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Tuesday, January 14, 2020

मकर सक्रांति विशेषांक-छंद के छ परिवार

मकर सक्रांति विशेषांक-छंद के छ परिवार

 आल्हा छन्द - नेमेंद्र

कर्क रेख ले मकर रेख मा ,धीरे जावत हे भगवान।
करो सुवागत आत बसंता, दिखे धरा सुग्घर मुस्कान।।

तीली गुड़ के बाँटे लड्डू,दोना थारी भरके लोग।
घर घर सुख के बरसा बरसे,भागत जावय जम्मो रोग।।

कथा सुनावे दादी नानी,अर्ध रात जावय सकरात।
करे भोर सब लोगन पूजा,सुरुज नरायन देखत आत।।

जम्मो भारतवासी माने, सुरुज चाल बदले सकरात।
वेद ह माने यम के जइसे, पापी उप्पर करथे घात।।

जप तप सुग्घर करथे लोगन,कोनो मांगत हे वरदान।
शनि के साती कांटत भगवन,सत के हमला देवव दान।।

छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही-बालोद
मोबा.-8225912350

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आल्हा छंद -रामकली कारे

गुड़ तिल्ली मा लाड़ू बनथे, सोंध सोंध गा सुघर मिठाय।
मकर राशि मा सुरुज नरायण, उत रायण मा भागत जाय।।

घर घर मा सब पूजा करथें, बड़े बिहनियाॅ कर स्नान।
पानी देके पुण्य कमावै, खाथें खिचड़ी के पकवान।।

झुनगा मुनगा बरी चुरै जी, सेमी साग ल अड़बड़ खाय।
रुपिया पइसा दान करय सब, रंग बिरंग पतंग उड़ाय।।

खेल कबड्ड़ी खो खो खेलय, सब जुड़ जाड़ ह भागत जाय।
बारह महिना बारह राशि ग, सुख शांति संदेशा लाय।।

घाट घाट मा मड़ई मेला, माघ मास मा अबड़ भराय।
गाॅव गाॅव के लोगन आके, दर्शन सबो देव के पाय‌।।

मड़ई मेला गजब निराला, लागय ये तो चारों धाम।
राउत नाचा धजा देवता, होथे गा जुग जुग के नाम।।

माला चूरी टिकली फुॅदरी, छाॅट छाॅट के सबो बिसाय।
खई खजाना खेल तमाशा, जगह जगह मन देखत भाय।।

लोक गीत अउ नाचा गाना, हमर राज के आवय शान।
ग्राम देवता ठाकुर देव म,फूल चढ़ा के करथें मान।।

बस्तरिहाॅ रमरमिहाॅ मेला, पीथमपुर तुर्री के धाम।
माघी पुन्नी गंगा सागर, मेल जोल के होथे काम।।

छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
छत्तीसगढ़
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 रोला छंद-सुधा शर्मा

मकर संक्रांति आय,नहाये  नँदिया जाहीं।
अर्ध्य सुरुज ला देत,देव दरसन सब पाहीं।
बने घरो घर आज,तिली मुर्रा  लाड़ू गा।
बाँट बाँट के खाँय, सबो मिल के मयारु  गा।

जावत सुरूज देव, आज गा उत्ती कोती।
भागे अब जुड़ शीत, आय बसंत के होती।
नीक होय दिन रात,चले जब मधु पुरवाही।
संगी चारों खूंट, मदिर बयार छा जाही।

बदलत हावे रंग,रीतु के आना जाना,
जम्मो मौसम संग,परब हे नवा सुहाना।
करथें तिल के दान,कथें पुन
होथे भारी।
रकम रकम के रीत,हवेकोरा महतारी ।

उड़त हावे पतंग,रंग भरथे आकासा।
मनवा भरे उछाह, नवा रवि करे उजासा ।
पोंगल कहूँ मनात,कहूँ बीहू हें नाचय।
किसिम किसिम के देख,हवे संस्कृति हा साजय।

सुग्घर उड़े पतंग, सदा ये ध्यान  लगाना ।
चुरगुन ना फँस जाय, जीव ल ऊँखर बचाना।
शुभ सब करे  तिहार, आँच कोनो झन आये।
सुरूज देवा ताप,नवा सुख समृद्धि लाये।

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़

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लावणी छंद - बोधन राम निषादराज


