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Monday, July 27, 2020

महान छंदकार भक्तिकालीन कवि गोस्वामी तुलसी दास जयंती विशेष-छंद परिवार के छंद बद्ध भाव पुष्प

महान छंदकार भक्तिकालीन कवि गोस्वामी तुलसी दास जयंती विशेष-छंद परिवार के छंद बद्ध भाव पुष्प

तुलसी के मया मोह –कवित्त (घनाक्षरी)
जनकवि - कोदूराम "दलित"

हुलसी के टूरा ला परे पाइस खार बीच
नरहरिदास जोगी हर नानपन ले
राखिस अपन करा तुलसी धरिस नाव
ज्ञानी ध्यानी जासती बनाइस अपन ले
करिस बिहाव रतना सँग जउन हर
गजबेच सुन्दर रहिस सबो झन ले
लाइस गवन सबो बात ला भुलागे फेर
रतना च रतना रटे लगिस मन ले।

एक दिन आगे तुलसी के सग सारा टूरा
ठेठरी अउ खुरमी ला गठरी मा धर के
पहुँचिस बपुरा ह हँफरत-हँफरत
मँझनी-मँझनिया रेंगत थक मर के
खाइस पीइस लाल गोंदली के संग भाजी
फेर ओह कहिस गजब पाँव पर के
रतनू दीदी ला पठो देते मोर संग भाँटो
थोरिक हे काम ये दे तीजा-पोरा भर के।

पठोए के नाव ला सुनिस तुलसी बाम्हन
लकर धकर घर भीतरी खुसरगे
सुक्खा च सुना दिहस-'नी भेजौं मैं रतना ला'
खूब खिसिया के घर बाहिर निकरगे
सुन्ना दाँव पा के टरकिन दुन्नों भाई दीदी
खारेखार अपन दाई ददा के घर गें
बियारी के बेरा घर आके तुलसी देखिस
रतना के जाना ओला बहुत अखरगे।

लेड़गा बरोबर चिटिक रो-रुवा लिहिस
फेर रातेरात ससुरार कोती बढ़ गे
नदिया के पूरा नाहके खातिर लौहा लौहा
मनखे के मुरदा ला डोंगा जान चढ़ गे
भादों महीना के झड़ी-झाँखर मा हपटत
गिरत वो सराबोर भींज के अकड़ गे
भिम्म अँधियारी मा पहुँच गे ससुर घर
भीतरी निंगे खातिर दुविधा मा पड़ गे।

फेर बारी कोती जा के झाँकिस-झुँकाइस तो
खिरखी ले डोरी ओरमत दिख पर गे
बड़ बिखहर साँप ला वो डोरी समझिस
ओला धर-धरके दुमँजिला मा चढ़ गे
चोरहा बरोबर गइस चुप्पेचाप रतना के
ओतके च बेर निंदरा उखर गे
रतना कहिस छी: छी: अइसन तोर बुध
कोदों देखे अतेक असन लिख पढ़गे।

चिटको सरम नइ लागे बेसरम तोला
पाछू-पाछू दउँड़त आये बिना काम के
गोरी नारी मोटियारी देखके लोभाबे झन
अरे ये तो बने हवै हाड़ा-गोड़ा चाम के
जतकेच मया मोला करथस मोर जोड़ा 
ओतकेच मया कहूँ करते ना राम के
तरि जाते अपन, अपन संग दूसरो
घलो ला तारि देते, नाम लेके सुखधाम के ।

तिरिया के गोठ के परिस अड़बड़ चोट
तुलसी के मया मोह राई-छाई उड़गे
घोलँड-घोलँड के परिस पाँव रतना के
तुलसी के मति दूसरे च कोती मुड़गे
रतना तैं मोर गुरु-आज ले मैं तोर चेला
अब मोर नत्ता भगवान संग जुड़गे
ज्ञान के अँजोर ला देखाये मोला अइसन
कहत-कहत ज्ञान-सागर मा बुड़गे।

