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Tuesday, April 19, 2022

विष्णुपद छन्द-विधान*


*विष्णुपद छन्द-विधान*


विधान  (१६-१०)


डाँड़ (पद) - २, ,चरन - ४  


तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ के आखिर मा माने सम-सम चरन मा, लघु-गुरु (1,2)


हर डाँड़ मा कुल मातरा – २६ , बिसम चरन मा मातरा – १६, सम चरन मा मातरा- १०


यति / बाधा – १६, १०  मात्रा मा

सम चरन  के आखिर मा (लघु, गुरु)


उदाहरण -


*जिनगी छिन भर के (विष्णु पद छन्द )*


मोर - मोर  के  रटन  लगाथस, आये  का धर के

राम - नाम जप मया बाँट ले, जिनगी छिन भर के।


फाँदा किसिम - किसिम के फेंकै, माया हे दुनिया

कोन्हों   नहीं  उबारन  पावै , बैगा  ना   गुनिया ।


मोह  छोड़  जेवर - जाँता के, धन - दौलत घर के

दुन्नों  हाथ  रही  खाली  जब , जाबे  तँय मर के।


वइसन  फल  मिलथे दुनिया-मा , करम रथे जइसे

धरम-करम बिन दया-मया बिन, मुक्ति मिलै कइसे।


बगरा  दे  अंजोर  जगत - मा, दिया असन बर के

सदा  निखरथे  रंग  सोन  के, आगी - मा  जर के।


*गुरुदेव अरुण कुमार निगम*


*नोट* -


शंकर छन्द अउ विष्णुपद छन्द मा दू पद होथे। दुनों पद आपस मा तुकान्त होथे। विषम चरण मा 16 अउ सम चरण मा 10 मात्रा होथे।


*दुन्नों छन्द मा एक अंतर है* कि,


शंकर छन्द के अंत गुरु, लघु (2,1)

से होथे। अउ

विष्णुपद छन्द के अंत लघु, गुरु (1,2)

से होथे।

*अरुण कुमार निगम*

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