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Tuesday, January 28, 2020

सार छंद -अजय अमृतांसु

सार छंद -अजय अमृतांसु

दू दिन के जिनगानी संगी,येकर कहां ठिकाना
जइसे आये वइसे जाबे ,तब काबर पछताना।

मया मोह मा परके तैंहा,राम नाम छोड़े हस।
दया धरम नइ जाने बइहा,काबर मुँह मोड़े हस।

पाई पाई जोरे काबर, इँहे छोड़ जाना हे।
कतको जोरे मोरे कहिके,हाथ कहाँ आना हे।

बने करम कर ले गा भैया,तब तो सुख तैं पाबे ।
पथरा जइसन जिनगी खिरही,मर के का ले जाबे।

कोन अपन अउ कोन  पराया, सबला एके जानव।
मंदिर मस्जिद अउ गुरुद्वारा,सब ला एके मानव ।

                           अजय अमृतांशु         
                              भाटापारा

13 comments:

  1. बहुत सुग्घर गुरुदेव जी बधाई हो

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  2. बेहतरीन गुरुदेव

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  3. बहुत बढ़िया रचना गुरु जी

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  4. बहुत सुग्घर ।सार बात

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  5. वाहह!गजब सुग्घर बात कहेव सर अपन छंद रचना म।सादर बधाई

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  6. बहुत बढ़िया सृजन आदरणीय, बधाई

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