राखी देख बहार ।
दया मया के बँधना...................

छंदकार :-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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सार छंद-हीरालाल  गुरुजी समय

हे भोले भंडारी बाबा,तँय हस अवघड़ दानी।
सावन मा बड़ करथे पूजा,संत भगतअउ ज्ञानी।
सोमवार के दिन सावन मा  ,उपास रखय कुँवारी ।
मिलय नौकरी वाला जोड़ी,ओखर बनव सुवारी।

दूध दही मँदरस गंगा जल , भोला ला नहवाथैं।
धोवा चाउँर शक्कर धतुरा ,बेल पान चढ़हाथैं।
नरियर भेला अरपन करके, रोज आरती गावै।
शिवशंकर के जय बोलावै, मांग मनौती पावै।

सावन के पावन महिना मा, बम बम भोला गाथैं।
बैजनाथ मा जल चढ़ाय बर, काँवरिया मन जाथैं।
गाँव गाँव सवनाही निकले, बइगा भेंट चढ़ावै।
राम भगत मन पूरा महिना, मास परायण गावै।

धोय कुदारी गैंती रापा,नाँगर बइला रीता।
चीला चढ़े हरेली तिहार,भोग लगावे गीता।
सावन मा गेड़ी चढ़ लइका, गली खोर मा जावै।
डार लीम ला खोचे बइगा, घरभरअसीस पावै।

हीरालाल गुरुजी "समय"
छुरा ,जिला-गरियाबंद

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 सार छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

घुमड़ घुमड़ के गरज गरज के, बरसे बादर करिया ।
खूब गिरे सावन मा पानी, भरगे नदिया तरिया ।।

लगे झड़ी हे सावन महिना, चूहत परवा छानी ।
गिरत झमाझम पानी देखव, नाचत बरखा रानी ।।

टर टर टर टर करे मेचका, झिंगुरा गावत गाना ।
नंगरिहा के अर्रतता हा, लागय बड़ा सुहाना ।।

नाँगर जाँगर सबो सजे हे, सजे किसनहा भाई ।
खेत खार अउ सजे बियारा, कुलकत धरती दाई ।।

बड़ा सुहावन महिना सावन, परब हरेली लाये ।
मया दया ला संग रखे ये, सबके मन ला भाये ।।

अपन करम के चढ़ौ निसैनी, राखव मन ला पावन ।
खेत किसानी हमर मितानी, सन्देशा हे सावन ।

 इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
                   बिलासपुर
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 *अमृतध्वनि छंद*
सावन आगे अब तो संगी,मस्ती सब मा छात।
जीव जंतु सब झूम के,तान सुनावत जात।
तान सुनावत,जात हवय सब,शोर मचावय।
मोर नाच के,संग कोइली,गीत सुनावय।
खेत खार हा,होगे अब तो,सुग्घर पावन।
बरसत जब ले,उमड़ घुमड़ के,रिमझिम सावन।।

करिया बादर आय के,पानी बड़ बरसाय।
खेत खार छलकत हवय,नदिया पूरा आय।
नदिया पूरा,आय बिकट जी,सावन आगे।
मनखे झूमय,जीव जंतु के,भागे जागे।
चारो कोती,हरियर होगे,खेती परिया।
उमड़ घुमड़ के,बरसत हावय,बादर करिया।।

पानी हर वरदान ये,सब के प्यास बुझाय।
देख मगन अब सब इहाँ,जीव जंतु सुख पाय।
जीव जंतु सुख, पाय बिकट जी,पानी बरसय।
सावन आगे,बिजुरी चमकय,बादर गरजय।
गोल गोल जी,झर झर पानी,नइये सानी।
करय किसानी,खिलय जवानी,गिरथे पानी।।

विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव जिला-रायपुर

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                 ( मनहरण घनाक्षरी)
हरियर  हरियर  , दिखे  चारो  मुड़ा  सँगी ,
खेत  खार  परिया  जी , बारी  दईहान  हे ।
चारो मुड़ा पानी पानी,लागे  जुड़  जुड़हा ,
माटी   कहरत   जस  ,  चंदन  समान  हे ।।
मन   बहलात  हावे  ,  बेंगवा  हा  टर टर ,
होई  के  मँगन  खूबे , मीठ  पारे  तान  हे ।
नदिया  उछाल मारे  , तरिया  उलट  चले ,
गाय  गरुवा  के सँगी ,  बाढ़े  मुसकान हे ।।

सावन  के  सुर  सुर  ,  मन  बड़  अधीर हे ,
सुरता  मयारू  के  जी ,  गहिके  सतात  हे।
छनकत   पानी  खूबे  ,  गमसुर   तन   मा  ,
हाँस मुसकात सँगी  , आगी  ल  लगात हे।।
गरजत     हे    बादर  ,  लहुकथे   बिजली ,
दुरिहा   ले   पिरोही  के ,मया ला देखात हे ।
आवथे  तिहार  जमो  , एक  बढ़  एक  जी ,
सुमता  के  सगरी  मा , डूबकी  लगात  हे ।।

सावन  के  महिना  मा  , शिव  के  महातम ,
जाने  जग  दुनियाँ  हाँ ,  जय जय  कार हे ।
चढ़े   जल   दूध   गुड़  ,  अऊ  बेलपतिया ,
सरधा  सुमन  के  जी  , झूले खूब हार  हे ।।
बोल बम  बोल बम  ,  शिव  के  शरन  मा .
हाजरी  लगाय   खड़े ,  कतको  हजार  हे ।
घट घट  वासी  हावे , भोले अविनासी  हा ,
डमरु   बजईया  जी  ,  सुनत  गोहार   हे।।

                                                       
         --राधेश्याम पटेल

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 छन्न पकैया-कौशल साहू

छन्न पकैया छन्न पकैया,महिना सावन आगे।
बम बम भोले कैलाशी के,मंदिर पावन लागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,बादर हा करियागे।
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी, भुइँया हा हरियागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, होगे खेत बियासी।
झूमय नाँचय खेत खार हा, महके सोन मटासी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, परब हरेली आगे।
बिल्लस खो खो खुडुवॉ खेले,भिरभिर भिरभिर भागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया ,रेंगय सुख्खा नरवा।
बाँध लबालब तरिया भरगे,ठंडा सबके तरवा।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,राजा बिन का रानी।
बिजली चमके जिया डरावे,होय करेजा  चानी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, ढरकत हाबय आँखी।
भाई बहिनी के मया निशानी, भेजत हाबँव राखी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,मेला सबो  सिरागे।
झुलवा नहीं झुलाये कहिके, गुइँया मोर रिसागे।।

कौशल कुमार साहू
सुहेला(फरहदा)
जि. बलौदाबाजार-भाटापारा
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 छन्न पकैया छन्द -नेमेन्द्र

छन्न पकैया छन्न पकैया,गर्मी के दिन भागे।
बरसत सावन रिमझिम बरसा,धरती ताप जुड़ागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन के दिन आगे।
हरियर हरियर खेती बाड़ी, देखत मन हर्षागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,बरसे पानी झर झर।
तब तो नदिया नरवा संगी, होवत हावय तर तर।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,फुटू करी बड़ दिखथे।
बिकट मिठाथे ये हर संगी,शहर गाँव मा बिकथे

छन्न पकैया छन्न पकैया,सावन के सम्मारी।
घण्टा बाजत सबो शिवालय,पूजत नर अउ नारी।

छन्न पकैया छन्न पकैया,चना दार अउ शक्कर।
भोले बाबा भोग लगावै,बेल दूब मा ढककर।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,सावन बड़ मनभावन।
हरियाली अउ रक्षा बंधन,के तिहार निक पावन ।।

छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही,जिला-बालोद
मोबाईल-8225912350

