छत्तीसगढ़ के पावन तिहार हरेली बर छंद परिवार डहर ले छंदबद्ध रचना
हरेली तिहार-
सावन महिना के परब, हरय हरेली नाँव ।
सजे गाँव घर द्वार हे, संग पिरित ले छाँव ।।
संग पिरित ले छाँव, सजे हे बइला नाँगर ।
कुलके आज किसान, खुशी मा झूमे जाँगर ।।
लइका गेड़ी खाप, मचे हे बड़ मन भावन ।
खुशी धरे सौगात, आय हे महिना सावन ।।
बनथे खुरमी ठेठरी, हर घर मा पकवान ।
लोंदी धरे किसान हा, जाथे जी दइहान ।।
जाथे जी दइहान, साज के पूजा थाली ।
करके पूजा पाठ, मनाथे सब हरियाली ।।
लोंदी पान खम्हार, नून आटा मा सनथे ।
खाथे गरुवा गाय, निरोगी तब वो बनथे ।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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सार छंद-सूर्यकांत गुप्ता "कांत"
रेंग रेंग अब कहाँ खियाथे, देखौ ककरो एड़ी।
गाँव म दिखथे चढ़थें लइकन, सहर कहाँ अब गेंड़ी।।
कहाँ लीम के डारा पाना, आके कउनो खोचैं।
बन के रहि जाथे बस हाना, एला चिटिकुन सोचैं।।
तंतर मंतर भले भुलावौ, अँधबिसवास बढ़ाथे।
मगर लीम के डारा पाना, रोग संग लड़ जाथे।।
बने जान के दुश्मन जँउहर, कोरोना हे बगरे।
भोगे हें भोगत हें एकर पीरा पूरा जग रे।।
देख मरे मनखे हें के झन, नइये आज दवाई।
मसमोटी मा रहिके फोकट काबर प्रान गँवाई।।
धोवाई जी हाथ बने अस, अउ मुँह नाक ढँकाई।
भीड़ भाड़ ले बच के रहना, एला झनिच भुलाई।।
कहाँ दवाई कइसे मिलही, भोले तहीं बताबे।
आके तहीं इहाँ तिरलोकी, सबके प्रान बचाबे।।
आवौ आज हरेली आगै, सब झन इही मनावन।
दुखिया के दुख हरै प्रभूजी, बीतै सुंदर सावन।।
जम्मो झन ला हरेली के गाड़ा गाड़ा बधाई जी.....
जय जोहार....
सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छ. ग.)
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मनहरण घनाक्षरी छंद :(जगदीश "हीरा" साहू)
होगे हावय बियासी, धोवव नाँगर जूड़ा,
गइती रापा रपली, कुदरी ला लाव जी।
बिंधना पटासी आरी, बसुला खुरपी छीनी,
हँसिया हथौड़ी हेर, हबले धोवाव जी।।
लाके गा खम्हार पत्ता, सान के पिसान नून,
जाके बरदी मा गाय, बछरू खवाव जी।
घर आके सब मिल, आनी बानी रोटी पीठा,
संग मा बनाके चीला, रोटी ला चढ़ाव जी।।1।।
खोज-खोज सोझ-सोझ, काट-काट छाँट बाँस,
चीर-चीर बाँध जल्दी, गेंड़ी ला बनाव जी।
छोटे बड़े गेंड़ी साज, घूमौ सबो मिल आज,
चिखला माटी ले सब, गोड़ ला बचाव जी।।
पूजा पाठ कर लव, पहिली तिहार येहा,
मिलके हरेली आज, सुग्घर मनाव जी।
बिसरत हावय अब, हमर तिहार सब,
जुरमिल सबो संसकृति ला बचाव जी।।2।।
घर-घर लीम डारा, खोंचत हावै बइगा,
ठोंकय लोहार खीला, सब घर जात हे।
मान पावै ख़ुशी-ख़ुशी, गाँव भर झूमे नाचे,
सब मिल गेंड़ी चढ़े, बड़ सुख पात हे।।
आना जाना लगे गली, लइका सियान सब,
रंगे धरती के रंग, बड़ इतरात हे।
घर के दुवारी बैठे, देख-देख जगदीश,
ननपन के अपन, सुरता लमात हे।।3।।
जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)
कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार
