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Sunday, April 24, 2022

बर बिहाव सम्बन्धी छंदबद्ध कविता

बर बिहाव सम्बन्धी छंदबद्ध कविता


 अरसात सवैया - बोधन राम निषादराज

विधान - भगण×7+रगण×1 

(बिहाव)


देख बिहाव लगीन धराय बरात चले सब नाचत गात हे।

जोर सँवांग बने कपड़ा पहिरे दुलहा अब हाँसत जात हे।।

मौर सजे गर मा बढ़िया मुसकावत देखत पान चबात हे।

होत बिहाव बड़े मनभावन जीवन मा खुशियाँ अब छात हे।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"

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आभार सवैया - बोधन राम निषादराज

विधान - तगण×8 

(बिहाव)


बाजा बजै ढोल नाचै बराती खुशी ला मनावै ग ठौका मजा पाय।

घूमै सबो गाँव जम्मों घराती सगा हा अघावै बने जी बफे खाय।।

दूल्हा सजे ठाठ राजा दिखै शान भारी फभै रूप मोला बने भाय।

गौना कराके बिदा माँग लावै बराती सबो साथ मा जी बहू लाय।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"

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 ताटंक छंद - बोधन राम निषादराज

(बिहाव के लगन)


बाजा बाजय लगिन धरावै,

                  पहुना आवै  जावै  गा।

एती  ओती  चारो  कोती,

                 मनखे मन सकलावै गा।।1।।


मड़वा गड़गे पहुना जुर गे,

                 गीत मया के गावै जी।

हरदी चढ़गे ओखर अंग म,

                 नवा बहुरिया लावै जी।।2।।


नाता-सैना जम्मों  आवय,

                 अउ अशीष ल देवै गा।

जोड़ी जुग-जुग तोरे राहय,

                  हँसी खुशी सब लेवै गा।।3।।


जनम-जनम के नाता जुड़गे,

                लगन लगे सुख पावै जी।

जीवन भर बर बन सँगवारी,

               जिनगी अपन बितावै जी।।4।।


किरपा ले सब जुड़थे नाता,

                 लिखे भाग के होथे गा।

बिना लगन के मँगनी-जचनी,

                उही दुःख ला बोथे गा।।5।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"

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: विषय: मड़वा हा सजही ( विष्णु पद छंद )


एसो के अक्ती मा  मोरो , मड़वा हा सजही।

जम्मो पहुना मन सकलाही ,बाजा हा बजही।।


हरदी तेल चढ़ाही सुग्घर, देही जी अँचरा।

दीदी भाँटो के सँग आही, अउ भाँची भँचरा।।


मोतीचूर खवाही लाड़ू , माँदी मा मन के।

खीर बरा अउ पापड़ देही , सथरा सब झन के 


 मउर सजाके मँयहा जाहूँ ,मोटर मा चढ़के।

जाही सँग मा मोर बरतिया ,  एक सेक बढ़के।।


बाजा -गाजा मा परघाही, मान गौन करही।

दुल्हिन हा मुस्कावत आही , पाँव मोर परही।।


विधि विधान ले पंडित पढ़ही , साखोचार हमर।

देही शुभ आशीष सबो झन , रइहव सदा अमर।।


सुग्घर दुल्हनिया के सँग मा,सब सुख हा मिलही।

घर आही धरके खुशहाली,मया कमल खिलही।।


                        

                    बृजलाल दावना

                         भैंसबोड़ 

                  6260473556

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मड़वा तरी(सार छंद)


बर बिहाव के बाजा बाजे, छाहे आमा डारा।

गदबिद गदबिद करत हवै घर, गाँव गली अउ पारा।


मड़वा भीतर बइठे दुलरू, मुचुर मुचुर मुस्कावै।

गीत डोकरी दाई गावै, मामी तेल चढावै।।

कका कमर मटकावत हवै, लगा लगा के नारा।

बर बिहाव के बाजा बाजे, छाहे आमा डारा।।


दीदी भाँटो मामा मामी, सब पहुना सकलाहे।

नेंग जोग मड़वा मा होवै, पारा भर जुरियाहे।

लाड़ू खीर बरा सोंहारी, खावै झारा झारा।।

बर बिहाव के बाजा बाजे, छाहे आमा डारा।


बबा ददा दाई भाई सँग, खुश हे आजी आजा।

रात करत हे रिगबिग रिगबिग, दिनभर बाजे बाजा।

माड़ जाय मन मड़वा भीतर, चमके तोरन तारा।

बर बिहाव के बाजा बाजे, छाहे आमा डारा।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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