गुरु पूर्णिमा विशेषांक-2020 ,छंद परिवार
सोरठा :- कन्हैया साहू 'अमित'
पायलगी जोहार, अरुण निगम गुरवर सदा।
करय 'अमित' गोहार, जिनगी भर करहू दया।।
लेवँव गुरुवर नाँव, संझा बिहना रात दिन।
धन्य भाग्य सहराँव, छंद खजाना पाय हँव।।।
गुरु के कहना सार, गोठ सुजानी हे कथे।
बाँकी बात बिसार, झूठ लबारी जग भरे।।
गुरु ले पा के ज्ञान, छंद सृजन मैं अब करँव।
झन आवय अभिमान, अंतस मा जी थोरको।।
सुग्घर सोच विचार, उपजय मन मा मोर गुरु।
राखव मया दुलार, मोरो जिनगी भर इहाँ।।
सदा नवावँव माथ, मानव बड़का ईश ले।
झन छूटय गुरु साथ, जीयत भर रद्दा बता।।
'अमित' ज्ञान के भीख, माँगत हँव मैं हा बने।
सहज सियानी सीख, तुँहर सिखोना सब हरय।।
मोर काय औकात, लिखलँव कोनो छंद ला।
रद्दा रहव बतात, पायलगी डंडा शरन।।
कन्हैया साहू 'अमित'
परशुराम वार्ड भाटापारा,
जिला-बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
गोठबात~9200252055
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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
चेला के चरचा चले, बढ़े गुरू के शान।
नता गुरू अउ शिष्य के, जग मा हवै महान।
जग मा हवै महान, गुरू के सब जस गावै।
दुःख दरद दुरिहाय, खुशी जीवन मा लावै।
सत के डहर बताय, झड़ाये झोल झमेला।
गुरू हाथ ला थाम, कमावै यस जस चेला।
जीवन मा उल्लास के, रंग गुरू भर जाय।
गुरू भक्ति सबले बड़े, देवन माथ नवाय।
देवन माथ नवाय, गुरू के सुमिरन करके।
अँधियारी दुरिहाय, गुरू दीया कस बरके।
गुणी गुरू के ग्यान, करे निर्मल तन अउ मन।
जौने गुरू बनाय, सुफल हे तेखर जीवन।।
डगमग डगमग पग करे, जिवरा जब घबराय।
रद्दा सबो मुँदाय तब, आशा गुरू जगाय।
आशा गुरू जगाय, उबारे जीवन नैया।
खुशी शांति के ठौर, गुरू के पावन पैया।
डर जर दुख जर जाय, बरे अन्तस मन जगमग।
गुरू कृपा जब होय, पाँव हाले नइ डगमग।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा (छग)
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पद्धरि छंद
सद्ग्रंथ सहीं हे गुरु हमार।
सच ला धराथे छाँट निमार।
गुरु नित्य बताथे ज्ञान सार।
नइ होवन देवय भूमि भार।
जिनगी मा सद्आचरण धार।
गुरु देही जियते जियत तार।
हे समरथ गुरु के अरुण नाँव।
मन छूथे नित दिन उँखर पाँव।
मँय रहँव सदा सानिध्य छाँव।
मँय रहँव सदा सानिध्य छाँव।
-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
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गीतिका छंद
बाट देखाथे सरग के , यम - नगर ले मोड़ के।
जिंदगी मा नइ मिलय जी,देव गुरु ला छोड़ के।
अंग भर मा गर्द चुपरौं, मँय ह गुरु के गोड़ के।
गुरु-चरण बंदन करौ मँय , हाथ दूनों जोड़ के।।
विरेन्द्र कुमार साहू , साधक सत्र -9
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कुंडलियाँ
अंतिम दिवस असाड़ के , गुरु पूर्णिमा आय ।
सावन महिना साधना , करथे ओ सुख पाय ।।
करथे ओ सुख पाय ,करव जी गुरु के पूजा ।
नइहे गुरू समान ,जगत मा कोनो दूजा ।।
गुरू हमर भगवान ,संग मा रहिथे पल छिन ।
गुरू परब हे आय ,असाड़ हवै दिन अंतिम।।
ज्ञान तिजोरी खोलके ,बाॅटय सबला ज्ञान ।
करव गुरू के बंदना , गुरूदेव भगवान ।।
गुरूदेव भगवान ,ज्ञान के पाठ पढा़वै ।
सत् के रस्ता रेंग , गुरूजी हा समझावै ।।
करव बंदगी आज ,चलव सब ओरी ओरी ।
बइठे हे गुरुदेव , खोलके ज्ञान तिजोरी।।
धरलव गाॅठी बांधके ,देय गुरू सतनाम ।
जियत मरत ले ये सदा ,आही सबके काम ।
आही सबके काम ,गुरू के अमरित बानी ।
बहिथे जइसे धार , नदी गंगा अस पानी ।।
अरूण निगम गुरुदेव ,बनिस अॅधरा के लाठी ।
लगन लगा के आज , बांधके धरलव गाॅठी ।।
गुरू ज्ञान ला पाय बर ,गइस कृष्ण अउ राम ।
अतियाचारी जब बढ़े ,तब तब आइस काम ।।
तब तब आइस काम ,पाप के नाश करे बर ।
रचिस नवा इतिहास , धरम के मान रखे बर
पा जाथे भगवान , करै जे गुरू ध्यान ला ।
कहिथे संत सुजान ,पियव जी गुरू ज्ञान ला ।।
साधक कक्षा 10
परमानंद बृजलाल दावना
भैंसबोड (धमतरी)
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सरसी छंद-
पिता तुल्य तैं हे गुरुवर श्री, पूरा करबे आस।
मोर भितर के मइल हटाके, भरदे सुघर उजास ।।
ए दुनियादारी के चक्कर, मन हाबय बउराय।
रक्षा धागा बाँध कलाई, लेवे नाथ बँचाय।।
देव बृहस्पति कस बन जाबे, मैं हाबवँ मतिमंद।
झन पाववँ मैं तोर हृदय के, दरवाजा ला बंद।।
जिनगी डोंगा डगमगात हे, बूड़ जही मँझधार।
तहीं डोंगहा बनके गुरुवर, लेबे आज उबार।।
मन डोरी ला तोर चरण मा, बाँध रखौं थिरबाँव।
दे असीस सिर ऊपर छाहित, राहय किरपा छाँव ।।
चोवा राम 'बादल'
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गुरुशरण मा अनन्य चेला के लक्षण
१. गुरु ले ज्ञान पाये बर ललाय रहै ।
२. गुरु के बात ला पथरा मा पारे दांँड़ समझै
३. गुरु ऊपर अँखमुन्दा भरोसा करइया ।
४. गुरु बर कभू नइ डगमगाने वाला श्रद्धा ।
५. गुरु ला अर्पण करे जिनिस बर हरहिन्छा।
६.गुरु के आगू नवके रहइया ।
७. गुरुसेवा बर एक गोड़ मा खड़े रहइया।
