छप्पय छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
(१)
दारू पीके आय, मंदहा घरवाला हे।
घरवाली बड़ रोय, टूटहा वरमाला हे।।
कइसे जिनगी होय, बतावँव काला मँयहा।
रोवत बोलय छोड़, पिये बर दारू तँयहा।।
नशा नाश के जड़ हरे, तज के सुख ला पाव जी ।
नशा मुक्त जिनगी बिता, शाकाहारी खाव जी ।।
(२)
नालायक हे पूत, बाप मुड़ धर के रोवय।
पत्नी बर दय फूल, मातु बर काँटा बोवय।।
दाई ददा ल मार, कहाथे सरवन बेटा ।
अपन सुवारथ साध, परे हे ससुर सपेटा ।।
सेवा माँ अउ बाप के, करके फर्ज निभाव गा।
बिन सेवा के पूत हा, कब सुख पाय बताव गा।।
(३)
दुख कोनो झन पाय, बने सब सुख मा रहितिस।
अँधियारी मिट जाय, बने हे जिनगी कहितिस।।
कइसे करँव बताव, पार नइ पावँव सुख के।
सब मिल करव सहाय, दबा दव टोंटा दुख के।।
ये जग दुख के खान ये, सुख के झन कर आस जी।
दया मया सब ले रखव, सबके बनहू खास जी।।
(४)
झन काटव गा पेड़, नहीं ते सब पछताहू।
ऑक्सीजन नइ पाव, कहां ले जिनगी पाहू।।
बरसा नइ तो होय, मिले नइ खाना दाना ।
धरही सब ला रोग, करय का आना-जाना।।
जीवन सब ला देत हे, येला बिरथा जान झन।
गुण येकर सब जान लव, छइँहा अउ फल पात हन ।।
(५)
बेटी बिन संसार, सून हे मरघट जइसन।
काबर देथे मार, भ्रूण ला पापी कइसन ।।
दरद दया नइ आय, बाप महतारी मन ला।
कइसन ओकर जीव, मारथे बेटी तन ला ।।
बेटा बेटी भेद का, मन में ज्ञान उतार ले।
माँ बहिनी बाई कहाँ, पाबे बेटी मार के ।।
रचनाकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम -तुलसी (तिल्दा-नेवरा) जिला -रायपुर (छत्तीसगढ़)
सचलभास क्रमांक- ९३००७१६७४०
(१)
दारू पीके आय, मंदहा घरवाला हे।
घरवाली बड़ रोय, टूटहा वरमाला हे।।
कइसे जिनगी होय, बतावँव काला मँयहा।
रोवत बोलय छोड़, पिये बर दारू तँयहा।।
नशा नाश के जड़ हरे, तज के सुख ला पाव जी ।
नशा मुक्त जिनगी बिता, शाकाहारी खाव जी ।।
(२)
नालायक हे पूत, बाप मुड़ धर के रोवय।
पत्नी बर दय फूल, मातु बर काँटा बोवय।।
दाई ददा ल मार, कहाथे सरवन बेटा ।
अपन सुवारथ साध, परे हे ससुर सपेटा ।।
सेवा माँ अउ बाप के, करके फर्ज निभाव गा।
बिन सेवा के पूत हा, कब सुख पाय बताव गा।।
(३)
दुख कोनो झन पाय, बने सब सुख मा रहितिस।
अँधियारी मिट जाय, बने हे जिनगी कहितिस।।
कइसे करँव बताव, पार नइ पावँव सुख के।
सब मिल करव सहाय, दबा दव टोंटा दुख के।।
ये जग दुख के खान ये, सुख के झन कर आस जी।
दया मया सब ले रखव, सबके बनहू खास जी।।
(४)
झन काटव गा पेड़, नहीं ते सब पछताहू।
ऑक्सीजन नइ पाव, कहां ले जिनगी पाहू।।
बरसा नइ तो होय, मिले नइ खाना दाना ।
धरही सब ला रोग, करय का आना-जाना।।
जीवन सब ला देत हे, येला बिरथा जान झन।
गुण येकर सब जान लव, छइँहा अउ फल पात हन ।।
(५)
बेटी बिन संसार, सून हे मरघट जइसन।
काबर देथे मार, भ्रूण ला पापी कइसन ।।
दरद दया नइ आय, बाप महतारी मन ला।
कइसन ओकर जीव, मारथे बेटी तन ला ।।
बेटा बेटी भेद का, मन में ज्ञान उतार ले।
माँ बहिनी बाई कहाँ, पाबे बेटी मार के ।।
रचनाकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम -तुलसी (तिल्दा-नेवरा) जिला -रायपुर (छत्तीसगढ़)
सचलभास क्रमांक- ९३००७१६७४०
सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteबेहतरीन धीवर भैया जी बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय जी
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