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Tuesday, April 19, 2022

विधान-हरिगीतिका छंद*

 

*विधान-हरिगीतिका छंद*


डाँड़ (पद) - ४, ,चरन - ८ 


तुकांत के नियम - प्रत्येक दू डाँड़  मा. आख़िरी मा रगण माने गुरु, लघु, गुरु (२,१,२)



हर डाँड़ मा कुल मात्रा – २८ विषम चरण मा मात्रा  – १६               सम चरण मा मात्रा      - १२ 


*(विषम अउ सम चरन मा १४, १४ मात्रा घलो हो सकथे।)*


यति / बाधा – १६, १२ मात्रा मा (या १४,१४ मात्रा मा) 



खास- ५, १२, १९, अउ २६ वाँ मात्रा लघु होय ले गाये मा ज्यादा गुरतुर लागथे.


*उदाहरण*


*तँय  रुख लगा (हरिगीतिका)*


(1)

झन हाँस जी, झन नाच जी , कुछु बाँचही, बन काट के ?

कल के  जरा  तयँ  सोच ले , इतरा नहीं  नद पाट के ।

बदरा  नहीं  बिजुरी  नहीं , पहिली  सहीं  बरखा  नहीं

रितु  बाँझ  होवत  जात हे , अब खेत मन बंजर सहीं।।


(2)

झन  पाप  पुन  अउ  धरम ला, बिसरा कभू बेपार मा।

भगवान  के  सिरजाय  जल, झन  बेंच हाट-बजार मा ।।

तँय  रुख लगा  कुछु पुन कमा,  रद्दा  बना भवपार के ।

अपने - अपन   उद्धार  होही   ये   जगत - संसार के  ।।


 अरुण कुमार निगम 

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