८. गुरु शरण मा अपन अस्तित्व ला सँउपइया
९. गुरु के लकठा रहे बर ललइया ।
१०. गुरु ला सबले बढ़के मान देवइया ।
११. गुरु के नता गोता मीत के मान करइया।
१२. साधक गुण ला धरइया ।
१३. गुरुकारज बर लगन लगइया।
१४. गुरु के मन जीतइया ।
१५. गुरु के पाछू चलइया ।
१६. गुमान ले दूरिहा रहइया ।
१७. गुरु बर कृतज्ञता भाव रखइया ।
१८. गुरु के बदला दूसर नइ ये भाव रखइया ।
१९.गुरु ला सरबस समझइया ।
२०. दूसर ला दुख नइ देवइया ।
२१.आने चेला/चेली मन बर दया मया रखइया
२२. तन मन धन जिनगी तजे बर तियार ।
२३. गुरु भाई/बहिनी के बढ़ती करइया ।
२४. कतको ज्ञान मिल जाय तभो गुरु के छत्रछाया मा अनन्यता भाव रखइया ।
शोभामोहन श्रीवास्तव
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*बरवै छंद*
गुरु सेवा ले मिलथे, अनुपम ज्ञान।
गुरु चरणन ला जाँनव,सरग समान। 1।
गुरु पँउरी मा निशदिन,नावँव माथ।
मोर मुड़ी मा रखदव, गुरुवर हाथ।2
गुरु के वाणी लागय ,भले कठोर।
अँधियारी जिनगी मा, लावँय भोर।3।
गुरु के महिमा कइसे ,करँव बखान।
मुड़ी कटाके सौदा,सस्ता जान।4।
गुरु ईश्वर ले बढ़के, हवँय महान।
गुरु हर लेथे मन के ,सब अज्ञान।5।
सूरुज चंदा चमके,दिन अउ रात।
गुरु के आघू जग हा ,हे नवजात।6
भाव भजन से करलव ,गुरु के भक्ति।
गुरु पूजा से मिलथे,मन ला शक्ति।7
एकलव्य अर्जुन के ,जइसे शिष्य।
नइहे वर्तमान अउ,भूत भविष्य।8
नानुक बीजा बनथे, जइसे पेड़।
जड़ ला गुरु हा थामँय,बनके मेड़।9
गुरु ला जानँव ब्रम्हा,विष्णु महेश।
भीतर के सब भागय ,दुःख कलेश।10
गुरु मा भीतर सउँहत ,ग्रंथ पुराण।
ज्ञान हथौड़ी करथे ,युग निर्माण।11
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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दोहा छंद - बोधन राम निषादराज
बिन गुरु भगती नइ मिलै,मिलै नहीं जी ज्ञान।
चलबे गुरु के संग तँय,पाबे तँय भगवान।।
सत् के डोंगा बइठ के,गुरु ला करौं प्रणाम।
गुरु के रद्दा में चलँव,मिलही प्रभु के धाम।।
गुरु के भगती पाय के,बन जाबे तँय धीर।
गुरु के छाया में रबे, झन होबे गंभीर।।
सुघ्घर पाबे ग्यान ला,मिटही सब अग्यान।
किरपा गुरु के होय ले,बढ़ जाही जी मान।।
हाथ जोर बिनती करँव,चरन परँव मँय तोर।
हे गुरुवर तँय ग्यान दे,जिनगी बनही मोर।।
गुरु के बानी सार हे,गुरु के ग्यान अपार।
जे मनखे ला गुरु मिलय,ओखर हे उद्धार।।
भक्ति शक्ति दूनों मिलय,मिलय ग्यान भंडार।
गुरु पद में तँय ध्यान धर,गुरु हे तारनहार।।
गुरु चरनन मा ध्यान हो,करले सदा प्रणाम।
सत् के रद्दा मा चलव,बनथे बिगड़े काम।।
गुरु बिन जग अँधियार हे,ज्ञान कहाँ ले आय।
हरि दरशन हा नइ मिलय,मुक्ति कहाँ ले पाय।।
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छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)
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दोहा छंद
गुरु के करबो वंदना, हाथ जोड़ सत्कार।
गुरु करथें कल्याण जी, जय जय जय जोहार।।
गुरु के किरपा पाय जे, करुणा भाव अपार।
देवय आसिरवाद ता, माने संकट हार।।
दीया बनय अंधियार मा, करथें तेज प्रकाश।
पाके गुरु ला शिष्य हा, छू लेथे आकाश।।
गुरु बिन जिनगी तुच्छ हे, गुरुवर देवय ज्ञान।
विमुढ़ अज्ञानी ला बना, देवय अबड़ सुजान।।
गुरुवर अरुण निगम सदा, करे सुजानी गोठ।
गूढ़ भाव के ज्ञान दे, करै छंद ला पोठ।।
बीच बीच मा लेखनी, मा करवाय सुधार।
अउ छन्द छ परिवार ला, करथें मया दुलार।।
छन्द विधा ला हे चुने, करे व्याकरण गोठ।
भाषा छत्तीसगढ़ के, होवय समृद्ध पोठ।।
रामकली कारे बालको कोरबा
छत्तीसगढ़
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पहली बंदन गुरु देव ला,
जोर के दूनो हाथ।
किरपा करहु मोर उपर,
जिनगी नवे रहय माथ।।
आशीष अइसन देहु गुरु,
काज सुफल होय मोर।
बिरथा बाधा ल टोर के,
रहु साहित पुरजोर।।
मिनेश कुमार साहू
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दोहा
गुरुवर अरुण महान जी,देत छंद के ज्ञान।
बोधन आशा ज्ञानु के,सदा रखव तुम मान।
गुरु के महिमा से बढ़य,होवय जग उजियार।
ज्ञान जोत सुग्घर जलय,दूर भागय अँधियार।
माटी गीला पिलपिला, गुरुजी हम ला जान।
तोर शरण मा आय हौं,बनँव सुघर इंसान।
विजेन्द्र वर्मा
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आल्हा छंद-
गजानंद गुरु महिमा गावय, लिख लिख सुग्घर आल्हा छंद ।
हे गुरु ज्ञानी ज्ञान बता जा, मँय लइका हँव जी मतिमंद ।।
तीन लोक त्रिभुवना गूँजय, गुरु जी के तो जय जयकार ।
शबद शबद अउ आखर आखर, गुरु के महिमा अपरंपार ।।
किरपा गुरु के पाके लाँघय, लँगड़ा तक हा उच्च पहाड़ ।
अँधरा हा सुख सपना देखय, गूँगा मारय जोर दहाड़ ।।
जनम ददा दाई हा देवय, गुरु हा देवय जग संस्कार ।
बुरा भला के राह बतावय, दीन दुखी सेवा उपकार ।।
गुरु ला बड़ के कोन भला हे, ये दुनिया मा जी भगवान ।
ज्ञान जोत के अलख जगावय, सबला मानय एक समान ।।
बिन गुरु के नइ तो होवय जी, भवसागर ले बेड़ापार ।
