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Friday, July 24, 2020

वैश्विक महामारी कोरोना जन जागरण पर छंद परिवार की कवितायें

वैश्विक महामारी कोरोना जन जागरण पर छंद परिवार की कवितायें

अजय अमृतांसु: चौपाई छन्द
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कोरोना के अकथ कहानी।
संकट मा सब हिंदुस्तानी।।
मिलके सब झन येला छरबो।
हमर देश ले दुरिहा करबो।।

जब जब लोगन बाहिर जाही
कोरोना ला घर मा लाही।
बंद करव जी बाहिर जाना।
कोरोना ला काबर लाना।।

साफ सफाई राखव घर मा।
कोरोना हा मरही डर मा।।
घेरी भेरी हाथ ल धोना।
तब सिरतो मरही कोरोना।।

मास्क नाक मा होना चाही ।
मुँह ला छूना हवै मनाही।।
तीन फीट के दूरी राखव ।
जब जब ककरो ले तुम भाखव।।

शासन के सब कहना मानव।
घर मा रहना हे सब ठानव।।
नोहय कोनो जादू टोना ।
छोड़व जी सब रोना धोना।।

संक्रामक हे ये बीमारी।
मनखे के जिनगी मा भारी।।
जुरमिल के सब येला टारी।
बात ध्रुव गा सब नर नारी।।

पुलिस मीडिया सेवा भारी।
डॉक्टर भगवन के अधिकारी।।
बेरा ला नइ देखत हावय।
सेवा बर सब तुरते जावय।।

खतरनाक हे ये बीमारी।
डरे हवय जी दुनिया सारी।।
मिलके लड़बों किरिया खावव।
सँगी अपन सब फर्ज निभावव।।

हाथ जोड़ के कर अभिवादन।
हाथ मिलाना छोड़व सब जन।।
आये हावय विपदा भारी ।
समझव येला सब नर नारी।।

डटे हवै जी सब्बो कर्मी।
चाहे राहय सर्दी गर्मी।।
संकट के बेरा हे भारी।
सेवा मा हे सब अधिकारी।।

अजय अमृतांशु
भाटापारा

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चंडिका छंद (13 मात्रा , अंत रगण)* अमित

बिपदा भारी आय हे, सब ला गजब डराय हे।
उपजे हावय चीन ले, खानपान रंगीन ले।।

जेवन माँसाहार हे, मनखे उही बिमार हे।
कोविद कोरोना हरे, एखर ले लाखों मरे।।

हवय वायरस हा तने, दवा अभी नइ हे बने।
रूप महामारी धरे, सरी जगत थरथर डरे।।

बात सुजानी झट धरौ, सादा जेवन सब करौ।
साफ सफाई जान ले, बात सियानी मान ले।।

कान नाक मुँह ढ़ाँक जी, झन बाहिर तैं झाँक जी।
खाँसी जूड़ बुखार के, झटपट जाँच बिमार के।।

रोगी ले दुरिहा रहौ, थोरिक दिन पीरा सहौ।
सँघरा झन जुरियाव जी, अलग-अलग झरियाव जी।

कतका करबो सोग ला, अपने सेती रोग ला।
करम-धरम के दोष हे, तभे प्रकृति मा रोष हे।।

जीव चिटिक ये धाँसथे, खलखल बैरी हाँसथे।
रटाटोर कब भागही, भाग हमर तब जागही।।

सरकारी निर्देश हे, तालाबंद विशेष हे।
पालन एखर होय जी, नइ ते जिनगी खोय जी।।

हालत हा गंभीर हे, हम ला धरना धीर हे।
नइ ते बारा बाजही, मउत मुड़ी मा साजही।।

बाहिर फिरना बंद हे, एही मा आनंद हे।
जौन बात ला मानही, तौने छाती तानही।।

*कन्हैया साहू 'अमित'*
भाटापारा छत्तीसगढ़
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*सरसी छंद*

