सार छन्द- गुमान प्रसाद साहू
।।1।।मँहगाई।।
दिन-दिन बाढ़त हावय कतका, दुनिया मा मँहगाई।
मनखे मन के हाल बिगड़गे, होवत हे करलाई।।
पेट भरे मजदूर अपन गा, जाँगर टोर कमाथे।
फेर बढ़त मँहगाई सेती, आधा पेट ग खाथे।।
देख हवय बेकारी कतका, ऊपर ले मँहगाई।
भाव जिनिस के आगी लगगे, होवत हे दुखदाई।।
सबो जिनिस हा मँहगा होगे, मँहगा घर के सपना।
मँहगा होगे आज देवता, पूजा करके जपना।।
मँहगा चाँउर दार सबो हा, खीसा होगे ढिल्ला।
मँहगाई मा घर ल चलाना, होगे आटा गिल्ला।।
।।2।।छोड़व भेद।।
सुख दुख के जिनगी मा संगी, रहिथे आना जाना।
दुख मा सुख ला जेन खोज ले, मनखे उही सयाना।
मनखे सब झन एके हावय, भेद कभू झन जानव।
जात पात के खन के डबरा, हिरदे ला झन चानव।
ऊँच नीच हा गुण ले होथे, धन ले जी नइ होवय।
मनखे धनवर होवय कतको, पइसा मा नइ सोवय।
छंदकार:- गुमान प्रसाद साहू ,ग्राम- समोदा (महानदी)
जिला रायपुर छत्तीसगढ़
सुग्घर रचना भाईजी
ReplyDeleteसुग्घर रचना भाईजी
ReplyDeleteवाह वाह।सुग्घर सार छंद।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteवाह वाह।सुग्घर सार छंद।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर छंद बधाई हो
ReplyDeleteबड़ सुग्घर
ReplyDeleteप्रणम्य गुरुदेव अउ आप सबो सादर आभार
ReplyDeleteहार्दिक बधाई गुमान प्रसाद साहू जी सुग्घर छंद रचना के
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