छप्पय छंद - द्वारिका प्रसाद लहरे
(१)योग
योग करव जी रोज, देंह ला पोठ बनालव।
सुबह करव अउ साँझ, रोग ला दूर भगालव।
आसन कोनों होय, लहू के दउँडा करथे।
करथे मन आनंद, सबो पीरा ला हरथे।
आलस दूर भगाय जी, रोज करव सब योग ला।
रूप दमकथे सोन कस, दूर करय सब रोग ला।।
(२)अथान
चुचवावय जी लार, देख के कच्चा आमा।
मँहगा हावय दाम, फेर मँय लेहूँ कामा।
कइसे धरौं अथान, नून बर पइसा चाही।
मँहगाई के मार,मसाला कइसे आही।
अमराई अब नइ दिखे, रोज कटत हे पेड़ जी।
पहिली जम्मो खेत मा, पेड़ लगय सब मेड़ जी।।
(३) छत्तीसगढ़ी भाखा
भाखा गुत्तुर जान, सुहावय सबला भारी।
बोलव सुग्घर गोठ, राख लौ मया चिन्हारी।
बोली भाखा ठेठ, लगे जइसे फुलवारी।
महकत हावय राज, गाँव अउ कोला बारी।
हमरो भाखा जान लौ, सबले हावय पोठ जी।
सब मनखे ला भाय हे, छत्तीसगढ़ी गोठ जी।।
छंदकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा
(१)योग
योग करव जी रोज, देंह ला पोठ बनालव।
सुबह करव अउ साँझ, रोग ला दूर भगालव।
आसन कोनों होय, लहू के दउँडा करथे।
करथे मन आनंद, सबो पीरा ला हरथे।
आलस दूर भगाय जी, रोज करव सब योग ला।
रूप दमकथे सोन कस, दूर करय सब रोग ला।।
(२)अथान
चुचवावय जी लार, देख के कच्चा आमा।
मँहगा हावय दाम, फेर मँय लेहूँ कामा।
कइसे धरौं अथान, नून बर पइसा चाही।
मँहगाई के मार,मसाला कइसे आही।
अमराई अब नइ दिखे, रोज कटत हे पेड़ जी।
पहिली जम्मो खेत मा, पेड़ लगय सब मेड़ जी।।
(३) छत्तीसगढ़ी भाखा
भाखा गुत्तुर जान, सुहावय सबला भारी।
बोलव सुग्घर गोठ, राख लौ मया चिन्हारी।
बोली भाखा ठेठ, लगे जइसे फुलवारी।
महकत हावय राज, गाँव अउ कोला बारी।
हमरो भाखा जान लौ, सबले हावय पोठ जी।
सब मनखे ला भाय हे, छत्तीसगढ़ी गोठ जी।।
छंदकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा
बहुत सुग्घर सर जी
ReplyDeleteगुरूदेव सादर प्रणाम साभार
Deleteगुरूदेव सादर प्रणाम साभार
ReplyDeleteबढ़िया सृजन भाई...
ReplyDelete👌👌👏👏👍👍🌹🌹
बड़ सुग्घर छप्पय लहरे सर
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