आज जानलेवा बीमारी,कोरोना हर आय।
दुनिया भर मा घूमत हावय, लोगन अबड़ डराय।

छूत वायरस येला जानव,छूवत फइले रोग।
ये बीमारी के कारण ही,कतको होत वियोग।

साफ सफाई खान पान मा, देवव अब्बड़ ध्यान।
धोवत रहव हाथ ला दिनभर,झन छूवव मुँह कान।

आये हे गम्भीर समस्या,बने करव जी चेत।
थोकिन लापरवाही मा ये ,उजड़त शहर समेत।

घेरी बेरी विनती करके,समझावँय सरकार।
विपदा मा सहयोग करव सब,देश गाँव परिवार।

स्वास्थ्य जगत हा जुटे हवय सब,सेवा मा दिन रात।
ये जनता सहयोग करव सब,बिगड़े झन हालात।

समय हवय ये अब्बड़ भारी,जुरमिल देवव साथ।
दुरिहा रहिके करव नमस्ते,झन मिलावव हाथ।

जीतव कोरोना बैरी ले, घर बइठे ही जंग।
बात प्रशासन के मानव सब,नियम करव झन भंग।।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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आल्हा छंद-बलराम चन्द्राकर

कोरोना के कारण जग मा, हवै मातगे हाहाकार ।
चीन देश के बेमारी हा, देखौ आगे हमरो द्वार।।

अजब वाइरस एहर संगी, नइ हे एकर अभी इलाज ।
लापरवाही के कारण ही, बगरत हे दुनिया मा आज।।

रोग संक्रमण के कोरोना, हर लिस आज हजारों प्राण।
त्राहि-त्राहि जग मा होगे हे, बेबस होगे हे इंसान।।

मनखे ले मनखे मा जाथे, रोगी ले जब तन छू जाय।
रहै फासला हवै जरूरी, हे बचाव के एक उपाय।।

लक्षण एकर दिखथे संगी, सर्दी खाँसी तेज बुखार।
सावधान हो जावन हम जी, छींक आय जब बारंबार।।

घर ले बाहिर झन निकलन जी, भीड़भाड़ ले राहन दूर।
करन गोठ हम दुरिहा रहिके, रद्दा बाट न जावन टूर।।

सतर्कता ले टरही संकट, इही एक ठन हे उपचार।
करबो जब एकांतवास हम, तब निरोग रइही परिवार।।

साबुन सेनेटाईजर ले, साफ रखन गा संगी हाथ।
जनता कर्फ्यू सार्थक हे जी, घर के देव नवाँवन माथ।।

हाथ मिलाना गला लगाना, अउ छूना नइ हे जी पैर।
जै जोहार अभी दुरिहा ले, चेत रहे मा सब के खैर।।

लोग विदेशी चाहे देशी, नइ सटना हे बिल्कुल तीर।
अनुशासन अनिवार्य हवै जी, मन मा राखन थोकन धीर।।

राहन दूर बजार हाट ले, सख्ती हे शासन निर्देश।
कहना हे डाक्टर मन के जी, निगरानी सब करन विशेष।।

*मोटर रेल जहाज बइठना*, अउ पंगत के करन तियाग।
सैर-सपाटा करन अभी झन, घर के खावन रोटी-साग।।

टर जाही ये गिरहा संगी, राहन सबझन सजग सचेत।
हे लड़ना जी डरना नइ हे, ए बलराम कहै गा नेत।।

छंदकार :
बलराम चंद्राकर
भिलाई छत्तीसगढ़

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 ।।आल्हा छंद।।

घुमव फिरव झन बाहिर जादा, राहव घर मा सबझन साथ।
कोरोना ले बचहू भइया, धोवव घेरी बेरी हाथ।।

करो सफाई कोना कोना,घर के अपन सबो हा आज।
मिलके हाथ बटावव संगी,करव नही गा थोरिक लाज।।

दुरिहा दुरिहा सबझन राहव,अइसन डॉक्टर बात बताय।
बचबो कोरोना ले भइया, करबो जब ये हमन उपाय।।

जावव झन गा काम बुता मा,कोरोना ले तो डर जाव।
घर के भीतर रहिके संगी,जान अपन गा सबो बचाव।।