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 छन्न पकैया 

छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन महीना आगे।
चारो कोती हरियर हरियर,धरती प्यास बुझागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, काँवरिया मन आगे।
पिंवरा पिंवरा कुरता पहिरे, नाचत कूदत भागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,झूला घलो बँधागे।
छोटे बड़की बेटी देखो,जम्मो झिन सकलागे।।

मोर गाँव के गली खोर हा,बृन्दाबन कस लागे।
पीपर के ड़ारी हा भैया,कदम पेड़ कस भागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,खेत समारू जावे।
नाँगर जोते अरा तता कहि,कभू ददरिया गावे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, देखो मँगली आवे।
रोटी आमा के अथान ला, संगे बइठे खावे।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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सरसी छंद-चित्रा श्रीवास


तरिया नदियाँ भरगे पानी,सावन मन ला भाय।
हरियर होगे चारो कोती,सबके मन हरषाय।।
रिमझिम बरसे पानी देखव, होवय खेती काम।
जाँगर पेरय जी किसान हा,छोड़ दिहिस आराम।।

छंद कार -चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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अमृत ध्वनि छंद

करिया बादर छाय हे,मन मा हे उल्लास।
बरसे पानी देख ले,आगे सावन मास।
आगे सावन ,मास सुहावन,हरियर भुइँया।
डोंगर झाड़ी,जाबो घूमत,चल तो गुइँया।
डोंगर ऊपर,फूटे हावय ,झरना झरिया।
हवा चलत हे,घपटे हावय,बादर करिया।।


बादर गरजत हे अबड़,बिजुरी चमकय हाय।
चलत हवै सर सर हवा,बरखा रानी आय।।
बरखा रानी,आय धरा मा,हे हरियाली।
भरगे जम्मों,खँचवा डबरा,तरिया नाली।।
बिछ गे हावय ,काँदी के जी,हरियर चादर।
आगे संगी, बरखा रानी,छागे बादर।।

माते चिखला खेत मा,नाँगर धरे किसान।
सकलाये बनिहार मन,निंदत थरहा धान।।
निंदत थरहा,धान लगावय,गाय ददरिया।
पानी बरसे ,भरगे डोली, जइसन तरिया।।
चभक चभक के,रेंगत हावय,हाथ हिलाते।
रेंगत रेंगत,गिरगे बाबू,चिखला माते।।


सकलाये लइका सबो,भारी धूम मचाय।
हार जीत के खेल मा ,गेड़ी चढ़हत आय।।
गेड़ी चढ़हत ,आय सबो झिन,ठीकिर ठाकर ।
सोर नहीं हे ,गमछा गिरगे ,हावय काकर।।
चिखला मा ले ,गेड़ी अपने ,पार लगाये।
लइका जम्मों ,खोर गली मा ,हे सकलाये।।

आनी बानी फुटु फूटगे,हावय खेत कछार।
लेलव मजा करील के,खाले जी चटकार।।
खाले जी चट-कार स्वाद हे,अब्बड़ गुरतुर।
बाँटी घोंघी,दाई राँधे,मछरी चुरमुर।।
सावन महिना,तरिया मा हे,भरगे पानी।
कोला बारी ,मा हे भाजी,आनी बानी।।


चेरू मा पानी धरे,शिव ला सबो चढ़ाय। 
बेलपान अउ फूल ले,शिव मंदिर सब जाय।। 
शिव मंदिर सब ,जाय भक्त मन,जय शिव बोलय।
मन्नत माँगे,राज हृदय के,जम्मो खोलय।।
कपड़ा पहिरे ,काँवरिया के,रँग हे गेरू।
चमकत हावय,सब भक्तन के,ताँबा चेरू।।


सुकमोती चौहान "रुचि"
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
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 छंद-चौपाई रचनाकार-शोभामोहन श्रीवास्तव 


