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Thursday, July 9, 2020

मीता अग्रवाल -कुंड़लिया

मीता अग्रवाल -कुंड़लिया

सैनिक  सरहद मा खड़े,देखव सीना तान।
 घुसपैठी कर चीन ला,मार भगाही जान।
मार भगाही जान,आन बर तन मन वारे।
बीस जवान शहीद,मात दे बैरी हारे।
गोड धरन ना देत,अड़े रहिथे जी दैनिक।
धाय धाय बंदूक,चला थे रक्षक सैनिक।।

(2)
थोडिक थोडिक सोच के,रुपिया पइसा जोड।
आपद बेरा मा सदा,इही बचत हे तोड़।
इही बचत हे तोड़, मान सनमान बढाए।
जर जमीन पहिचान,बचत ही काम म आए।
घेरी बेरी सोच,ध्यान दव थोडिक मोरिक।
जीव जगत सुखधाम,बचत कर थोड़िक थोड़िक।।

(3)

छोटे मछरी ला बड़े, हबक पोठ हो जाय।
इही  जमाना के चलन, मनखे जी भरमाय।
मनखे जी भरमाय,चलय फिर  गोरख धंधा ।
मार लबारी लाम,थपथपावत हे कंधा।
चोर चोर हे एक,माल खा होवत मोटे।
बदले हावे चाल,जमाना बड़े ना छोटे।।

रचनाकार-मीता अग्रवाल मधुर
 रायपुर छत्तीसगढ़

12 comments:

  1. बहुत सुग्घर कुण्डलियाँ

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  2. अब्बड़ सुग्घर भावपूर्ण कुण्डलियाँ छंद दीदी जी हार्दिक बधाई 🙏🙏

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  3. धन्यवाद भाई जी ।

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  4. बहुत सुग्घर कुण्डलिया दीदी

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  5. वाह वाह बहुत शानदार, भावपूर्ण छंद रचे हव आपमन, उत्तम सृजन बर बहुत बधाई।

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  6. बहुत शानदार कुण्डलिया बधाई दीदी

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  7. बहुत सुन्दर दीदी 👌👌💐💐🙏

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  8. बहुतेच सुग्घर कुण्डलिया।हार्दिक बधाई

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  9. सुग्घर रचना दीदी

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  10. बहुत बढ़िया कुंडलियाँ बहिनी.

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  11. आपसबला हदयतल ले आभार ।

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  12. बहुत बढ़िया छंद सृजन है बहिनी

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