बासी खाना ला झन खाहू, खावव बढ़िया ताते तात।
गरम गरम गा पीहू पानी,तब तो जाके बनही बात।।

मिलना जुलना बंद करव अब,छोड़व सबो मिलाना हाथ।
आवत जावत गली खोर मा,राखव गमछा हरदम साथ।।

आय महामारी जी येहर,रोग भयंकर भारी जान।
हल्का मा झन लेवव येला,लेवत हावय सबके प्राण।।

रचनाकार:- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद (समोदा) जिला रायपुर छत्तीसगढ़
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दोहे :- जगदीश "हीरा" साहू*

जब ले चालू होय हे, कोरोना के त्रास।
सबके धंधा काम के, होगे सत्यानाश।।

नखरा झन कर मानले, संगी मोरे बात।
घर मा रहि के दूर कर, कोरोना के रात।।

रइहौ घर भीतर सबो, लइका बबा सियान।
कोरोना के मार हे, झन बन तैं अनजान।।

माया कस बगरत हवय, कोरोना के रंग।
जाने कब जी छूटही, ये पापी के संग।।

जाबे झन परदेश जी, आही सँग मा रोग।
रोग लगे ये ढीठ हे, अब का करबो सोग।।

रोकव झन शुभ काम ले, भाई कहना मान।
तैं शासन के कोष मा, जी भर करले दान।।

गाँव गली सुन्ना दिखे, मनखे सबो लुकाय।
मार परय भारी शहर, पीट पीट सुधराय।।

सोझ सोझ बोलत हवँव, करव भले जी रीस।
करहुँ शिकायत फोन ले, मरबे चक्की पीस।।

राज काज सब ठप्प हे, शासन कहना मान
आज राजधानी घलो, लागत हवय विरान।।

चेत लगा घर के अभी, भीतर हीन बताय।
नून तेल मिर्चा सबो, घर के गए सिराय।।

लकर धकर घर ले गए, कइसे आज लुकाय।
बाहिर तोला पोठ जी, मार मार सिहराय।।

यक्ष प्रश्न मन मा उठे, कोन आज समझाय।
कर्फ्यू कब तक जी रही, देख समझ ना आय।।

नपे तुले बोलव सबो, आज समय ला भाँप।
गलत जानकारी इँहा, बनही बिखहर साँप।।

हार जीत के खेल मा, लगगे सबकुछ दाँव।
भूख मरत हे पेट हा, अउ उखरा हे पाँव।।

बड़े बड़े संकट घलो, सुनता ले  टल जाय।
झेलव संकट मान के, छोटे बड़ तड़पाय।।

जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)
कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार

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 कमलेश्वर वर्मा जयकारी
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जग मा आहे नवा विषाणु।समझव येला बम परमाणु।।
हे कोरोना येकर नाँव।डरवा देहे शहर व गाँव।।

जान हजारों लेलिस छीन।निकलिस येहर जब ले चीन।।
सावचेत हो भाई मोर।झन मानव येला कमजोर।।

बाहिर कम निकलव सब लोग।मास्क घलो कर लव उपयोग।।
हैंडवॉश-साबुन रख साथ।घेरीबेरी धोवव हाथ।।

हाथ मिलाना ला अब छोड़।छूवव झन जी ककरो गोड़।।
भीड़-भाड़ ले राहव बाँच।सकलावव मत कोनो पाँच।।

साफ-सफाई रख घर-द्वार।अपनावव सब शाकाहार।।
जन बर जन होवव हितवार।मन के डर ला झट ले टार।।

शासन के मानव सब बात।राहव सजग अभी दिन-रात।।
जुरमिल जम्मों कर दव वार।तब कोरोना के हे हार।।

रचना--कमलेश  कुमार वर्मा
          साधक-छन्द के छ
भिम्भौरी, बेमेतरा

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: कुंडलियां छंद-कोरोना

कोरोना वायरस हा,करत हवय अतलंग।
समझे अपने आप ला,सबले बडे़ दबंग।
सबले बडे़ दबंग,सदा ये नइ रह पाही।
होही एखर नाश, सुघर सुख घर-घर छाही।
कोरोना आतंक,भागही कोना कोना।
पानी पीयव तात,हारही तब कोरोना।।

