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Friday, January 10, 2020

छेरछेरा तिहार विशेषांक(छंदबध्द कविता)-छंद के छ परिवार

छेरछेरा तिहार विशेषांक-छंदबध्द कविता(छंद के छ परिवार)

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कूद  कूद के कुहकी पारे,नाचे   झूमे  गाये।
चारो कोती छेरिक छेरा,सुघ्घर गीत सुनाये।

पाख अँजोरी पूस महीना,होय छेर छेरा हा।
दान पुन्न के खातिर पबरित,होथे ये बेरा हा।

कइसे  चालू  होइस तेखर,किस्सा   एक  सुनावौं।
हमर राज के ये तिहार के,रहि रहि गुण ला गावौं।

युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर  के  द्वारे।
राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।

हैहय    वंशी    शूर  वीर   के ,रद्दा    जोहे   नैना।
आठ साल बिन राजा के जी,राज करे फुलकैना।

सबो  चीज  मा हो पारंगत,लहुटे  जब  राजा हा।
कोसल पुर मा उत्सव होवय,बाजे बड़ बाजा हा।

परजा सँग रानी फुलकैना,अब्बड़ खुशी मनाये।
राज  रतनपुर  हा मनखे मा,मेला असन भराये।

सोना चाँदी रुपिया पइसा,बाँटे रानी राजा।
बेरा  रहे  पूस  पुन्नी के,खुले  रहे दरवाजा।

कोनो  पाये रुपिया पइसा,कोनो  सोना  चाँदी।
राजा के घर खावन लागे,सब मनखे मन माँदी।

राजा रानी करिन घोषणा,दान इही दिन करबों।
पूस  महीना  के  ये  बेरा, सबके  झोली भरबों।

राज पाठ हा बदलत गिस नित,तभो दान हा होवय।
कोसलपुर  के  माटी  मा  जी,अबड़ धान हा होवय।

मिँजई कुटई होय धान के,कोठी तब भर जाये।
अन्न  देव के घर आये ले, सबके  मन  हरसाये।

अन्न दान बड़ होवन लागे, आवय जब ये बेरा।
गूँजे अब्बड़ गली गली मा,सुघ्घर छेरिक छेरा।

टुकनी  बोहे  नोनी  घूमय,बाबू  मन  धर झोला।
देय लेय मा ये दिन के बड़,पबरित होवय चोला।

करे  सुवा  अउ  डंडा  नाचा, घेरा  गोल   बनाये।
माँदर खँजड़ी ढोलक बाजे,ठक ठक डंडा भाये।

दान धरम ये दिन मा करलौ,जघा सरग मा पा लौ।
हरे  बछर  भरके  तिहार  ये,छेरिक  छेरा  गा  लौ।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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शंकर छंद - श्लेष चन्द्राकर

पूस महीना के पुन्नी हा, हरय गा दिन खास।
परब छेरछेरा के रहिथे, राज मा उल्लास।।
मींज-कूट जब लेथें जम्मो, किसनहा मन धान।
ये दिन करथें ओमन हा जी, चिटिक अन के दान।।

गुदुम मोहरी दफड़ा के धुन, हृदय लेथे जीत।
लोग छेरछेरा माँगत जब, संग गाथें गीत।।
बिना दान अन के झोंके उँन, नहीं छोड़य द्वार।
चिटको देरी होथे तब गा, लगाथें गोहार।।

परब दान के करथें रिश्ता, सबो झन के पोठ।
बैर भाव के ये दिन मनखे, जथे भूला गोठ।।
जम्मो छोटे बड़े किसनहा, एक होथें आज।
हमर राज के बने प्रथा के, रखे बर गा लाज।।

परब छेरछेरा मा बहिथे, मया के बड़ धार।
ये तिहार ला सबो मनाथें, किसनहा बनिहार।।
ऊंच नीच अउ जात धरम जी, बैर जावव भूल।
जुरमिल रहना सिखव सबो गा, हरय येकर मूल।।

हरियर धरती माँ ला राखव, रहू सब खुशहाल।
इंदर हा किरपा बरसाही, पड़य नइ अंकाल।।
छोटे बड़हर सुनव किसनहा, रखव झन जी क्लेश।
भुँइया ले सब जुड़ के राहव, परब के संदेश।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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रूप घनाक्षरी-उमाकांत टैगोर

