विधान- छंद त्रिभंगी
*आज एक नवा छन्द सीखबो जेमा हर डाँड़ मा 3 यति आथे* छन्द त्रिभंगी (10, 8, 8, 6 हर डाँड़ के अंत में गुरु)
प्रथम चरन द्विकल या चौकल ले शुरू होवय।
द्वितीय चरन 44 या332 रहय
तृतीय चरन 44 या 332 रहय
चौथइया चरन 33बनय फेर अंत गुरु होना चाही
एकर अनुसार आप मन सिरजन करव
डाँड़ (पद) - 4 ,चरण - हर डाँड़ मा 4 चरण
पहिली चरण - सुरुवात एक गुरु या दू लघु ले. कुल मात्रा 10
दूसर चरण - सुरुवात गुरु,लघु (2,1) ले. कुल मात्रा 8
तीसर चरण - सुरुवात गुरु,लघु (2,1) या लघु,गुरु (1,2) ले. कुल मात्रा 8
चउथा चरण - सुरुवात गुरु,लघु (2,1) आख़िरी मा लघु,गुरु (1,2)
तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ मा आखिरी मा गुरु (2)
पहिली अउ दूसर चरण घलो आपस मा तुकांत होना जरूरी त नइ हे तभो ये दुनो चरण तुकांत रहे ले त्रिभंगी के सुंदरता बाढ़ जाथे.
हर डाँड़ मा कुल मात्रा – 32 ,
यति / बाधा – 10, 8, 8, 6 मात्रा मा
खास –तीसर अउ चउथा चरण ला मिला के 14 मात्रा के भी रखे जा सकत हे. कहूँ-कहूँ अइसनों
उदाहरण मन देखे मा आयँ हे *फेर आप मन 10, 8, 8, 6 यति मा अभ्यास करव*
*अरुण कुमार निगम*
उदाहरण -
मनखे (छन्द त्रिभंगी)
छल-बल न छलावा, छोड़ दिखावा, ताम-झाम ले दूर रहै ।
मनखे - ला जाने, मनखे माने , दया - मया मा चूर रहै ।।
सुध-बुध बिसरा के, मूड़ नवा के, जनहित बर जे, काम करै ।
सहि पीर पराई , करै भलाई, अमर अपन वो, नाम करै।।
धुन - गणेश जी के आरती
गणपति की सेवा, मंगल मेवा, सेवा से सब, विघ्न टरें
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