द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़
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कोरोना वायरस  (आल्हा छंद)

फइले हे कोरोना संगी, मच गेहे गा हाहाकार।
चीन देश ले आये हावय, एकर आघू सबो लचार।।

देश बिदेश सबो जग फैलत, मनखे हावय सब परशान।
खतरा हावय अब्बड़ येहा, वैज्ञानिक मन हे हैरान ।।

हाथ मुँहू ला धोवव सुघ्घर, साबुन सोडा रोज लगाव।
साफ सफाई घर मा राखव, भीड़ भाड़ मा कभू न जाव।।

सरदी खाँसी छीक ह आथे, डाक्टर कर तुरंत ले जाव।
पानी ला उबाल के पीयव, कोरोना ला दूर भगाव।।

हाथ मिलाना छोड़व संगी, कर धुरीहा ले नमस्कार ।
मुँहू कान ला बाँध के राखव, कोरोना के होही हार।।

माँस मदिरा पीना छोड़व ,  ताजा भोजन घर मा खाव।
बरतो सब सवधानी भैया , कोरोना ला झन डर्राव।।

छंदकार
*महेन्द्र देवांगन "माटी"*
*पंडरिया छत्तीसगढ़*
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(आल्हा छंद)

विनती करथंव जम्मो झन के, सुन लव आरुग कहना आज ।
तुँहर हाथ मा भाग देश के, रखलव जुरमिल एखर लाज।

अजब कहानी चीन देश के, खाथे साँप कुकुर के माँस ।
पर्यावरण उजारत हावय, अटकावत धरती के साँस ।

उही चीन के चमगेदरी ले, उपजे हवय जगत के काल ।
बगरे हावय दुनिया भर में, बनगे हे जी के जंजाल ।

कोरोना वाइरस कहाथे, कोनो नइ पावत हे पार ।
बात कहत बगरत हे जगभर, करथे जिनगी बंटाधार ।

देख वाइरस कतका खतरा, मरघटिया कस लगे बुहान ।
बात मानलव सब सरकारी, आज बचालव हिन्दुस्तान ।

चीन फ्रांस ब्रिटेन अमेरिका , इटली रसिया अउ जापान ।
दुनिया भर मा पहिदे हावय, ले ले हावय हजारो जान ।

येखर ले बँचना हावय ता, सुनलव आरुग के ये गोठ ।
घरघुसरा कस बइठव घर मा, अंतरमन ला करलव पोठ ।

घेरी भेरी छूवव झन तुम, मुहूँ नाक अउ आँखी माथ ।
रगड़-रगड़ साबुन में धोवव, जेवन के पहिली तुम हाथ ।

अउठ हाथ के दुरिहा राहय, मनखे मनखे मनके बीच ।
नवा जिनिस कुछु छिये हाथ मा, पहिली सेनिटाइजर सींच ।

हवन, प्राथना, पूजा वंदन, शबद कीर्तन पढ़व नमाज ।
घर मा बने मनावव रब ला, झन जुरियावव भाई आज ।

हाथ मिलाना, मिलना जुलना, बन्द करव सब संगी मोर ।
बिन बूता के आना जाना, जीना करही मुश्किल तोर ।

देश बन्द हे पुलिस खड़े हे, बैंक खुले हे अउ बाजार ।
दूध दवा अउ गैस बिसालव, नून तेल अउ चाउर दार ।

लगथे सुख्खा खाँसी, सरदी, साँस अटकना अउ बुखार ।
तुरत डॉक्टर ला देखावव, दिखय कहुँ ये लक्षण चार ।

पुलिस डॉक्टर समाज सेवी, सेना वैज्ञानिक के पाँव ।
जेन करोना संग लड़त हे, जम्मो झन ला माथ नवाव ।

थर थर काँपत हे जग सारी, माते हावय हाहाकार ।
ईशर, अल्ला, रब अउ ईसा, करही हमरो डोंगा पार ।

