सार छंद -अजय अमृतांसु
दू दिन के जिनगानी संगी,येकर कहां ठिकाना
जइसे आये वइसे जाबे ,तब काबर पछताना।
मया मोह मा परके तैंहा,राम नाम छोड़े हस।
दया धरम नइ जाने बइहा,काबर मुँह मोड़े हस।
पाई पाई जोरे काबर, इँहे छोड़ जाना हे।
कतको जोरे मोरे कहिके,हाथ कहाँ आना हे।
बने करम कर ले गा भैया,तब तो सुख तैं पाबे ।
पथरा जइसन जिनगी खिरही,मर के का ले जाबे।
कोन अपन अउ कोन पराया, सबला एके जानव।
मंदिर मस्जिद अउ गुरुद्वारा,सब ला एके मानव ।
अजय अमृतांशु
भाटापारा
दू दिन के जिनगानी संगी,येकर कहां ठिकाना
जइसे आये वइसे जाबे ,तब काबर पछताना।
मया मोह मा परके तैंहा,राम नाम छोड़े हस।
दया धरम नइ जाने बइहा,काबर मुँह मोड़े हस।
पाई पाई जोरे काबर, इँहे छोड़ जाना हे।
कतको जोरे मोरे कहिके,हाथ कहाँ आना हे।
बने करम कर ले गा भैया,तब तो सुख तैं पाबे ।
पथरा जइसन जिनगी खिरही,मर के का ले जाबे।
कोन अपन अउ कोन पराया, सबला एके जानव।
मंदिर मस्जिद अउ गुरुद्वारा,सब ला एके मानव ।
अजय अमृतांशु
भाटापारा
बहुत सुग्घर गुरुदेव जी बधाई हो
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteगजब सुग्घर सर
ReplyDeleteगजब सुग्घर सर
ReplyDeleteआभार सर
Deleteबहुत सुन्दर गुरूदेव
ReplyDeleteबधाई हो गा
ReplyDeleteबधाई हो गा
ReplyDeleteबेहतरीन गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना गुरु जी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर ।सार बात
ReplyDeleteवाहह!गजब सुग्घर बात कहेव सर अपन छंद रचना म।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सृजन आदरणीय, बधाई
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