माथ नवावँव मँय तो गुरु के, चरण कमल मा बारम्बार ।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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दोहा
पाँव परँव गुरुवर तुहर, देवव मोला ज्ञान।।
जम्मों गलती माफ कर, रहव नहीं अनजान।।
आए गुरुवर हँव शरण, पाएँ तोला पोठ।।
जिनगी के रद्दा दिखय , करिहौ अइसन गोठ।।
चरण धोव मँय हर तुँहर , पाप मोर धुल जाय।।
दव सबला आशीष जी, नाम तोर सब गाय।।
भाव फूल मन मा धरे, श्रध्दा भरे अपार।।
कारी बदरी छाँटके,.करिहौ गुरु उद्धार।।
करत अरज हे गुल सुनव, सदा देव आशीष।।
झन होवय गलती कभू, विनती मोर बिशेष।।
सोना चाँदी का सकँव, चढा़ सकत हँव फूल।।
भाव भक्ति श्रद्धा सहित, माथ लगय पद धूल ।।
शिक्षा भिक्षा याचना, पावँव तुँहरे पास।।
अनते काबर जाँव मँय ,शरण तोर हँव पास ।।
रद्दा तोरे रेंग के, जिनगी होय उजास ।।
सगरी अँधियारी छँटय, फइलय जी परकास ।।
धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
.....छंद साधिका 11
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: दोहा छंद-
पहिली गरु दाई ददा, सही गलत समझाय।
अपन मया के छॉंव मा, जिनगी ला सिर जाय।।
दूसर गुरु अॅंधकार ला, मेटय देके ज्ञान।
शिक्षा जोत जलाय के, सदा बढ़ावय मान।।
तीसर गुरुवर मोर जी, अपने गॉंव समाज।
रहिथे हरदम साथ मा, करे समीक्षा काज।।
चौथा गुरु के परनाम हे, मन मा जेकर खोट।
करनी मोर सुधारथे, मार मार के चोट।।
सबो चरन के धूल गुरु, धरॅंव सदा मॅंय माथ।
सफल करव गुरु काज ला, पकड़े रखहू हाथ।।
किरपा कर आशीष दय, जिनगी दवय सुधार।
गुरुवर बंदी काटके, देवय भव ले तार।।
आशा बोधन निगम, मथुरा चोवा ज्ञानु।
हरत हवय अॅंधकार गुरु, बने छंद बर भानु।।
मनोज कुमार वर्मा
छंद साधक 11
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शोभमोहन श्रीवास्तव: (जयकारी छंद)
गुरुबर मोर सुनौ गोहार ।
ड़ोंगा मोर लगा दौ पार ।।
रहिथौं तुँहर भरोसा भार।
कलकुत ड़ंडासरन तुँहार ।।
रद्दा मा हे अड़बड़ आड़ ।
देवै करम कहूँ झन छाँड़ ।।
रेंगत हावँव खारे -खार ।
गुरुबर मोर सुनौ गोहार ।।
हौ उदार बड़हर महराज।
हाथ तुहर अब हावै लाज।।
उतरे दहरा पार अपार ।
गुरुबर मोर सुनौ गोहार ।।
ज्ञानमूर्ति हौ हे भगवान ।
मोला निचट अड़ानी जान।।
मोर उपर कर दौ उपकार ।
गुरबर मोर सुनौ गोहार ।।
फरसा ज्ञान तुहँर बड़ धार ।
काटौ मन घपटे अँधियार ।।
बिनती करथौं बारम्बार ।।
गुरबर मोर सुनौ गोहार ।।
शोभामोहन श्रीवास्तव
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मीता अग्रवाल: त्रिभंगी छंद
गुरु होथे कृपालु,होथे दयालु,ज्ञान दान के, खान हरै।
पूजेंजगसारा,ज्ञानअधारा,अंधकार ला दूर करै।
करथे उजियारा, अमरितधारा,बूँद बूँद झर धार बनै।
मूर्ख मति सरला,गुन ले भर दे,बड भागी हा, गुरु गुनै।।
मीता अग्रवाल मधुर रायपुर
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।।रोला छंद।।
गुरु के बिन जी ज्ञान,कहाँ अब सबला मिलथे।
मिले ज्ञान हा सार,फूल हिरदे मा खिलथे।।
कहना मोरो मान, शरण मा गुरु के आवव।
पाके बढिया ज्ञान, करम ला अपन जगावव।।
रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर छत्तीसगढ़
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घनाक्षरी
गुरु बिन भवपार, कोन लगावय पार।
चारो मूड़ा अँधियार, घपटे संसार हे।
लोभ मोह विकराल, अपन फँसाये जाल।
सबो कोती डेरा डाल, मचे हाहाकार हे।
मनखे नदानी करे, रोज मनमानी करे।
बिरथा जनम करे, दुख भरमार हे।
ऐती ओती छोड़छाड़, मोह माया फेंक फाँक।
गुरु के शरण आव, तभे बेड़ा पार हे।
ज्ञानु
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कुंडलियाँ
गुरुवर के आशीष ले,मिलथे ज्ञान प्रकाश।
सद्गुरु महिमा हे अबड़,करय दोष के नाश।
करय दोष के,नाश सदा जी,जइसे दरपन।
मँय अज्ञानी,करिहौ गुरुवर ,मारग दरशन।
बिन स्वारथ गुरु,करय भलाई,जइसे तरुवर।
चरण कमल मा ,माथ नवावँव,बंदवँ गुरुवर।
सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
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कुंडलियाँ
सादर वंदन आप के,चरण कमल गुरुदेव ।
अंतस में उजियार के, अपन सही कर लेव ।।
अपन सही कर लेव,आप के जस मैं गावौं।
दिन शुभ आइस आज,आशीरबाद ल पावौं ।
कह तोरन कर जोर,ग्यान के बरसै बादर ।
भींज जवै मति मोर,मया मा गदगद सादर ।।
तोरनलाल साहू
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ज्ञानू कवि: चौपाई छंद
गुरु बिन दीया कोन जलावै।अंतस के अँधियार मिटावै।।
अमरित जइसे हे गुरुबानी।सफल बनाथे ये जिनगानी।।
अज्ञानता ल हमर मिटाथे।का सच अउ का गलत बताथे।।
भरे विकार ल दूर भगाथे।सदा सही ही राह दिखाथे।।
कतका महिमा आज बतावँव।मूढ़ मंदमति मैं का गावँव।।
एक तोर बस हवय सहारा।मिट जाये जग ले अँधियारा।।
गुरु बिन सबझन भटके रसता।गुरु बिन जिनगी लागय सस्ता।।
भरे ज्ञान के भंडारा गुरु।गुरु बिन जिनगी नइ होवय शुरु।।
ज्ञानु
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दोहा - अजय अमृतांशु
गुरु के कर लव बंदगी,गुरु होथे सिरमौर।
