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Monday, July 20, 2020

कुंडलियाँ छंद - ईश्वर लाल साहू 'आरुग'

कुंडलियाँ छंद - ईश्वर लाल साहू 'आरुग'

1.
बोलय माटी खार के, सुन ले मोर किसान ।
तँय वंशज बलराम के, बन जा मोर मितान
बन जा मोर मितान, रसायन खेती झन कर ।
मिलय अन्न के संग, जहर कस होथे तन बर ।
खातू सोखय ओल, राज ला माटी खोलय ।
बउरव गोबर खाद, खार के माटी बोलय ।

2.
इरखा के गरदा भरे, अन्तस् हे अँधियार ।
बाहिर दीया बार के, खोजत हे उजियार ।
खोजत हे उजियार, बता दे कइसे पाही ।
मया बिना सिरतोन, कहाँ जिनगी उजराही ।
आँखी ऊपर तोर, परे हे काबर परदा ।
अंतस ले सिरतोन, हटा इरखा के गरदा ।

3.
धरती के सिंगार बर, लगय घरोघर पेंड़ ।
देथे लकड़ी अउ हवा, रखय बाँधके मेंड़ ।
रखय बाँध के मेंड़, रखे धरती ला हरियर ।
डारा पाना फूल, संग मा देथे जी फर ।
सुनले आरुग गोठ, परय झन भुइँया परती ।
लगाके तुमन पेंड़, बनावव हरियर धरती ।

4.
बइसुरहा हे मन कहे, सुग्घर बिहना साँझ ।
मंझन आगी कस जरे, झरर झरर हे झाँझ ।
झरर झरर हे झाँझ, सुखावत काया लागे ।
देख सुरुज के ताव, छाँव हा पल्ला भागे ।
बासी कड़ही संग, मिठावय चटनी कुर हा ।
मंझन करव अराम, कहय मन हा बइसुरहा ।

5.
जग मा पाना मान हे, रखले मीठ जबान ।
तन अउ धन के थोरको, झन कर तँय अभिमान ।
झन कर तँय अभिमान, इहाँ हे कोन पुछइया ।
गिरे परे ला देख, इहाँ हे कोन उठइया ।
आरुग कहना मान, मया दौड़य रग रग मा ।
आबे सबके काम, मान तँय पाबे जग मा ।

6.
घपला होथे बैंक मा, सुते परे सरकार ।
चोर लुटेरा भागथे, जनता ऊपर भार ।
जनता ऊपर भार, चढ़े हे करजा भारी ।
लूटव खावव देश, योजना हे सरकारी । 
आरुग करथे गोठ, सुनावय किस्सा सबला
भागय चोर विदेश, करोड़ो करके घपला ।

7.
सुनलव संगी गोठ ला, कहिथे हमर सियान ।
बड़े बिहनिया के हवा, दवा बरोबर जान ।
दवा बरोबर जान, बिहनिया सुत झन मनभर ।
छै घण्टा के नींद, बने हे कहिथे जगहर ।
कहिथे आरुग रोज, गोठ ला मनमें गुनलव ।
बनही सिरतो काम, बड़े के कहना सुनलव ।


छन्दकार - ईश्वर लाल साहू 'आरुग'
ठेलका-साजा-थानखमरिया

4 comments:

  1. वाह वाह बहुत सुग्घर अउ भावपूर्ण कुण्डलिया सृजन, बहुत बधाई आप ला ईश्वर भाई जी

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  2. बहुत सुन्दर सर जी

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  3. वाह्ह वाह वाह्ह आरुग भइया जी बहुते सुग्घर भावपूर्ण कुण्डलियाँ रचना भइया जी 🙏🙏

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