*कब आबे तैं बोल लहरिया* 

बरसत बादर करिया-करिया।
जल बुँदियन छलकात गगरिया ।।
बरसत बादर.............................
1/
दूबी जामत ले बरसत हे ।
छान्ही परवा तरी धँसत हे ।।
खेत जोताय नइ इक हरिया ।
कब आबे तैं बोल लहरिया ।।
बरसत बादर ...............................
2/
सरी कोठ भर चूहत रेला ।
सोग लगत हे देखत तेला ।।
आँसू ढ़रकत फिजत अँचरिया।
कब आबे तै बोल लहरिया ।।
बरसत बादर ..........................
 3/
गरजन घुमरन सुनके बादर ।
अंडा साँप फूटत भुँइया भर।।
छलकत बहकत नदिया तरिया ।
कब आबे तैं बोल लहरिया ।।
बरसत बादर ................................
4/
नभ मा बगुला पाँत उड़ावत ।
अउ भुँइया के जीव जुड़ावत ।।
मोरे मन धनहा हे परिया ।
कब आबे तैं बोल लहरिया।।
बरसत बादर ..............................
5/
बइठ बरेंडी कँउवा बोलत ।
गियाँ गड़ी बन हाँसत ठोलत।।
रहन धराये हे सुखलरिया ।
कब आबे तैं बोल लहरिया ।।
बरसत बादर............................
6/
लउकत बिजुरी देख डरत हौं ।
तोर बिगन दिन रात मरत हौं ।।
बज्र असन हे कटत उमरिया  ।
कब आबे तैं बोल लहरिया ।।
बरसत बादर .....................

शोभामोहन श्रीवास्तव
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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बारिस म बिरहिन

आगे हे बरसात हा, रिमझिम बरसा होय।
नइहे सजना साथ मा, अन्तस् मोरे रोय।
अन्तस् मोरे रोय, अकेल्ला हौं बरसा मा।
नइ भावै घर द्वार, भटकथे मन धरसा मा।
जोहत रहिथौं बाट, रात दिन जागे जागे।
आजा सजना मोर, देख बरसा हा आगे।

नाँचै तरिया बावली, नाँचै धरा पताल।
पेड़ पात नाँचत हवै, मोर बुरा हे हाल।
मोर बुरा हे हाल, भरे बरसा मा तरसौं।
बनके दादुर मोर, सजन बिन कइसे हरसौं।
गरज बरस घनघोर, बिजुरिया मन ला जाँचै।
रोवौं  मैं धर मूड़, मोर आघू सब नाँचै।

जल मा तर हाँसै धरा, मारै नदी हिलोर।
सब जल पाके गै हिता, जले जिया हा मोर।
जले जिया हा मोर, गिरे पानी हर तबले।
अन्तस् हवै उदास, पिया तज गेहे जबले।
नइहे ओखर शोर, कहाँ ले पावौं  मैं बल।
सबला मेघ भिंगोय, मोर मन भभगे जल जल।

किरिया खाके रे घलो, काबर नइ आयेस।
काम कमा गर्मी घरी, लहुटे सब निज देस।
लहुटे सब निज देस, देख के बरसा दिन ला।
दउहा नइहे तोर, सता झन तैं बिरहिन ला।
देखँव बस थक हार, करौं का मैंहर तिरिया।
आजा सजना मोर, अपन सुरता कर किरिया।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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(कुण्डलिया)

1

 सावन के हाबय झड़ी, गावै रिमझिम बूँद।
रेंगत हे अबड़े गली, पगली कस अँखमूँद।
 पगली कस अँखमूँद, हवा जुड़-जुड़ हे  लागत।
दिन मा हे अँधियार, घटा हे पल्ला भागत ।
 बादर ढोल बजाय, बिजुरिया लगै डरावन।
 बिरहिन हवै उदास, आय हे जब ले सावन ।

2

 सावन मनभावन हवै,हरियर हरियर खार।
 बादर दउँड़त आय हे, जोर मया के तार ।
जोर मया के तार, नदी नरवा हा  कुलकै।
भरे लबालब ताल ,पार ले लहरा बुलकै ।
 बाढ़े धान बियास, हरेली परब मनावन।
 किरपा करथे शंभु,  अबड़ शुभ होथे सावन।