ईश्वर साहू 'आरुग'
ठेलका, बेमेतरा

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(विष्णु पद छंद)

साफ सफाई करलव संगी, साँची बात कहे।
सूक्ष्म जीव हा बैरी हावय,विपदा घोर सहे।।

गुनगुन पानी पीयव हरदम, धोवव हाथ दुनो।
सादा भोजन बढ़िया होथे, शाकाहार चुनो।।

घर से निकलव अब झन संगी, लाकडाउन लगे।
सूझ बूझ़ ले कोरोना हा,जल्दी दूर भगे।।

दीन दुखी ला भोजन देवव,ओखर पेट भरे।
अन्न दान ले अब तो कोनो, नइतो भूख मरे।

डॉक्टर नर्स पुलिस अउ फौजी, इंखर मान रहे।
मानवता के सेवा खातिर, कतको कष्ट सहे।।


चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
छत्तीसगढ़
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आशा आजाद: रोला छंद - जन जागरण संदेश

कोरोना हे छाय,देश मा जानौ भाई।
देख वायरस आज,मात गे अब करलाई।।
बिगड़े हे हालात,नास छिन भर मा करथे।
लग जावय ये रोग,कतक मनखे मन मरथे।।

फैलाइस हे रोग,चीन हा देखौ जानौ।
खाइन कच्चा मांस,रोग नावा पहिचानौ।।
फैलत तुरते अंग,हाथ झन जान मिलाहू।
मास्क ल पहिरौ रोज,ज्ञान के बात सिखाहू।।

भीड़ भाड़ ले दूर,रहौ ए सब बर भारी।
जन जन बगरे खूब,वायरस के बीमारी।।
मुँह मा रखौ रुमाल,साथ झन किटानु आये।
बाहिर झन जी जाव,छुवत ये रोग लगाये।।

खाँसी संग जुकाम,हवय जी इही निसानी।
गला करे हे जाम,सांस के बड़ परसानी।।
चमगादड़ अउ सांप,खाय हे चीनी मन जी।
जहर बरोबर आय,बिगड़ गे सबके तन जी।।

शहर शहर अउ गाँव,देश के जम्मो कोना।
कलपत अब्बड़ मान,देख बगरे कोरोना।।
धोवौ अपने हाथ,रोज साबुन ले भैया।
धरलौ करलौ चेत,देश के सबो रहैया।।

घर मा रखहू ध्यान,गरम पानी ला पीहू।
सतर्कता के साथ,ध्यान रखहू ता जीहू।।
करदौ पूरा बंद,चीन के खई खजाना।
बिगड़ जथे हालात,परय पाछु पछताना।

अनुसासन के रोक,आज ये लग गे हावै।
देवै सुघर सुझाव,मनुज घर भीतर जावै।
करथे हित के गोठ,संक्रमित नइ होना हे।
बाहिर ले जब आव,हाथ ला नित धोना हे।।

रोकथाम के काज,करत हे डाक्टर सुनलौ।
कहिथें जेन उपाय,ध्यान धर ओला गुनलौ।।
सर्दी छींक जुकाम,जाँच खाँसी के करहू।
रखके मनखे चेत,स्वस्थ तन मन ला रखहू।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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 *कोरोना* - *दोहालरी*
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 कोरोना सुरसा असन,मुँह फइलावत जाय।
एकर परे चपेट में, दुनिया  भर घबराय। ।
ए बिपदा के सामना, कर बन के हनुमान।
समझ सावधानी दिखा, तब होही कल्यान।।
 कोरोना के  मार ले, सिहरत  हे  संसार।
सावचेत रा तैं सगा, अउ हिम्मत झन हार। ।
भारत के संस्कृति हरय, निर्मल सुघ्घर साँच।
एला  अपनाके  तहूँ, कोरोना  ले  बाँच। ।
 बन के घरखुसरा सगा, राखन मन मा धीर।
तब सुख अउ आनंद के, खाबो गुरतुर खीर।।
अंतस रहय सजोर अउ,झन होवन भयभीत।
तब कोरोना कर जबर, जंग ल पाबो  जीत। ।
 घर ला दुनिया मान के, घर मा रहव सियान।
अबड़ जरूरी हो तभे, बाहिर जाव सुजान । ।
तोप नाक मुँह रेंगहू , दूरी रख के  मीत।
तब कोरोना हारही, भारत  जाही जीत। ।
     --दीपक निषाद-बनसाँकरा (सिमगा)

