बसंत ऋतु विशेषांक
(रोला छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
(रोला छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
गावय गीत बसंत,हवा मा नाचे डारा।
फगुवा राग सुनाय,मगन हे पारा पारा।
करे पपीहा शोर,कोयली कुहकी पारे।
रितु बसंत जब आय,मया के दीया बारे।
बखरी बारी ओढ़,खड़े हे लुगरा हरियर।
नँदिया नरवा नीर,दिखत हे फरियर फरियर।
बिहना जाड़ जनाय,बियापे मँझनी बेरा।
अमली बोइर आम,तीर लइकन के डेरा।
रंग रंग के साग,कढ़ाई मा ममहाये।
दार भात हे तात,बने उपरहा खवाये।
धनिया मिरी पताल,नून बासी मिल जाये।
खावय अँगरी चाँट,सबे के जिया अघाये।
हाँस हाँस के खेल,लोग लइका मन खेले।
मटर चिरौंजी चार,टोर के मनभर झेले।
आमा अमली डार, बाँध के झूला झूलय।
किसम किसम के फूल,बाग बारी मा फूलय।
धनिया चना मसूर,देख के मन भर जावय।
खन खन करे रहेर,हवा सँग नाचय गावय।
हवे उतेरा खार, लाखड़ी सरसो अरसी।
घाम घरी बर देख,बने कुम्हरा घर करसी।
मुसुर मुसुर मुस्काय,लाल परसा हा फुलके।
सेम्हर हाथ हलाय,मगन हो मन भर झुलके।
पीयँर पीयँर पात,झरे पुरवा आये तब।
मगन जिया हो जाय,गीत पंछी गाये तब।
माँघ पंचमी होय,शारदा माँ के पूजा।
कहाँ पार पा पाय,महीना कोई दूजा।
ढोल नँगाड़ा झाँझ,आज ले बाजन लागे।
आगे मास बसन्त,सबे कोती सुख छागे।
जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छ्ग)
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कुण्डलियां छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
मउरे आमा डार मा, परसा फूले लाल।
कोयल गावत गीत हे, पूछत सबके हाल।।
पूछत सबके हाल, मया के बाँधय डोरी।
झूमय नाचय मोर, देख मौसम घनघोरी।।
हरियर डारा पान, सबो के दिन हा बहुरे।
राजा हे रितु आम, गाँव अमरइया मउरे।।
मनभावन मन बावरी, ढूँढ़य रे मनमीत।
कोयल कूके डार मा, गावय सुघ्घर गीत।।
गावय सुघ्घर गीत, पंख दुन्नो फइलाये।
झूमय नाचय खार, बसंती घर घर आये।।
जीना अब दुश्वार, आँख ला बरसे सावन।
भाये ना घर द्वार, मोर सजना मन भावन।।
आगे बिरहा के बखत, लगय जुवानी आग।
करम विधाता का गढ़े, चोला लगगे दाग।।
चोला लगगे दाग, मोर धधकत हे छतिया।
तरसे नयना मोर, मया के भेजव पतिया।।
कोयल छेड़य तान, कोयली के मन भागे।
अंतस भरे हिलोर, समय का बिरहा आगे।।
ईंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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ताटंक छंद गीत-डी पी लहरे
ऋतु बसंत के दिन आये हे।
ख़ुशी सबो बर लाये हे।
परसा फुलवा लाली लाली,
अमुवा हा मउराये हे।
आज कोइली कुहकत हावय,
गा के गुत्तुर गाना जी।
रंग बिरंगी फूल फुले हे,
उलहा डारा-पाना जी।।
फूल फूल मा जाके अब तो,
भौंरा हा मँडराये हे..
ऋतु बसंत के दिन आये हे,
ख़ुशी सबो बर लाये हे..।।1
आनी-बानी साज करे हे,
ये धरती महतारी हा।
गमकत हावय चारो कोती,
बगिया अउ फुलवारी हा।।
फागुन महिना आही कहिके,
रंग बसंती छाये हे..
ऋतु बसंत के दिन आये हे,
ख़ुशी सबो बर लाये..ll2
गरमी जाड़ा कुछ नइ लागे,
मौसम मस्त सुहाना हे।
मया-मयारू मिलना होही,
उँखरे आज जमाना हे।।
फुरहुर-फुरहुर पुरवाही जी,
सबके मन ला भाये हे..
