💐💐नवा बछर विशेषांक-विविध छंदबद्ध कविता💐💐
सरसी छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
आवत हाबय नवा बछर हा, ले के सुख सौगात।
चिंता करना छोड़ हँसव अब, दुख के पल हे जात।।
शुभ कामना पठोवत हाबँव, नवा बछर के आज।
सबझन ला सुख शान्ति मिलँय अउ, सुफल होय सब काज।।
सबके जिनगी सुखी रहय अउ, सुघर चलय घर बार।
धन दौलत पद मान बड़ाई, सबला मिलँय अपार।।
बिते साल मा गलती होही, क्षमा चहँव करजोर।
"जलक्षत्री" ला बुरा न समझव, विनती हावय मोर।।
छंदकार -अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा)
जिला -रायपुर (छत्तीसगढ़)
मो .- ९३०० ७१६ ७४०
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: दोहा छंद - श्लेष चन्द्राकर
नवा बछर आये हवय, बाँटे बर उल्लास।
सुग्घर बूताकाम कर, चलव बनाबो खास।।
भूलव जुन्ना गोठ गा, राखव नवा बिचार।
मिहनत करके दव अपन, सपना ला आकार।।
अपन सफलता बर करव, मिहनत गा भरपूर।
ठान अपन मन मा चलव, मंजिल नइहे दूर।।
नवा-नवा संकल्प लव, नवा हरे गा साल।
अपन बना सकथव तभे, जिनगी ला खुशहाल।।
नवा बछर ये बीस गा, सब बर रहय विशेष।
अंतस ले शुभकामना, देवत हावय श्लेष।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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सरसी छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे
नवा बछर के गाड़ा गाड़ा,हवय बधाई आज।
ख़ुशी मिलय गा झोली भर-भर,मुड़ मा राहय ताज।।
नवा बछर हा लाये हावय,सुख के गा उपहार।
सब मनखे के होवय संगी,सपना हा साकार।।
नवा बछर हा लाये हावय,मनखे बर उच्छाह।
पूरा होवय सबके भइया,सोचे ओही चाह।।
ख़ुशी मनालव जुरमिल के गा,बाँटव मया अपार।
नेकी करते राहव संगी,राखव उच्च विचार।।
नवा बछर मा नवा काम लव,गढ़ौ नवा संस्कार।
एक बरोबर सब मनखे बर,राखव गा व्यवहार।।
झूमव नाँचव गावव हँसलव,नवा-नवा हे साल।
जिनगी के राहत ले संगी,राहव जी खुशहाल।।
मन के लालच दुरिहा जावय,होवय नेकी काज।
नवा बछर मा नाँव कमावौ,चलय तुहँर गा राज।।
छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़
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[0 लावणी छंद-राज किशोर धिरही
नवा साल मा सुख ला पाबो,गीत घलो जुर मिल गा ली।
कहे जमाना हा कुछु चाहे,कनिहा सब झन मटका ली।।
प्रेम दिवस के बैरी बनथे,नवा बछर मा भरमाथे।
अंधबिस्वास मानत रहिथे,खुशहाली मा जर जाथे।।
कैलेंडर ले दुनिया चलथे,ए बात सबो झन जानी।
एक जनवरी के खुशहाली,खूब सुवागत कर मानी।।
छोड़ चैत के सब गिनती ला,सहज जनवरी ला पढ़ ले।
नवा ज्ञान ला धर ले भाई,आगू आगू तैं बढ़ ले।।
हाँस गोठिया लेवव बढ़िया,छोड़ जगत ला हे जाना।
अपन पराया के चक्कर मा,होथे अड़बड़ पछताना।।
मेडिकल पढ़ाई ला लइका,आने भाखा पढ़ जाथे।
ज्ञान धरे से मतलब राखै,फेर उही मन बढ़ जाथे।।
नवा साल हा आए हे जी,छोड़ भरम ला अब भा ले।
सँगवारी मन सो जुरिया के,मुच मुच मुच मुच मुसका ले।।
राजकिशोर धिरही
तिलई,जांजगीर
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आल्हा छंद -रामकली कारे
नवा साल के लेव बधाई ,संगी साथी सबझिन आज ।
बीस बीस के नवा साल हे , खेलत खावत हाेही काज ।।
नवा डहर अउ नवा जगह मा , समय लगाही अपने दाॅव ।
करू मीठ रद्दा मा आही ,रेंग रेंग के थकही पाॅव ।।
मउरत हाबय आमा डारा,बादर बरखा के हे जोर ।