सकला गे धान पान, सूखे-सुख हे हे किसान,
मने मन कहत हे, नाचबो जी जोरदार।

छेरछेरा मांगे जाबो, भर भर झोला लाबो,
झुमरत झुमरत, आगे अब तो तिहार।

घर घर रोटी बरा, बनही जी दूध फरा,
चुफुल-चुफुल खाही, बबा नाती झार-झार।

डंडा नाचे गली-गली, आव सबो संग चली,
खुशी के तो मन मा जी, छाये हावय बौछार।

उमाकान्त टैगोर

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रूप घनाक्षरी-सुधा शर्मा

जग जग ले अँजोर, गाँव गाँव गली खोर,
चमकत ओरी ओर,संगी पुन्नी हर आय।
भर भर कोठी धान,हाँसत हवे किसान,
सुख के होय बिहान,छेरछेरा ला मनाय।
दाई दीदी खुश हावें,छेरछेरा माँगे जावें,
मनवा उछाह भरे,सूपा सूपा धान पाय।
बछर भर तिहार, दाई कोरा संसकार,
बाँटत सुख हजार,जिनगी हर पहाय।


कहत हे छेरछेरा,देवत गली के फेरा,
पुन्नी हर डारे डेरा, नीक ओली  बगराय।
टुकनी मा भरे धान,करत हें  सबो मान,
देवत हवे गा दान, पुन ला सब कमाय।
हेरो माई कोठी धान,कहत हे सुर तान,
लोक गीत बोली बान, हवे सुग्घर सुनाय।
टूरी टूरा जोरी जोरा, हवे सब ओरी ओरा,
मया संग गठजोरा,सबो घर घर जाय।

नान्हे नान्हे  बाबू मन,धरे बाजा सबो झन,
टुकनी टूकना संग,सबो मिल हवे  जात ।
डमडिम डमडिम ,बजात हें छिन छिन,
घर घर गिन गिन,आरो हावे गा लमात।
रंग रंग गीत गाये,सुन सुन मन भाये,
छेरछेरा कहिकहि,सबो मिल हाँसे आत।
घरो घर धान देत,कोनो घर  पइसा जी,
कुलकत सबो झन,दुवारी दूसर जात।

संगम नहात हवें,तिहार मनात हवें,
पूस पुन्नी आय हवे,मंदिर दरस जाँय।
देवता के पाँव परे, अँचरा असीस धरे,
मिल जुर हरे भरे,सबो के मन हर्षांय।
छत्तीसगढ़ के माटी, सुग्घर हे परिपाटी,
रकम रकम संगी,तिहार मनाय।
धान के कटोरा भरे, दया मया कोरा धरे,
मीत प्रीत डोरा धरे,सबो रीत मा  बँधाय ।

सुधा शर्मा
राजिम

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 कुण्डिलयाँ-कन्हैया साहू अमित

फेरा डारँय खोर के, जुरमिल सब्बो मीत।
संगी सब सकलाय के, गुरतुर गावँय गीत।
गुरतुर गावँय गीत, मया के बोलँय बोली।
झोला टुकनी हाँथ, चलँय गदबिद बन टोली।
कहय अमित कविराज, दान पुन छेरिक छेरा।
चिहुर करँय जी पोठ, लगावँय घर-घर फेरा।


बेरा पुन्नी पूस के, नँदिया मा असनान।
मुठा पसर ठोम्हा अपन , करव उचित के दान।
करव उचित के दान, मरम ला एखर जानव।
मिलथे ये परलोक, बात ला सिरतों मानव।
कहय अमित कविराज, बोल जी छेरिक छेरा।
छोड़व गरब गुमान, आज हे पबरित बेरा।


रैन बसेरा ये जगत, तिड़ी-बिड़ी दिनमान।
चार पहर सुग्घर बिता, बना अपन पहिचान।।
बना अपन पहिचान, दान पुन समरथ करले।
जावय नइ कुछु संग, ध्यान अतके बस धरले।।
धरम-करम कर आज, पूस पुन्नी के बेरा।
झन अगोर भिनसार, जगत हे रैन बसेरा।।

कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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गीतिका छंद - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

छेरछेरा के बधाई, आप सब ला मोर।
गाँव पारा अउ गली मा, सुख उगे मन भोर।।
हे दुवारी मा सुनावत, बालपन के बोल।
छेरछेरा छेरछेरा, मीठ मधुरस घोल।।

झूमरत हे मन खुशी मा, चढ़ निसैनी मीत।
धन्य धन आशीष छलके, अउ मया बड़ प्रीत।।
मोर ये छत्तीसगढ़ के, हे अलग पहिचान।
रख धरोहर ला सँजोये, देत सब ला मान।।