गुरु बिन कुछ सिरजय नहीं, मिलय कहूँ ना ठौर।।
ईश्वर ले पहिली हवय,जग में गुरु के मान।
गुरु ला पहिली पूजबे,तब मिलही भगवान।।
भाटापारा,छत्तीसगढ़
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दोहा
पारस जइसे होत हे , सदगुरु के सब ज्ञान ।
लोहा सोना बन जथे , देथे जेहा ध्यान ।।
देथे शिक्षा एक सँग , सदगुरु बाँटय ज्ञान ।
कोनों कंचन होत हे , कोनों काँछ समान ।।
सत मारग मा रेंग के , बाँटय सबला ज्ञान ।
गुरू कृपा ले हो जथे , मूरख हा विद्वान ।।
छोड़व झन अब हाथ ला , रस्ता गुरु देखाय ।
दूर करय अँधियार ला , अंतस दिया जलाय ।।
नाम गुरू के जाप कर , तैंहर बारंबार ।
मिलही रस्ता ज्ञान के , होही बेड़ा पार ।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
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सार छंद
गुरुजी तुँहर मया के छँइहा,रोज मिलत हे मोला।
किरपा पा के हेम बनत हे , ये माटी के चोला।
मोला छंद सिखावत हावय, जिनगी मोर सुधारे।
कतको गल्ती करत हवव मय, गुरु मोला सँवारे।
मोर मुड़ी मा हाथ रखे हे,रोजे असीस देवय।
सबके डोंगा पार लगावत मोरो डोंगा खेवय।
एक करे दिन रात मोर बर, मय हा आगू जावँव।
छंद विधा ला सीख सीख के,जग मा नाव कमावँव।
धन्य धन्य हे भाग मोर गा, अइसन गुरु ला पाहँव।
ज्ञान पाय बर तोर चरण मा, मय हा माथ नवाहँव।
हीरालाल साहू "समय"
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कुंडलियाँ
मिल पाही संसार ला, गुरू बिना कब ज्ञान।
सुरुज बरोबर ए गुरू, सुघ्घर करय बिहान। ।
सुघ्घर करय बिहान, हरय मन के अँधियारी।
बन के कभू सियान, कभू पक्का सँगवारी। ।
रद्दा ला चतवार, करय हल जम्मो मुश्किल।
पाए गुरू असीस, सरग के सुख जाही मिल।
-दीपक निषाद-बनसाँकरा (सिमगा)
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*रोला छंद*:-
(1)
जे देथे जी ज्ञान, जगत मा गुरू कहाथे ।
हरथे मन अज्ञान, मान ला सबके पाथे ।
करथे गा उजियार, बरय जस दियना बाती ।
मेटय सब अँधियार, भरम के जे दिन- राती ।।
(2)
सदा नवावँव माथ, चरण मा तोरे गुरुवर ।
धरती के सम्मान, झुकय जस फर के तरुवर ।
अंतस ले कर जोर, तोर मँय महिमा गावँव ।
"मोहन " तन मा साँस, रहत ले नइ बिसरावँव ।।
*सरसी छंद*:-
माथ नवावँव गुरु चरनन मा, महिमा करँव बखान ।
जेकर किरपा ले पाये हँव, ये जिनगी के ज्ञान ।।1।
जब-तक सूरज-चंदा रइही, अउ ये धरा-अगास ।
अंतस मा गुरु मोर समाके, पूरा करही आस ।।2।।
करँव वंदना मँय कर जोरे, पावँव आशिर्वाद ।
छाहित रहिके देवव गुरुवर, अपने ज्ञान- प्रसाद ।।3।।
छंदकार- मोहन लाल वर्मा
पता :- ग्राम- अल्दा,वि.खं.तिल्दा,
जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)🙏🏻
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दोहा छंद
गुरुवर तुहँरे चरण में, सदा नवाववँ माथ
किरपा करके शीश में, धर देहू गुरु हाथ।।
जबले आये चरण में, भरगे मन में ज्ञान।
निच्चट अड़ही मैं रहें,गुरू बनाय सुजान।।
कड़हा कोचर मैं बने,गिरे परे मतिमंद।
गुरू कृपा बरसे कहो,लिखथौं दोहा छंद ।।
वाणी ले अमरित झरे, माने एक समान।
गुरू चरण मा हम सबो , पाये लगेन स्थान।।
मात पिता गुरुवर हमर,गुरू हरे भगवान।
ज्ञान कान में ड़ारथे ,झन करहू अभिमान ।।
आके मँय गुरु चरण में,मिलत ज्ञान के बात ।
कलम चलत हे रोज के, दिन हो चाहे रात।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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श्लेष चन्द्राकर 9: कुण्डलिया छंद
बानी मा गुरुदेव के, सरस्वती के वास।
दुनिया के सिरतोन गा, मनुख हरय ओ खास।।
मनुख हरय ओ खास, राष्ट्र निर्माता होथे।
देथे ओ संस्कार, ज्ञान के बीजा बोथे।।
बने पढ़ाथे पाठ, सुनाके गीत कहानी।
सुनव लगा के ध्यान, सदा सब गुरु के बानी।।
श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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*वंदन गुरु चरन (कुण्डलियाँ छंद)*
वंदन गुरु चरन करँव , अपन लगा मँय ध्यान ।
रद्दा सत के मैं धरँव , गुरु मोर भगवान ।।
गुरु मोर भगवान , गुरुवर के जस गाले ।
देय गुरु हे ज्ञान , जान के दर्शन पाले ।।
गुरु ज्ञान के खान , लगा ले माथा चंदन ।
मिलय नहीं हर बार , गुरु के करलव वंदन ।।
*गुरु मोर भगवान ( आल्हा छंद)*
पहिली पूजव घर के दाई , ददा संग पुरखा भगवान ।
आशीर्वाद सबो के हावय , जउन गुरु पहिली हे जान ।।
गुरु चरण मा माथ नवाँ के , करँव सुमरनी मैं हर तोर ।
गुरु मोर भगवान बरोबर , अरजी विनती सुनलव मोर ।।
जउन गुरु देइन हे मोला , जिनगी मा जी अब्बड़ ज्ञान ।
मैं अड़हा मतिमंद रहे हँव , पाये हँव सुग्घर वरदान ।।
जिनगी ला जी हमर सँवारे , गुरु ज्ञान देके उपहार ।
गुरु देव के महिमा भारी , लाथे जिनगी मा उजियार ।।
गुरु देव के करँव सुमरनी , जीखर चरण म चारो धाम ।
सादर उनला नमन करत हँव , गुरु नाम ले बनथे काम ।।
मयारू मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा ,
जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.
