कुंडलियां छंद-मोहन निषाद
पर्यावरण
रोवत हे पर्यावरण , परदूषण मा आज ।
बाढ़त हावय रोज के , गिरही जइसे गाज ।।
गिरही जइसे गाज , हवय परदूषण भारी ।
गाडी घोड़ा आज , बने सबके लाचारी ।।
संकट मा ओजोन , परत हे छेदा होवत ।
कटगे जम्मो पेड़ , देख के सब हे रोवत ।।
छोड़ संसो हे जीना
जीना सीखव आज मा , छोड़ काल के बात ।
आहय जिनगी मा मजा , कटय बने दिन रात ।।
कटय बने दिन रात , गोठ ला जी तँय सुनले ।
बात हवय ये सार , मने मा थोरिक गुनले ।।
जिनगी मा जी रोज , इहाँ सुख दुख हे पीना ।
कहिथे सुनव सियान , छोड़ संसो हे जीना ।।
नारी शक्ति
नारी शक्ति रूप ये , झन समझव कमजोर ।
महिमा जेखर हे कहे , देवन मन चँहु ओर ।।
देवन मन चँहु ओर , सार जी येला मानव ।
कर लेवव पहिचान , रूप ला येखर जानव ।।
सुख दुख मा हे संग , आय जी ये अवतारी ।
बोहे जग के भार , सबल हावय जी नारी ।।
बहू अउ बेटी
मानव बेटी ला बने , देके मया दुलार ।
करव भेद झन आज तुम ,जिनगी के दिन चार ।।
जिनगी के दिन चार , मान बेटी ला देवव ।
मारव झन जी कोख , परन अब सब गा लेवव ।।
होथे लक्ष्मी रूप , मरम ला येखर जानव ।
बहु बेटी ला आज , रतन जी धन कस मानव ।।
महतारी
महतारी के हे मया , सबले बड़का जान ।
जनम देय सबला हवै , मानव अउ भगवान ।।
मानव अउ भगवान , सबो कोरा मा आये ।
जिनगी अपन बिताय , मया ला रोजे पाये ।
येखर रूप हजार , आय लक्ष्मी अवतारी ।
सुख दुख बाँटय संग , भार बोहे महतारी ।।
रचनाकार - मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा ,
जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)
पर्यावरण
रोवत हे पर्यावरण , परदूषण मा आज ।
बाढ़त हावय रोज के , गिरही जइसे गाज ।।
गिरही जइसे गाज , हवय परदूषण भारी ।
गाडी घोड़ा आज , बने सबके लाचारी ।।
संकट मा ओजोन , परत हे छेदा होवत ।
कटगे जम्मो पेड़ , देख के सब हे रोवत ।।
छोड़ संसो हे जीना
जीना सीखव आज मा , छोड़ काल के बात ।
आहय जिनगी मा मजा , कटय बने दिन रात ।।
कटय बने दिन रात , गोठ ला जी तँय सुनले ।
बात हवय ये सार , मने मा थोरिक गुनले ।।
जिनगी मा जी रोज , इहाँ सुख दुख हे पीना ।
कहिथे सुनव सियान , छोड़ संसो हे जीना ।।
नारी शक्ति
नारी शक्ति रूप ये , झन समझव कमजोर ।
महिमा जेखर हे कहे , देवन मन चँहु ओर ।।
देवन मन चँहु ओर , सार जी येला मानव ।
कर लेवव पहिचान , रूप ला येखर जानव ।।
सुख दुख मा हे संग , आय जी ये अवतारी ।
बोहे जग के भार , सबल हावय जी नारी ।।
बहू अउ बेटी
मानव बेटी ला बने , देके मया दुलार ।
करव भेद झन आज तुम ,जिनगी के दिन चार ।।
जिनगी के दिन चार , मान बेटी ला देवव ।
मारव झन जी कोख , परन अब सब गा लेवव ।।
होथे लक्ष्मी रूप , मरम ला येखर जानव ।
बहु बेटी ला आज , रतन जी धन कस मानव ।।
महतारी
महतारी के हे मया , सबले बड़का जान ।
जनम देय सबला हवै , मानव अउ भगवान ।।
मानव अउ भगवान , सबो कोरा मा आये ।
जिनगी अपन बिताय , मया ला रोजे पाये ।
येखर रूप हजार , आय लक्ष्मी अवतारी ।
सुख दुख बाँटय संग , भार बोहे महतारी ।।
रचनाकार - मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा ,
जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)
बहुत बढ़िया कुंडलियाँ मोहन भाई, बधाई
ReplyDeleteवाह वाह लाजवाब कुण्डलिया छंद लिखे है आपने मोहन निषाद जी, उत्तम सृजन के लिए हार्दिक बधाई
ReplyDeleteभाव प्रवण कुण्डलिया छंद। बधाई
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सृजन मित्र ,,बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सृजन मित्र ,,बधाई
ReplyDeleteबड़ सुग्घर भईया 💐💐💐💐
ReplyDeleteबहुत बढ़िया विषय सृजन है भाई
ReplyDeleteगजब सुग्घर भाईजी
ReplyDeleteअबड बढ़िया भाई जी
ReplyDeleteगजब सुग्घर कुण्डलिया।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteगजब सुग्घर कुण्डलिया।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर सिरजन कुण्डडलियाँ छंद भाई जी।बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर बधाई हो
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर सिरजन कुंडलियां छंद के मोहन निषाद भाई आपला बहुत बहुत बधाई हो
ReplyDeleteतीनों कुंडलियाँ जानदार हे मोहन भाई...
ReplyDelete👌👌👍👍👏👏🌹🌹
जीवौ संसो छोड़ के, पर्यावरण बचाव।
नारी देवी मान के, रिश्ता नता निभाव।।
रिश्ता नता निभाव, लाँघिहौ झन मरजादा।
बेचावय झन लाज, उँखर करिहौ ए वादा।।
रख जिनगी खुशहाल खुशी के अमरित पीवौ।
संसो ला दौ छोड़, तहाँ सुख से सब जीवौ।।
👌👌👌👍👍👏👏👏🌹🌹🌹🌹
भाई गो.....