तुलसी बनिस उही दिन ले गोसाई झट
चुपरिस गोबर के राख ला बदन मा
पहिरिस तुलसी के माला अउ मिरिग छाला
रामेराम भजत गइस घोर बन मा
करिस दरस भगवान के निचट देखे
रात दिन ध्यान सीता राम मा लखन मा
अइसन रचिस रमायन कि जेकर पढ़े ले
जर जाथे सबो पाप एक छन मा।

रचनाकार - जनकवि कोदूराम "दलित"

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 गोस्वामी तुलसीदास (उल्लाला छंद)

परम भगत ओ राम के, संत महात्मा जे रहै।
नावे तुलसीदास हे, राम कथा ला नित कहै।

रतना के फटकार ले, मिलगे परभू राग हा।
मिटगे मन के पाप हा, जागे सुघ्घर भाग हा।

डूब राम के भक्ति मा, पाये अमरित ज्ञान ला।
रामचरितमानस लिखे, जग पाये पहचान ला।

कासी मा जिनगी कटै, करत राम गुनगान ला।
त्यागे अस्सी घाट मा, जप के राम परान ला।

दया धरम के बात ले, रखै जगत के मान ला।
अहंकार माया मिटै, पढ़ लौ तुलसी ज्ञान ला।

-हेमलाल साहू
छंद साधक सत्र-01
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ.ग)

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*संत तुलसीदास जी जयंती विशेष*

रामचरित मानस लिखे, जग मा तुलसीदास।
सत्य विजय सद्ज्ञान ले, फइले जगत प्रकाश।।

राम नाम के लेखनी, भक्ति बहय रस धार।
सागर स्याही मान के, महिमा लिखे अपार।।

प्रेरित हो रत्नावली, जाप करिस हरि नाम।
छोड़ मोह माया जगत, प्रभु ला मानिस धाम।।

लखन राम श्री जानकी, प्रभु मा रख विश्वास।
रचना रामायण करिस, लिख लिख तुलसीदास।।

मोहताज जग मा नहीं, तुलसी ख़ुद पहिचान।
असमंजस पर हे बड़े, जन्म गाँव ले मान।।

छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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ताटंक छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

भारत माता के कोरा मा, चित्रकूट नगरी तीरे।
रहय गाँव राजापुर सुग्घर, पहिचानौ धीरे धीरे।।

रहय गाँव मा धर्मपरायण, हिन्दू ब्राह्मण के पारा।
होवय सुग्घर चर्चा रोज्जे, बहय राम रस के धारा।।

संवत पंद्रह सौ चौवन मा, सावन शुक्ला साते के।
राम जपत तैं जनम धरे जी, कोरा हुलसी माते के।।

आत्मा राम ददा ब्राह्मण हे, अउ दाई हुलसी बाई।
पहलावत लइका तुलसी जी, नइहे अउ बहिनी भाई।।

देखिस सब्बो दाँत ल जामे, संसो मा परगे दाई।
ददा घलो अब सोंचे लागिस, हे ये कइसन करलाई।।

लेइस प्राण ददा दाई के, संसो हा अनहोनी के।
कइसे तुलसी करे अँजोरी, बिना तेल अउ पोनी के।।

पाल पोस के चुनिया दासी , लइका बड़े करे लागे।
पाँच बरस के रहय लाल ता, ओखर काल घलो आगे।।

भटकन लागे एती-ओती, तुलसी हा मारे -मारे।
आगे तब नरहरि गुरु बनके, तुलसी ला जेहा तारे।।

रत्नावली संग मा जुड़गे, तुलसी के जिनगानी हा।
मया पिरित बड़ बाढ़े लागिस, लेइस मोड़ कहानी हा।।

परब बखत लेवा के बहिनी, लेगे उनकर भाई हा।
फँसे मया मा तुलसी के मन, बढ़गे बड़ करलाई हा।।

रहे सकिस नइ बिन रत्ना के, तुलसी अपन दुवारी मा।
पूरा पानी पार लगा के, चलदिस रतिहा कारी मा।।

