कुण्डलियाँ छन्द- विधान
डाँड़ (पद) - ६, ,चरन – १२, पहिली २ डाँड़ दोहा अउ बाद के ४ डाँड़ रोला होथे. माने कुण्डलिया छन्द हर १ दोहा अउ १ रोला ला मिला के बनाये जाथे.
तुकांत के नियम – दोहा के पहिली २ डाँड़ मा दोहा के नियम अउ बाद के ४ डाँड़ मा रोला के नियम के पालन होथे.
हर डाँड़ मा कुल मातरा – २४ दोहा अउ रोला के नियम अनुसार.
यति / बाधा – दोहा अउ रोला के नियम अनुसार
खास- कुण्डलिया छन्द मा बहुत अकन खास बात हे. येखर सुरुवात माने दोहा वाले पहिली चरन के सुरुवात के सबद या सबद समूह या आगू-पीछू करके सबद समूह ला कुण्डलिया के आखिरी मा माने रोला के ८ वाँ चरन के आखिरी मा आना जरूरी होथे. माने कि कुण्डलिया छन्द के मुड़ी- पूँछी एक्के जइसन होना चाहिए. इही पाय के एला कुण्डलिया कहिथें. अइसे लागथे मानों कोन्हों साँप हर कुण्डली मार के बइठे हे अउ ओखर मुड़ी- पूँछी एक्के बरोबर दिखथे.
कुण्डलिया छन्द के दूसर खासियत ये हे कि दोहा के ४ था चरन हर, रोला के पहिली चरन बने.
*उदाहरण*
कवि के काम (कुण्डलिया छन्द)
कविता गढ़ना काम हे, कवि के अतकी जान
जुग परिवर्तन ये करिस, कह गिन सबो सियान
कह गिन सबो सियान , इही दिखलावै दरपन
सुग्घर सुगढ़ विचार, जगत बर कर दे अरपन
कविता - मा भर जान, सदा हे आगू बढ़ना
गोठ अरुण के मान, मयारू कविता गढ़ना ।।
*अरुण कुमार निगम*
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