झोर झोर के बरसय पानी ,नवा साल दिस चिखला घोर ।।
लाल सुरुज हा दिखत कहाॅ हे ,बेरा हावय कती लुकाय ।
नवा साल के पहिली दिन हा ,लोगन मन ला कइसे भाय ।।
नवा अॅजोरी आही संगी ,सपना सब होही साकार ।
बाॅटव जुरमिल दया मया ला ,इरखा द्वेष ला देवव बार ।।
नवा साल जोहार करव गा , नाचत गावत बीते रात ।
मानुस जीवन अवतार मिले ,बोल कोयली जइसन बात ।।
छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
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: सरसी छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी
नवा बछर के शुभ बेला मा,बाँटव मया दुलार।
का का होवत हे दुनियाँ मा,थोरिक करव बिचार।
करम धरम ला भूले मनखे,अउ भूले सत्कार।
छोटे छोटे आज बात मा,टूटय घर परिवार।
धन दौलत पद पाके देखव,करे गजब मतवार।
रिश्ता नता आज मनखे बर,होगे हे व्यापार।
दाई ददा अन्न पानी बर,तरसत रहिथे रोज।
मिलय नही प्रभु मंदिर मस्जिद,कतको करले खोज।
रिश्वतखोरी के दीमक हा,चाट खाय संसार।
भेंट चढ़े भ्रष्टाचारी के,लाखो बंठाधार।
अफसरशाही मौज करत हे,खा खाके परसेंट।
चक्कर काटत आफिस लोगन,अफसर हे अबसेंट।
लोकतंत्र नइ वोट बैंक हे,राजनीति बाजार।
जिम्मेदारी भूले सब झन,थोरिक करव बिचार।
धरती दाई रोवत हावय,देख जगत के हाल।
बेजाकब्जा हा फइलत हे,जइसे मकड़ी जाल।
कोर्ट कचहरी अपराधी बर,घरघुँदिया के खेल।
मौज करत हे खुल्लमखुल्ला,नियम कायदा फेल।
नवा बछर के शुभ बेला मा,लेवन ये संकल्प।
सरग बनाबो ये भुइयाँ ला,करबो कायाकल्प।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी(कवर्धा)
जिला-कबीरधाम(छ्त्तीसगढ़)
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महाभुजंग प्रयात सवैया- मोहन लाल वर्मा
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चौपाई छंद--चोवा राम 'बादल'
नवा साल के हवय बधाई। छाहित राहय सारद माई।।
धन दौलत सुख सेहत पावव। फूल सहीं हरदम मुस्कावव।।
कलम बनै जी सबके हितवा। गिरे परे के खाँटी मितवा।।
कालजई साहित सिरजावव। भारत माँ के जस बगरावव।।
नवा साल मा अइसे ठानौ। गाँव शहर खुशहाली लानौ।।
करम फसल हो सोला आना।पोठ रहय सब दाना दाना ।।
रद्दा के काँटा बिन लेहू। अउ सपाट गड्ढा कर देहू।।
मातु पिता गुरु मन सुख पाहीं। आसिस के फुलवा बरसाहीं।।
नवा साल के सुरुज नवा हे। नवा बिहनिया नवा हवा हे।।
नवा इरादा ठानौ भाई। माँजौ हिरदे फेंकौ काई।।
चलौ बाँटबो भाईचारा। हवय नेवता झारा झारा।।
अलख प्रेम के चलौ जगाबो। असली मनखे तब बन पाबो।।
जात पाँत के आँट ढहाके। सबो धरम के मान बढ़ाके।।
देश प्रेम के भाव जगाबो। चलौ तिरंगा ला फहराबो।।
आलस बैरी ले दुरिहाके।मिहनत के हम जोत जलाके।।
गार पसीना रोटी खाबो।जिनगी मा उजियारा लाबो।।
साल बीस हा खड़े दुवारी। हैप्पी काहत हे सँगवारी।।
हमरो कोती ले न्यू ईयर।गाड़ा गाड़ा हैप्पी डियर।।
छंदकार--चोवा राम 'बादल '
हथबन्द (छत्तीसगढ़)
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: लावणी छंद - बोधन राम निषादराज
(गीत - नवा बछर)
नवा बछर मा झूमौ नाचौ,
मन मा खुशी मनावौ जी।
सुख के दिन हा आवत हावै,
स्वागत फूल सजावौ जी।।
नवा काम बर बाना बाँधौ,
मिलके बहिनी-भाई मन।
नवा अँजोरी लाने बर अब,
आगू रइहौ दाई मन।।
अपन करम ला खुदे बनावौ,
महिनत दीप जलावौ जी।
नवा बछर मा झूमौ नाचौ...........