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मीता अग्रवाल: सरसी छंद- मीता अग्रवाल

कोरोना

जगत सरी बिलमाय हवय जी,रोग दोख के घात।
कइसे बाँचे  जिनगी हमरे,मन मन सोचे बात।

राह बने आसान सबो के,मानो शासन बात।
कोरोना वायरस हवे जी,करथे छुपके घात।

गोड़ हाथ मुँह  धोवव हरदम, रक्षा अउ उपचार।
कोरोना हा दूर भगय जी,सुरता रखहूँ यार।

लोक लाज अउ धरम करम ला,आज फेर अपनाय।
संस्कार के संग सदा जी,मन ला दे हरषाय।

 रोना धोना छोड़व संगी, नसा नास के द्वार ।
संगी कोरोना हा फइले,रक्षा के हे भार।

राह पड़े हे सुन्ना सब्बो,बंद पडे हे द्वार ।
घर घुसरा बनके बइठे मा,जिनगी  के हे सार।

तोर मोर के फेर पड़े हे, आज सकल संसार ।
कोरोना अस बीमारी हा,बाँधिस घरअउ द्वार ।

जतन राख लो लइका बडका,कोरोना के मार।
ज्यादा इही प्रभावित होथें, बंद राख लव द्वार ।

रेस टीप कस खेल खेल मा,बगरत हावय रोग।
बाहिर ले आवत महमारी, भोगत हावय लोग ।

ठंडक ले बाचव जी सब्बो,गरम बना के खाय।
बोरे बासी झन खाहू जी, बिकट समय हे आय।

यमराजा के लेखा जोखा,गड़बड़ धड़बड़ होय।
हडबड हडबड भइसा चघना,भूलें   राजा खोय।

थरथर काँपे तनमन संगी,कोरोना सुन नाम ।
करव योग जी रोग भागथे,कौड़ी लागे दाम।

यमराजा के लेखा जोखा,गड़बड़ धड़बड़ होय।
हडबड हडबड भइसा चघना,भूलें   राजा खोय।

इहाँ उहाँ के भेदभाव ले,रोग ढीठ ना जाय।
मेल जोल ला  बंद करव जी, हावे इही उपाय ।

नाँव गाँव मा मनखे भूलें, रिश्ता नाता खास।
कोरोना के लाॅक डाउन ह,सब ला कर दिस पास।

नान नान लइका मन घर रहिके, करत हवे परशान।
फुगडी बिल्लस घर मा खेलय,बढे खेल के मान।

राखव हरदम साफ सफाई, धोवव साबुन हाथ।
कोरोना से बाँचे बर जी,मास्क राख साथ।

 पल मा तोला पल मा मासा,जिनगी के हे रीत।
खेल खेल मा बाढत जाही,छंद राग प्रति प्रीत।

सब ले बढ़िया  छत्तीसगढ़िया,खाय पीय अउ बोय।
कोरोना ले बाँचे बर गा, चघा साँकरी  सोय।

डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

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 मोहन मयारू: (चौपई छंद)*

सुनलव संगी मोर मितान ,
 साफ सफाई मा दव ध्यान ।
कोरोना  फइले  हे जान  ,
 संकट  मा  हे सबके प्रान ।।

फइलत हे भारी जी रोज ,
 रहव घरे मा सब झन सोज ।
कहत हँवव तँय कहना मान ,
 कोरोना घातक हे जान ।।

बाहिर मा जादा झन जाव ,
साफ सफाई ला अपनाव ।
रहव अपन परिवारे संग ,
जीतव कोरोना ले जी जंग ।।

साबुन ले जी धोवव हाथ ,
रहव घरे मा सब के साथ ।
सफल लॉकडाउन जी होय ,
 कोरोना वायरस ग रोय ।।