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
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अमृतध्वनि छंद - आशा आजाद

बमबम भोले बोल रे,काँवर ला तँय थाम।
सावन महिना आय हे,शंभू के ले नाम।।
शंभू के ले-नाम ध्यान धर,माथ नवावौ।
धारय डमरूँ,राखय तिरसुल,जय जय गावौ।।
तीसर आँखी,भोले खोले, जिवँरा डोले।
पार लगाही,बोल ग संगी,बमबम भोले।।

भोले बाबा के सुनौ,महिमा अपरंपार।
हिरदे ले जे पूजथे,होथे बेड़ा पार।
होथे बेड़ा -पार कष्ट ला,हरथे हरपल।
सच्चा मनखे,जेन रहय ओ,पाथे नित फल।
नेक करम के,भाव ल रखके,चरन ल धोले।
दीन दुखी के,मदत करय जे,ओखर भोले।।

छंदकार - आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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सार छंद/गीत 


उमड़ उमड़ के करिया बादर,
भर अकास घपटाए।
गरज गरज के बरस बरस के,
भुइँया ला नहवाए।

ढोल नगाड़ा बाजत हावे,
चमके बिजुरी चमचम।
पहिरे पइरी बरखा बइरी,
पैजन पानी छमछम।।

रहिस भोंभरा तीपत चोला,
धरा देंह सुख पाए।
गरज गरज------।

हरियर हरियर धरती कोरा,    
सुग्घर नवा सिंगारे।
हाँसत हावे रुख राई सब,
जरई पाँव पसारे।।

अंग अंग में उछाह भरके,
गीत सावनी गाए।

गरज गरज-----

टीप टीप ले तरिया नरवा, 
छलकत हवे जवानी।
माते हावे चारों कोती,
सावन बरसे पानी।।

हाँसत कुलकत भागे नँदिया, 
अँचरा बगरत जाए।
गरज गरज-----

बिखहर घूमत हें हरहिंछा,
मया मगन हो नाचे।
रात झेंगुरा चुन चुन बोलय,  

माहो बतर सबो झाँके।

चले किसनवा नागर धरगे,
धरती ला दुलराए।
गरज गरज----

सुधा शर्मा 
राजिम छत्तीसगढ़
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रोला छंद-मीता अग्रवाल 

आगे सावन मास,कोयली कूके कारी।
बादर बरसे झूम,झमाझम कर अंधियारी।
बिजुरी चमके मेघ,घटा कडकत डरवाए।
नाचय मन मंजूर,देख हरियाली छाए।।

होथे जम बरसात,भरय नरवा मा पानी।  
कर रोपाई धान,खेत मा चलय किसानी।
गावय करमा गीत,खेल मा चढथे गेड़ी।
मांदर मा दे थाप,झूमथे जावर जोड़ी।।

सावन भादों मास,कराथे भेंट अगोरा।
लडक पना के खेल,बिसावन चुकिया पोरा।।
आय ददा ससुरार, सुहाथे मइके दाई। 
राखी तीजा मान,मिलाथे बहिनी भाई।।

रचनाकार-डाॅ मीता अग्रवाल मधुर
 रायपुर छत्तीसगढ़

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छन्न पकैया  छंद

छन्न पकैया छन्न पकैया,सावन महिना आगे
रिमझिम रिमझिम पानी बरसे,ओहर बढ़िया लागे|
छन्न पकैया छन्न पकैया,झूला बगिया बाँधे
पुरुष संग मा नारी झूले,धर के ओकर खाँधे|
छन्न पकैया छन्न पकैया,खेत बियासे जाथे
चभकत नाँगर भारी संगी,पाठ घलो ढिलियाथे|
छन्न पकैया छन्न पकैया,खेत म खातू डारे
दू ठन खातू संग मिला के,घन के बढ़िया मारे|
छन्न पकैया छन्न पकैया,बरत हरेली आथे
डूँड़ा नाँगर पूजा खातिर,चीला राँधे जाथे|
छन्न पकैया छन्न पकैया,चर चर गेंड़ी बाजे
टूरा मन ला नाँचत देखे,नोनी मरथे लाजे|