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राजेश निषाद: ।। चौपई छंद ।।
उठ जा संगी होगे भोर,धोले नागर बइला तोर।
करव सफाई अँगना खोर,हवय हरेली के बड़ शोर।।
आये परब हरेली जान,कहना संगी तैंहर मान।
रापा बँसला हँसिया साथ,राखव सबला धोके हाथ।।
हुँम जग देके सबझन आय,डीही डोंगर माथ नवाय।
राँधय चीला रोटी आज,भोग लगा के करथे काज।।
लाके संगी अंडी पान, बाँधे बढ़िया लोंदी सान। बिहना दईहान सब जाय, गइया मन ला अपन खवाय।।
धरे नीम के डारा जाय, सबला येकर कथा सुनाय।
राउत भइया के बड़ सोंच,घर घर आथे ओहर खोंच।।
घर घर जाथे जी लोहार,धरे हवय छुटकुन अउजार।
धरे खिला जी ओहर आय,घर के चऊँखट रहय गड़ाय।।
सावन महिना के हे सार,हरियर हरियर खेती खार।
छत्तीसगढ़ के हरय तिहार,सबके खुश रहिथे परिवार।।
रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद
रायपुर छत्तीसगढ़।
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सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा,बढ़े मया बरपेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।
रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी,फुगड़ी खो खो माते।
खुडुवा खेले फेंके नरियर,होय मया के बाते।
भिरभिर भिरभिर भागत हावय,बैंहा जोर सहेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली----।
सावन मास अमावस के दिन,बइगा मंतर मारे।
नीम डार मुँहटा मा खोंचे,दया मया मिल गारे।
घंटी बाजै शंख सुनावय,कुटिया लगे हवेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली-।
चन्दन बन्दन पान सुपारी,धरके माई पीला।
रापा गैंती नाँगर पूजय,भोग लगाके चीला।
हवै थाल मा खीर कलेवा,दूध म भरे कसेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली-।
गहूँ पिसान ल सान मिलाये,नून अरंडी पाना।
लोंदी खाये बइला बछरू,राउत पाये दाना।
लाल चिरैंया सेत मोंगरा,महकै फूल चमेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।
बेर बियासी के फदके हे,रँग मा हवै किसानी।
भोले बाबा आस पुरावय,बरसै बढ़िया पानी।
धान पान सब नाँचे मनभर,पवन करे अटखेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली---।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795
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सार छंद - बोधन राम निषादराज
रिमझिम रिमझिम बरसत पानी,
देख हरेली आ गे।
ये भुइँया के भाग सँवर गे,
खुशहाली बड़ छा गे।।
सावन महिना सुघर अमावस,
सवनाही शुभ साजे।
पहिली परब मनावत संगी,
रुच-रुच गेड़ी बाजे।।
आज किसानी नाँगर जूड़ा,
जम्मों हा धोवा गे।
ये भुइँया के भाग सँवर गे...............
गौ माता बर बनगे लोंदी,
अँगना बने लिपागे।
निमुआ डारा द्वार मुँहाटी,
राउत हाथ टँगागे।।
घर-घर राँधै चीला पपची,
गली खोर ममहागे।
ये भुइँया के भाग सँवर गे............
हरियर खेती चारों कोती,
लहर लहर लहरावय।
पड़की,मैना,सुआ,कोयली,
सुम्मत गीत सुनावय।।
सुग्घर पुरवा चलत बिहनिया,
सब के मन हरषागे।
ये भुइँया के भाग सँवर गे.............
