जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया-(कुकुभ छंद)
स्वामी विवेकानंद
स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।
नीति नियम सत कठिन डगर के, स्वामी सच्चा राही हो।
भारतीय दर्शन के दौलत, भारत वासी के हीरा।
ज्ञान धरम सत जोत जलाके, दूर करिस दुख डर पीरा।
पढ़ लौ गढ़ लौ स्वामी जी ला, मन म उमंग हमाही हो।
स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।
संत शिरोमणि सत के साथी, विद्वान गुणी वैरागी।
भाईचारा बाँट बुझाइस, ऊँच नीच छलबल आगी।
अन्तस् मा आनंद जगालौ, दुःख दरद दुरिहाही हो।
स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।
सोन चिरैया के चमकैया, सोये सुख आस जगइया।
भारत के ज्ञानी बेटा के, परे खैरझिटिया पँइया।
गुरतुर बोली ज्ञान ध्यान सत, जीवन सफल बनाही हो।
स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)
(राष्ट्रिय युवा दिवस : 12/01/2022)
आध्यात्मिक गुरु भारत भुइयाँ, स्वामी रहिन विवेकानंद।
धर्म ज्ञान बगरावत घूमय, छोड़ चलिन माया के फंद।।
सन् अठरा सौ तिरसठ बच्छर, कलकत्ता के पबरित स्थान।
तिथि बारह जनवरी माह मा, जनम धरिन अइसन इंसान।।
इँखर ददा श्री विश्वनाथ जी, रहिन दत्त कुल के परिवार।
भुवनेश्वरी रहिन माता जी, देइन बेटा ला संस्कार।।
हाईकोर्ट कोलकाता मा, रहिन हवै जी ददा वकील।
करै फैसला नीति नियम मा, बइरी हिरदय जावै हील।।
नाँव नरेंद्रनाथ बचपन के, होनहार लइका गुणवान।
बड़ नटखट राहय बड़ सिधवा, करै शरारत बन अनजान।।
रोज बिहनिया नहाखोर के, करै बने वो पूजा पाठ।
धर्म परायण दाई जी हा, बने बनाइन इँखरे ठाठ।।
सुनै महाभारत रामायण, किसम - किसम के कथा पुरान।
संग अपन दाई नरेंद्र हा, पाइन हावय सुग्घर ज्ञान।।
आय कथावाचक मन घर मा, बहै भजन कीर्तन के धार।
तभे नरेंद्रनाथ के ऊपर, पड़िन बने सुग्घर संस्कार।।
लइकापन ले बड़ उत्साही, पूछे बर इच्छा बढ़ जाय।
ईश्वर कोन कहाँ रहिथे वो, बुद्धि ददा के बड़ चकराय।।
रामकृष्ण श्री परमहंस ला, गुरुवर मानिन बनिन सुजान।
भारतीय उपमहाद्वीप मा, बगराइन आध्यात्मिक ज्ञान।।
देश विदेश गइन स्वामी जी, जगह - जगह देइन व्याख्यान।
भारत भुइयाँ कीर्ति पताका, लहराइन पाइन सम्मान।।
भारत भुइयाँ के सन्यासी, स्वामी बनिन विवेकानंद।
इँखर जनम दिन "युवा दिवस" कह, सबो मनाथे बड़ आनंद।।
गइन शिकागो धर्म सभा मा, धर्म ध्वजा स्वामी लहराय।
मान बढ़ाई खूब मिलिस अउ, अमेरिका वासी गुन गाय।।
मोरे अमेरिकी बहिनों अउ, मोर भाइयों कहिन सुजान।
अइसन सम्बोधन ला सुनके, बड़ खुश होइन हे इंसान।।
उन्नईस सौ दू बच्छर मा, चार जुलाई तिथि जब आय।
सरग विवेकानंद चलिन हे, ये दुनिया ला दिए भुलाय।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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घनाक्षरी
सन्यासी विवेकानंद,सुनै जे पावै आनंद,
शिकांगो के भाषण मा,गदर मचाय हे।
मनखे ला जगाइस,भक्ति योग सिखाइस,
धर्म धजा संस्कृति के,रक्षक कहाय हे।।
रग-रग स्वाभिमान,देश बर जी सम्मान,
पीड़ा कतका सहिके,शान ला बढ़ाय हे।
युवा मन मा घुसिस, मंत्र जोश के फूँकिस,
राष्ट्रभक्ति के सुग्घर,चरखा चलाय हे।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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*दोहा छन्द-बनो विवेकानंद*
मानुष तन बर काल हे,गाँजा बीड़ी मंद।
नशा जाल ला तोड़ के,बनो विवेकानंद।।
गाँव शहर मा फैलगे,कलजुग के ये जाल।
नशा बिकट विकराल अउ,हवे रंग हर लाल।।
लकवा टी बी माथ मा,करथे बड़का घात।
लहू चुहक तन चीर थे,कैंसर विष के जात।।
छोड़व ये विष ला तभे,होही मन आनंद।
नशा जाल ला तोड़ के,बनो विवेकानंद।।
सुलगत माटी आज तो,धुँआ धुँआ कस होत।
बइठे दाई देहरी,सिसक सिसक के रोत।।
नशा करे जे लोग मन,पानी पसिया बेंच।