नवा जमाना संग चले बर,
रद्दा नवा बनाना हे।
पाछू दिन के सुध ला छोड़ौ,
आगू ध्यान लगाना हे।।
पथरा फोर पाट के डबरा,
भुइँया सरग बनावौ जी।
नवा बछर मा झूमौ नाचौ...............
का खोए अउ का पाए हव,
बिसरा दौ अब ओला जी।
नवा बछर मा उन्नति होवै,
सुम्मत धरलौ झोला जी।।
कोन अपन अउ कोन पराया,
सब ला संग चलावौ जी।
नवा बछर मा झूमौ नाचौ................
छंदकार - बोधन राम निषादराज,
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
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छन्द- मीता अग्रवाल
नवा बछर के नवा बिहनिया, हिरदे भीतर ठान।
दया मया जग मा बगराबो, सबके करबो मान ।।
द्वेष भाव ला दूर करे बर,मानवता अपनाव।
काट फेंक इरखा ला बारव,समता सब मा लाव।।
मेल जोल अउ बातचीत ले,बढय फलय ब्यौहार।
नवा किरण अउ नव बिहान मा, आघू हो संसार ।।
सोच समझ ले करम करव जी ,सुमति देत सम्मान।
नवा बछर के नवा कामना, बढ़े ज्ञान भगवान ।।
नवा साल के पहिली दिन हा,बहे छंद रसधार।
मात शारदा किरपा बरसे,सिरजव कविता हार ।।
*छंदकार- मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
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मोहन मयारू-: कुंडलिया अउ दोहे
आवत हवय नवा बछर , हो जव जी तइयार ।
छोड़व संसो काल के , मानव आज तिहार ।।
मानव आज तिहार , छोड़ के दुनियादारी ।।
होही नवा बिहान , समझ के करव तियारी ।।
भाग - दउड़ मा आज , समय हे रोजे जावत ।
धरके नवा बिहान , बछर नावा हे आवत ।।
बछर निकल गे देखते , नवा बछर हे आय ।
जुन्ना गोठ बिसार के , चल जाबो परघाय ।।
धरव बात हिरदे नही , मन के मइल मिटाव ।
राखव सब सो मेल ला , सब के दुलार पाँव ।।
भूल - चूक माफी मिलय , नवा बछर मा आज ।
सब सो रहय मिलाप हा , करव सबो जी राज ।।
हावय सब बर कामना , नवा बछर मा यार ।
रहय खुशी अँगना भरे , महकय जी संसार ।।
नवा बछर म नवा नवा , अबडे़ उन्नति पाँव ।
राहय किरपा राम के , नँगते नाँव कमाव ।।
अरजी बिनती जी हवै , जुरमिल खुशी मनाव ।
नवा बछर मा आज ले , मीत नवा सब लाव ।।
देत बधाई जी हँवव , मँय मोहन अग्यान ।
नवा बछर के कामना , झोंकव जी श्रीमान ।।
रचनाकार - मयारू मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा ,
जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)
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लावणी छंद-महेंद्र देवांगन माटी
अंगरेजी के नवा साल मा , कइसन सब इतरावत हे।
आज भुला गे अपन संस्कृति, दूसर के अपनावत हे।।
गाजा बाजा डीजे सँग मा, रात रात भर नाचत हे ।
पीये हावय मउहा दारू , घुघवा कस सब जागत हे।।