रत्नावली पुछे तुलसी ला, कस आये रतिहा बेरा।
तुलसी कहे तोर बिन मोला, नइ भावै अपने डेरा।।

रत्नावली कहे तुलसी ला, लानत हे अस माया ला।
अधिरतिहा मा खोजत आये, हाड़ मास के काया ला।।

हाड़ मास के काया खातिर, छी छी अइसन माते तैं।
अतके मया राम बर होतिस, सँउहे राम ल पाते तैं।।

रत्ना के उराठ बानी हा, तुलसी ला बड़ दंदोरे।
त्याग मोह नारी कोती के, राम डहर नाता जोरे।।

खुद जागे जग अलख जगाये, सज्जन के महिमा गाये।
मनखे मन ला मनखेपन के, सतमारग ला देखाये।।

गली-गली बगराये तुलसी, राम नाम के गाथा ला।
ऊँच करे तैं दुनियाभर मा, भारत माँ के माथा ला।।

मनखे मन के मूड़ म बाँधे , दया धरम के पागा ला।
जनम-जनम तक छुट नइ पाबो, तुलसी तोरे लागा ला।।

संवत सोलह सौ अस्सी मा, तुलसी जी देहें त्यागे।
फेर रमायन बनके जग मा, जिंदा कस अभ्भो लागे।

छंदकार :- विरेन्द्र कुमार साहू, 
             ग्राम - बोड़राबाँधा (पाण्डुका) , वि.स. - राजिम, 
जि. गरियाबंद, छ.ग.  9993690899

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सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

तुलसी तोर रमायण(गीत)

जग बर अमरित पानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

शब्द शब्द मा राम रमे हे, शब्द शब्द मा सीता।
गूढ़ ग्यान गुण गोठ गँजाये, चिटिको नइहे रीता।
सत सुख शांति कहानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

सब दिन बरसे कृपा राम के, दरद दुःख डर भागे।
राम नाम के महिमा भारी, भाग भगत के जागे।।
धर्म ध्वजा धन धानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

सहज तारथे भवसागर ले, ये डोंगा कलजुग के।
दूर भगाथे अँधियारी ला, सुरुज सहीं नित उगके।
बेघर के छत छानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

प्रश्न घलो कमती पड़ जाही, उत्तर अतिक भरे हे।
अधम अनाड़ी गुणी गियानी, सबके दुःख हरे हे।
मीठ कलिंदर चानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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शकुंतला शर्मा

राम नाम जप ले जिया, कहिथे तुलसीदास। 
मनसा वाचा कर्मणा, धरिन हिया मा आस।
धरिन हिया मा आस, नाम ला मंदिर मानिन। 
आस्था ला आधार, बना के रसदा पालिन।
राम नाम विश्वास, दिनों दिन सदा बढ़त हे।
कविवर तुलसीदास, राम सिय नाम रटत हे।
     
      शकुन्तला शर्मा 
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दोहा - हीरालाल गुरुजी "समय"

राजापुर ओ गांव हा, आवय पावन धाम।
जिहाँ जनम जी लेय हे, जेखर तुलसी नाम।

आत्माराम ददा हवे, दाई हुलसी मात।
जनम धरिस बिन रोय जी, राम राम ला गात।

तन अलकरहा देख के, दाई ददा डराय।
चुनिया के घर छोड़ के, लहुत धाम मा आय।

लइकापन के नेह ला, चुनिया दासी पाय।
उमर पढ़े के होय तब, नरहरि आश्रम जाय।

नाम रामबोला रखय, गुरुवर नरहरि देव।
राम नाम के मंत्र दे, रखय कथा के नेव।

रामचरित मानस रचे, बाबा तुलसी दास।
शिव भोला हा कर सही, करदिस ओला पास।

एक प्रेत हा दिस पता, राम भगत हनुमान।
बजरंगी के संग पा, मिलय राम मणि खान।

चित्रकोट के घाट मा, आसन रोज जमाय।
दर्शन पाके राम के, माथा तिलक लगाय।

असीघाट मा एक दिन, कलयुग देवय त्रास।
विनय पत्रिका मा लिखे, ओखर उपाय खास।

बीते बहुते साल हा, गावत प्रभु के नाम।
राम राम बाबा जपत, पहुंचे रघुवर धाम।

हीरालाल गुरुजी"समय"
छुरा ,जिला- गरियाबंद

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(चोवा राम वर्मा बादल--वीर छंद)