कहिथे ग महामारी आय ,
 बिन उपाय के ये नइ जाय ।
स्वच्छता ला जे अपनाय ,
 बड़े बिमारी उही भगाय ।।

रखव सफाई अँगना खोर ,
 कोरोना के कनिहा टोर ।
जावँय कोरोना के नाम ,
 सोच समझ के करबो काम ।।

सुग्घर स्वच्छता अभियान ,
 झन बनहू संगी अनजान ।
येला जम्मो झन अपनाव ,
अपन संग परिवार बचाव ।।

                     मोहन कुमार निषाद
                 गाँव - लमती , भाटापारा ,
                जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

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 महेंद्र बघेल: चौपाई छंद:-

कोरोना के आड़ मा

*इहाॅं लाॅक डाउन हवय,काम काज हर बंद।*
*घर के भीतर आदमी, होगॅंय शक्कर कंद।।*

जब आइस कोरोना बइरी,अब्बड़ मताइस येहर गइरी।
रतिहा बब्बा परगट होइस,येला सुनके मन हा रोइस।
मटक मटक के मारिस फंटा,बचे रिहिस जी चारे घंटा।
अपने घर में सबे धॅंधागे, सोच सोच के जी कउवागे।
कामकाज में लगगे तारा,कमिया मन के बजगे बारा।
कामचोर के किस्मत जागिस,छुट्टी ला मनचाहा पागिस।
सबो डहर होवय करलाई ,नहीं मिलिस जी कहूॅं दवाई।
खोजत खोजत डॉक्टर गुनिया,भटकत हावय सारी दुनिया।

*मूड़पुलुस लउठी धरे,ठाढ़े पुलिस जवान।*
*उतियाइल के पीठ मा, छोंड़य लोर निसान।‌।*

बिना काम जे आवय जावय,धरके उन ला नॅंगत ठठावय।
कागजात बर पहिली रोकें,मिले नहीं तब कस के ठोकें।
अब्बड़ दिन मा पाइन मउका,रहि रहि भाॅंजिन मन भर चउका।
खुलेआम ये हाथ सफाई ,झार रझारझ करें धुलाई ।
जब-जब देखे तीन सवारी,छूट बखानैं फूहर गारी।
तब उतार के गिन गिन कूटे,भला गोड़ अउ पसली टूटे।
हाथ जोड़ वो गलती माने,तभो सिपाही लउठी ताने।
नाक कान में मास्क लगाके, काम करत हें जान बचाके।

*घर के भीतर मा कहाॅं, अब सोशल डिस्टेंस।*
*खई खजानी देखके, भूलत कॉमन सेंस।।*

आये हे अलहन बड़ भारी, हलाकान मा दुनिया सारी।
गुटुर मुटुर घर मा रहि रहिके,टेम पहावत सुख दुख सहिके।
चना फुटेना घर मा खोजे,किसम किसम के खावॅंय रोजे।
खानपान के दिन भर चरचा,रॅंधनी घर के बाढ़य खरचा।
चुट ले मारे सब हुसियारी,का करही गृहणी दुखियारी।
होवय सबके तन हा थुलथुल, खाके गुरहा भजिया गुलगुल।
जभे बने जी  नरिहर लाड़ू,तभे लगावय पोंछा झाड़ू।
फकत खाय के चिन्ता भारी,टेंक जथें जी धरके थारी।

*घर दुवार के गोठ ला,कतका करॅंव बखान।*
*बड़ जल्दी उरकत हवय, बेसन गहूॅं पिसान।।*

सास बहू के कथा कहानी,भरय लाॅक डाउन मा पानी।
कहूॅं मरद घर मा रहि जावय,दूनो झन दिन भर भुॅंभवावय।
भूलावत अब निंदा चारी, चुप्पे हें कलकलहिन नारी।
बंद होय हे अब सकलाना ,पटर पटर दिन भर बतियाना।
मइके मा बड़ फोन लगावय ,नवा रिसेपी उहिंचे पावय।
गोसईन ला मिलगे मौका ,आधा बॅटगे चूल्हा चौका ।
गोसइया जब बर्तन माॅंजे,खड़र खड़र तब रॅंधनी बाजे।
रउताइन के पइसा बाचय ,सोच सुवारी ठुमके नाचय।