लोक लाज ला छोड़ छाड़ के, कनिहा ला मटकावत हे।
आज भुला गे अपन संस्कृति, दूसर के अपनावत हे।।
नवा बछर हा आ गे कहिके, पिकनिक मा सब जावत हे।
कुकरी बकरा धर के जावय, उछरत ले सब खावत हे।।
चढ़ जाथे जब नशा पान हा, गाड़ी रेस चलावत हे।
आज भुला गे अपन संस्कृति, दूसर के अपनावत हे।
जब बिहाव अउ पूजा करथे, तब पंचाग मँगावत हे।
मरनी हरनी शुभ बेरा मा, हिन्दी तिथि अपनावत हे।।
कोनों जब संकट आथे तब , काबर पाठ करावत हे।
आज भुला गे अपन संस्कृति, दूसर के अपनावत हे।।
एकम तिथि चैत महीना मा, दुर्गा दाई आथे जी ।
मौसम रहिथे अबड़ सुहाना, जग मा खुशियाँ लाथे जी ।।
नाचत गावत सेवा करके, माता ला परघाथन जी ।
चारो डाहर दीप जला के, नावा साल मनाथन जी ।।
छंदकार
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
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चौपाई छंद - राजेश कुमार निषाद
सुनलव बहिनी सुनलव भाई, नवा बछर के हवय बधाई।
एक जगह मा सब सकलबो,मिलके खुशियाँ हमन मनाबो।।
उठके देखव बिहना बेरा,मन के मिटगे हवय अँधेरा।
चिरई चिरगुन छोड़त डेरा, आगे हावय नवा सबेरा।।
सुख दुख हमरो कतको आथे,नवा बछर मा सबो भुलाथे।
मन के भेद सबो झन छोड़ो,सबले सुघ्घर नाता जोड़ो।।
कर लव सेवा ददा अउ दाई, सुनलव सबझन बहिनी भाई।
करही जउने हर बड़ सेवा,पाही वोहर अड़बड़ मेवा।।
छोड़व सब गा दुनिया दारी,बोलव झन गा झूठ लबारी।।
कर लव पूजा दीप जलाये,मोह मया मा हवव भुलाये।।
मिलके राहव भाई चारा, छोड़व मनके भेद किनारा।
बाँटव मिलके सबो मिठाई,नवा बछर के हवय बधाई।।
रचनाकार:- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़।
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: दुमदार दोहे - दिलीप कुमार वर्मा
नवा बछर के बधाई
नवा बछर आवत हवय, कर सोलह सृंगार।
चलव करिन हम आरती, पहिरावन हम हार।
कलह झन धर के लावय।
सबो घर सुख बरसावय।
सपना सब देखत हवय,सुखमय होही साल।
काम मिले हर हाथ ला, सब हो माला माल।
घरोघर चूल्हा जलही।
सबो के सपना फलही।
जेन कुवाँरा हे इहाँ, सपना रखे सँजोय।
दिन बहुरे घुरुवा असन, मोरो कोनो होय।
बहुरिया घर मा आवय।
खुशी के ढोल बजावय।
सोंचत हे सरकार हा, का का देवँव छूट।
टेक्स बढ़ा देवँव तनिक,जनता लेवँव लूट।
खजाना जब भरजाही।
तभे तो खुशियाँ आही।
दरुहा सोंचत हे सगा, खाँव कसम मँय आज।
छोड़वँ दारू काल ले,तब बनही सब काज।
आज थोरिक पी लेथौं।
कसम काली बर देथौं।
मोट्ठा खावत हे कसम,करहूँ बने उपाय।
कसरत करहूँ काल ले,तब जाहूँ दुबराय।
काल पर नइ आवत हे।
रजाई बड़ भावत हे।
पढ़ना हावय काल से,लइका करे बिचार।
पर ठण्डा ला देख के,मनवा जावय हार।