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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सरसी छंद - श्रीमती आशा आजाद
सुघर तिहार हरेली हावै,मनखे सब मुस्काय।
नेक परब के महिमा अब्बड़,गावै खुशी मनाय।।
साफ सफाई कर घर लीपय,चमकय खोर दुवार।
खुशी मनावय प्रेम भाव ले,रखे बने व्यवहार।।
गैंती राँपा नाँगर सबला,चमचम चम चमकाय।
पूजा करथें मिलजुल सबझन,आज सबो मुस्काय।।
मीठा गुड़ के गुत्तुर चीला, रंग रंग पकवान।
पूजा कुलदेवता के करथे,घर के सबो सियान।।
फेंकय नरियर जोर लगाके,सुग्घर खेलय खेल।
मया बाँटथें सब आपस मा,अंतस मा रख मेल।।
तुलसी के चौंरा हा चुक ले,सुग्घर रहय लिपाय।
नदियाँ के बँजरी ला लाके,देते उँहा बिछाय।।
गेड़ी चढ़के मजा उड़ावय,लेवय बड़ आनंद।
खुशहाली मा झूमै गावै,काम काज कर बंद।।
पूजा डोली के सब करथे,जम्मो हमर किसान।
आज सुमरथे उपजै सुग्घर,खेत खार के धान।।
जगा जगा हरियाली छाये,मन ला अब्बड़ भाय।
नेक परब ला मिल जुल मानै,सुख मा रहय भुलाय।।
नाचै गावै खेलै कूदै,अब्बड़ धूम मचाय।
लइका मन सब गेड़ी चढ़के,खुशी म बड़ हरसाय।।
खोंचय लिम के डारा जानौ,घर घर अपने जान।
बीमारी ला दूर भगाथे,कहिथे सबो सियान।।
प्रेम बरसते कतका बढ़िया,मीठा मन के भाव।
हमर राज सबो तिहार के,सबझन माथ नवाव।।
छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर,कोरबा,छत्तीसगढ़
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ताटंक छंद-डीपी लहरे
पावन सावन के महिना हा,लाये हे खुशहाली जी।
ए धरती मा चारो कोती,छाये अब हरियाली जी।।
सुघ्घर परब हरेली आये,मिलके सबो मनाबो गा।
खुशी बाँटबो दया मया के,सबके मन हरसाबो गा।।
रोटी-पीठ घर-घर चूरे,मिलही भर-भर थाली जी।
पावन सावन के महिना हा,लाये हे खुशहाली जी।।
धो के सुग्घर रखबो संगी,सफ्फो जिनिस किसानी के।
गरुवा मन ला आज खवाबो,लोंदी हमर मितानी के।।
पूजा करबो इँखरे अब तो,नइ राहन हम खाली जी।।
पावन सावन के महिना हा,लाये हे खुशहाली जी।।
लीम डार ला राउत खौंचे,घर के चौखट बेड़ी मा।
लइका मन हा मजा उड़ावँय,खेलँय चढ़ के गेंड़ी मा।।
कतको नरियर फेंकत हाँवय,करके बने खियाली जी।
पावन सावन के महिना हा,लाये हे खुशहाली जी।।
छंदकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़
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सार छन्द:- गुमान प्रसाद साहू
आये हावय परब हरेली, जुरमिल चलव मनाबो।
परब हमर ये पहिली संगी, सुग्घर सब परघाबो।।
सावन मास अमावस्या मा, ये तिहार हा आथे।
गाँव गाँव अउ गली गली मा, हरियाली बगराथे।।
बरदी मा जाके गइया ला, लोंदी सबो खवाबो।
बन कांदा दसमूल गोंदली, के प्रसाद ला खाबो।।
धो धोवाके जिनिस किसानी, सुग्घर सबो सजाथे।।
नरियर चीला फूल चढ़ाके, गुड़ के सँग जेंवाथे।।
नीम डार खोंचे बर राउत, घर घर सबके जाथे।
बइगा घलो अशीस देके, दार चाऊँर पाथे।।
लइका मन हा मचथे गेड़ी, भारी मजा उठाथे।
दीदी बहिनी खो-खो फुगड़ी, खेले भाठा जाथे।।
छन्दकार:- गुमान प्रसाद साहू, ग्राम- समोदा(महानदी)
जिला रायपुर छत्तीसगढ़
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घनाक्षरी- दिलीप कुमार वर्मा
हरेली तिहार आगे,बुता काम ह सिरागे,
नाँगर कुदारी धो के, आरती दिखाव जी।
दशमूल के दवाई,आज सब खावा भाई,
गरुवा ल तक देवा, लोंदी भी खवाव जी।
गेंड़ी बने खाप देहु, चढ़ के मजा ल लेहु,
चिखला म रेंग आज, रेस भी लगाव जी।
मिल के कबड्डी खेला, फेंकौ नरियर भेला,