सोरठा :- कन्हैया साहू 'अमित'
पायलगी जोहार, अरुण निगम गुरवर सदा।
करय 'अमित' गोहार, जिनगी भर करहू दया।।
लेवँव गुरुवर नाँव, संझा बिहना रात दिन।
धन्य भाग्य सहराँव, छंद खजाना पाय हँव।।।
गुरु के कहना सार, गोठ सुजानी हे कथे।
बाँकी बात बिसार, झूठ लबारी जग भरे।।
गुरु ले पा के ज्ञान, छंद सृजन मैं अब करँव।
झन आवय अभिमान, अंतस मा जी थोरको।।
सुग्घर सोच विचार, उपजय मन मा मोर गुरु।
राखव मया दुलार, मोरो जिनगी भर इहाँ।।
सदा नवावँव माथ, मानव बड़का ईश ले।
झन छूटय गुरु साथ, जीयत भर रद्दा बता।।
'अमित' ज्ञान के भीख, माँगत हँव मैं हा बने।
सहज सियानी सीख, तुँहर सिखोना सब हरय।।
मोर काय औकात, लिखलँव कोनो छंद ला।
रद्दा रहव बतात, पायलगी डंडा शरन।।
कन्हैया साहू 'अमित'
परशुराम वार्ड भाटापारा,
जिला-बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
गोठबात~9200252055
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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
चेला के चरचा चले, बढ़े गुरू के शान।
नता गुरू अउ शिष्य के, जग मा हवै महान।
जग मा हवै महान, गुरू के सब जस गावै।
दुःख दरद दुरिहाय, खुशी जीवन मा लावै।
सत के डहर बताय, झड़ाये झोल झमेला।
गुरू हाथ ला थाम, कमावै यस जस चेला।
जीवन मा उल्लास के, रंग गुरू भर जाय।
गुरू भक्ति सबले बड़े, देवन माथ नवाय।
देवन माथ नवाय, गुरू के सुमिरन करके।
अँधियारी दुरिहाय, गुरू दीया कस बरके।
गुणी गुरू के ग्यान, करे निर्मल तन अउ मन।
जौने गुरू बनाय, सुफल हे तेखर जीवन।।
डगमग डगमग पग करे, जिवरा जब घबराय।
रद्दा सबो मुँदाय तब, आशा गुरू जगाय।
आशा गुरू जगाय, उबारे जीवन नैया।
खुशी शांति के ठौर, गुरू के पावन पैया।
डर जर दुख जर जाय, बरे अन्तस मन जगमग।
गुरू कृपा जब होय, पाँव हाले नइ डगमग।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा (छग)
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पद्धरि छंद
सद्ग्रंथ सहीं हे गुरु हमार।
सच ला धराथे छाँट निमार।
गुरु नित्य बताथे ज्ञान सार।
नइ होवन देवय भूमि भार।
जिनगी मा सद्आचरण धार।
गुरु देही जियते जियत तार।
हे समरथ गुरु के अरुण नाँव।
मन छूथे नित दिन उँखर पाँव।
मँय रहँव सदा सानिध्य छाँव।
मँय रहँव सदा सानिध्य छाँव।
-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
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गीतिका छंद
बाट देखाथे सरग के , यम - नगर ले मोड़ के।
जिंदगी मा नइ मिलय जी,देव गुरु ला छोड़ के।
अंग भर मा गर्द चुपरौं, मँय ह गुरु के गोड़ के।
गुरु-चरण बंदन करौ मँय , हाथ दूनों जोड़ के।।
विरेन्द्र कुमार साहू , साधक सत्र -9
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कुंडलियाँ
अंतिम दिवस असाड़ के , गुरु पूर्णिमा आय ।
सावन महिना साधना , करथे ओ सुख पाय ।।
करथे ओ सुख पाय ,करव जी गुरु के पूजा ।
नइहे गुरू समान ,जगत मा कोनो दूजा ।।
गुरू हमर भगवान ,संग मा रहिथे पल छिन ।
गुरू परब हे आय ,असाड़ हवै दिन अंतिम।।
ज्ञान तिजोरी खोलके ,बाॅटय सबला ज्ञान ।
करव गुरू के बंदना , गुरूदेव भगवान ।।
गुरूदेव भगवान ,ज्ञान के पाठ पढा़वै ।
सत् के रस्ता रेंग , गुरूजी हा समझावै ।।
करव बंदगी आज ,चलव सब ओरी ओरी ।
बइठे हे गुरुदेव , खोलके ज्ञान तिजोरी।।
धरलव गाॅठी बांधके ,देय गुरू सतनाम ।
जियत मरत ले ये सदा ,आही सबके काम ।
आही सबके काम ,गुरू के अमरित बानी ।
बहिथे जइसे धार , नदी गंगा अस पानी ।।
अरूण निगम गुरुदेव ,बनिस अॅधरा के लाठी ।
लगन लगा के आज , बांधके धरलव गाॅठी ।।
गुरू ज्ञान ला पाय बर ,गइस कृष्ण अउ राम ।
अतियाचारी जब बढ़े ,तब तब आइस काम ।।
तब तब आइस काम ,पाप के नाश करे बर ।
रचिस नवा इतिहास , धरम के मान रखे बर
पा जाथे भगवान , करै जे गुरू ध्यान ला ।
कहिथे संत सुजान ,पियव जी गुरू ज्ञान ला ।।
साधक कक्षा 10
परमानंद बृजलाल दावना
भैंसबोड (धमतरी)
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सरसी छंद-
पिता तुल्य तैं हे गुरुवर श्री, पूरा करबे आस।
मोर भितर के मइल हटाके, भरदे सुघर उजास ।।
ए दुनियादारी के चक्कर, मन हाबय बउराय।
रक्षा धागा बाँध कलाई, लेवे नाथ बँचाय।।
देव बृहस्पति कस बन जाबे, मैं हाबवँ मतिमंद।
झन पाववँ मैं तोर हृदय के, दरवाजा ला बंद।।
जिनगी डोंगा डगमगात हे, बूड़ जही मँझधार।
तहीं डोंगहा बनके गुरुवर, लेबे आज उबार।।
मन डोरी ला तोर चरण मा, बाँध रखौं थिरबाँव।
दे असीस सिर ऊपर छाहित, राहय किरपा छाँव ।।
चोवा राम 'बादल'
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गुरुशरण मा अनन्य चेला के लक्षण
१. गुरु ले ज्ञान पाये बर ललाय रहै ।
२. गुरु के बात ला पथरा मा पारे दांँड़ समझै
३. गुरु ऊपर अँखमुन्दा भरोसा करइया ।
४. गुरु बर कभू नइ डगमगाने वाला श्रद्धा ।
५. गुरु ला अर्पण करे जिनिस बर हरहिन्छा।
६.गुरु के आगू नवके रहइया ।
७. गुरुसेवा बर एक गोड़ मा खड़े रहइया।
८. गुरु शरण मा अपन अस्तित्व ला सँउपइया
९. गुरु के लकठा रहे बर ललइया ।
१०. गुरु ला सबले बढ़के मान देवइया ।
११. गुरु के नता गोता मीत के मान करइया।
१२. साधक गुण ला धरइया ।
१३. गुरुकारज बर लगन लगइया।
१४. गुरु के मन जीतइया ।
१५. गुरु के पाछू चलइया ।
१६. गुमान ले दूरिहा रहइया ।
१७. गुरु बर कृतज्ञता भाव रखइया ।
१८. गुरु के बदला दूसर नइ ये भाव रखइया ।
१९.गुरु ला सरबस समझइया ।
२०. दूसर ला दुख नइ देवइया ।
२१.आने चेला/चेली मन बर दया मया रखइया
२२. तन मन धन जिनगी तजे बर तियार ।
२३. गुरु भाई/बहिनी के बढ़ती करइया ।
२४. कतको ज्ञान मिल जाय तभो गुरु के छत्रछाया मा अनन्यता भाव रखइया ।
शोभामोहन श्रीवास्तव