समे सब खोवत हावय।
कहाँ मंजिल ला पावय।
चोर उचक्का मन तको,सोंचत नवा उपाय।
काखर घर मे माल हे, कइसे लूटा जाय।
रात के चोर निकलथे।
पेट उँखरो तब पलथे।
नवा बछर मा जान लव,बइगा करे न काम।
भूत कभू आवय नही,भजलव सीता राम।
बने सब रइहव भाई।
बछर के मिले बधाई।
रचनाकार-- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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दोहे-सुधा शर्मा
नवा बछर आगे हवे, धरे आस संसार।
दुख पीरा बिसरा सबो,सुख के दीया बार।।
बिनती हे भगवान ले,किरपा अस बरसाय।
दे सदबुध सदभावना, शान्ति देश मा आय।।
मया दया के भाव हो,मिटय सबो मन रार।
नारी के मरजाद हा,बगरे झन बाजार।।
रहे मान संस्कृति सदा,भारत के अभिमान।
धरम करम हर नीक हो,पीढ़ी नवा सुजान।।
करव संकलप मिल सबो,गढ़व नवा जी बाठ।
जिनगी मा करहू करम,बने रहे गा ठाठ।।
नवा बछर नोहय फकत,खुशी तमाशा खेल।
बारा महिना के धरे,परछो आसा मेल।।
आगी डाँड़ा खींच के, रेंगे परे सुजान।
सत के रद्दा रेंगहीं,सुफल होय वो जान।।
बाठ डाहके लागही,काँटा खूँटी टार।
संगी महिना पल कटे,बछर होय तब पार।।
मात शारदा मैं करँव,बिनती नित कर जोड़।
सबला दे दे ग्यान तँय, नीक बाठ हो गोड़।।
छंद कारा
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
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सार छंद-महेंद्र बघेल
नवा साल मा सब झन झोंकव,शुभ शुभ हमर बधाई।
काम बुता ला साध सुधा के, खावव खीर मलाई।।
पहली जइसे सुरुज नरायण, चंदा अउर सितारा।
दिन तिथि हा सबो उही हे, बदले हे बस नारा।
मोल समझ ले कालचक्र के, अउ करले गुरुताई।
नवा साल मा ...
बिते बछर के सुरता राखत, नवा सोच धर लावव।
नव विचार अंतस मा धरके, जिनगी सफल बनावव।
पुन्नी कस अंजोर करे बर, आभा ला बगराई।
नवा साल मा...
आपाधापी हाय हफर मा, अरझे हे जिनगानी।
चाल चलन लाटा फाॅदा मा, झन उतरे जी पानी।
मातु-पिता रिश्ता नाता के, होवय झन रुसवाई।
नवा साल मा ...
नाप जोख लव घटे बढ़े ला, का खोये का पाये।
तोर जतन के पक्का फल मा, ररुहा भूख मिटाये।
झूठ फरेबी आदत वाले, लेसव सब चतुराई ।
नवा साल मा ...
धूप छाॅव जस निरमल संगी साफ नियत ला राखव।
बन अवाज सब दुखिया मन के ,सदा नीत ला भाखव।
देख लेव दरपन के पट मा,अपन करम परछाई।
नवा साल मा ...
अकड़ बाज ला सोज करे बर,चलो टेड़गा बनबो।
हर नारी के मान रखे बर,उठा बेड़गा हनबो।
नेकी के रद्दा मा रेंगत,करबो जी अगुवाई।
नवा साल मा...
सपना ला साकार करे बर, अबड़ मेहनत चाही।
डिगे नहीं जे अपन लक्ष्य ले, उही सदा अगुवाही।
होय फलित जी सबके मनसा,अइसन करव कमाई।
नवा साल मा...