तीरथ राज प्रयाग तीर मा,  राजापुर नामक हे गाँव। तुलसीदास जनम धर आइच, हुलसी माँ के अँचरा छाँव।।

 धर्मव्रती अउ बड़ सद्ज्ञानी,  पिता ब्राह्मण आत्माराम।
 संवत पन्द्रा सौ चउवन मा, बालक जनमिच ले प्रभु नाम।।

  मूल नछत्तर अद्भुत बालक, रहिस दाँत पूरा बत्तीस।
 दासी ला सौंपिच माता हा, अलहन कस ओला लागीस।।

 सरग सिधारिच हुलसी दाई, चुनिया दासी करिच सम्हाल।
 छै बरस के भीतर भीतर, उहू ल लेगे बैरी काल।।

 फेर अनाथ के रक्षा होइच, माँ जगदंबा सुनिच पुकार।
 गुरु नरहरि हा लेगे ओला, अवधपुरी आश्रम के द्वार।।

 शिक्षा-दीक्षा देवन लागिच, धरिच रामबोला के नाम।
 वेद शास्त्र के ज्ञान बताइच,नाम जपावत सीताराम।।

 गुरु आज्ञा ले होगे ओकर, रत्नावली संग गठजोड़।
 लगिच ठेसरा जब तुलसी ला, देइच तब घर बार ल छोड़।।

 तीरथ राज प्रयाग म रहिके,  काशी आगे तुलसीदास।
 प्रेत रूप धरके बजरंगी, आइच तुरते ओकर पास।।

 चित्रकूट जाये ला कहिके, होगे ओहा  अंतर्ध्यान ।
रामघाट मा गोस्वामी ला, बालक रूप मिलिच भगवान।।

 फेर उहाँ ले काशी आगे, तहाँ अवधपुर करिच निवास।
 रामचरित ला सिरजन लागिच, भाषा चुन के अवधी खास ।।

दुई बरस अउ  सात महीना, सँघरा लागिच दिन छब्बीस।
 सात कांड के सिरजन होगे, सामवेद कस जे लागीस।।

 काशी पावन असी घाट मा, कृष्ण तृतीया सावन माह।
संवत सोला सौ अस्सी मा, स्वर्ग लोक के धर के राह।।

 देह त्याग गोस्वामी जी हा, चलदिच प्रभु के पावन धाम।
 नाम अमर होगे जुग जुग ले, जिभिया मा धर सीताराम।।

 धन्य धन्य जे रचिच रमायन, परम पूज्य वो तुलसीदास।
 कलयुग मा मनखे तारे बर, राम नाम के करिच उजास।।

 रामचरित गुन गान करिच वो,जन भाषा मा ग्रंथ बनाय।
 जे हा श्रीरामचरितमानस, वेद शास्त्र के सार कहाय।।

 सरी जगत मा नइये कोनो,एकर जइसे सद साहित्य ।
एमा नवधा भक्ति ज्ञान के, शब्द शब्द मा हे लालित्य।।

 धरम करम के मरम भरे हे, भरे गृहस्थी के व्यवहार।
 साधु संत के रक्षा हावय, निसचर मन के हे संघार।।

शब्द रूप मा जगत पिता के, सरग लोक कस पावन धाम।
 रचना संग रचइता के मैं, हाथ जोड़ के करौं प्रणाम ।।

