*सार छंद*-- *आशा देशमुख*
कवि समाज के दरपन होथे,अतका जानँव भइया।
सार साँच मा कलम चलावव,साहित हावय नइया।
स्याही होय भले करिया पर,आखर राखव सादा।
कलम सिपाही लड़त रहव गा, बनँव कभू झन प्यादा।
साहित सागर रतन भरे हे,शब्द शब्द हे मोती।
चुन चुन के सब गूँथव माला ,चमके चारो कोती।
माँ वाणी के वरद हाथ हा ,जब कोनो ला मिलथे।
काली तुलसी जइसे बनके,अमर काव्य ला रचथे।
बड़े भाग मनखे तन मिलथे,दुर्लभ कविता रचना।
कोटि जनम के भाग खुले तब,बइठे वाणी रसना।
छंदकार -आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
कवि समाज के दरपन होथे,अतका जानँव भइया।
सार साँच मा कलम चलावव,साहित हावय नइया।
स्याही होय भले करिया पर,आखर राखव सादा।
कलम सिपाही लड़त रहव गा, बनँव कभू झन प्यादा।
साहित सागर रतन भरे हे,शब्द शब्द हे मोती।
चुन चुन के सब गूँथव माला ,चमके चारो कोती।
माँ वाणी के वरद हाथ हा ,जब कोनो ला मिलथे।
काली तुलसी जइसे बनके,अमर काव्य ला रचथे।
बड़े भाग मनखे तन मिलथे,दुर्लभ कविता रचना।
कोटि जनम के भाग खुले तब,बइठे वाणी रसना।
छंदकार -आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
बहुत सुन्दर दीदी
ReplyDeleteसच कहत हव दीदी,जिहाँ न पहुँचे रवि उहाँ पहुँचे कवि।सुंदर रचना बर बधाई!!
ReplyDeleteबहुत शानदार रचना दीदी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार भाई जितेंद
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना,बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सार छंद मा रचना हे दीदी जी बधाई
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