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Wednesday, July 8, 2020

कुण्डलिया छंद - नीलम जायसवाल

कुण्डलिया छंद - नीलम जायसवाल

(१)
वीणापाणी शारदा, कर मोरो उद्धार।
मोला तँय हा ज्ञान दे, अतका कर उपकार।।
अतका कर उपकार, मोर तँय अवगुण हरले।
दे विद्या के दान, अपन तँय सेवक करले।।
ओखर जग मा नाम, बसे तँय जेखर वाणी।
दाई आशा मोर, तहीं हस वीणापाणी।।

(२)
गुरु के चरण पखार लव, मन ले देवव मान।
गुरु के किरपा ले बनय, मूरख हा गुणवान।।
मूरख हा गुणवान, चतुर की निरमल बनथे।
जेखर पर गुरु हाथ, उही आकाश म तनथे।।
जइसे गरमी घाम, छाँव निक लागे तरु के।
वइसे शीतल होय, बचन हा हरदम गुरु के।

(३)
गरहन लागिस चाँद ला, होगे ओ हर लाल।
थोरिक बेरा ले रहिस, ओखर उप्पर काल।।
ओखर उप्पर काल, धरम हा अइसन कइथे।
सूतक जबले होय, सबो झन लाँघन रइथे।।
कइथे जी विज्ञान, नहीं मानौ गा अलहन।
सब्बो करलव काम,रहय जब लागे गरहन।।

(४)
सँगवारी सँग गय पहा, कोरी अउ दू साल।
सात जनम के साथ हे, रहिथन हम खुशहाल।।
रहिथन हम खुशहाल, जगत ले का करना हे।
दुख-सुख लेबो बाँट, सँग म जीना मरना हे।।
चार मुड़ा ममहाय, फुले जीवन फुलवारी।
जेखर नाम उपेन्द्र, उही मोरे सँगवारी।।

रचनाकार - नीलम जायसवाल
भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़

6 comments:

  1. सुग्घर रचना दीदी

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  2. बहुत सुग्घर सृजन, बहुत बधाई

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  3. बड़ सुग्घर भावपूर्ण कुण्डलिया

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  4. बहुत सुन्दर दीदी 👌👌💐💐🙏

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  5. बहुत बढ़िया कुंडलियाँ बहन...
    आखिरी वाले तो अउ अंतस ले
    निकले भाव ल बढ़िया पिरोए..
    बहुत बहुत बधाई बहन
    🌹🌹👍👏👌🙏

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    1. धन्यवाद बड़े भइया।

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