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*बरवै छंद*
गुरु सेवा ले मिलथे, अनुपम ज्ञान।
गुरु चरणन ला जाँनव,सरग समान। 1।
गुरु पँउरी मा निशदिन,नावँव माथ।
मोर मुड़ी मा रखदव, गुरुवर हाथ।2
गुरु के वाणी लागय ,भले कठोर।
अँधियारी जिनगी मा, लावँय भोर।3।
गुरु के महिमा कइसे ,करँव बखान।
मुड़ी कटाके सौदा,सस्ता जान।4।
गुरु ईश्वर ले बढ़के, हवँय महान।
गुरु हर लेथे मन के ,सब अज्ञान।5।
सूरुज चंदा चमके,दिन अउ रात।
गुरु के आघू जग हा ,हे नवजात।6
भाव भजन से करलव ,गुरु के भक्ति।
गुरु पूजा से मिलथे,मन ला शक्ति।7
एकलव्य अर्जुन के ,जइसे शिष्य।
नइहे वर्तमान अउ,भूत भविष्य।8
नानुक बीजा बनथे, जइसे पेड़।
जड़ ला गुरु हा थामँय,बनके मेड़।9
गुरु ला जानँव ब्रम्हा,विष्णु महेश।
भीतर के सब भागय ,दुःख कलेश।10
गुरु मा भीतर सउँहत ,ग्रंथ पुराण।
ज्ञान हथौड़ी करथे ,युग निर्माण।11
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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दोहा छंद - बोधन राम निषादराज
बिन गुरु भगती नइ मिलै,मिलै नहीं जी ज्ञान।
चलबे गुरु के संग तँय,पाबे तँय भगवान।।
सत् के डोंगा बइठ के,गुरु ला करौं प्रणाम।
गुरु के रद्दा में चलँव,मिलही प्रभु के धाम।।
गुरु के भगती पाय के,बन जाबे तँय धीर।
गुरु के छाया में रबे, झन होबे गंभीर।।
सुघ्घर पाबे ग्यान ला,मिटही सब अग्यान।
किरपा गुरु के होय ले,बढ़ जाही जी मान।।
हाथ जोर बिनती करँव,चरन परँव मँय तोर।
हे गुरुवर तँय ग्यान दे,जिनगी बनही मोर।।
गुरु के बानी सार हे,गुरु के ग्यान अपार।
जे मनखे ला गुरु मिलय,ओखर हे उद्धार।।
भक्ति शक्ति दूनों मिलय,मिलय ग्यान भंडार।
गुरु पद में तँय ध्यान धर,गुरु हे तारनहार।।
गुरु चरनन मा ध्यान हो,करले सदा प्रणाम।
सत् के रद्दा मा चलव,बनथे बिगड़े काम।।
गुरु बिन जग अँधियार हे,ज्ञान कहाँ ले आय।
हरि दरशन हा नइ मिलय,मुक्ति कहाँ ले पाय।।
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छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)
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दोहा छंद
गुरु के करबो वंदना, हाथ जोड़ सत्कार।
गुरु करथें कल्याण जी, जय जय जय जोहार।।
गुरु के किरपा पाय जे, करुणा भाव अपार।
देवय आसिरवाद ता, माने संकट हार।।
दीया बनय अंधियार मा, करथें तेज प्रकाश।
पाके गुरु ला शिष्य हा, छू लेथे आकाश।।
गुरु बिन जिनगी तुच्छ हे, गुरुवर देवय ज्ञान।
विमुढ़ अज्ञानी ला बना, देवय अबड़ सुजान।।
गुरुवर अरुण निगम सदा, करे सुजानी गोठ।
गूढ़ भाव के ज्ञान दे, करै छंद ला पोठ।।
बीच बीच मा लेखनी, मा करवाय सुधार।
अउ छन्द छ परिवार ला, करथें मया दुलार।।
छन्द विधा ला हे चुने, करे व्याकरण गोठ।
भाषा छत्तीसगढ़ के, होवय समृद्ध पोठ।।
रामकली कारे बालको कोरबा
छत्तीसगढ़
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पहली बंदन गुरु देव ला,
जोर के दूनो हाथ।
किरपा करहु मोर उपर,
जिनगी नवे रहय माथ।।
आशीष अइसन देहु गुरु,
काज सुफल होय मोर।
बिरथा बाधा ल टोर के,
रहु साहित पुरजोर।।
मिनेश कुमार साहू
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दोहा
गुरुवर अरुण महान जी,देत छंद के ज्ञान।
बोधन आशा ज्ञानु के,सदा रखव तुम मान।
गुरु के महिमा से बढ़य,होवय जग उजियार।
ज्ञान जोत सुग्घर जलय,दूर भागय अँधियार।
माटी गीला पिलपिला, गुरुजी हम ला जान।
तोर शरण मा आय हौं,बनँव सुघर इंसान।
विजेन्द्र वर्मा
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आल्हा छंद-
गजानंद गुरु महिमा गावय, लिख लिख सुग्घर आल्हा छंद ।
हे गुरु ज्ञानी ज्ञान बता जा, मँय लइका हँव जी मतिमंद ।।
तीन लोक त्रिभुवना गूँजय, गुरु जी के तो जय जयकार ।
शबद शबद अउ आखर आखर, गुरु के महिमा अपरंपार ।।
किरपा गुरु के पाके लाँघय, लँगड़ा तक हा उच्च पहाड़ ।
अँधरा हा सुख सपना देखय, गूँगा मारय जोर दहाड़ ।।
जनम ददा दाई हा देवय, गुरु हा देवय जग संस्कार ।
बुरा भला के राह बतावय, दीन दुखी सेवा उपकार ।।
गुरु ला बड़ के कोन भला हे, ये दुनिया मा जी भगवान ।
ज्ञान जोत के अलख जगावय, सबला मानय एक समान ।।
बिन गुरु के नइ तो होवय जी, भवसागर ले बेड़ापार ।
माथ नवावँव मँय तो गुरु के, चरण कमल मा बारम्बार ।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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दोहा
पाँव परँव गुरुवर तुहर, देवव मोला ज्ञान।।
जम्मों गलती माफ कर, रहव नहीं अनजान।।
आए गुरुवर हँव शरण, पाएँ तोला पोठ।।
जिनगी के रद्दा दिखय , करिहौ अइसन गोठ।।
चरण धोव मँय हर तुँहर , पाप मोर धुल जाय।।
दव सबला आशीष जी, नाम तोर सब गाय।।
भाव फूल मन मा धरे, श्रध्दा भरे अपार।।
कारी बदरी छाँटके,.करिहौ गुरु उद्धार।।
करत अरज हे गुल सुनव, सदा देव आशीष।।
झन होवय गलती कभू, विनती मोर बिशेष।।
सोना चाँदी का सकँव, चढा़ सकत हँव फूल।।
भाव भक्ति श्रद्धा सहित, माथ लगय पद धूल ।।
शिक्षा भिक्षा याचना, पावँव तुँहरे पास।।
अनते काबर जाँव मँय ,शरण तोर हँव पास ।।
रद्दा तोरे रेंग के, जिनगी होय उजास ।।
सगरी अँधियारी छँटय, फइलय जी परकास ।।
धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
.....छंद साधिका 11
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: दोहा छंद-
पहिली गरु दाई ददा, सही गलत समझाय।
अपन मया के छॉंव मा, जिनगी ला सिर जाय।।
दूसर गुरु अॅंधकार ला, मेटय देके ज्ञान।
शिक्षा जोत जलाय के, सदा बढ़ावय मान।।
तीसर गुरुवर मोर जी, अपने गॉंव समाज।
रहिथे हरदम साथ मा, करे समीक्षा काज।।
चौथा गुरु के परनाम हे, मन मा जेकर खोट।
करनी मोर सुधारथे, मार मार के चोट।।