ताकत दिखाए बर, दंगल कराव जी।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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सोरठा छंद- ज्ञानुदास मानिकपुरी
परब हरेली आय, पहिली हमर तिहार हे।
मिलजुल सबो मनाय, दया मया बाँटत सुघर।।
उठके ददा बिहान, लोंदी आज बनात हे।
जावय धर दइहान, बछरू गाय खवाय बर।।
लगे आज बाज़ार, जइसे जम्मो गाँव हा।
बाँटत मया दुलार, हावय आज सियान मन।।
धरे नीम के डार, घर घर खोचत जात हे।
दे सब चाउँर दार, राउत भइया ला सुघर।।
खीला ला लोहार, ठोकत जावय द्वार मा।
मालिक ला जोहार, बोलत जावत हे सुघर।।
अउ बइगा महराज, हूम धूप देवत हवय।
सफल होय सब काज, हो सहाय सब देवता।।
नाँगर जूड़ा संग, रापा कुदरा धोत हे।
उजरावत हे अंग, बिधना हँसिया के सुघर।।
पूजा करय किसान, नरियर चिला चढ़ात हे।
समझय अपन मितान, जीयत जिनगी भर सदा।।
भारी मजा उड़ाय, लइकामन गेड़ी चढ़े।
मच मच रेंगत जाय, संगी साथी जहुँरिया।।
आनी बानी खेल, नोनीमन खेलत हवै।
सखी सहेली मेल, गंगा जमुना सरस्वती।।
हरियर खेतीखार, मन झुमरत हे देखके।
अन्नधान्य भंडार, सदा भरे सबके रहय।।
अँधियारी के पाँख, सावन महिना चउथ के।
सुरता ला तँय राख, परब हरेली दिन इही।।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा(छत्तीसगढ़)
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आल्हा छन्द, अजय अमृतांशु
सुन लव बहिनी सुन लव भाई, देख हरेली बड़े तिहार।
लइका पिचका खुशी मनावय, झूमत हावय खेती खार।
नदिया बइला लइका खीँचय, गेंड़ी मा सब चढ़ै जवान।
थारी नरियर पान सुपारी, घर घर पूजा करय किसान।
गेंड़ी बाजय रच रच रच रच,परब हरेली आज मनाय।
राँपा गैती के पूजा अउ, बइला भैंसा लोंदी खाय।
गाँव गाँव ला बइगा बाँधय, खीला ठोंकत हे लोहार।
घूम घूम के राउत भैया, बाँधत हावय ग लीम डार।
हरियर हरियर चारो कोती, सुग्घऱ दिखथे खेती खार।
सावन के महिना मा देखव, फइले रखिया कुंदरु नार।
बरा सोहारी भजिया खावव,चीला झड़कव मिलके चार।
खेल कबड्ड़ी मजा उड़ा लव, नरियर फेंकव बल भर यार।
गाँव गाँव के बइला जोंडी, सजे चकाचक देखव आय।
खन्नर खन्नर बजय घाँघड़ा, बइला सरपट दउँड़त जाय।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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सोरठा छंद- ज्ञानुदास मानिकपुरी
परब हरेली आय, पहिली हमर तिहार हे।
मिलजुल सबो मनाय, दया मया बाँटत सुघर।।
उठके ददा बिहान, लोंदी आज बनात हे।
जावय धर दइहान, बछरू गाय खवाय बर।।
लगे आज बाज़ार, जइसे जम्मो गाँव हा।
बाँटत मया दुलार, हावय आज सियान मन।।
धरे नीम के डार, घर घर खोचत जात हे।
दे सब चाउँर दार, राउत भइया ला सुघर।।
खीला ला लोहार, ठोकत जावय द्वार मा।
मालिक ला जोहार, बोलत जावत हे सुघर।।
अउ बइगा महराज, हूम धूप देवत हवय।
सफल होय सब काज, हो सहाय सब देवता।।
नाँगर जूड़ा संग, रापा कुदरा धोत हे।
उजरावत हे अंग, बिधना हँसिया के सुघर।।
पूजा करय किसान, नरियर चिला चढ़ात हे।
समझय अपन मितान, जीयत जिनगी भर सदा।।
भारी मजा उड़ाय, लइकामन गेड़ी चढ़े।
मच मच रेंगत जाय, संगी साथी जहुँरिया।।
आनी बानी खेल, नोनीमन खेलत हवै।
सखी सहेली मेल, गंगा जमुना सरस्वती।।
हरियर खेतीखार, मन झुमरत हे देखके।
अन्नधान्य भंडार, सदा भरे सबके रहय।।
अँधियारी के पाँख, सावन महिना चउथ के।
सुरता ला तँय राख, परब हरेली दिन इही।।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा(छत्तीसगढ़)