पहली परब नवा बच्छर के,
                    सकरायत ह कहावत हे।
छोड़ दक्षिणायन ला वो हा,
                    उतरायन मा आवत हे।।

का ले जाही का दे जाही,
                कखरो समझ न आवय जी।
मानत हावय पुरखा हमरो ,
                 संगम आज नहावय जी।।
सुत उठ दर्शन सुरुज देव ला,
                    लोटा नीर चढ़ावत हे।
छोड़ दक्षिणायन ला वो हा,
                   उतरायन मा आवत हे।

दान पून के मुहरत हावय,
                   शुभ दिन सकरायत होथे।
तीली गुड़ के लड़ुवा बाँटय,
                     नवा पतंग मया बोथे।।
सुग्घर लाली सुरुज देव हा,
                      बिहना ले बगरावत हे।
छोड़ दक्षिणायन ला वो हा,
                       उतरायन मा आवत हे।

लहर लहर लहरावत हावै,
                      चारो खूँट अँजोरत हे।
मकर डहर ले कर्क डहर बर,
                      देखव सुकवा बगरत हे।।
मीठ मीठ लागे जाड़ा हा,
                       मनखे सब मुस्कावत हे।
छोड़ दक्षिणायन ला वो हा,
                       उतरायन मा आवत हे।

छंदकार - बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।
दया मया के धागा धरके, सुख शांति के पतंग उड़ाबों।

दान धरम पूजा व्रत करबों, गाबों मिलजुल के गाना।
छोट बड़े के भेद मिटाबों, धरबों इंसानी बाना।
खीर कलेवा खिचड़ी खोवा,तिल गुड़ लाडू खाबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।

सुरुज देव ले तेज नपाबों,मंद पवन कस मुस्काबों।
सरसो अरसी चना गहूँ कस,फर फुलके जिया लुभाबों।
रात रिसाही दिन बढ़ जाही, कथरी कम्म्बल घरियाबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।

मान एक दूसर के करबों,द्वेष दरद दुख ले लड़बों।
आन बान अउ शान बचाके, सबके अँगरी धर बढ़बों।
लोभ मोह के पाके पाना, जुर मिल सब झर्राबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छत्तीसगढ़)
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दोहा/चौपाई छंद - श्लेष चन्द्राकर

दोहा
हरय मकर संक्रांति के, दिन हा अबड़ विशेष।
रात नानकुन दिन बड़े, होत आज ले श्लेष।।

चौपाई
सुरुज देव हा दिशा बदलथे। बड़े बिहिनिया तहां निकलथे।।
धीरे-धीरे जाड़ भगाथे। मनखे मन ला अबड़ सुहाथे।।

सुग्घर दिन के करव सुवागत। परब मनावव परंपरागत।।
तिल गुर के पकवान बनावव। माई पिल्ला जम्मो खावव।।

पुरखा मन के नियम ला मानव। तभे खुशी मिलही गा जानव।।
गंगा जी मा आज नहावव। सुरुज देखके मुड़ी नवावव।।

गाँव-गाँव मा लगथे मेला। सजथे मिठई फर के ठेला।।
बड़ पतंग गा आज उड़ाथें। हँसी-खुशी संक्रांति मनाथें।।

परब दान-पुण के ये जानव। नदी नहा के सुग्घर मानव।।
ओकर जम्मो पाप मिटाथे। जे श्रद्धा ले परब मनाथे।।

दोहा
परब मकर संक्रांति ला, सबो मनाथें आज।
दान-पुण्य असनान के, हावय बने रिवाज।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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दोहा मुक्तक - श्रीमती आशा आजाद

मकर संक्रांति आय हे,जुरमिल जावौ आज,
बड़े बिहनिया स्नान कर,करदौ दान अनाज,
शुभ मंगल के दिन हवे,जम्मो कहय सियान,
अरपन जल ला जे करे,पूरा होथे काज।।

तिलकुट बनथे आज जी,गुण के सब पकवान।
मीठा तिल के लाड़ू जी,अबड़ बने मिष्ठान,
पतंगबाजी सब करे,खुशी मनावत संग,
आज अबड़ जी सान ले,दयँ गुड़ तिल के दान ।।

रहिथे अब्बड़ स्वाद जी,मूँगफली गुड़ के संग,
चारो कोती मखर के,छाये रहिथे रंग,
नवा फसल बर देव ला,सुमिरय बारंबार,
रंग बिरंगा देख लव,उड़थे सुघर पतंग।