सबो चरन के धूल गुरु, धरॅंव सदा मॅंय माथ।
सफल करव गुरु काज ला, पकड़े रखहू हाथ।।
किरपा कर आशीष दय, जिनगी दवय सुधार।
गुरुवर बंदी काटके, देवय भव ले तार।।
आशा बोधन निगम, मथुरा चोवा ज्ञानु।
हरत हवय अॅंधकार गुरु, बने छंद बर भानु।।
मनोज कुमार वर्मा
छंद साधक 11
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शोभमोहन श्रीवास्तव: (जयकारी छंद)
गुरुबर मोर सुनौ गोहार ।
ड़ोंगा मोर लगा दौ पार ।।
रहिथौं तुँहर भरोसा भार।
कलकुत ड़ंडासरन तुँहार ।।
रद्दा मा हे अड़बड़ आड़ ।
देवै करम कहूँ झन छाँड़ ।।
रेंगत हावँव खारे -खार ।
गुरुबर मोर सुनौ गोहार ।।
हौ उदार बड़हर महराज।
हाथ तुहर अब हावै लाज।।
उतरे दहरा पार अपार ।
गुरुबर मोर सुनौ गोहार ।।
ज्ञानमूर्ति हौ हे भगवान ।
मोला निचट अड़ानी जान।।
मोर उपर कर दौ उपकार ।
गुरबर मोर सुनौ गोहार ।।
फरसा ज्ञान तुहँर बड़ धार ।
काटौ मन घपटे अँधियार ।।
बिनती करथौं बारम्बार ।।
गुरबर मोर सुनौ गोहार ।।
शोभामोहन श्रीवास्तव
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मीता अग्रवाल: त्रिभंगी छंद
गुरु होथे कृपालु,होथे दयालु,ज्ञान दान के, खान हरै।
पूजेंजगसारा,ज्ञानअधारा,अंधकार ला दूर करै।
करथे उजियारा, अमरितधारा,बूँद बूँद झर धार बनै।
मूर्ख मति सरला,गुन ले भर दे,बड भागी हा, गुरु गुनै।।
मीता अग्रवाल मधुर रायपुर
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।।रोला छंद।।
गुरु के बिन जी ज्ञान,कहाँ अब सबला मिलथे।
मिले ज्ञान हा सार,फूल हिरदे मा खिलथे।।
कहना मोरो मान, शरण मा गुरु के आवव।
पाके बढिया ज्ञान, करम ला अपन जगावव।।
रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर छत्तीसगढ़
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घनाक्षरी
गुरु बिन भवपार, कोन लगावय पार।
चारो मूड़ा अँधियार, घपटे संसार हे।
लोभ मोह विकराल, अपन फँसाये जाल।
सबो कोती डेरा डाल, मचे हाहाकार हे।
मनखे नदानी करे, रोज मनमानी करे।
बिरथा जनम करे, दुख भरमार हे।
ऐती ओती छोड़छाड़, मोह माया फेंक फाँक।
गुरु के शरण आव, तभे बेड़ा पार हे।
ज्ञानु
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कुंडलियाँ
गुरुवर के आशीष ले,मिलथे ज्ञान प्रकाश।
सद्गुरु महिमा हे अबड़,करय दोष के नाश।
करय दोष के,नाश सदा जी,जइसे दरपन।
मँय अज्ञानी,करिहौ गुरुवर ,मारग दरशन।
बिन स्वारथ गुरु,करय भलाई,जइसे तरुवर।
चरण कमल मा ,माथ नवावँव,बंदवँ गुरुवर।
सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
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कुंडलियाँ
सादर वंदन आप के,चरण कमल गुरुदेव ।
अंतस में उजियार के, अपन सही कर लेव ।।
अपन सही कर लेव,आप के जस मैं गावौं।
दिन शुभ आइस आज,आशीरबाद ल पावौं ।
कह तोरन कर जोर,ग्यान के बरसै बादर ।
भींज जवै मति मोर,मया मा गदगद सादर ।।
तोरनलाल साहू
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ज्ञानू कवि: चौपाई छंद
गुरु बिन दीया कोन जलावै।अंतस के अँधियार मिटावै।।
अमरित जइसे हे गुरुबानी।सफल बनाथे ये जिनगानी।।
अज्ञानता ल हमर मिटाथे।का सच अउ का गलत बताथे।।
भरे विकार ल दूर भगाथे।सदा सही ही राह दिखाथे।।
कतका महिमा आज बतावँव।मूढ़ मंदमति मैं का गावँव।।
एक तोर बस हवय सहारा।मिट जाये जग ले अँधियारा।।
गुरु बिन सबझन भटके रसता।गुरु बिन जिनगी लागय सस्ता।।
भरे ज्ञान के भंडारा गुरु।गुरु बिन जिनगी नइ होवय शुरु।।
ज्ञानु
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दोहा - अजय अमृतांशु
गुरु के कर लव बंदगी,गुरु होथे सिरमौर।
गुरु बिन कुछ सिरजय नहीं, मिलय कहूँ ना ठौर।।
ईश्वर ले पहिली हवय,जग में गुरु के मान।
गुरु ला पहिली पूजबे,तब मिलही भगवान।।
भाटापारा,छत्तीसगढ़
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दोहा
पारस जइसे होत हे , सदगुरु के सब ज्ञान ।
लोहा सोना बन जथे , देथे जेहा ध्यान ।।
देथे शिक्षा एक सँग , सदगुरु बाँटय ज्ञान ।
कोनों कंचन होत हे , कोनों काँछ समान ।।
सत मारग मा रेंग के , बाँटय सबला ज्ञान ।
गुरू कृपा ले हो जथे , मूरख हा विद्वान ।।
छोड़व झन अब हाथ ला , रस्ता गुरु देखाय ।
दूर करय अँधियार ला , अंतस दिया जलाय ।।
नाम गुरू के जाप कर , तैंहर बारंबार ।
मिलही रस्ता ज्ञान के , होही बेड़ा पार ।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
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सार छंद
गुरुजी तुँहर मया के छँइहा,रोज मिलत हे मोला।
किरपा पा के हेम बनत हे , ये माटी के चोला।
मोला छंद सिखावत हावय, जिनगी मोर सुधारे।
कतको गल्ती करत हवव मय, गुरु मोला सँवारे।
मोर मुड़ी मा हाथ रखे हे,रोजे असीस देवय।
सबके डोंगा पार लगावत मोरो डोंगा खेवय।
एक करे दिन रात मोर बर, मय हा आगू जावँव।
छंद विधा ला सीख सीख के,जग मा नाव कमावँव।
धन्य धन्य हे भाग मोर गा, अइसन गुरु ला पाहँव।
ज्ञान पाय बर तोर चरण मा, मय हा माथ नवाहँव।
हीरालाल साहू "समय"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
कुंडलियाँ
मिल पाही संसार ला, गुरू बिना कब ज्ञान।
सुरुज बरोबर ए गुरू, सुघ्घर करय बिहान। ।
सुघ्घर करय बिहान, हरय मन के अँधियारी।
बन के कभू सियान, कभू पक्का सँगवारी। ।
रद्दा ला चतवार, करय हल जम्मो मुश्किल।
पाए गुरू असीस, सरग के सुख जाही मिल।
-दीपक निषाद-बनसाँकरा (सिमगा)
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*रोला छंद*:-
(1)
जे देथे जी ज्ञान, जगत मा गुरू कहाथे ।
हरथे मन अज्ञान, मान ला सबके पाथे ।
करथे गा उजियार, बरय जस दियना बाती ।
मेटय सब अँधियार, भरम के जे दिन- राती ।।
(2)