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आल्हा छन्द, अजय अमृतांशु
सुन लव बहिनी सुन लव भाई, देख हरेली बड़े तिहार।
लइका पिचका खुशी मनावय, झूमत हावय खेती खार।
नदिया बइला लइका खीँचय, गेंड़ी मा सब चढ़ै जवान।
थारी नरियर पान सुपारी, घर घर पूजा करय किसान।
गेंड़ी बाजय रच रच रच रच,परब हरेली आज मनाय।
राँपा गैती के पूजा अउ, बइला भैंसा लोंदी खाय।
गाँव गाँव ला बइगा बाँधय, खीला ठोंकत हे लोहार।
घूम घूम के राउत भैया, बाँधत हावय ग लीम डार।
हरियर हरियर चारो कोती, सुग्घऱ दिखथे खेती खार।
सावन के महिना मा देखव, फइले रखिया कुंदरु नार।
बरा सोहारी भजिया खावव,चीला झड़कव मिलके चार।
खेल कबड्ड़ी मजा उड़ा लव, नरियर फेंकव बल भर यार।
गाँव गाँव के बइला जोंडी, सजे चकाचक देखव आय।
खन्नर खन्नर बजय घाँघड़ा, बइला सरपट दउँड़त जाय।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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: अमृतध्वनि छंद
परब हरेली गाँव मा, सब ला अबड़ सुहाय।
लइका लोग सियान मन, खोल गली जुरि जाय।।
खोल गली जुरि, जाय सुघर गा, हे मन भावन।
परब हरेली, आज बरस दे, रिमझिम सावन।।
नाचय कूदय, गेड़ी चढ़के, ठेलक ठेली।
बरा ठेठरी, ले महकय घर, परब हरेली।।
रचनाकार - रामकली कारे बालको नगर कोरबा
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: सरसी छंद - पोखन लाल जायसवाल
पावन हवै महीना सावन,आथे धरे तिहार।
पहिने हरियर लुगरा धरती, झूमे खेती खार।।
जुर मिल करथे भइया भउजी,सुग्घर खेती खार।
महतारी के अँचरा साजे,रकत पछीना गार।।
परब हरेली करय अगोरा,सावन मावस पार।
खुशहाली बगरावय अबड़े,खोंच घरोघर डार।।
रापा रपली पूज कुदारी,छूटय सबो उधार।
मान हरेली सबो ल देवय,अइसन हरय तिहार।।
गली-खोर जब चिखला मातय,आवय रोग हजार।
गँवई माँगय असीस देवत,बइगा मंतर मार।।
बने बाँस ले गेंड़ी बाजय,रच रच रच रच मार।
गली-खोर अउ अँगना परछी,गेंड़ी दउड़य झार।।
गुरहा चीला के का पाही,खई खजाना पार।
नाती बबा संग बइठै अउ,खाय पालथी मार।।
दया मया ले जोरे रहिथे,हमरो तीज तिहार।।
बड़ सुख पाथें तीज परब मा,मिलके सब परिवार।।
छंदकारःपोखन लाल जायसवाल
पलारी
जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.
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सरसी छंद-चित्रा श्रीवास
हरियर लुगरा पहिरे भुइयाँ, करे नवा सिंगार।
खुलके हाँसय नदियाँ नरवा, बाँध मया के तार।।
सावन लेके आये हावय,देखव खुशी अपार।
सावन महिना आय हरेली,पहली हमर तिहार।।
गुरहा चीला बनथे घर घर,गुलगुल भजिया साथ।
रापा गैैंती नाँगर पूजय,फेर नवाये माथ।
गेंडी चढ़के चलथे रच रच ,लइकन मन हरषाय।
नरियर फेंकय खेल खेल मा,बाजी खूब लगाय।।
छंद कार-चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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बहुत सुंदर संकलन, हरेली के गाड़ा गाड़ा बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर गुरुदेव जी
ReplyDeleteसुंदर संकलन, आप सबो ला हरेली परब के गाड़ा गाड़ा बधाई।
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ के कृषि संस्कृति ला सँजोवत ,गजब सुघ्घर रचना आप मन के। बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteसुग्घर संकलन
ReplyDeleteबहुत सुंदर संकलन आप सब ला हरेली तिहार के बधाई हो
ReplyDeleteसुग्घऱ
ReplyDeleteसुग्घर संकलन
ReplyDelete