चोवा राम 'बादल'
(छंद साधक)
हथबन्द, छत्तीसगढ़
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(कुंडलियां छंद)
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तुलसी के मानस हरय, सुघ्घर जीवन ग्रंथ।
देखाथे संसार  ला, राम  राज  के  पंथ। ।
राम राज के पंथ, बताथे  रद्दा  सत  के।
मर्यादा के पाठ, सीख  देथे  सुम्मत  के। ।
धन धन आत्माराम, पिता महतारी हुलसी।
होइस जिंकर सपूत, संत गोस्वामी तुलसी।।
   
          -दीपक निषाद-बनसाँकरा (सिमगा)

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छप्पय छंद - आशा आजाद

तुलसीदास महान,महाकवि ओ कहलाइन।
दोहा रचके श्रेष्ठ,जगत के मान बढ़ाइन।
जनहित ज्ञान अपार,भक्ति के मारग चलके।
बनगिन साहित दीप,आज अउ सुघ्घर कल के।
रामचरितमानस रचिन,भक्तिभाव के धार ले।
बनिन प्रेरना दीप ओ,सुग्घर जनहित सार ले।।

रामलला हे देन,सतसई सुघ्घर लिख दिस।
हे रामाज्ञा प्रश्न,जानकी मंगल गढ़ दिस।
बरवै छप्पय छंद,भाय रोला रामायण।
छंदावली लुभाय,सुघर हे धर्मा निरुपण।
बरवै रामायण लिखिन,रामभक्ति के भाव ले।
संकट मोचन ओ गढ़िन,शिव के मया लगाव ले।।

छंदकार - आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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आल्हा छंद

संत शिरोमणि कहिथे वोला,नाम हवय गा तुलसीदास।
रामायण के रचना करके,जग ला देवय परम प्रकाश।

मूरख से ज्ञानी बनगे वो,सुनिस सुवारी के फटकार।
जइसन तन बर मोह रखे हस,वइसन प्रभु के करलव प्यार।

बिरथा लगिस मोह माया तब,त्यागे संत मया संसार।
बस अंतस मा धुनी रमाके, निराकार ला दे आकार।

एक कथा हे चित्रकोट के,जिहां लगय संतन के भीर।
तुलसीदास घिसय चंदन तो,तिलक लगावत हें रघुवीर।।

जिभिया हा नानुक हो जाथे, कतका गुण ला करय बखान।
तुलसीदास ऋणी जग तोरे,अउ हे तोर ऋणी भगवान।।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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दोहा छंद-मीता अग्रवाल 

रामचरित मानस रचे,लोक मंगल के गान।
कंठहार जन जन बने,तुलसी भानु समान।।

मानस कौशल ज्ञान हे,संजीवनी समान।
मानवता बगरे फरे,कवि तुलसी हनुमान ।।

लोक राग के रागिनी,गावय तुलसी दास।
अंतस भीतर जागथे,राम सिया कैलास।।

विनय पत्रिका मा बसे,दास भाव के मान।
राम खरो के गोठ कर,तुलसी विनय प्रधान ।। 

भक्ति काल के चन्द्रमा, पुन्नी कस उजियार।
घर-घर तुलसीे दास हे,रामचरित आधार।।

रचनाकार-
डा मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
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            *कुण्डलियाँ छंद*

तुलसी जी रचना रचे, रामचरित बड़ पोठ।
घर घर राजा राम के, बारो महिना  गोठ।।
बारो महिना गोठ, कथा जेकर पावन हे।
सुख सम्मत बरसाय, सबो बर जस सावन हे।।
राजापुर हे धाम, दुलारै माता हुलसी।
रतना ज्ञान बताय, बने गोस्वामी तुलसी।।

छंदकार - कौशल कुमार साहू

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6 comments:

  1. जय जय गुरुदेव! संत सिरोमणि तुलसीदास जी की जय।

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    1. बहुत बढ़िया प्रबन्ध काव्य रचे हव बीरू जी

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  2. बहुत खूब हीरा गुरुजी

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  3. बहुत सुग्घर संकलन आप सम्मलित साधक मन ला सादर बधाई

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  4. बहुत सुग्घर संकलन । जय गोस्वामी तुलसीदास

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