ऋतु बसंत के दिन आये हे,
ख़ुशी सबो बर लाये हे..ll3
गीतकार डी.पी.लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा
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जल-हरन घनाक्षरी - बोधन राम निषादराज
मन मोर झुमें नाचे, पड़की परेवा बाचे,
लागथे लगन अब, शोर बगराय बर।
परसा के फूल लाली,गोरी होगे मतवाली,
कुहके कोयलिया हा,जिवरा जलाय बर।।
आमा मउँर महके, जिवरा घलो बहके,
सरसो पिँयर सोहे, मन ललचाय बर।
हरियर रुखराई, चलतहे पुरवाई,
आस ला बँधावत हे,मया ला जगाय बर।।
किरीट सवैया - (बसन्त)
आय बसन्त फुले परसा गुँगवावत आगि लगावत हावय।
देख जरै जिवरा बिरही मन मा बहुँते अकुलावत हावय।।
कोकिल राग सुनावत हे महुआ मीठ फूल झरावत हावय।
रंग मया पुरवा बगरे चहुँ ओर इहाँ ममहावत हावय।।
सुखी सवैया - (बसन्त)
ऋतुराज बसन्त लुभावत हे,मन मा खुशियाँ अब छावन लागय।
अमुवा मउरे पिँउरावत हे,कुँहु कोकिल राग सुनावन लागय।।
सरसो अरसी महुआ महके,सब डाहर फूल सुहावन लागय।
मन मोर अगास उड़ै जस बादर गीत मया बरसावन लागय।।
छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला - कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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बसंत पंचमी खातिर सरसती चालीसा-कन्हैया साहू
जय जय दाई सरसती, अइसन दे वरदान।
अग्यानी ग्यानी बनय, होवय जग कल्यान।। (दोहा)
हे सरसती हरव अँधियारी। हिरदे सँचरय झक उजियारी।।-1
तोर चरण मा जम्मों सुख हे। जिनगी जग मा कटही रुख हे।।-2
हाथ जोड़ के करथँव विनती। होय भक्त मा मोरो गिनती।।-3
जंतर मंतर कुछु नइ जानँव। सबले पहिली तोला मानँव।।-4
मैं मुरहा मन के बड़ भोला। गोहराँव मैं निसदिन तोला।।-5
मोर भुवन मा आबे दाई। बिगड़ी सबो बनाबे माई।।-6
एती वोती मैं भटकँव झन। बुता काम मा मैं अटकँव झन।।-7
मोर करम ला सवाँरबे तैं। अँचरा दे के दुलारबे तैं।।-8
जिनगी के दुख पीरा हर दे। छँइहा सुख के छाहित कर दे।।-9
सोहय सादा हंस सवारी। कमल विराजे वीणाधारी।।-10
मूँड़ मुकुट मणि माला मोती। दगदग दमकय चारो कोती।।-11
सबले बढ़के वेद पुरानिक। सरी कला के तहीं सुजानिक।।-12
ग्यान मान के तैं भंडारी। तहीं जगत मा बड़ उपकारी।।-13
वरन वाक्य अउ बोली भासा। महतारी तैं सबके आसा।।-14
सब्बो सिरजन के तैं जननी। गीत गजल अउ कविता कहिनी।।-15
सुर सरगम के सिरजनहारी। मान-गउन के तैं अवतारी।।-16
सारद तीन लोक विख्याता। विद्या वैभव बल के दाता।।-17
सुर नर मुनि सबो गोहरावैं। संझा बिहना माथ नवावैं।।-18
अंतस ले जे तोला गावँय। मनवांछित फल वोमन पावँय।।-19
तोरे पूजा आगू सब ले। सरी बुता हा बनथे हब ले।।-20
विधि विधान जग के तैं बिधना। बोली भाखा तोरे लिखना।।21
तहीं ग्यान विग्यान विसारद। गावय तोला ग्यानी नारद।।-22
दाई चारो वेद लिखइया। ग्यान कला अउ साज सिखइया।।-23
रचे छंद अउ कहिनी कविता। भाव भरे बोहावत सरिता।-24
नेत नियम ला तहीं बखानी। ग्रंथ शास्त्र हा तोर जुबानी।।-25
मंत्र आरती सीख सिखावन। आखर तोरे हावय पावन।।-26
अप्पड़ होवय अड़बड़ ग्यानी। कोंदा बोलय गुरतुर बानी।।-27
सूरदास हा बजाय बाजा। बनय खोरवा हा नटराजा।।-28
बनथस सबके सबल सहारा। जिनगी जम्मों तोर अधारा।।-29
जीव जगत के तैं महतारी। तोरे अंतस ममता भारी।।-30
भरे सभा मा लाज बचाथस। जग ला अँगरी नाच नचाथस।।-31
तोर नाँव हे जग मा पबरित। बरसाथस तैं किरपा अमरित।।-32
हावँव निमगा निच्चट अँड़हा। परे हवँव मैं कचरा कड़हा।।-33
अखन आसरा खँगे पुरोबे। मनसुभा मइल मोरो धोबे।।-34
झार केंरवस, कर दे उज्जर। बनय 'अमित' सतवंता सुग्घर।।-35
मेट सवारथ झगरा ठेनी। दया मया बोहा तिरबेनी।।-36
राखे रहिबे मोरो सुरता। खँगे-बढ़े के करबे पुरता।।-37
महतारी झन तैं तरसाबे। अंतस खच्चित मोर अमाबे।।-38
जिनगी होगे खींचातानी।। करबे किरपा तहीं भवानी।।-39
पूत 'अमित' के सदा सहाई। कभू भुलाबे झन ओ दाई।।-40
सुमिरन करथँव सारदा, सरलग तोरे नाम।
सोर 'अमित' जग मा उड़य, सिद्ध परय सब काम।।
कन्हैया साहू 'अमित'
शिक्षक-भाटापारा छ.ग.
