छन्न पकैया छन्न पकैया, झन हो निंदा चारी।
गारी अउ झगरा के कारण,इही हरे गा भारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, चारी मरना कटना।
आ बइला तँय मोला जबरन,मार कहे कस घटना।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, चारी हे नुकसानी।
झगरा हो के थाना जाना,धन दौलत के हानी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,चारी करथे गड़बड।
खाली मनखे सबले जादा,अइसन करथे अड़बड़।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,चारी दुश्मन होथे।
मनखे उल्टा पुल्टा करके,दुख चिंता मा रोथे।।
छंदकार-संतोष कुमार साहू
ग्राम-रसेला(छुरा)जि-गरियाबंद
बहुत सुन्दर सर जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सर जी
ReplyDeleteसंदेश परक रचना सर जी
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