छंदकार - इंजी. गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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दोहा - बोधन राम निषादराज

दान करव जी धान के,पूस पूर्णिमा आय।
हमर राज के संस्कृति,सबो तिहार मनाय।।

चरिहा टुकना बोह के,घर घर माँगय दान।
लइका सब चिचयात हे,दव कोठी के धान।।

छेरिक   छेरा   छेर   के, पारत   हे  गोहार।
दरबर दरबर रेंग के,झाँकत हे घर द्वार।।

दफड़ा   बाजे  घाँघरा, चारो  मुड़ा  सुनाय।
नाचत लइका खुश दिखय,छेरिक छेरा आय।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला - कबीरधाम(छत्तीसगढ़)


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छन्न पकैया छंद- केवरा यदु "मीरा "

छन्न पकैया छन्न पकैया, आगे पुन्नी मेला ।
लइका मन हा निकलत हावे, धरके चुँगड़ी छोला ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, जाथे सबो दुवारी ।
कोनो देथे ठोमा पैली, कोनो भरके थारी ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, साल भरमे ग आथे ।
लइका सियान झोला धरके, घर घर माँगे जाथे ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, कोनो बजाय बाजा ।
कोनो गाना गावत हावे, चलना संगी आजा ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, भरके झोला आथे ।
लइका मन हा देखव ताहन, खई खजानी खाथे ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, अब्बड़ सुरता आथे ।
लइका पन में जावत राहन,मनला गुदगूदाथे ।।

छंदकारा
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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 आल्हा छन्द  (नेमेन्द्र)

शंकर भोला अपन बहिन ले,हवे अन्न के मांगे दान।
नरम भाव रख झुकना सीखो,दान मांग के देहे ज्ञान।।

फसल धान के मिंज कूट के,घर ले आये जभे किसान।
तभे छेरछेरा माने के,बने हवे निक हमर विधान।।

छोड़ गरीबी चोला सब जन,मन के भाव ल रखो अमीर।
मांग अन्न के दान लोग मन,एक दिवस तो बनो फकीर।।

दिवस पूर्णिमा पूस माह के,दान करे के आय तिहार।
नाम छेरछेरा बड़ सुग्घर,पारत लइका सब गोहार।।

दफली दमऊ धरे मोहरी,दल बल लइका टोली आय।।
अरन बरन सब गीत सुना के,घर घर जा अन दान ल पाय।।

गाँव गली हर गदबद लागे,खेलत डंडा नाच सियान।
गाना गाके रंग रंग के,धान चउर के मांगय दान।।

छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही-बालोद
मोबा-8225912350

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 शंकर छंद - संतोष कुमार साहू

गजब छेरछेरा तिहार ये,करत हे सब दान।
कोनो पइसा दान करत हे,कोनो चँउर धान।।
छोटे बड़े सबो नाचत हे,एक दूसर द्वार।
लेना देना खुशी मनाना,इही एखर सार।।

कोनो सँघरा या एकेला,माँगत हवय पोठ।
काहत हवय छेरछेरा सब,जब्बर इही गोठ।।
कोनो नाचे कोनो गाये,खूब देखन भाय।
कोनो मुठा पसर मे दे के,बिकट खुशी मनाय।।

छंदकार - संतोष कुमार साहू
ग्राम - रसेला, जिला-गरियाबंद ,
छत्तीसगढ़

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रुप  घनाक्षरी छंद -मीता अग्रवाल

छेरछेरा पुन्नी मान,पूस मा कर ले दान।
ढोल मंजीरा बजात, सबो झिन सकलाय।
घरों घर हांका पार,देय लेय के तिहार।
टोकनी मा धान पाय,डंडा नाच ला देखाय।
नन्हे नान्हे नोनी बाबु,झोला धर आगु आगु।
छेरिक छेरा कहत,उछाह ल बगराय ।
ऊँच नीच भेद मिटे,दया मया हा बँटय।
गौटिया गरीब एके, संग तिहार मनाय।

मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
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दोहा छंद - अशोक  धीवर "जलक्षत्री"