महेंद्र कुमार बघेल
डोंगरगांव, राजनांदगांव
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मुक्तक छंद-श्रीमती आशा आजाद
नवा बछर के बेरा आगे,आज सबो मिलजुल गावौ,
भाईचारा हिरदे रखलौ,समता ला सब बगरावौ,
सुग्घर भाखा सदा बोल हो,अइसन मन मा सब ठानौ,
समता के सब पाठ पढ़ौ जी,मानवता ला अपनावौ।।
मात पिता के सेवा करबो ,मन मा समझन ये ठानौ,
नाता भाई बहिनी के जी,हिरदे ले सबझन मानौ,
दीन दुखी के सेवा ले जी,पुन्य सदा घर मा आही,
विपदा सबके दूर भगावौ,कष्ट सबो के पहिचानौ।।
हिरदे मा सम्मान रखौ जी,जग के हावय महतारी,
नारी के हिम्मत बन जावौ,नइ हे अबला बेचारी,
ए कलजुग मा नेक सोच ले,फैलावौ सब उजियारा,
लाज बचाबो सब नारी के,समझौ ये जिम्मेदारी।।
नवा बछर मा नवा सोच हा,सबके हिरदे ला भावै,
मीठ मया के होवय भाखा,अइसन गीत ल सब गावै,
सदा ज्ञान ला जुरमिल बाटौ,सबो मिटावौ अँधियारा,
मार पीट अउ खून खराबा,द्वेष सबो हा मिट जावै।।
छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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*मधुशाला छंद*-आशा देशमुख
नवा बछर के शुभ बेरा मा
देवत हवँव बधाई जी।
सबके जिनगी मा सुख बरसे
भागे दूर बुराई जी।
घर घर मा सुम्मत के बोली
स्वाद मया के ममहावै।
चारो कोती सुख के खेती
सुघर बहे पुरवाई जी।1।
दया मया के जोत जलावव
मिटय डहर के अँधियारी।
दुख चिंता सब दूर भगावय
हाँसय खेलय नर नारी।
सबके इच्छा पूरा होवय
निर्मल गाँव रहे गंगा।
कोठी डोली हा नित छलके।
लहलहाय खेती बारी।2।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
1
बिदा कर गाके गीत,बारा मास गये बीत।
का खोयेस का पायेस,तेखर बिचार कर।।
गाँठ बाँध बने बात,गिनहा ला मार लात।
उन्नीस के अटके ला,बीस मा जी पार कर।।
बैरी झन होय कोई,दुख मा न रोय कोई।
तोर मोर छोड़ संगी,सबला जी प्यार कर।।
जग म जी नाम कमा,सबके मुहुँ म समा।
बढ़ा मीत मितानी ग,दू ल अब चार कर।।
2
गुजर गे बारा मास,बँचे जतके हे आस।
पूरा कर ये बछर,होय नही रोक टोंक।।
मुचमुच हाँस रोज,पथ धर चल सोज।
बुता काम बने कर,खुशी खुशी ताल ठोंक।
दिन मजा मा गुजार,बांटत मया दुलार।
खाले तीन परोसा जी,लसून पियाज छोंक।।
नवा नवा आस लेके,दिन तिथि खास लेके।
हबरे बछर नवा,हमरो बधाई झोंक।।
3
होय झन कभू हानि,चले बने जिनगानी।
बने रहे छत छानी,बने मुड़की मिंयार।।
फूल के बिछौना रहै, महकत दौना रहे।
जीव शिव प्रकृति के,सदा मिले जी पिंयार।।
आदर सम्मान बढ़े,भाग नित खुशी गढ़े।
सपना के नौका चढ़े,होके घूम हुसियार।।
होवै दिन रात बने,मनके के जी बात बने।
नवा साल खास बने,भागे दूर अँधियार।।
4
सबे चीज के गियान,पा के बनो गा सियान।
गाँव घर देश राज,छाये चारो कोती नाम।।
मीठ करू खारो लेके,सबके जी आरो लेके।
सेवा सतकार करौ,धरम करम थाम।।
खुशी खुशी बेरा कटे,दुख के बादर छँटे।
जिनगानी मा समाये,सुख शांति सुबे शाम।।
हमरो झोंको बधाई,संगी संगवारी भाई।
नवा बछर मा बने,अटके जी बुता काम।।
5
अँकड़ गुमान फेक,ईमान के आघू टेक।
तोर मोर म जी मन, काबर सनाय हे।।।
दुखिया के दुख हर,अँधियारी म जी बर।