*कोरोना के ताव हर, कइसन करदिस घाव।*
*सड़क बीच मजदूर हर, भुगतिस सबो अभाव।।*

कठिन हवय मजदूर कहानी,उकर कोन समझय जिनगानी।
काम करे मजदूर कहावय,सत इमान ले भूख मिटावय।
जड़िस कारखाना मा ताला, भविस इकर तब होइस काला।
घाम प्यास मा रेंगत जीना,रोटी खातिर दुख ला पीना।
जीभ लमा के मुॅंहुॅं ला चाॅंटिस,तब अतड़ी ला पीरा बाॅंटिस।
छल बल ला थोरिक नइ जाने, काम कमाई बस पहिचाने।
गढ़य रोज रोटी के किस्सा,सबके सुख मा इकरो हिस्सा।
कलपत निकलिस समय विकट जी, घर के बाहिर मौत निकट जी।

*आइन उड़त जहाज में, पइसा वाले पूत।*
*तब गरीब बर ट्रेन बस ,कइसे होइस छूत।।*

जाॅंगर टोड़ कमाथे कमिया,इकरे खातिर सुग्घर दुनिया।
बरस तिहत्तर बितगे भाई, तबले ये कइसन हे खाई।
राजा धरले तोरे बाना ,मिले पेट भर सबला खाना।
भूख हरे बड़का बीमारी,दिखे कभू ना इही लचारी।
माॅंग किराया अब झन खेदव,घर बाहिर इनला छत देदव ।
इकर भरोसा तॅंय व्यापारी,इही बनाथें महल अटारी।
कोरोना के अकथ कहानी,चेत रखत कटही जिनगानी।
टीका फाॅंदा येकर आही,धीर बाॅध तब यहू भगाही।।

*कोरोना के आड़ मा, होवत भ्रष्टाचार।*
*अबतो ऑंखी खोल के, कर लव सोच विचार।।*

महेंद्र कुमार बघेल

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(  छप्पय छंद )
-------------------राधेश्याम पटेल
     
आय  बिपत  हे  आज ,
       होत हे जग मा खलभल।
कोरोना   के   पाँव  , 
      बढ़त हे आघू  पल पल ।।
सोच  समझ सब  फेल ,
      होत    हे    संसो    भारी ।
कब  का  जी  हो  जाय ,
      होत  हे  घर  घर  चारी ।।
चेत  लगा के हम करी ,
      ओही  हवय  उपाय  जी ।
मुँह बाँधी दुरिहा रही , 
       शासन दिहे बताय जी ।।

मुक्ति  के  इही  सार  ,
        करे  बर  परही  बारन ।
दुसर  भरोसा  छोंड़  , 
        नई   ये  एखर   मारन ।।
छोंड़ी मन के  साध  ,
        अभी तो  बेर ल  काटी।
साँस बिना  बेकार  , 
         सबो जी कँचरा माटी।।
जरुर करोना भागही,
         ठाने  परन बिचार  ले ।
बाँध झिपारी ला रखव,
       भिथिहा छेंक झिपार ले।।
                                   
                                 ---रचना
                     राधेश्याम पटेल
                   तोरवा बिलासपुर

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7 comments:

  1. बहुत सुग्घर संकलन

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  2. गज़ब सुग्घर संकलन

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  3. बेहतरीन संकलन गुरूदेव सादर प्रणाम

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  4. बहुत बढ़िया संकलन होगे भाई

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  5. कोरोना ऊपर बहुत बढ़िया संकलन कविताएँ आप सभी को बहुत बहुत बधाई

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  6. कोरोना समस्या अउ बचाव ऊपर गजब सुघ्घर संकलन गुरूजी!सादर नमन् ।

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  7. अब्बड़ सुग्घर संकलन भइया 🙏🙏

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