नेपाली मनखे कहे,सुरुज मकर के सार,
कहय पंजाब लोहड़ी,माघी हे संस्कार,
तमिलनाडु कहिथे सुघर,पोंगल हावै नाम,
सुग्घर खिचरी राँध के,बाटय प्रेम अपार।।

सुरुज देव किरपा करौ,इही करय गोहार,
सुग्घर घर परिवार मा,सबके हो उद्धार,
सबझन बाँटय आज तो,मीठा गुड़ पकवान,
खुशियाँ सबला बाँट के,दयँ सुग्घर व्यवहार।।

छंद - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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मकर सक्रांति(सार छंद)

सूरज जब धनु राशि छोड़ के,मकर राशि मा जाथे।
भारत  भर  के मनखे मन हा,तब  सक्रांति  मनाथे।

दिशा उत्तरायण  सूरज के,ये दिन ले हो जाथे।
कथा कई ठन हे ये दिन के,वेद पुराण सुनाथे।
सुरुज  देवता हा सुत शनि ले,मिले इही दिन जाये।
मकर राशि के स्वामी शनि हा,अब्बड़ खुशी मनाये।
कइथे ये दिन भीष्म पितामह,तन ला अपन तियागे।
इही  बेर  मा  असुरन  मनके, जम्मो  दाँत  खियागे।
जीत देवता मनके होइस,असुरन नाँव बुझागे।
बार बेर सब बढ़िया होगे,दुख के घड़ी भगागे।
सागर मा जा मिले रिहिस हे,ये दिन गंगा मैया।
तार अपन पुरखा भागीरथ,परे रिहिस हे पैया।
गंगा  सागर  मा  तेखर  बर ,मेला  घलो  भराथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।

उत्तर मा उतरायण खिचड़ी,दक्षिण पोंगल माने।
कहे  लोहड़ी   पश्चिम  वाले,पूरब   बीहू   जाने।
बने घरो घर तिल के लाड़ू,खिचड़ी खीर कलेवा।
तिल अउ गुड़ के दान करे ले,पावय सुघ्घर मेवा।
मड़ई  मेला  घलो   भराये, नाचा   गम्मत   होवै।
मन मा जागे मया प्रीत हा,दुरगुन मन के सोवै।
बिहना बिहना नहा खोर के,सुरुज देव ला ध्यावै।
बंदन  चंदन  अर्पण करके,भाग  अपन सँहिरावै।
रंग  रंग  के  धर  पतंग  ला,मन भर सबो उड़ाये।
पूजा पाठ भजन कीर्तन हा,मन ला सबके भाये।
जोरा  करथे  जाड़ जाय के,मंद  पवन  मुस्काथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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*मकर संक्रांति---- दोहा छंद*

डोरी  संग  पतंग  हे,  मिले  मया  के  रंग ।
उड़ाबोन जुरमिल सबो, आही मजा मतंग ।।०१

सँकरायत के दिन बने,  तिल लाड़ू के पाग ।
आज परब हे खास जी,  हमरो जागे भाग ।।०२

घर-घर खुशी मनाव जी, आये पावन वार ।
दुख दारिद ला भूल के, बाँटव मया दुलार ।।०३

पबरित तन मन होय जी, कर लौ पूजा ध्यान ।
हवय महत्तम आज के,  देवव तिल गुड़ दान ।।०४

सँकरायत के हे परब, खिचड़ी मेवा खाव ।
करके गंगा स्नान जी, भाग्य अपन उजराव ।।०५

*मुकेश उइके "मयारू"*
 ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)


मकर सक्रांति लोहड़ी,पोंगल,बीहू के बहुत बहुत बधाई

6 comments:

  1. सबके रचना बहुत बढ़िया हे
    सबोझन ल गाड़ा गाड़ा बधाई

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  2. बहुत सुग्घर संग्रह गुरुदेव जी

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  3. बहुत सुंदर संकलन, सबो ला मकर संक्रांति के बहुत बधाई

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  4. जम्मो सम्मानीय साधक मन ला अनंत बधाई👍👌👏💐💐

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  5. बड़ सुग्घर संकलन🖊️🖊️🖊️🖊️🖊️🖊️🖊️🌷🙏

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