नशा हाल मा काँट थे,अपने मन के घेंच।।
धरम करम सत काम मा,दिखथे अब तो चंद।
नशा जाल ला तोड़ के,बनो विवेकानंद।।
नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
छन्द साधक,सत्र-09
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स्वामी विवेकानन्द के जयंती मा
मोर भाव पुष्प🙏🙏
दोहा -चौपाई छंद
मिहनत उद्यम हे बड़े ,कहय विवेकानन्द।
मन के ऊर्जा जानलव , खुद काटव भव फन्द।।
लाये क्रांति युवा सन्यासी। गौरव करथें भारत वासी।
परमहंस के मान बढ़ाये। शिष्य विवेकानन्द कहाये।।
ओज भरे जब भाषण बोले। जन जन के अंतस ला खोले।
आत्म चेतना ऐसे जागे। दीन दुखी के डर सब भागे।।
आध्यात्म रखय तन मन ला पावन। सोच विचार लगय मनभावन।।
शिक्षा सयंम धैर्य जरूरी। आलसपन से राखव दूरी।।
युवा उठो समझो अउ जागो। मिहनत से कोनो झन भागो।
लक्ष्य बाण अर्जुन कस राखव। सत्य धरम मा जइसे राघव।
करय विश्व भारत के पूजा। अइसन देश मिले नइ दूजा।
सन्त नरेंद्र भारत के बेटा। बाँधे मुड़ केसरिया फेंटा।।
उमर भले कमती रहिस, अमर विवेकानन्द।
स्वामी जी के भाव सब , भरथे जोश बुलन्द।।
आशा देशमुख
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कुण्डलियां छंद
स्वामी विवेकानंद
भारत के गौरव बढ़े,अइसन करदिस काज।
विश्व धर्म बानी ध्वजा,फहिरे बन के साज।
फहिरे बनके साज प्रभावी हे सम्बोधन।
शब्द बनिस पहिचान, बहिन भाई बड़ पावन।
लिखय मधुर इतिहास,सब शिकागो मा धारत।
होनहार बिरवान,संत स्वामी ले भारत ।।
(2)
नारी शिक्षा मा बढय,तभे तरक्की जान।
स्वाभिमान हे देश के,संत युवा के मान।
संत युवा के मान,गढ़व विकास के गाथा।
सबके हित ला सोच,नवाही सब झिन माथा।
कल कर खाना खोल,संदेश टार अशिक्षा।
ज्ञान मधुर भंडार,पथ बने नारी शिक्षा।।
*डाॅ मीता अग्रवाल मधुर
रायपुर छत्तीसगढ़*
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स्वामी विवेकानंद- विजेन्द्र वर्मा
(दोहा छंद)
स्वामी जी के गुण धरे,जिनगी बड़ सुख पाय।
ज्ञान जोत हा जब जले,दुख हा भागे जाय।।
भाईचारा बाँट लव,भेद करव ना कोय।
मनखे मनखे एक हो,इही बीज सब बोय।।
हठधर्मी अब मत करव,आज मान लव बात।
खून खराबा ले सदा,मनखे खाथे मात।।
कटुता का अब नाश हो,गढ़े नवा सब राह।
एक लक्ष्य सब के रहय,रखौ यहीं सब चाह।।
मानवता जग मा रहय,मिले नेक ये सीख।
खुशी रहै मनखे सबो,माँगे ना जी भीख।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला-रायपुर
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हरिगीतिका छंद
स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानन्द जी, अइसन महामानव हरे।
भारत समाये देह मा, मन ओज रग रग मा भरे।
गरजे दहाड़े शेर कस, जब एक सन्यासी युवा।
हिलगे शिकागो के सभा, झारा बने जइसे डुवा।1
जीयव सदा सम्मान से, कमजोर बनके झन रहव।
विश्वास खुद मा ही रखव, सत ला बिना डर के कहव।।
आध्यात्म के रद्दा चलव, अंतस तरी बड शक्ति हे।
मन मा जगावव चेतना, जानव इही मा भक्ति हे।।2
विस्तार देवव बुद्धि ला, झन तो सकेलव सोच ला।
स्वारथ घृणा अपमान के, दुरिहा करव सब मोच ला।
मनखे बनव मनखे रहव, ईश्वर सबो बर एक हे।
सहयोग परहित लक्ष्य के,हर काम पबरित नेक हे।।3
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
बहुत सुग्घर गुरुदेव जी बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना गुरुजी
ReplyDeleteबधाई हो
महेन्द्र देवांगन माटी
वाह बहुत सुग्घर बखान,स्वामीविवेकानंद जी के👍👏👌💐💐
ReplyDeleteवाहहह!बड़ सुग्घर
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई हो गुरुदेव
ReplyDeleteबड़ सुग्घर रचना बधाई
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteजय विवेकानन्द की
ReplyDeleteजय भारत छंद छ परिवार ।
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