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Sunday, January 26, 2020

देशभक्ति आधारित छंद बद्ध कविता-छंद के छ परिवार



देशभक्ति आधारित छंद बद्ध कविता-छंद के छ परिवार

शक्ति छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।
करौं बंदना नित करौं आरती।
बसे मोर मन मा सदा भारती।

पसर मा धरे फूल अउ हार ला।
दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।
बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।
सबे खूँट बगरे अँजोरी रहे।
बसे बस मया हा जिया भीतरी।
रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।

इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।
तभो हे घरो घर बिना बेंस के--।
पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।

चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।
सजाके बनावौं ग रानी सहीं।
किसानी करौं अउ सियानी करौं।
अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।
वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।
करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।

फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।
वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।
पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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बलिदानी (सार छंद)

कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।
देश धरम बर मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।
महतारी के आन बान बर,कौने झेले गोली।
कोन लगाये माथ मातु के,बंदन चंदन रोली।
छाती कोन ठठाके गरजे,काँपे देख फसादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।
हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।
मुड़ी हिलामय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।
हवा बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।
देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।
अपने मन सब बैरी होगे,कोन भला छोड़ावै।
हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।
देख हाल बलिदानी मनके,बरसे नैना धारी।
पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।
लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।
डाह द्वेष के आगी भभके,माते मारी मारी।
अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।
बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

रोला छंद - बोधन राम निषादराज
(गणतन्त्र दिवस)

झंडा ऊँचा आज,अगासा फहरत हावै।
आजादी के गोठ,चिरइया आज सुनावै।।
जय जवान जय घोष,लगावौ जम्मो भाई।
सुग्घर  राहय  देश, मोर ये भारत  माई।।

संगी चलव  मनाव,आय  हे सुघ्घर  बेरा।
ए गणतंत्र तिहार,देख  ले  सोन  बसेरा।।
पावन मौका आय,झूम के  नाचौ   गावौ।
भूलौ झन उपकार,आज सब खुशी मनावौ।।

लोकतन्त्र  के  पर्व, मनावौ   भारतवासी।
समझौ रे अधिकार,बनौ झन कखरो हाँसी।।
जात-पात के संग,करौ झन आज लड़ाई।
झन हो लहू लुहान,रहौ सब भाई-भाई।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा, जिला - कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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कुकुभ छंद गीत - श्रीमती आशा आजाद

भारत के सच्चा सेनानी,अब्बड़ मान बढ़ाथे गा,
रण मा कुर्बानी ले अपने,झण्डा ओ फहराथे गा।

हे शहीद कतका भारत मा,अब्बड़ खून बहाये हे
हिंदुस्तान के सान बान मा,मरके फर्ज निभाये हे
साहस रखके फर्ज निभाइन,दुश्मन मार गिराथे गा,
रण मा कुर्बानी ले अपने,झण्डा ओ फहराथे गा।

घर मा बइठे घरवाली हा,अपने फर्ज निभाये जी,
बच्चा ओखर अबड़ तरसथे,पालय कष्ट उठाये जी,
सुनके होगे ओ वीरगति ल,अपने होश गवाथे गा,
रण मा कुर्बानी ले अपने,झण्डा ओ फहराथे गा।

जंगल झाड़ी घाम जाड़ मा,तन मा अब्बड़ सहिथे गा,
रात रात भर जाग जाग के,रक्षा सबके करथे गा,
कठिन काज के जिम्मा लेवै,तभे सुरक्षा आथे गा।
रण पर कुर्बानी से अपने,झण्डा वो फहराथे गा।

दुश्मन झन घुस जावै कोनो,सीमा मा नजर गड़ाये हे,
भूख प्यास के होश कहाँ तब,जब संकट हा छाये हे,
भारत माता के रक्षा बर,लहूँ सदा दे जाथे गा,
रण मा कुर्बानी ले अपने,झण्डा ओ फहराथे गा।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

5 comments:

  1. जय हिंद जय भारत,जय छत्तीसगढ़🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏

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  2. बहुत सुग्घर संग्रह

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  3. बहुत सुग्घर संग्रह

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