कतको लाँघन परे, कतको अघाय हे।।।
उही घाट उही बाट,उही खाट उही हाट।
उसनेच घर बन,तब नवा काय हे।। ।।।।
नवा नवा आस धर,काम बुता खास कर।
नवा बना तन मन,नवा साल आय हे।।।।
जीतेंद्र वर्मा""खैरझिटिया
बाल्को,कोरबा
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(सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा)
हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला।
सुख पा राज करे जिनगी भर,गदगद होके चोला।
सबे खूँट मा रहे अँजोरी,अँधियारी झन छाये।
नवा बछर हर अपन संग मा,नवा खुसी धर आये।
बने चीज नित नयन निहारे,कान सुने सत बानी।
झरे फूल कस हाँसी मुख ले,जुगजुग रहे जवानी।
जल थल का आगास नाप ले,चढ़के उड़न खटोला।
हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला----।
धन बल बाढ़े दिन दिन भारी,घर लागे फुलवारी।
खेत खार मा सोना उपजे,सेमी गोभी बारी।
बढ़े बाँस कस बिता बिता बड़,यश जश मान पुछारी।
का मनखे का जीव जिनावर, पटे सबो सँग तारी।
राम रमैया कृष्ण कन्हैया,करे कृपा शिव भोला-----।
हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला------।
बरे बैर नव जुग मा बम्बर,बाढ़े भाई चारा।
ऊँच नीच के भेद सिराये,खाये झारा झारा।
दया मया के होय बसेरा,बोहय गंगा धारा।
पुरवा गीत सुनावै सबला,नाचे डारा पारा।
भाग बरे पुन्नी कस चंदा,धरे कला गुण सोला।
हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला---।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
सबझन के रचना हा बहुत सुघ्घर हे।
ReplyDeleteसबोझन ला गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभकामना हे।
महेन्द्र देवांगन माटी
आप सबो ल सादर बधाई।सबके बढ़िया रचना
ReplyDeleteबहुत सुग्घर संकलन, सबो छंदकार मन ला नवा बछर के बहुतेच बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteवाह अंग्रेजी नवा बछर के सुग्घर संकलन👍👏👏💐💐
ReplyDeleteअनंत बधाई जम्मो छत्तीसगढ़ी छंद छ के साहितकार मन ला💐💐💐💐💐
सुग्घर संकलन ,सबझन ला बधाई
ReplyDeleteसुग्घर संकलन ।सादर प्रणाम गुरुदेव ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर संकलन गुरुदेव जी
ReplyDeleteबड़ सुग्घर संकलन हावे
ReplyDeleteसुधा शर्मा
बहुत सुग्घर संकलन होवत हे गुरुदेव जी सादर नमन
ReplyDeleteजबरदस्त संकलन हे गुरुदेव मजा आगे ।।गुरुदेव संग जम्मो छंदकवि मन ल बहुत-बहुत बधाई शुभकामना हे।
ReplyDeleteसबक साधक भाई बहिनी मन ला जय जोहार, गाड़ा गाड़ा बधई ।
ReplyDeleteगजब सुग्घर संग्रह
ReplyDeleteगजब सुग्घर संग्रह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संकलन सब ला नवा बछर सुग्घर सिरजन बर बधाई
ReplyDeleteनवा बछर के स्वागत मा एक ले बढ़के एक रचना पढ़ें बर मिलिस हे,आप सबो आदरणीय मन ला सादर बधाई
ReplyDeleteनवा बछर के जबरदस्त काव्य संग्रह
ReplyDeleteसुग्घर संकलन
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संकलन
ReplyDeleteबहुत ही सुग्घर संकलन हे। पढ़ के मन गदगद होगे। वाह! वाह!वाह!
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