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Saturday, July 4, 2020

कुंडलिया छंद - शशि साहू

कुंडलिया छंद - शशि साहू

गुरु सम दाता कोन हे,देवय अवगुन टार।
सतगुरु मोर कबीर हे,करय बहुत उपकार।।
करय बहुत उपकार, करव सब सत के पूजा।
सेवा संयम सार,इँखर सम नइये दूजा।।
गुरू होय भगवान,उही हे भाग्य विधाता।
कहवँ हाथ ला जोर,कोन हे गुरु सम दाता।।

माटी के चोला हरे,माटी मा मिल जाय।
कतको तँय हर कर जतन,माटी जठना ताय।।
माटी जठना ताय,अकेला जाना परही।
राजा हो या रंक,सबो लेसाही बरही।।
सुमर राम के नाम,शरण मा राखय तोला।
गांठ बाँध ले बात,हवय माटी के चोला।।

पावन माटी ठेंकवा,जनमिन लाल खुमान।
सातो सुर के रहे धनी,रंगमंच के शान।।
रंगमंच के शान,राज के मान बढा़इन।
सुर के बड़े सियान,लोक धुन गजब बनाइन।।
मिले गंज सम्मान,बनाये सुर मन भावन।
करयँ सबो गुन गान,ठेंकवा माटी पावन।।

छंदकारा - शशि साहू
बाल्कोनगर
जिला - कोरबा

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