*विधान-हरिगीतिका छंद*
डाँड़ (पद) - ४, ,चरन - ८
तुकांत के नियम - प्रत्येक दू डाँड़ मा. आख़िरी मा रगण माने गुरु, लघु, गुरु (२,१,२)
हर डाँड़ मा कुल मात्रा – २८ विषम चरण मा मात्रा – १६ सम चरण मा मात्रा - १२
*(विषम अउ सम चरन मा १४, १४ मात्रा घलो हो सकथे।)*
यति / बाधा – १६, १२ मात्रा मा (या १४,१४ मात्रा मा)
खास- ५, १२, १९, अउ २६ वाँ मात्रा लघु होय ले गाये मा ज्यादा गुरतुर लागथे.
*उदाहरण*
*तँय रुख लगा (हरिगीतिका)*
(1)
झन हाँस जी, झन नाच जी , कुछु बाँचही, बन काट के ?
कल के जरा तयँ सोच ले , इतरा नहीं नद पाट के ।
बदरा नहीं बिजुरी नहीं , पहिली सहीं बरखा नहीं
रितु बाँझ होवत जात हे , अब खेत मन बंजर सहीं।।
(2)
झन पाप पुन अउ धरम ला, बिसरा कभू बेपार मा।
भगवान के सिरजाय जल, झन बेंच हाट-बजार मा ।।
तँय रुख लगा कुछु पुन कमा, रद्दा बना भवपार के ।
अपने - अपन उद्धार होही ये जगत - संसार के ।।
अरुण कुमार निगम
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