छेरिक छेरा बोल के, घर घर माँगे दान।
भीख मँगइया झन समझ, मुट्ठी भर दे धान।।१।।

जइसन देबे आज तँय, वइसन पाबे काल।
पावन पुन्नी पूस के, दान करव हर साल।।२।।

मींज कूट के धान ला, माई कोठी डार।
हँसी खुशी देथे सबो, ये हे दान तिहार।।३।।

छत्तीसगढ़ी शान अउ, परंपरा ये आय।
छेरिक छेरा बोल हा, सब किसान ला भाय।।४।।

लइका मन ला दान के, सँग मा दव आशीस।
दया मया बरसा करव, रहे ना मन मा टीस।।५।।

पुन्नी के मेला घलो, लगथे कतको आज।
नदी नहा के पुन कमा, कर दुनिया मा राज।।६।।

परंपरा चलते रहय, दान धरम के काज।
माईकोठी धान के, उचित दान दव आज।।७।।

जेहा करही दान ला, वो हा सरग ल पाय।
दुख दारिद मिट जाय जी, जिनगी सुखी बिताय।।८।।

लइका मन सब हो मगन, दिन भर खुशी मनाय।
निश्छल करही दान जे, वो सरग ला पाय।।९।।

कतको शिक्षित हो जहू, येला झन बिसराव।
"जलक्षत्री" के हे अरज,  मेला सबो मनाव।।१०।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा)
 जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
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आल्हा छंद- दिलीप कुमार वर्मा

पुन्नी के दिन पूस महीना, लइका मन सब गावत जाय।
छेरिक छेरा छेर मरकनिन, कहिके घर घर मा चिल्लाय।

कोनो धरके जावय झोला, कोनो टुकना ला धर जाय।
कतको झन चुमड़ी धर जावय, खोंची खोंची सबझन पाय।

दान करइया बइठे रहिथे, टुकना मा ओ भरके धान।
जे आवय तेला ओ देवय, सिरा जवय ता फिर दय लान।

का लइका का बुढ़वा कहिबे, जम्मो झनमन पावय दान।
छत्तीसगढ़ बर जानव भइया, अन्न दान हे परब महान।

ढोल मजीरा तासा बाजय, भजन मंडली टोली जाय।
राम धुनी मा नाचय गावय, तहाँ दान बिकटे ओ पाय।

चहल पहल सब गली गाँव मन, आवत जावत रेलम रेल।
सबके मन उल्लास भरे हे, खुसी खुसी घूमय जस खेल।

पाय धान ला बेंच भाँज के, पुन्नी मेला देखे जाय।
रंग रंग के खई खजाना, पइसा मा सब ले के खाय।

ऊपर वाला ले बिनती हे, सब घर होवय अबड़े धान।
परब छेर छेरा मा भइया,  हँसी खुसी सब देवय दान।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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 कुकुभ छंद गीत - श्रीमती आशा आजाद

छत्तीसगढ़ म धान भरे हे,माटी अब्बड़ ममहावै।
दया मया के ये तिहार ए,जुरमिल सब खुशी मनावै।।

सबो किसनहा अंतस मन ले,आज सुनौ झूमत हावै,
धान पान भंडार भरे हे,मनखे अब्बड़ मुसकावै,
पूजत हे अन्न धान ला सबझन,गुत्तुर भाखा मन भावै,
छत्तीसगढ़ म धान भरे हे,माटी अब्बड़ ममहावै।

अबड़ बने पकवान सुनौ जी,बरा बोबरा अउ चीला,
खुशी मनावत नाचत हावै,हँसी ठिठोली के लीला,
अन्न दान ला शुभ मानै जी,अन्न दान हा मन भावै,
छत्तीसगढ़ म धान भरे हे,माटी अब्बड़ ममहावै।

पौष माह के करय अगोरा,फोरय मुर्रा अउ लाई,
नवा फसल के करे कटाई,करय मिसाई सब भाई,
फरा बनावय चाउँर के जी,अबड़ मजा ले सब खावै,
छत्तीसगढ़ म धान भरे हे,माटी अब्बड़ ममहावै।

गाँव गली मा अबड़ सान ले,लइका मन भागत जाये,
छेरछेरा मा धान सबो ला,हेरहेरा ये चिल्लाये,
हमर राज मा पावन मानै,नेक परब समता लावै,
छत्तीसगढ़ म धान भरे हे,माटी हा बड़ ममहावै।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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: सार छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

पूस महीना चौदस तिथि के,पुन्नी परब मनाथे।
करम धरम अउ सार दान हे,सबके मन हरषाथे।

नाचत गावत लइकामन मिल,बोलय छेरिकछेरा।
माई कोठी के धान ल अब, दाई जल्दी हेरा।

आनी बानी धरे रूप हे,बानर हाथी भालू।
बाँधे घँघरा कनिहा मा हे,चैतु बरातू कालू।

गाँव गली घर घर अउ पारा,बनके टोली जावय।
रुपिया पइसा खई खजानी, धान मुठा भर पावय।

सुआ ददरिया करमा नाचय,बहिनी बेटी माई।
हँसी खुसी सुग्घर  मिलजुलके,देवय आज बधाई।

दाई शाकम्भरी जयंती,आजे घलो मनाथे।
नर नारी मन सब मिलके पूजय,मनवांछित फल पाथे।

हमर राज के संस्कृति सुग्घर,कतका गुन ला गावौ।
सुख समृद्धि हो चारोमूड़ा,सबके आसिस पावौ।

