कुंडलियाँ छंद- सूर्यकांत गुप्ता
कोरोना कहत हे....
भेजिस मोला चीन हर, ले बर सबके प्रान।
ऊपर सबके नाथ हे, देथे जीवन दान।।
देथे जीवन दान, बात ए नीच भुलागै।
जग मा करिहँव राज, सोच वो हर बइहागै।।
मोर बहाना काल, प्रान लेवत हे, लेजिस।
आय ओकरे चाल, 'कांत' 'वो' मोला भेजिस।।
भेजिस मोला चीन हर, ले बर सबके प्रान।
करनी ए भगवान के, समझव तुम नादान।।
समझव तुम नादान, ईश्वर सबक सिखाथे।
अपन उपर वो दोष, कहाँ कभ्भू मढ़वाथे।।
काल यवन के प्रान, काल बन कउने लेजिस।
इहों ओइसने जान, 'कांत' 'वो' मोला भेजिस।।
समझत नइऔ बात ला, कइसन अव इन्सान।
मेछरात घूमत हवव, बिन ढाँके मुँह कान।।
बिन ढाँके मुँह कान, नाक तक नइ तोपाये।
पइधिच जाहूँ 'कांत', खड़े रइहौ मुँह बाये।।
रहौ तेकरे पाय, सावधानी तुम बरतत।
प्रान तुँहर बच जाय, बात सब मानौ समझत।।
सूर्यकान्त गुप्ता, 'कांत'
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)
कोरोना कहत हे....
भेजिस मोला चीन हर, ले बर सबके प्रान।
ऊपर सबके नाथ हे, देथे जीवन दान।।
देथे जीवन दान, बात ए नीच भुलागै।
जग मा करिहँव राज, सोच वो हर बइहागै।।
मोर बहाना काल, प्रान लेवत हे, लेजिस।
आय ओकरे चाल, 'कांत' 'वो' मोला भेजिस।।
भेजिस मोला चीन हर, ले बर सबके प्रान।
करनी ए भगवान के, समझव तुम नादान।।
समझव तुम नादान, ईश्वर सबक सिखाथे।
अपन उपर वो दोष, कहाँ कभ्भू मढ़वाथे।।
काल यवन के प्रान, काल बन कउने लेजिस।
इहों ओइसने जान, 'कांत' 'वो' मोला भेजिस।।
समझत नइऔ बात ला, कइसन अव इन्सान।
मेछरात घूमत हवव, बिन ढाँके मुँह कान।।
बिन ढाँके मुँह कान, नाक तक नइ तोपाये।
पइधिच जाहूँ 'कांत', खड़े रइहौ मुँह बाये।।
रहौ तेकरे पाय, सावधानी तुम बरतत।
प्रान तुँहर बच जाय, बात सब मानौ समझत।।
सूर्यकान्त गुप्ता, 'कांत'
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)
बेरा बखत के सुग्घर रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद भाई पोखन..
Delete🙏🙏🙏🌹🌹🌹
बहुते सुघ्घर रचना है भाई जी
ReplyDeleteगज़ब सुग्घर बड़े भैयाजी
ReplyDeleteमयारुक भाई ज्ञानु!!!
Deleteसादर धन्यवाद...🌹🌹🙏🙏
सादर धन्यवाद बहिनी...
ReplyDelete🌹🌹🌹🙏🙏