कुंडलियाँ छंद- डॉ तुलेश्वरी धुरंधर
(1)आय तारे बर चोला
-------------------------
चोला तारे बर करे,तप ला हथवा जोड़।
ओला गंगा देख के,आय सरग ला छोड़।।
आय सरग ला छोड़,बहत हे निर्मल धारा ।
गावत हाबय तोर,सबो जस ला जग सारा।।
पुरखा तरगे तोर,बिसर नइ जावय तोला।
भगीरथ तँय आय,इँहा तारे बर चोला।
(2)बादर
--------------
भारी बादर छाय हे, बिजली कड़कय आज।
कलप कलप के मन कहे ,करदे पूरा काज।।
करदे पूरा काज,कहत हें धरती दाई।
कबसे लगे पियास ,बुझा दे बादर भाई।।
नाच झूम ले आज,आय हे तोरो पारी।
होही पूरा आस ,छाय हे बादर भारी।।
(3) छत
------------
पहुना बेटी होय जी,ममता हिरदे जोर।
छलक छलक जाथे मया, मइके अँगना खोर।।
मइके अँगना खोर, सबो सुघ्घर हाबय जी।
आही बेटी सोंच,तोर मन हरसावय जी।।
बेटी रोवय सोंच,दुवारी अँगना कहुँना।
कइसे मन समझाय,होय गे बेटी पहुना।।
(5)पहुना जब घर आय
-----------------------------
पानी लोटा मा रखव,पहुना जब घर आय।
हाथ गोड़ धोवा तहाँ,जेवन देवव खाय।।
जेवन देवव खाय,मिलय जी सुख हर भारी।
मया अबड़ के पाय, आय घर पारी पारी।।
जेवन बने परोस ,काट दे आमा चानी।
सब ला बने सुहाय ,रखव भर लोटा पानी।।
रचनाकार-डॉ तुलेश्वरी धुरंधर
अर्जुनी,बलौदाबाजार।
छत्तीसगढ़,
(1)आय तारे बर चोला
-------------------------
चोला तारे बर करे,तप ला हथवा जोड़।
ओला गंगा देख के,आय सरग ला छोड़।।
आय सरग ला छोड़,बहत हे निर्मल धारा ।
गावत हाबय तोर,सबो जस ला जग सारा।।
पुरखा तरगे तोर,बिसर नइ जावय तोला।
भगीरथ तँय आय,इँहा तारे बर चोला।
(2)बादर
--------------
भारी बादर छाय हे, बिजली कड़कय आज।
कलप कलप के मन कहे ,करदे पूरा काज।।
करदे पूरा काज,कहत हें धरती दाई।
कबसे लगे पियास ,बुझा दे बादर भाई।।
नाच झूम ले आज,आय हे तोरो पारी।
होही पूरा आस ,छाय हे बादर भारी।।
(3) छत
बिन छत कोनो झन रहय,दुख कोनो झन पाय।
बरसा गरमी जाड़ मा ,सबके जान बचाय।।
सबके जान बचाय,रहे बर छैहा देके।
पक्का घर सुख देय, जाड़ गरमी ला छेके।
संसो फिकर ला छोड़, पहावै सुख मा सब दिन।
मिले सबे ला ठौर, रहय झन कोनो छत बिन ।।
(4)पहुना------------
पहुना बेटी होय जी,ममता हिरदे जोर।
छलक छलक जाथे मया, मइके अँगना खोर।।
मइके अँगना खोर, सबो सुघ्घर हाबय जी।
आही बेटी सोंच,तोर मन हरसावय जी।।
बेटी रोवय सोंच,दुवारी अँगना कहुँना।
कइसे मन समझाय,होय गे बेटी पहुना।।
(5)पहुना जब घर आय
-----------------------------
पानी लोटा मा रखव,पहुना जब घर आय।
हाथ गोड़ धोवा तहाँ,जेवन देवव खाय।।
जेवन देवव खाय,मिलय जी सुख हर भारी।
मया अबड़ के पाय, आय घर पारी पारी।।
जेवन बने परोस ,काट दे आमा चानी।
सब ला बने सुहाय ,रखव भर लोटा पानी।।
रचनाकार-डॉ तुलेश्वरी धुरंधर
अर्जुनी,बलौदाबाजार।
छत्तीसगढ़,
बहुत सुन्दर दीदी 👌👌💐💐🙏
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दीदी
ReplyDelete
ReplyDeleteबढ़िया कुंडलियाँ बहिनी...बधाई बहुत बहुत
🌹🌹🌹🙏🙏🙏🌹🌹🌹
-------------
बिन छत कोनो झन रहय,दुख कोनो झन पाय।
बरसा गरमी जूड़ ले, सबके जीव बचाय।।
सबके जीव बचाय,अबड़ सुख हर मिलही जी।
पक्का जब घर होय,नहीं कोनो भिंगही जी।।
बड़ झन बेघर ताँय, दिखँय रद्दा मा भटकत।
दुख एको झन पाँय,रहँय कोनो झन बिन छत।।
बढिया प्रयास है बहिनी
ReplyDelete