Followers

Tuesday, April 19, 2022

कुण्डलियाँ छन्द- विधान

 कुण्डलियाँ छन्द- विधान


डाँड़ (पद) - ६, ,चरन – १२, पहिली २ डाँड़ दोहा अउ बाद के ४ डाँड़ रोला होथे. माने कुण्डलिया छन्द हर    १ दोहा अउ १ रोला ला मिला के बनाये जाथे.    


तुकांत के नियम – दोहा के पहिली २ डाँड़ मा दोहा के नियम अउ बाद के ४ डाँड़  मा रोला के नियम के पालन होथे.  


हर डाँड़ मा कुल मातरा – २४ दोहा अउ रोला के नियम अनुसार.  


यति / बाधा – दोहा अउ रोला के नियम अनुसार 


खास- कुण्डलिया छन्द मा बहुत अकन खास बात हे. येखर सुरुवात माने दोहा वाले पहिली चरन  के सुरुवात के सबद या सबद समूह या आगू-पीछू करके सबद समूह ला कुण्डलिया के आखिरी मा माने रोला के ८ वाँ चरन के आखिरी मा आना जरूरी होथे. माने कि कुण्डलिया छन्द के मुड़ी- पूँछी एक्के जइसन होना चाहिए. इही पाय के एला कुण्डलिया कहिथें. अइसे लागथे मानों कोन्हों साँप हर कुण्डली मार के बइठे हे अउ ओखर मुड़ी- पूँछी एक्के बरोबर दिखथे. 


कुण्डलिया छन्द के दूसर खासियत ये हे कि दोहा के ४ था चरन हर, रोला के पहिली चरन बने. 


*उदाहरण*


कवि के काम (कुण्डलिया छन्द)


कविता गढ़ना काम हे,  कवि के अतकी जान

जुग परिवर्तन ये करिस, कह गिन सबो सियान

कह गिन सबो  सियान , इही  दिखलावै दरपन

सुग्घर सुगढ़ विचार, जगत बर कर दे अरपन

कविता - मा  भर  जान,  सदा हे आगू बढ़ना 

गोठ  अरुण  के  मान,  मयारू कविता गढ़ना ।।


*अरुण कुमार निगम*

No comments:

Post a Comment