सार छंद - बोधन राम निषादराज
(1) जिनगी के होरी:-
देखव संगी फागुन आए,ढोल नँगारा बाजय।
लइका बुढ़वा दाई माई,घर कुरिया ला साजय।।
जिनगी मा जी काय धरे हे,बैर भाव ला झारव।
बइरी हितवा जम्मो मिलके,रंग मया के डारव।।
लाली हरियर नीला पिउँरा,सुघ्घर रंग समाए।
छींचव संगी जोर लगाके,फागुन देखव आए।।
रंग लगावय आनी-बानी, मउहा पीके झूले।
धर पिचकारी मारय फेंकय,कोनों रेंगत भूले।।
फाग होत हे चारो कोती, नर-नारी बइहाए।
नाच-नाच के मजा करत हे,सुग्घर होरी भाए।।
ए जिनगी मा काय धरे हे,चलो मनालव खुशियाँ।
ए जिनगी नइ मिलय दुबारा,झन बइठव जी दुखिया।।
(2) रंग मया के लेलव:-
गली गली मा धूम मचे हे,नाचत फगुवा गावय।
होरी खेलय रंग उड़ावय,भंग खुशी मा खावय।।
मातय झूमय गली खोर मा,ढोल नँगाड़ा बाजय।
धर पिचकारी आरा रारा,बइहाँ सुघ्घर साजय।।
भेद-भाव अउ लाज शरम ला,छोड़ भगागे भाई।
नइ हे बेटी बहू चिन्हारी, नइ हे दाई - माई।।
टूरी टूरा एक दिखत हे, कोनों करिया पिउँरा।
रंग मया मा फाँसय कोनों,कखरो तरसय जिवरा।।
अइसन होरी अउ कब आही,बने इहाँ अब खेलव।
जिँयत मरत के संगी-साथी,रंग मया के लेलव।।
(3) नवा जमाना आवय:-
नवा जमाना देखत हावय, रसता आगू बढ़ गा।
दुनिया के सँग हाथ मिला के, अपन करम ला गढ़ गा।।
झन हो जाहू पाछू संगी,सोचव अपन विकास ल।
दुनिया आसमान मा पहुँचय,झन छोड़व जी आस ल।।
नवा-नवा जी बोर होत हे,खेती सोना होवय।
वाटर पम्प घलो हे चलथे,बारह महिना बोवय।।
आज सड़क मा चिखला नइहे,चिक्कन चाँदन चमकय।
घर कुरिया अब पक्का होगे,लेंटर वाले दमकय।।
पढ़े लिखे के राज आत हे,जम्मो सुघ्घर पढ़लव।
नोनी बाबू संगे सँग मा,अपनों जिनगी गढ़लव।।
तइहा के जी बात छोड़ दव,अब तो वो नंदावय।
आगू आगू सोंचत राहव,नवा जमाना आवय।।
छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा, जिला - कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
(1) जिनगी के होरी:-
देखव संगी फागुन आए,ढोल नँगारा बाजय।
लइका बुढ़वा दाई माई,घर कुरिया ला साजय।।
जिनगी मा जी काय धरे हे,बैर भाव ला झारव।
बइरी हितवा जम्मो मिलके,रंग मया के डारव।।
लाली हरियर नीला पिउँरा,सुघ्घर रंग समाए।
छींचव संगी जोर लगाके,फागुन देखव आए।।
रंग लगावय आनी-बानी, मउहा पीके झूले।
धर पिचकारी मारय फेंकय,कोनों रेंगत भूले।।
फाग होत हे चारो कोती, नर-नारी बइहाए।
नाच-नाच के मजा करत हे,सुग्घर होरी भाए।।
ए जिनगी मा काय धरे हे,चलो मनालव खुशियाँ।
ए जिनगी नइ मिलय दुबारा,झन बइठव जी दुखिया।।
(2) रंग मया के लेलव:-
गली गली मा धूम मचे हे,नाचत फगुवा गावय।
होरी खेलय रंग उड़ावय,भंग खुशी मा खावय।।
मातय झूमय गली खोर मा,ढोल नँगाड़ा बाजय।
धर पिचकारी आरा रारा,बइहाँ सुघ्घर साजय।।
भेद-भाव अउ लाज शरम ला,छोड़ भगागे भाई।
नइ हे बेटी बहू चिन्हारी, नइ हे दाई - माई।।
टूरी टूरा एक दिखत हे, कोनों करिया पिउँरा।
रंग मया मा फाँसय कोनों,कखरो तरसय जिवरा।।
अइसन होरी अउ कब आही,बने इहाँ अब खेलव।
जिँयत मरत के संगी-साथी,रंग मया के लेलव।।
(3) नवा जमाना आवय:-
नवा जमाना देखत हावय, रसता आगू बढ़ गा।
दुनिया के सँग हाथ मिला के, अपन करम ला गढ़ गा।।
झन हो जाहू पाछू संगी,सोचव अपन विकास ल।
दुनिया आसमान मा पहुँचय,झन छोड़व जी आस ल।।
नवा-नवा जी बोर होत हे,खेती सोना होवय।
वाटर पम्प घलो हे चलथे,बारह महिना बोवय।।
आज सड़क मा चिखला नइहे,चिक्कन चाँदन चमकय।
घर कुरिया अब पक्का होगे,लेंटर वाले दमकय।।
पढ़े लिखे के राज आत हे,जम्मो सुघ्घर पढ़लव।
नोनी बाबू संगे सँग मा,अपनों जिनगी गढ़लव।।
तइहा के जी बात छोड़ दव,अब तो वो नंदावय।
आगू आगू सोंचत राहव,नवा जमाना आवय।।
छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा, जिला - कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
बहुत सुन्दर गुरुदेव जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन छत्तीसगढ़ी भाषा में आदरणीय भाई जी बधाई ।
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