कुण्डलिया छंद - श्लेष चन्द्राकर
(1)
कहिथे गुरु जे बात ला, सुनव लगाके ध्यान।
जिनगी मा होहू सफल, गोठ सियानी मान।।
गोठ सियानी मान, इही मा सार छुपे हे।
जेमा शिक्षा संग, उखँर गा प्यार छुपे हे।।
आघू जाये शिष्य, सदा गुरु सोचत रहिथे।
बने बताथे बात, कहाँ बिरथा ओ कहिथे।।
(2)
घर के मुखिया छत असन, रखथे मन मा भाव।
ये जिनगी के घाम ले, करथे हमर बचाव।।
करथे हमर बचाव, कभू मुसकुल मा फँसथन।
दुख-पीरा ला भूल, रहे ले ओकर हँसथन।।
बने अपन परिवार, चलाथे मिहनत कर के।
हरय घाम मा छाँव, वइसने मुखिया घर के।।
(3)
भाषा हमर विशेष हे, करथें सबो पसंद।
छत्तीसगढ़ी मा लिखव, कहिनी कविता छंद।।
कहिनी कविता छंद, लिखव गा सुग्घर येमा।
परंपरा के गोठ, समाहित राहय जेमा।।
कहत श्लेष कविराय, इही सबके अभिलाषा।
करते रहय विकास, हमर महतारी भाषा।।
(4)
रहना सदा निरोग हे, अउ बनना बलवान।
खेलकूद सब खेल तँय, दे कसरत मा ध्यान।।
दे कसरत मा ध्यान, योग अभ्यास करे कर।
टहल बिहनिया रोज, शीत मुँहु मा चुपरे कर।।
श्लेष कहे कर जोर, मान ले संगी कहना।
कसरत कर अउ खेल, स्वस्थ तोला हे रहना।
(5)
चंगा राहन गाँव मा, खेलन दिन-भर खेल।
टोरन आमा जाम ला, संगी मार गुलेल।।
संगी मार गुलेल, निशाना अबड़ लगावन।
अउ जब बखरी जान, बेंदरा घला भगावन।।
सबले जादा भाय, खेल डंडा पचरंगा।
गाँव गँवइ के खेल, रखय सबझन ला चंगा।।
(6)
वन के संरक्षण करव, पानी घला बचाव।
बिगड़त हे पर्यावरण, जुरमिल सबो सजाव।।
जुरमिल सबो सजाव, फेर लावव हरियाली।
होही तब बरसात, दौड़ही नदियाँ नाली।।
कहत श्लेष कविराय, भला होही सबझन के।
होवत हे बर्बाद, करव रक्षा अब वन के।।
(7)
नल हा कमती देत हे, पानी देखव आज।
बूँद-बूँद बर देख लव, तरसत हवय समाज।।
तरसत हवय समाज, पियें के पानी बर गा।
गर्मी अब्बड़ तेज, दिखावत हवय असर गा।।
कहत श्लेष कविराय, सिरावत हे भू-जल हा।
कइसे देही बोल, बने पानी अब नल हा।।
(8)
उपजाऊ सब खेत मन, होवत हे बरबाद।
आज कृषक रासायनिक, डारत हावय खाद।।
डारत हावय खाद, कीटनाशक जहरीला।
खेती होगे आज, इहाँ अब्बड़ खरचीला।।
कहत श्लेष नादान, हरे ये काम चलाऊ।
गोबर खातू डार, बने रहिथे उपजाऊ।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
(1)
कहिथे गुरु जे बात ला, सुनव लगाके ध्यान।
जिनगी मा होहू सफल, गोठ सियानी मान।।
गोठ सियानी मान, इही मा सार छुपे हे।
जेमा शिक्षा संग, उखँर गा प्यार छुपे हे।।
आघू जाये शिष्य, सदा गुरु सोचत रहिथे।
बने बताथे बात, कहाँ बिरथा ओ कहिथे।।
(2)
घर के मुखिया छत असन, रखथे मन मा भाव।
ये जिनगी के घाम ले, करथे हमर बचाव।।
करथे हमर बचाव, कभू मुसकुल मा फँसथन।
दुख-पीरा ला भूल, रहे ले ओकर हँसथन।।
बने अपन परिवार, चलाथे मिहनत कर के।
हरय घाम मा छाँव, वइसने मुखिया घर के।।
(3)
भाषा हमर विशेष हे, करथें सबो पसंद।
छत्तीसगढ़ी मा लिखव, कहिनी कविता छंद।।
कहिनी कविता छंद, लिखव गा सुग्घर येमा।
परंपरा के गोठ, समाहित राहय जेमा।।
कहत श्लेष कविराय, इही सबके अभिलाषा।
करते रहय विकास, हमर महतारी भाषा।।
(4)
रहना सदा निरोग हे, अउ बनना बलवान।
खेलकूद सब खेल तँय, दे कसरत मा ध्यान।।
दे कसरत मा ध्यान, योग अभ्यास करे कर।
टहल बिहनिया रोज, शीत मुँहु मा चुपरे कर।।
श्लेष कहे कर जोर, मान ले संगी कहना।
कसरत कर अउ खेल, स्वस्थ तोला हे रहना।
(5)
चंगा राहन गाँव मा, खेलन दिन-भर खेल।
टोरन आमा जाम ला, संगी मार गुलेल।।
संगी मार गुलेल, निशाना अबड़ लगावन।
अउ जब बखरी जान, बेंदरा घला भगावन।।
सबले जादा भाय, खेल डंडा पचरंगा।
गाँव गँवइ के खेल, रखय सबझन ला चंगा।।
(6)
वन के संरक्षण करव, पानी घला बचाव।
बिगड़त हे पर्यावरण, जुरमिल सबो सजाव।।
जुरमिल सबो सजाव, फेर लावव हरियाली।
होही तब बरसात, दौड़ही नदियाँ नाली।।
कहत श्लेष कविराय, भला होही सबझन के।
होवत हे बर्बाद, करव रक्षा अब वन के।।
(7)
नल हा कमती देत हे, पानी देखव आज।
बूँद-बूँद बर देख लव, तरसत हवय समाज।।
तरसत हवय समाज, पियें के पानी बर गा।
गर्मी अब्बड़ तेज, दिखावत हवय असर गा।।
कहत श्लेष कविराय, सिरावत हे भू-जल हा।
कइसे देही बोल, बने पानी अब नल हा।।
(8)
उपजाऊ सब खेत मन, होवत हे बरबाद।
आज कृषक रासायनिक, डारत हावय खाद।।
डारत हावय खाद, कीटनाशक जहरीला।
खेती होगे आज, इहाँ अब्बड़ खरचीला।।
कहत श्लेष नादान, हरे ये काम चलाऊ।
गोबर खातू डार, बने रहिथे उपजाऊ।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
बहुत ही शानदार भावप्रवण कुण्डलिया छंद। बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteलाजवाब क़लमकारी भैया
Deleteजम्मो कुंडलियाँ लाजवाब हे भाई श्लेष...
ReplyDelete🌹🌹👏👏👍👏👏👏🌹🌹
हार्दिक आभार भैया
Deleteहार्दिक आभार गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteवाह श्लेष जी...उत्तम कुण्डलिया
ReplyDeleteबहुत सुग्घर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुग्घर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteहार्दिक आभार गुरुदेव
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
ReplyDeleteबेहतरीन सर बहुत बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत बढ़िया कुण्डलिया छंद हे
ReplyDeleteहार्दिक आभार दीदी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअतिशय आभार सर
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत बढिया बढिया कुण्डलियाँ छंद श्लेष भाई ।बधाई ।
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