      मोहन दास बंजारे
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सावन के दोहा- अजय अमृतांशु

पानी हा बरसत हवय,रिमझिम हवय फुहार।
भुइँया हरिया गे हवय,हरियर खेती खार।

भरगे डबरा खोचका,नदिया मन उफनाय।
बादर करिया हे बिकट,रहि रहि के बरसाय।।

सावन के महिना हवै,खेती बर वरदान।
बरसत पानी देख के,झूमत हवय किसान।।

सावन आवत देख के,रमगे हवय किसान ।
सरी बुता ला छोड़ के, बोवत हे अब धान।।

काँवरिया मन जात हे,शिव बाबा के धाम।
बम बम भोले जोर से,लेवत हावय नाम।

डोंगा कागज के बना,लइका मन तउँराय।
खो खो बिल्लस खेल हा,अड़बड़ मन ला भाय।।

टर टर करथे मेंचका,ककरो मन नइ भाय।
कुकुर बिचारा का करय, चिखला हवै सनाय।

अजय अमृतांशु
भाटापारा छत्तीसगढ़
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सरसी छन्द-गुमान प्रसाद साहू
।। चलव मनाबो शिव भोला ला।।

चलव मनाबो शिव भोला ला, सावन के सम्मार।
बेल पान अउ फूल चढ़ाबो, संगे दीया बार।।1

आये हे सावन सम्मारी, रहिबो चलव उपास।
औघड़ दानी हावय बाबा, करही पूरा आस।।2

काँवर मा गंगा जल धरके, जाबो मंदिर द्वार।
चलव मनाबो शिव भोला ला, सावन के सम्मार।।3

घेंच साँप के माला पहिरे, कनिहा बघवा छाल।
तन मा चुपरे राख भभूती, रूप दिखै बिकराल।।4

माथ बिराजे चाँद दूज के, जटा म गंगा धार।
चलव मनाबो शिव भोला ला, सावन के सम्मार।।5

छन्दकार-गुमान प्रसाद साहू 
ग्राम-समोदा(महानदी),जिला-रायपुर छत्तीसगढ़
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17 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना हे सबके सबला बधाई हो

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  2. सुग्घर संग्रह

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  3. एक ले बढ़के एक रचना, बड़ सुग्घर संकलन तैयार होये हे। सबो साधक भाई बहिनी मन ला बहुत बधाई।

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  4. बहुत सुग्घर संकलन गुरुदेव

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  5. बहिनी आशा भाई माटी सिरजिन छन्नपकैया।
    महादेव सावन भर आके सबके ख्याल रखैया।।

    भाई कमलेश वर्मा जी, राजेश निषाद जी अउ पोखन
    लाल जायसवाल जी मन के छंद सावन बढ़िया सजे हे.....आप सबो झन ल हिरदे ले नंगत अकन बधाई जी
    👌👌👏👏👍👍🙏🙏🌹🌹


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  6. एक से एक रचना अनुपम संकलन

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  7. जम्मो साधक रचनाकारमन ला नंगत नंगत बधाई

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  8. जम्मो साधक रचनाकारमन ला नंगत नंगत बधाई

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  9. जम्मो साधक रचनाकारमन ला नंगत नंगत बधाई

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  10. जम्मो साधक रचनाकारमन ला नंगत नंगत बधाई

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  11. जम्मों रचनाकार मन ल गाड़ा-गाड़ा बधाई

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  12. बहुत सुग्घर संकलन । सावन महिना के तीज त्यौहार के वर्णन

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  13. सुग्घर सवनाही संकलन, बधाई

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  14. बहुत सुंदर संकलन, बधाई

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  15. सुग्घर सवनाही सिरजन संकलन ,बधाई

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