*विष्णुपद छन्द-विधान*
विधान (१६-१०)
डाँड़ (पद) - २, ,चरन - ४
तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ के आखिर मा माने सम-सम चरन मा, लघु-गुरु (1,2)
हर डाँड़ मा कुल मातरा – २६ , बिसम चरन मा मातरा – १६, सम चरन मा मातरा- १०
यति / बाधा – १६, १० मात्रा मा
सम चरन के आखिर मा (लघु, गुरु)
उदाहरण -
*जिनगी छिन भर के (विष्णु पद छन्द )*
मोर - मोर के रटन लगाथस, आये का धर के
राम - नाम जप मया बाँट ले, जिनगी छिन भर के।
फाँदा किसिम - किसिम के फेंकै, माया हे दुनिया
कोन्हों नहीं उबारन पावै , बैगा ना गुनिया ।
मोह छोड़ जेवर - जाँता के, धन - दौलत घर के
दुन्नों हाथ रही खाली जब , जाबे तँय मर के।
वइसन फल मिलथे दुनिया-मा , करम रथे जइसे
धरम-करम बिन दया-मया बिन, मुक्ति मिलै कइसे।
बगरा दे अंजोर जगत - मा, दिया असन बर के
सदा निखरथे रंग सोन के, आगी - मा जर के।
*गुरुदेव अरुण कुमार निगम*
*नोट* -
शंकर छन्द अउ विष्णुपद छन्द मा दू पद होथे। दुनों पद आपस मा तुकान्त होथे। विषम चरण मा 16 अउ सम चरण मा 10 मात्रा होथे।
*दुन्नों छन्द मा एक अंतर है* कि,
शंकर छन्द के अंत गुरु, लघु (2,1)
से होथे। अउ
विष्णुपद छन्द के अंत लघु, गुरु (1,2)
से होथे।
*अरुण कुमार निगम*
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