संपर्क~9200252055
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रूपमाला छंद :- जगदीश "हीरा" साहू
शारदे माँ ज्ञान भरदे, मन्द मति मा मोर।
कृपा बिन अँधियार जिनगी, आय करव अँजोर।।
हाथ ले झनकार वीणा, छेड़ सुग्घर राग।
बिसर जावय दुःख सुनके, सँवर जावय भाग।।1।।
कर सवारी हंस आहू, संग बाँटत ज्ञान।
बसे राहय भगति मन मा, दे इही वरदान।।
कभू झन भटकय दिखाहू, नेक रसता जोर।
मोर जिनगी ला सजाहू, हे भरोसा मोर।।2।।
तुँहर महिमा वेद गावय, संत करय बखान।
कंठ कोकिल करव कहिथँव, करँव मैं गुनगान।।
सात स्वर सुर ताल देवव, लगे भीड़ समाज।
हाथ जोड़े खड़े सब जन, दया कर दव आज।।3।।
माथ मा चंदन लगावँव, चरण रज धर शीश।
रूपमाला छंद गावँव, आज मैं जगदीश।।
जगत मा संस्कार बगरय, मिलय निरमल ज्ञान।
जगत जननी सुनव अरजी, इही दव वरदान।।4।।
जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़
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चौपाई - छंद रामकली कारे
तन मन मोर बसन्ती होवय | सखी मया मा सुध बुध खोवय ||
वन उपवन अति देखत भावय | जब जब ऋतु बसंत के आवय ||
मन्द मन्द महकय पुरवाई | कण कण मा दमकय सुघराई ||
कुहकय रोज कोयली कारी | रंग गंध बगरय जग सारी ||
जाड़ घाम अउ बादर पानी | लागय नटनी खेल कहानी ||
रूप बदल ले घेरी बेरी | होय रेत के जइसन ढेरी ||
मउॅहा बने मतौना आगे | परसा दहकत आगी लागे ||
घम घम ले अामा बौरावय | पिंयर पिंयर सरसों लहरावय ||
आगे बसंत नाचत गावत | कली कली के हिरदय बाचत ||
ओढ़ चुनरिया अबड़ लजाही | धान पान धरती लहराही ||
तार तार ले बीना बाजय | हंस सवारी बने विराजय ||
ज्ञान दायिनी देवी दाई | लागव पइयाॅ मनसा माई ||
छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
छत्तीसगढ़
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बसन्त आगमन के रोला छंद के माध्यम ले सुग्घर चित्रण। बाधाई
ReplyDeleteवाह्ह्ह वाह्ह्ह गजब सुग्घर संग्रह
ReplyDeleteवाह्ह्ह वाह्ह्ह गजब सुग्घर संग्रह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बसन्त ऋतु के बरनन
ReplyDeleteबड़ सुग्घर संकलन.....
ReplyDeleteटंकण त्रुटि गजब दिखत हे।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteताटंक गीत ल जघा दे बर सादर आभार गुरुदेव
ReplyDeleteसुग्घर संकलन
सबला अनंत बधाई,सुग्घर संकलन👌👏👏💐💐
ReplyDeleteएक ले एक सुग्घर सुग्घर छंद रचना वाहह! पढ़ के आनंद आ गे।जम्मो छंदकार मन ला गाड़ा गाड़ा गाड़ा बधाई।अनुपम संकलन बर प्रणम्य गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी ल सादर नमन
ReplyDeleteसुग्घर संकलन सबझन ला बधाई
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