मनुज जनम ला पाके करले,पुन्य दान अउ सेवा।
सफल तभे होही जिनगी हा,पाबे सुग्घर मेवा।

छंदकार- ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी
जिला-कबीरधाम(छ्त्तीसगढ़)

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: आल्हा छंद-आशा देशमुख


आये हवय छेरछेरा जी,लागय अब्बड़ नीक तिहार।
सब झन मिलके ख़ुशी मनावँय ,लोक परब के ये व्यवहार।

टोली टोली मा घूमत हे,आवंय लइका लोग सियान।
बड़ पबरित मानंय सब येला,देवत हवँय अन्न के दान।

गली गली मा शोर उड़त हे,घर घर मया अबड़ ममहाय।
रोटी पीठा रांधत हावय, मिलके कुटुंब कबीला खाय।

झोला टुकनी धरके किंजरय, लइका मन पारत हे हूत।
झूम झूम का नाचंय गावँय ,जैसे धरे ख़ुशी के भूत।

आवय सब झन ख़ुशी मनाबो,लोक रीति के करबो मान।
घर घर में धन कोठी छलकय, चलव हमू मन करबो दान।


आशा देशमुख
कोरबा

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: दोहा छंद - रामकली कारे

मुट्ठा भर भर धान के, हाॅसत देवव दान।
टुकना टुकनी मा भरे, छत्तीसगढ़ी मान।।

छेरिक छेरा बोल के, लइकन माॅगे धान।
माई कोठी धान दे, जल्दी हेरव लान।।

पावन पुन्नी दिन हवै, दान करौ जी  आज।
संस्कृति हे गा हमर, अन्न दान शुभ काज।।

बोरा बोरा धान पा, कुुइ कुइ नाचत जाय।
गा गा सबौ किसान हा, डंडा म गोठियाय।।

अन्न दान ला पा सबो,संगी खुश हो जाय।
छेरिक छेरा बोल के,घर घर मा चिल्लाय।।

सुपा कलारी रास के, लक्ष्मी पूजा होय।
खूब बढ़ोना धान हो, नइतो कभू खगोय।।

छंदकार - श्रीमती रामकली कारे
बालको नगर कोरबा छत्तीसगढ़

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17 comments:

  1. बहुत-बहुत बधाई छेरछेरा तिहार के

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  2. शानदार रचना ,सबो झन ल बधाई

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  3. वाह वाह बहुत सुग्घर संकलन बनत हे, सबो ला हमर राज खास तिहार छेरछेरा के बहुतेच बधाई

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  4. बहुत सुग्घर सृजन

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  5. बढ़िया संकलन आप सब ला बहुत बहुत बधाई

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  6. सुग्घर सृजन आप सब ला बहुत बहुत बधाई ।

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  7. पूष पुन्नी के आप सबो ला बधाई हे।
    सादर पायलगी गुरुदेव।।।

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  8. अनुपम अउ उपयोगी संकलन।हार्दिक बधाईयाँ.....

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  9. सुग्घर संग्रह

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  10. सुग्घर संग्रह

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  11. सार दोहा घनाक्षरी आल्हा कुकुभ शंकर छंद
    50 प्रकार के छंद म सिर्फ 6 प्रकार के लिखाय हे।
    कोनो भी विषय म लिखना हे त अच्छा होतिस की सब ला अलग अलग प्रकार के छंद दे देना चाही ताकि 20 25 प्रकार के छंद म ओ विषय ह लिखावय।

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    1. छन्न पकैया,कुंडलियाँ,गीतिका घलो हे सर।।अइसन बाँटना मुश्किल लगत हे सर,अपन पसन्दीगा या मन के हिसाब ले साधक मन तुरते लिखथे।तभो अगले बार म कोशिस करबो

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  12. बहुत सुन्दर छेरछेरा संकलन सबो दीदी भइया मन हार्दिक बधाई

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  13. सबो के रचना बहुत सुग्घर👌👌🙏🏼🙏🏼🙏🏼

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  14. एक ले बढ़के एक रचना , आप सब ल बधाई

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