सदा नवावँव माथ, चरण मा तोरे गुरुवर ।
धरती के सम्मान, झुकय जस फर के तरुवर ।
अंतस ले कर जोर, तोर मँय महिमा गावँव ।
"मोहन " तन मा साँस, रहत ले नइ बिसरावँव ।।
*सरसी छंद*:-
माथ नवावँव गुरु चरनन मा, महिमा करँव बखान ।
जेकर किरपा ले पाये हँव, ये जिनगी के ज्ञान ।।1।
जब-तक सूरज-चंदा रइही, अउ ये धरा-अगास ।
अंतस मा गुरु मोर समाके, पूरा करही आस ।।2।।
करँव वंदना मँय कर जोरे, पावँव आशिर्वाद ।
छाहित रहिके देवव गुरुवर, अपने ज्ञान- प्रसाद ।।3।।
छंदकार- मोहन लाल वर्मा
पता :- ग्राम- अल्दा,वि.खं.तिल्दा,
जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)🙏🏻
💐💐💐💐💐💐💐💐💐999
दोहा छंद
गुरुवर तुहँरे चरण में, सदा नवाववँ माथ
किरपा करके शीश में, धर देहू गुरु हाथ।।
जबले आये चरण में, भरगे मन में ज्ञान।
निच्चट अड़ही मैं रहें,गुरू बनाय सुजान।।
कड़हा कोचर मैं बने,गिरे परे मतिमंद।
गुरू कृपा बरसे कहो,लिखथौं दोहा छंद ।।
वाणी ले अमरित झरे, माने एक समान।
गुरू चरण मा हम सबो , पाये लगेन स्थान।।
मात पिता गुरुवर हमर,गुरू हरे भगवान।
ज्ञान कान में ड़ारथे ,झन करहू अभिमान ।।
आके मँय गुरु चरण में,मिलत ज्ञान के बात ।
कलम चलत हे रोज के, दिन हो चाहे रात।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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श्लेष चन्द्राकर 9: कुण्डलिया छंद
बानी मा गुरुदेव के, सरस्वती के वास।
दुनिया के सिरतोन गा, मनुख हरय ओ खास।।
मनुख हरय ओ खास, राष्ट्र निर्माता होथे।
देथे ओ संस्कार, ज्ञान के बीजा बोथे।।
बने पढ़ाथे पाठ, सुनाके गीत कहानी।
सुनव लगा के ध्यान, सदा सब गुरु के बानी।।
श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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*वंदन गुरु चरन (कुण्डलियाँ छंद)*
वंदन गुरु चरन करँव , अपन लगा मँय ध्यान ।
रद्दा सत के मैं धरँव , गुरु मोर भगवान ।।
गुरु मोर भगवान , गुरुवर के जस गाले ।
देय गुरु हे ज्ञान , जान के दर्शन पाले ।।
गुरु ज्ञान के खान , लगा ले माथा चंदन ।
मिलय नहीं हर बार , गुरु के करलव वंदन ।।
*गुरु मोर भगवान ( आल्हा छंद)*
पहिली पूजव घर के दाई , ददा संग पुरखा भगवान ।
आशीर्वाद सबो के हावय , जउन गुरु पहिली हे जान ।।
गुरु चरण मा माथ नवाँ के , करँव सुमरनी मैं हर तोर ।
गुरु मोर भगवान बरोबर , अरजी विनती सुनलव मोर ।।
जउन गुरु देइन हे मोला , जिनगी मा जी अब्बड़ ज्ञान ।
मैं अड़हा मतिमंद रहे हँव , पाये हँव सुग्घर वरदान ।।
जिनगी ला जी हमर सँवारे , गुरु ज्ञान देके उपहार ।
गुरु देव के महिमा भारी , लाथे जिनगी मा उजियार ।।
गुरु देव के करँव सुमरनी , जीखर चरण म चारो धाम ।
सादर उनला नमन करत हँव , गुरु नाम ले बनथे काम ।।
मयारू मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा ,
जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.
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मोर उपर बरसाय हव, मया अबड़ भगवान।
कोंदा जइसे मूक हँव, कइसे करँव बखान।
मन के जहर निकाल के, भरेव अमरित घोल।
खाय करेला जे मुँहू , निकलय मीठा बोल।
आलस दूर भगाय के, नवा भरे हव जोश।
ठलहा बइठे देह ला ,तब आइस हे होश।
गल्ती मोर सुधारके, जिनगी सुखी बनाय।
पानी परय असाढ़ कस,सुखे पेड़ हरिराय।
जाग जाग के रात दिन,पढ़ेलिखे ल बताय।
ताकत भरके लेख मा, मोला छंद सिखाय।
हाथ मुड़ी मा राख के ,मोला देव असीस।
सुखी रहय परिवार हा,मिलय खुशी जगदीस।
तुँहर कृपा ले नाव हा , बगरय चारो ओर।
माथ नवा के गोड़ मा , करँव बंदना तोर।
हीरा गुरुजी समय
अनिल सलाम
गुरु के करबो रोज वंदना, डोंगा पार लगाही।
कृपा अपन बरसा के संगी, हम ला ज्ञान बताही।।
झर झर बहथे धार ज्ञान के, गुरु के गुरतुर बानी।
मिट जाथे जी अँधियारी हा, सुफल होय जिनगानी।।
गुरु के कृपा होय ता संगी, बिगड़े हा बन जाथे।
जेहा गुरु के ध्यान लगाथे, जग मा नाँव कमाथे।।
अनिल सलाम
छंद साधक सत्र - ११
गाँव नयापारा उरैया
तहसील नरहरपुर जिला काँकरे (छ. ग.)
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गुरुदेव ल सादर प्रणाम आप जम्मों छंद साधक ल गुरु पूर्णिमा के बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteपायलगी जोहार, अरुण निगम गुरवर सदा।
ReplyDeleteकरय 'अमित' गोहार, जिनगी भर करहू दया।।
लेवँव गुरुवर नाँव, संझा बिहना रात दिन।
धन्य भाग्य सहराँव, छंद खजाना पाय हँव।।।
गुरु के कहना सार, गोठ सुजानी हे कथे।
बाँकी बात बिसार, झूठ लबारी जग भरे।।
सुरेश पैगवार
जाँजगीर
छत्तीसगढ़
आदरणीय श्री कन्हैया साहू "अमित" जी के लिखे उपरोक्त सोरठा म गुरुदेव के ऊपर अटूट निष्ठा झलकत हे
ReplyDeleteअमित जी के सँगेसँग जम्मो साधक मन ल एक ले बढ़ के एक भाव भरे रचना खातिर नँगत-नँगत बधाई - - -!
सुरेश पैगवार
जाँजगीर
गुरु के महिमा के सबो, सुंदर करिन बखान।
ReplyDeleteकहथें देवी देवता, जग मा गुरू महान।।
जम्मो साधक/गुरुदेव मन ल सादर नमन
अउ गुरु पूर्णिमा के गाड़ा गाड़ा बधाई...
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गुरु पूर्णिमा विशेषांक सुग्घर छंद संग्रह
ReplyDeleteवाह वाह लाजवाब विशेषांक तैयार होये हे गुरु पूर्णिमा के ऊपर, जम्मो साधक ला बहुत बधाई
ReplyDeleteगज़ब सुग्घर गुरु पूर्णिमा विशेषांक संग्रह
ReplyDeleteगुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।सुग्घर संकलन
ReplyDeleteबहुतेच सुघ्घर संकलन, बहुत बहुत बधाई छंद परिवार
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबढ़िया संग्रह।
ReplyDeleteवाह्ह वाह अब्बड़ सुग्घर संकलन 🙏🙏
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